Thursday 24 December 2020

भगवान मिलते हैं या नहीं? दिखते हैं या नहीं?

 दैवीय नियमों के अंतर्गत ही  बनते हैं दिव्य संयोग--डा. भारत   


लुधियाना: 1 जनवरी 2020: (रेक्टर कथूरिया//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

बरसों पहले एक भजन काफी सुनाई दिया करता था जिसे सुन कर पांव ठिठक जाया करते थे। मन शांत हो जाता और आंखें खुद-ब-खुद बंद होने लगती। बिना कोई नशा किये मादकता  सी छाने लगती। उन दिनों जनाब अनूप जलोटा साहिब की आवाज़ में गाया  हुआ यह भजन  बहुत ही लोकप्रिय  था। इस भजन के बोल थे:

राम नाम अति मीठा है, कोई गा के देख ले

आ जाते है राम, कोई बुला के देख ले

इसी भजन की पंक्तियों में राम को बुला सकने की पात्रता का ज़िक्र भी आगे चल कर किया गया है। भजन में मार्गदर्शन देते हुए बताया गया है:

जिस घर में अहंकार वहाँ, मेहमान कहाँ से आए,

जिस मन में अभिमान वहॉँ, भगवान कहाँ से आए ।

अपने मन मंदिर में ज्योत जगा के देख ले,

आ जाते है राम, कोई बुला के देख ले..... 

ऊँचनीच की बात नहीं बस स्नेह को ही कसौटी पर रखा।  आस्था की बात भी नहीं की। केवल स्नेह--केवल प्रेम। भजन कहता है:

आधे नाम पे आ जाते, हो कोई बुलाने वाला

बिक जाते हैं राम कोई हो, मोल चुकाने वाला ।

कोई शवरी जूठे बेर खिला के देख ले,

आ जाते है राम, कोई बुला  ले...!

जीवन की बुराईआं और बुरी शक्तिया किस किस तरह पथ भ्र्ष्ट करती हैं इसका भी।  पूरी तरह सावधान रहने की सीख भी है। ज़रा देखिए:

मन भगवान का मंदिर है, यहाँ मैल न आने देना

हीरा जन्म अनमोल मिला है ,इसे व्यर्थ गवा न देना ।

शीश झुके और प्रभु मिले झुका के देख ले,

आ जाते है राम, कोई बुला कर देख ले!

इस तरह का विश्वास, आस्था और संकल्प कई क्षेत्रों में।   के दर्शन भी किए, भगवन  भी, भगवान शिव के भी और भगवान के अन्य रूपों के भी। साहिब श्री   श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले लोग भी मिले। 

इस तरह की बहुत सी कथा कहानियों और सच्ची बातों के बावजूद सवाल  कायम रहा कि क्या किसी ने वास्तव में भगवान शिव को देखा या अनुभव किया है? । महेश सोलंकी कुओरा पर बताते हैं: यह एक बेहद सुखमय और अविस्मरणीय अनुभूति थी जो मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा। उनका कहना है कि ये किस्सा करीब 4 साल पुराना है शायद। महेश सोलंकी कहते हैं: कुछ मेहमानों के साथ मुझे बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दर्शन के समय में मन में बहोत श्रद्धा और विश्वास से हाथ जोड़के मेरी और मेरे परिवार जनों के लिए आर्शीवाद के लिए प्रार्थना कर रहा था। तब दुपहर 12 बजे की आरती का समय हो गया तो वहाँ के सिक्युरिटी स्टाफ ने हमें एक बाजू चले जाने को कहा और बराबर ज्योतिर्लिंग के सामने बहोत लोगों की भीड़ थी। जब आरती शुरू हुई तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था क्योंकि आगे बहोत लोग खड़े थे। बेबसी भरी हालत हो जाती है ऐसी स्थिति में और आप में से बहुतों ने इसका  किया होगा। मजबूरी की इस स्थिति को महेश स्वीकार करते हुए वह बताते हैं-तो मैं जहाँ खड़ा था वहीं आंख बंद कर के मनोमन सोमनाथ महादेव को श्रद्धा से बिनती करने लगा कि हे महादेव मुझे आरती का दर्शन करना हैं कृपया आप कराइये।  हैरानी भी होती है कि इस तरह  इतनी जल्दी प्रार्थना कैसे सुन ली जाती है। कैसे तुरंत ही अलौकिक सा जवाब भी आ जाता है। लगता है  शायद यही कुछ हुआ था महेश सोलंकी साहिब के साथ।  

वह बताने लगे: कुछ ही पलों में मेरी बंद आंखों से में क्या देख रहा हुँ, प्रत्यक्ष महादेव की लाइव आरती का दर्शन , सामने खुद शिव-पार्वती बैठे हैं उनकी दायीं तरफ शिव गण नाच रहे हैं, बायीं तरफ कुछ देवता खड़े हैं और शंख नाद कर रहे हैं। आरती चालू हैं पार्वती जी मंद मंद मुस्कुरा रहें हैं। मेरी आँखों से अश्रुधारा बह रही हैं और मैं ये चमत्कार को मानने के लिए तैयार नहीं था। कभी कभी हम महसूस करके भी उस विशेष और अलौकिक सी   अनुभूति को स्वीकार नहीं कर पाते। 

ऐसे अनुभवों और उनके विज्ञान पर चर्चा करते हुए बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. भारत कहते हैं यह सब बहुत गहरी बातें हैं और शुद्ध वैज्ञानिक भी हैं।  दर्शन होना भी सत्य है और उसे भूल जाना भी सत्य है।  सब कुछ देख कर भरम में पड़ जानाभी सत्य है।  हमारी विनतियों को सुन कर, हमारी आस्था को देख,  आंसूओं पर तरस करके हमें बहुत ही अल्पकालिक सुविधा दी जाती है जब हमें उस रहस्यमय अलौकिक जगत  के उस परम आनंद की बस थोड़ी सी  झलक दी जाती है। यदि  गहरी मेडिटेशन के लम्बे अभ्यास से अंतर्मन में घैर्य आ चुका हो तो अनुभूति लम्बी भी हो सकती है और स्थाई भी लेकिन अगर स्वभाव  में उथलापन हो,  व्यापारी सोच , उतावलापन हो, अहंकार आ जाये  तो भगवान की इच्छा और  नियमों से बंधी प्रकृति की माया सबकुछ भुला  देती है या आधाअधूरा ही याद रहता।  इस तरह  भरम की स्थिति का पैदा किया जाना दैवीय नियमों के अंतर्गत  ही होता है।   

महेश सोलंकी भी यह सब बताते हुए  कहते हैं कि यह सब हुआ तो था लेकिन उन्हें इसका यकीन नहीं  हो पा  रहा था। वास्तव में केवल महेश सोलंकी ही नहीं  बहुत से लोगों को ऐसा ही होता है। कभी कभी दुःख का  भान नहीं होता और कभी कभी परम आनंद की अनुभूति का भी यकीन नहीं होता। उस दिन सोलंकी साहिब के साथ उनकी पत्नी नहीं आयी थी क्योंकि उनको मैडिटेशन के एक सेमिनार में जाना था। वो अक्सर मैडिटेशन करती हैं और ध्यान लग भी जाता हैं तो कुछ कुछ विज़न आ जाते हैं। मैं अपने साथ जो हुआ ये मान नहीं रहा था और लगता था कि मुझे कोई भ्रमणा हुई होगी। जब देर रात को सोलंकी अपने शहर अपने घर पहुंचे तो  उनकी पत्नी ने कुतूहलवश तुरंत पूछा कि सोमनाथ महादेव का दर्शन का अनुभव कैसा रहा ? सोलंकी से भी पहले वह  बोलने लगी कि आप कुछ मत बताना, मैं बताती हूँ कि क्या हुआ। वो बोली के पहले आप मंदिर में ज्योतिर्लिंग की सन्मुख जा के दर्शन किये, साष्टांग प्रणाम किया बाद में आरती चालू होने वाली थी आप को साइड में भेज दिया, आप कुछ देख नहीं सकते थे तो आप ने आंखे बंद कर ली बाद में आंखे बंद कर के आप जो देख रहे थे वो मैं मैडिटेशन में सबकुछ देख रही थ । साक्षात महादेव और पार्वती जी की आरती हो रही हैं, शिवगण नाच रहे हैं , देवगण शंख नाद कर रहे हैं और आप की आंखों से आंसू की धारा हो रही हैं । मैं बिल्कुल ताज्जुब रह गया , क्योंकि वो मुझसे करीब 300 की.मि. दूर थी और ये सब उसने देखा । मेरी तो बोलती बंद हो गई। मैं फिर से रोने लगा कि सचमुच में मुझे महादेव ने दर्शन दिए। ये कोई काल्पनिक बात नहीं हैं मेरी अपनी अनुभूति की बात हैं, विश्वास रखिये । ईश्वर में श्रद्धा रखने से उनकी हमारे पर कृपा ही बरसती गए। मैं ये बात शेयर नहीं करने वाला था लेकिन ये सोचकर सभी के सामने रखा कि ये किस्सा पढ़कर लोगों की ईश्वर के प्रति श्रद्धा और बढ़ेगी। पढ़ने के लिए धन्यवाद। मैं मेरे इस स्वानुभव के बारे में विवाद नहीं चाहता......।

डाक्टर भारत ने स्पष्ट कहा कि वास्तव में परिवार का माहौल ही आध्यात्मिक है। पति पत्नी दोनों ही धर्म कर्म के मार्ग पर चलने वाले हैं। इससे भी आगे पत्नी इस क्षेत्र में पीटीआई से भी ज़्यादा प्रगति पर है। वास्तव में महेश सोलंकी को लाईव आरती का दर्शन और शिव शंकर भोलेनाथ के विस्तृत दर्शन अपनी पत्नी की कृपा से ही सम्भव हो सके। इस लिए पूरे घर का माहौल ही धर्मकर्म पर आधारित हो तो इसके परिणाम भी इसी तरह के आने लगते हैं। सात्विक जीवन और मेडिटेशन की जो बातें बताई जाती हैं वे कोरी कल्पना नहीं हैं। उनका बाकयदा आधार है। 

जल्द ही हम इस तरह के कुछ अन्य मामले भी सामने लाएंगे। यदि आप किसी विशेष मामले को सामने लाना चाहते हैं तो आपका भी स्वागत है।  

Tuesday 20 October 2020

बीजेपी टीम ने मंदिर जा कर लिया आशीर्वाद

20th October 2020 at 6:21 PM

 कैलाश नगर मंडल की नवनियुक्त टीम हुई नतमस्तक  


लुधियाना
: 20 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//आराधना टाईम्ज़)::
तेज़ी से बढ़ रही नास्तिकता और स्वार्थपूर्ण जीवन शैली के बावजूद अभी भी बहुत से लोग और बहुत वर्ग हैं जो अपने कर्मों लिए भगवान का आशीर्वाद आवश्यक समझते हैं। इन्हीं आस्तिक वर्गों में शामिल हैं भारतीय जनता पार्टी के कई लोग। इस तरह के गिनेचुने धार्मिक लोगों की आस्था आज भी यही है कि सच्ची शक्ति और सच्ची सत्ता केवल भगवान हैं। भगवत कृपा के बिना कुछ भी कर सकना सम्भव ही नहीं।  इसी विश्वास को ले कर वे लोग भगवान का आशीर्वाद लेना बेहद आवश्यक समझते हैं। 
भाजपा कैलाश नगर मंडल की एक बैठक मंडल के प्रधान रोमी मल्होत्रा की अध्यक्षता में नूरवाला रोड पर रोमी मल्होत्रा के दफ्तर में हुयी ! इस बैठक में मंडल प्रभारी जिला उपाध्यक्ष योगेंद्र मकोल,भाजपा के सीनियर नेता डा. सतीश कुमार व शिव पूरी मंडल के प्रभारी, नर्गेश्वर महादेव मंदिर के प्रधान लकी शर्मा विशेष रूप से शामिल हुए। कैलाश नगर मंडल की नवनियुक्त टीम ने मंडल के प्रधान रोमी मल्होत्रा के नेतृत्व में नर्गेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करने के बाद नर्गेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य स्वामी शिवानंद जी महाराज जी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लियाऔर मंडल की टीम ने नतमस्तक होकर जीवन में श्रेष्ठ कामना को लेकर आशीवार्द लिया। नर्गेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य स्वामी शिवानंद जी महाराज जी ने योगेंद्र मकोल, डॉ सतीश कुमार, लकी शर्मा, रोमी मल्होत्रा व नवनियुक्त पूरी मंडल की टीम को सन्मानित किया।  
  इस मौके पर नवनियुक्त मंडल महामंत्री-राकेश नागपाल, रंजीत सिंह नीटा, उपाध्यक्ष-रवि अग्रवाल, प्रेम सिंह खेड़ा, हरविंदर लाली,रमन शोरी, सचिव जय प्रकाश,नीलम टंडन, पवन अरोड़ा, यस कुमर, विनीत तिवारी, मंजीत कौर, संतोष कुमार, परवीन कुमारी, गोविंद द्रिवेदी, सूरत जैन  इत्यादि भी बैठक में उपस्थित रहे। 

Friday 25 September 2020

मौत घटित होने से पहले सम्भव है मौत की तस्वीर खींचना

रूसी वैज्ञानिक किरलियान ने विकसित की 'हाई फ्रिकेंसी फोटोग्राफी'

एक दूसरे रूसी वैज्ञानिक किरलियान ने 'हाई फ्रिकेंसी फोटोग्राफी' विकसित की है। वह शायद आने वाले भविष्य में सबसे अनूठा प्रयोग सिद्ध होगा। अगर मेरे हाथ का चित्र लिया जाए, 'हाईफ्रिकेंसी फोटोग्राफी' से, जो कि बहुत संवेदनशील प्लेट्स पर होती है, तो मेरे हाथ का चित्र सिर्फ नहीं आता, मेरे हाथ के आसपास जो किरणें मेरे हाथ से निकल रही हैं, उनका चित्र भी आता है। और आश्रर्य की बात तो यह है कि अगर मैं निषेधात्मक विचारों से भरा हुआ हूं तो मेरे हाथ के आसपास जो विद्युत—पैटर्न, जो विद्युत के जाल का चित्र आता है, वह रुग्ण, बीमार, अस्वस्थ और 'केआटिक', अराजक होता है — विक्षिप्त होता है। जैसे किसी पागल आदमी ने लकीरें खींची हों। अगर मैं शुभ भावनाओं से, मंगल—भावनाओं से भरा हुआ हूं आनंदित हूं 'पाजिटिव'हूं प्रफुल्लित हूं प्रभु के प्रति अनुग्रह से भरा हुआ हूं तो मेरे हाथ के आसपास जो किरणों का चित्र आता है, किरलियान की फोटोग्राफी से,वह 'रिद्मिमक', लयबब्द, सुन्दरल, 'सिमिट्रिकल ', सानुपातिक, और एक और ही व्यवस्था में निर्मित होता है।

किरलियान का कहना है — और किरलियान का प्रयोग तीस वर्षों की मेहनत है — किरलियान का कहना है कि बीमारी के आने के छह महीने पहले शीघ्र ही हम बताने में समर्थ हो जायेंगे कि यह आदमी बीमार होनेवाला है। क्योंकि इसके पहले कि शरीर पर बीमारी उतरे, वह जो विद्युत का वर्तुल है उस पर बीमारी उतर जाती है। मरने के पहले,इसके पहले कि आदमी मरे, वह विद्युत का वर्तुल सिकुड़ना शुरू हो जाता है और मरना शुरू हो जाता है। इसके पहले कि कोई आदमी हत्या करे किसी की, उस विद्युत के वर्तुल में हत्या के लक्षण शुरू हो जाते हैं। इसके पहले कि कोई आदमी किसी के प्रति करुणा से भरे, उस विद्युत के वर्तुल में करुणा प्रवाहित होने के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं।

किरलियान का कहना है कि केंसर पर हम तभी विजय पा सकेंगे जब शरीर को पकड़ने के पहले हम केंसर को पकड़ लें। और यह पकड़ा जा सकेगा। इसमें कोई विधि की भूल अब नहीं रह गयी है। सिर्फ प्रयोगों के और फैलाव की जरूरत है। प्रत्येक मनुष्य अपने आसपास एक आभामंडल लेकर, एक अति लेकर चलता है। आप अकेले ही नहीं चलते, आपके आसपास एक विद्युत—वर्तुल, एक 'इलेक्ट्रो—डायनेमिक—फील्ड ' प्रत्येक व्यक्ति के आसपास चलता है। व्य क्ति के आसपास ही नहीं, पशुओं के आसपास भी, पौधों के आसपास भी। असल में रूसी वैज्ञानिकों का कहना है कि जीव और अजीव में एक ही फर्क किया जा सकता है, जिसके ' आसपास आभामंडल है वह जीवित है और जिसके पास आभामंडल नहीं है, वह मृत है।

जब आदमी मरता है तो मरने के साथ ही आभामंडल क्षीण होना शुरू हो जाता है। बहुत चकित करनेवाली और संयोग की बात है कि जब कोई आदमी मरता है तो तीन दिन लगते हैं उसके आभामंडल के विसर्जित होने में। हजारों साल से सारी दुनिया में मरने के बाद तीसरे दिन का बड़ा मूल्य रहा है। जिन लोगों ने उस तीसरे दिन को — तीसरे को इतना मूल्य दिया था, उन्हें किसी न किसी तरह इस बात का अनुभव होना ही चाहिए, क्योंकि वास्तविक मृत्यु तीसरे दिन घटित होती है। इन तीन दिनों के बीच, किसी भी दिन वैज्ञानिक उपाय खोज लेंगे, तो आदमी को पुनरुज्जीवित किया जा सकता है। जब तक आभामंडल नहीं खो गया, तब तक जीवन अभी शेष है। हृदय की धड़कन बन्द हो जाने से जीवन समाप्त नहीं होता। इसलिए पिछले महायुद्ध में रूस में छह व्यक्तियों को हृदय की धड़कन बंद हो जाने के बाद पुनरुज्जीवित किया जा सका। जब तक आभामंडल चारों तरफ है, तब तक व्यक्ति सूक्ष्म तल पर अभी भी जीवन में वापस लौट सकता है। अभी सेतु कायम है। अभी रास्ता बना है वापस लौटने का।

जो व्यक्ति जितना जीवंत होता है, उसके आसपास उतना बड़ा आभामंडल होता है। हम महावीर की मूर्ति के आसपास एक आभामंडल निर्मित करते हैं — या कृष्ण, या राम, क्राइस्ट के आसपास — तो वह सिर्फ कल्पना नहीं है। वह आभामंडल देखा जा सकता है। और अब तक तो केवल वे ही देख सकते थे जिनके पास थोड़ी गहरी और सूक्ष्म—दृष्टि हो — मिस्टिक्स, संत, लेकिन 193० में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने अब तो केमिकल, रासायनिक प्रक्रिया निर्मित कर दी है जिससे प्रत्येक व्यक्ति — कोई भी — उस माध्यम से, उस यंत्र के माध्यम से दूसरे के आभामंडल को देख सकता है।

आप सब यहां बैठे है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी आभामंडल है। जैसे आपके अंगूठे की छाप निजी—निजी है वैसे ही आपका आभामंडल भी निजी है। और आपका आभामंडल आपके संबंध में वह सब कुछ कहता है जो आप भी नहीं जानते। आपका आभामंडल आपके संबंध में बातें भी कहता है जो भविष्य में घटित होंगी। आपका आभामंडल वे बातें भी कहता है जो अभी आपके गहन अचेतन में निर्मित हो रही हैं, बीज की भांति, कल खिलेगी और प्रगट होंगी।

मंत्र आभामंडल को बदलने की आमूल प्रक्रिया है। आपके आसपास की स्पेस, और आपके आसपास का 'इलेक्ट्रो—डायनेमिक—फील्ड ' बदलने की प्रक्रिया है। और प्रत्येक धर्म के पास एक महामंत्र है। जैन परम्परा के पास नमोकार है — आश्रर्यकारक घोषणा — एसो पंचनमुकारो, सब्बपावप्पणासणो। सब पाप का नाश कर दे, ऐसा महामंत्र हैनमोकार। ठीक नहीं लगता। नमोकार से कैसे पाप नष्ट हो जाएगा?नमोकार से सीधा पाप नष्ट नहीं होता, लेकिन नमोकार से आपके आसपास 'इलेक्ट्रो— डायनेमिक—फील्ड ' रूपांतरित होता है और पाप करना असंभव हो जाता है। क्योंकि पाप करने के लिए आपके पास एक खास तरह का आभामंडल चाहिए। अगर इस मंत्र को सीधा ही सुनेंगे तो लगेगा कैसे हो सकता है? एक चोर यह मंत्र पढ लेगा तो क्या होगा? एक हत्यारा यह मंत्र पढ लेगा तो क्या होगा? कैसे पाप नष्ट हो जाएगा? पाप नष्ट होता है इसलिए, कि जब आप पाप करते हैं, उसके पहले आपके पास एक विशेष तरह का, पाप का आभामंडल चाहिए — उसके बिना आप पाप नहीं कर सकते — वह आभामंडल अगर रूपांतरित हो जाए तो असंभव हो जाएगी बात, पाप करना असंभव हो जाएगा।

यह नमोकार कैसे उस आभामंडल को बदलता होगा? यह नमस्कार है, यह नमन का भाव है। नमन का अर्थ है समर्पण। यह शाब्दिक नहीं है। यह नमो अरिहंताणं, यह अरिहंतों को नमस्कार करता हूं यह शाब्दिक नहीं है, ये शब्द नहीं हैं, यह भाव है। अगर प्राणों में यह भाव सघन हो जाए कि अरिहंतों को नमस्कार करता हूं तो इसका अर्थ क्या होता है? इसका अर्थ होता है, जो जानते हैं उनके चरणों में सिर रखता हूं। जो पहुंच गए हैं, उनके चरणों में समर्पित करता हूं। जो पा गए हैं, उनके द्वार पर मैं भिखारी बनकर खड़ा होने को तैयार हूं।

किरलियान की फोटोग्राफी ने यह भी बताने की कोशिश की है कि आपके भीतर जब भाव बदलते हैं तो आपके आसपास का विद्युत—मंडल बदलता है। और अब तो ये फोटोग्राफ उपलब्ध हैं। अगर आप अपने भीतर विचार कर रहे हैं चोरी करने का, तो आपका आभामंडल और तरह का हो जाता है — उदास, रुग्ण, खूनी रंगों से भर जाता है। आप किसी को, गिर गये को उठाने जा रहे हैं — आपके आभामंडल के रंग तत्काल बदल जाते हैं।
                                   --ओशो

Friday 11 September 2020

दस रुपए का नोट और गणेश जी की कृपा

 11 सितंबर 2020:आध्यात्मिक बातें 
 ठाकुर जी ने समझाया परमसत्ता के हिसाब किताब का मर्म 
लुधियाना: 11 सितंबर 2020: (मीडिया लिंक रविंद्र//आराधना टाईम्ज़)::
पत्रकारिता में अपनी मेहनत और जुनून से आगे बढ़ने वालों में वह बहुत ही जानामाना नाम बन गया था। प्रिंट मीडिया में काफी अच्छा नाम कमाने के बाद उसने बड़ी छलांग लगाई और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी चमक उठा। यह शायद 90 के दशक की आखिरी तिमाही शुरू होने से भी पहले का ही कुछ वक़्त था।
जिस पत्रकार की बात कर रहा हूं उसके नाम का ज़िक्र फिर कभी सही। फ़िलहाल नाम का ज़िक्र यहां उचित भी नहीं लग रहा क्यूंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात जैसा महसूस होने का चोटिल सा अहसास हो सकता है। फिर भी काम चलाने को आप उसे एस एस डी कह सकते हैं अर्थात शुद्ध अंग्रेजी में SSD होगा। 
हम अधिकतर दोस्त उसे आम तौर पर इसी तरह के एक अन्य नाम से बुलाया करते थे। उसने ज़मीनी हकीकतों को नज़दीक से देखा था। हर कोई सच का सामना नहीं कर पाता। कई हकीकतों को कई लोगों ने खुद भी बेहद नज़दीक से देखना चाहा लेकिन बहुत से ऐसे सच वक़्त और हालात ने भी उनके सामने ला रखे जिनकी कल्पना उन्होंने सपने में भी नहीं की थी। इसलिए ज़िंदगी के रंग बहुत अजीब से भी लगने लगते हैं।
एक दिन हम कहीं जा रहे थे। दोनों की जेब भी खाली थी और ऊपर से स्कूटर अचानक रुक गया। तेल की टैंकी भी खाली हो गई थी। उस टूटे फूटे स्कूटर ने हमारा बहुत साथ दिया था। उसका सफेद रंग था इसलिए हम उसे चिट्टा घोड़ा कहा करते। अपने घोड़े को इतनी शाबाशी तो कोई तांगेवाला भी न देता होगा जितनी शाबाशी उस टूटे फूटे सफेद स्कूटर को हम दिया करते थे। 
कुछ कदम तक स्कूटर को ठेलते हुए पैदल चल कर जब सांस फूलने लगी तो एक साथ दो नाम हमारे ध्यान में आये। सोचा इनसे पैसे मांग लेते हैं। उन दिनों दस रूपये में तेल डलवा कर हम इतना खुश हो लेते थे कि न जाने कितनी मंज़िलें सर कर ली हों। ज़्यादा बड़ी बात यह होती कि बहुत ही मेहनत से लिखी खबर को फैक्स वाले पीसीओ तक पहुंच कर अख़बार के दफ्तर प्रेषित कर सकेंगे। खबर को अगले दिन की अख़बार में कितनी जगह मिलती है इसकी इंतज़ार भी कम रोमांचिक नहीं होती थी। खैर जब तेल खत्म हुआ तो उस समय हम लुधियाना की घुमार मंडी में के इलाके में थे और पहुंचना था प्रीत पैलेस से कुछ आगे स्थित दीवान पीसीओ पर।
सो इस मकसद के लिए एक जानकार से मैंने पैसे मांगें और दुसरे से एस एस डी ने। हम तो यह सोच कर दोनों के पास अलग अलग गए थे तांकि अगर एक ने इंकार किया तो दूसरा दे देगा। लेकिन यहां तो दोनों से दोनों को ही मिल गए। हम सोच रहे थे कि दस रुपयों का तेल डलवाने के बाद अब पांच रूपये के दो दो कुलचे छोले खा लिए जाये और पांच रूपये की चाय पी ली जाये। यूं तो उन दिनों पांच रूपये के तीन कुलचे छोले आते थे लेकिन रोज़ का लिहाज़ था और हमें लगता था कि आज पांच रुपयों के वह चार कुलचे छोले दे देगा। उसने सचमुच दे भी दिए। इससे थोड़ा भूख शांत होने की उम्मीद थी।
इतने में ही एक हाथी दूर से सड़क का मोड़ मुड़ता हुआ दिखाई दिया और एस एस डी ने दस का वही इकलौता नोट हाथी वालों के साथ चलते काफिले की तरफ बढ़ा दिया यह कह कर कि गणेश जी हमारे दुःख दर्द दूर करेंगे। कमाल की बात कि उस हाथी के साथ चल रहे साधु बाबाओं का हाथ नोट तक पहुंचने से पहले हाथी ने सूंढ़ लम्बी करके वह दस रूपये का नोट पकड़ लिया। सीन बहुत ही अच्छा बन गया था लेकिन मुझे गुस्सा बहुत आया। इसी दस रूपये वाले नोट के दम पर तो हमने चाय भी पी ली थीऔर छोले कुलचे भी खा लिए थेअब इसके पैसे कहां से देंगें। दस का नोट तो अब गणेश जी को दे दिया।
मुझे गुस्से में आया देख कर एस एस डी बोला बाबा जी चिंता मत करो। मुझे उन दिनों सभी लोग बाबा जी कहा करते थे। एस एस डी ने अपनी बात जारी रखी। गणेश जी सब ठीक कर देंगें। हाथी जी का और उनको पालने वाले काफिले वालों का खर्चा भी तो इसी तरह चलता है। हमारे खर्चे के लिए भी गणेश जी कुछ सोचते होंगें। मुझे एस एस डी कभी भी इतना गंभीर नहीं लगा था। मुझे लगा सिख परिवार में पैदा होने के बावजूद सिगरेटें पीते पीते यह एस एस डी अब पूरी तरह हिन्दु रंग में रंग गया है। हालांकि इसी एस एस डी ने सिख संघर्ष पर बनी एक जानीमानी और बहुचर्चित फिल्म में भी सक्रियता से योगदान दिया। उन दिनों तो यही लगने लगा था कि कहीं एस एस डी बाकायदा अमृत छक कर सिंघ तो नहीं सज गया।  उसके बारे में आ रहे ख्यालों के साथ साथ ही यह भी महसूस होने लगा कि दुनिया की आर्थिकता कितनी गहराई से आपस में जुड़ी हुई है। कुदरत एक दुसरे को एक दुसरे का सहायक बनाये रखती है। एस एस डी के "प्रवचनों" का मनन करते हुए  चाय के आखिरी घूंट मैं इसी चिंता के साथ पी रहा था कि अब चाय समाप्त होने के बाद चाय वाले को पैसों के उधार  चक्कर कैसे कहना है! चाय की चुस्कियां लेते लेते मैं चाह रहा था कि चाय का गिलास तब तक खत्म न हो जब तक चाय वाले को आज फिर उधारी वाली बात कहने की हिम्मत मुझमें नहीं आ जाती।
इतने में ही हमारे दो तीन अमीर दोस्त उधर आ निकले और हमारे औपचारिकता वश मना करने के बावजूद सारे का सारा बिल उन्होंने ही दे दिया। मुझे यह सब किसी करिश्मे से कम नहीं लग रहा था। बिल अदा हो चुका तो मुझे खत्म हो चुकी चाय का स्वाद अब आया। सोचा इसी ख़ुशी में चाय का एक कप और पी लिया जाए लेकिन मन में आया लालच अच्छा नहीं होता।  यूं भी अभी बाकी बहुत से बिल बकाया थे। फैक्स का बिल। अपनी जेब के खर्चे। रोज़ गार्डन के पास लिए गए कमरे का किराया। घर का राशन। बहुत सी चिंताएं थी। मन में गिला शिकवा सा भी आ गया और मन में उठा सवाल, "गणेश जी आप ने हमारे लिए सिर्फ चाय का बिल ही देना था क्या? अब बाकी सब का हम क्या करें? अब किस से मांगें कुछ और?" सवाल हमारे दिल और दिमाग से निकल कर शायद रुक  रही ठंडी ठंडी हवा में गम हो गया।  
चाय वाली दुकान के उस गर्म माहौल से बाहर  निकलते ही हवा की ठंडक फिर से चेहरे पर महसूस हुई तो साथ ही वहां चल रहे ट्रांज़िस्टर पर एक पुराना गीत bhi शुरू हो गया,
"जहां ठंडी ठंडी हवा चल रही है--
किसी की मोहब्बत वहां जल रही है.....!" 
मैंने एस एस डी से कहा ज़रा रुको यह गीत पूरा सुन लेने दो। जवाब में वह बोला जिसका दिल आपके लिए या जिसके लिए आपका दिल जल रहा है न वह पीएयू के जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट वाली कैंटीन पर आपका इंतज़ार कर रही है। मुझसे उसका झगड़ा चल रहा था  मैं बहुत ही हैरान भी हुआ और पूछा तुम्हे कैसे मालूम?  
जवाब में एस एस डी ने कहा आज सुबह टेलीफोन पर बात हुई थी। आज आपका झगड़ा सुलझाना है। आज गुस्सा छोडो और उसके साथ चाय पी लो। साथ में केक और पेस्ट्री का प्रबंध भी होगा। आज पार्टी मेरी तरफ से। मन में तुरंत ख़ुशी, उत्साह और हैरानी की मिलीजुली सी लहर भी उठी। वह उन दिनों एक अंग्रेजी अख़बार में काम करती थी और कार में आती जाती थी। कभी कभी उसकी कार और कोठी देख कर मन में इंफियरिटी कम्प्लेक्स भी आता लेकिन जल्द ही बात आई गई  हो जाती।  
हम उस तरफ जाने के लिए
 स्कूटर स्टार्ट कर रहे थे कि अचानक कांग्रेस के चुनावी इंचार्ज रह चुके प्यारा सिंह ढिल्लों हमारे सामने हमारे बिलकुल पास आ कर रुके। एक बार फिर चाय का आर्डर उन्होंने भी दे दिया। हमने कहा भी कि हमने चाय पी है लेकिन वह कहने लगे कुछ ज़रूरी बात करनी है बैठ कर ही हो सकेगी बाकी चाय का क्या है यह तो सर्दी में पता ही नहीं लगता। 
वहां बैठते ही उन्होंने हमें चुनाव के दिनों में प्रकाशित हुए विज्ञापनों के बाकी बचे पैसे दे दिए जो काफी देर से उनकी पार्टी की तरफ रुके हुए थे। अब हम दोनों को पच्चीस पच्चीस सो रूपये मिल चुके थे। उस ज़माने में यह रकम बहुत बड़ी थी। इसके साथ ही हमें पंख लग गए। हमने उन्हें आभार व्यक्त किया। फैक्स का बिल दिया। तेल भी और डलवाया और घर का कुछ राशन भी लिया। खबरें लिखने का जोश फिर से दोगुना हो गया। इसके साथ ही समझ आया कि गणेश जी को दिए दस रूपये व्यर्थ नहीं गए थे। वे कितना कुछ ले कर लौटे। उसी दिन यह भी समझ आया कि हम सभी आपस में किसी अदृश्य तार से जुड़े हुए होते हैं। हम दूसरों का ध्यान रखेंगे तो दुसरे भी हमसे इसी तरह पेश आएंगे। हम सभी किसी न किसी   कुछ लगते हैं। 
मुझे यह घटना और बाकी सब कुछ पूरी तरह भूल चुका था लेकिन अचानक एक दिन नामधारी समुदाय के सद्गुरु ठाकुर दलीप सिंह जी के प्रवचनों को सुनते हुए याद आया कि ऐसी संवेदना, ऐसा अहसास केवल भारत में ही सम्भव है। पत्थर में भी भगवान का अहसास कर लेना, चांद को भी मामा कह कर पुकारना, धरती को मां कहना, पहाड़ों में भी ईश्वरीय सत्ता को महसूस कर लेना, वायु में भी देवता की शक्ति को महसूस करना, जल में भी दिव्यता से भरी शक्ति का पान करना क्या ऐसी आस्था कहीं और मिलती है?  है न मेरा भारत महान! क्या दुनिया के किसी और कोने में ऐसा विश्वास कहीं मिलता है? ठाकुर जी कहते हैं है तो सारी दुनिया उसीके रंग में रंगी हुई लेकिन भारत पर भगवान की विशेष कृपा रही है। हमारे कर्मों ने ही समाज की दुर्दशा की है। पूजा, पाठ और पवित्रता के जीवन को अपनाते ही उसकी कृपा बरसनी शुरू हो जाती है। 
मुझे यह बातें कभी जचती और कभी नहीं भी जचती लेकिन एक दिन तो हद हो गयी। एक धार्मिक आयोजन में ठाकुर जी के काफी नज़दीक खड़ा था। किसी ख़ास दृश्य को कैमरे में कैद करने के लिए। किसी श्रद्धालु ने अपनी सभी जेबें टटोल कर दस रूपये का मैला कुचैला सा नोट निकाला और ठाकुर जी के सामने रख दिया। श्रद्धालु की उम्र 50 के  होगी। मुझे उस नोट की हालत देख कर कुछ घृणा सी हुई। इतना मैला कुचैला नोट! पसीने से भीगा हुआ! क्या इसने यही नोट यहां माथा टेकना था?
वह तो चला गया लेकिन मेरा मन अजीब सा बना रहा। मेरे मन की भावना और चेहरे के हावभाव को भांपते हुए ठाकुर जी बोले यह दस रूपये का नोट इसकी मेहनत की कमाई का अनमोल हिस्सा है। यह दस लाख रुपयों से भी बढ़ कर है। गरीब मज़दूर जब एक पैसा भी दे तो वह अनमोल होता है। इसी को भाग लगते हैं। देखना एक दिन यही शख्स कितने पैसे  बनेगा। मेरे मन की आशंका जाने का नाम नहीं ले रही थी। बहुत देर तक मैं हैरानी भरे सदमे की स्थिति में रहा।
मैं कैमरा लिए कवरेज कर रहा था कि अचानक ही ठाकुर जी ने मुझे नज़दीक आने का इशारा किया। पास हुआ तो उन्होंने कान में कहा याद है एक बार गणेश जी ने आप लोगों के दस रूपये बहुत स्नेह और सम्मान से कबूल किये थे। उसके बाद आपका भी सब नक्शा ही बदल गया था।  
पहले तो मैं कुछ सकपकाया लेकिन बाद में सब याद आ गया। मेरी आँखें भर आई। यह बात भी आई गई हो गई लेकिन आज सोचा इसे लिख कर सहेज ही लूं।
मैं हैरान था करीब बीस वर्षों से भी अधिक पुरानी यह बात ठाकुर जी कैसे जानते हैं? ठाकुर जी की बात सुन कर मैं काफी देर हैरानी भरे अजीब से सदमे में रहा। मुझे एक बार फिर अहसास हुआ कि समस्त दुनिया किसी परमसत्ता की देखरेख में ही है। हम मानें या न मानें लेकिन बहुत कुछ ऐसा होता है जो हमारे किये से कभी नहीं होता लेकिन जब ऊपर वाला चाहे तो बिगड़ा हुआ काम भी झट से बन जाता है। इसी सिलसिले की कुछ और बातें अलग पोस्टों में भी होंगीं। फ़िलहाल इतना ही। --मीडिया लिंक रविंद्र 

संत बाबा देवरहा की सच्ची कहानी डाक्टर भारत की ज़ुबानी

900 वर्ष तक जीने वाले  बाबा  के पास खेचरी मुद्रा की सिद्धि भी थी 
 एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे! 
 परम पूज्य गुरदेव देवरहा बाबा के जीवन काल की  सच्ची बातें बता रहे हैं डाक्टर भारत 
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं.)
भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा. डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था. पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे. प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया. बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे। मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था।वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था। अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया। लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई।अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं। मुझे अच्छी तरह याद है और मैं वहाँ मौजूद भी था। कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था।प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई।आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। 
इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग। बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे।  उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं।  उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया. ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।  
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया. वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं। वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा। बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटेविहीन। यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे। 
उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं।डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 54 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्तज लुटाई। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह। हां, बलिष्ठ कदकाठी भी थी. लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी और फिर अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का मिजाज बदल गया।  यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे। डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर आमादा है। उस दिन 11 तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी।  लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया। भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। जय सद्गुरुदेव। 
--डॉक्टर भारत अध्यक्ष फर्स्ट इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो FIB व अध्यात्म विज्ञान लेखक द्वारा अग्रेषित

Friday 21 August 2020

नास्तिक कौन? बता रहे हैं ओशो

 लेकिन नास्तिक के पीछे एक ग्रंथि है.... 
नास्तिक मेरे लिए वही आदमी है, जिसको कोई बहुत गहन पीड़ा का अनुभव किसी जन्म में हो गया। 
यह तस्वीर नास्तिक भारत से साभार ली गई है 
वह पीड़ा इतनी भयंकर थी कि वह दोबारा उसको पुनरुक्त नहीं करना चाहता। वह अपने को समझाता है, परमात्मा है ही नहीं। वह अपने को तर्क देता है। वह अपने चारों तरफ तर्क का एक जाल निर्मित करता है। वह अपने ही खिलाफ षड्यंत्र रचता है। वह किसी दूसरे का धर्म बिगाड़ने को नहीं है, न तुमसे उसे कुछ मतलब है।
अन्यथा तुम सोचो, ऐसे नास्तिक हैं जो जीवनभर, ईश्वर नहीं है, यह सिद्ध करने में समय व्यतीत करते हैं। है ही नहीं जो, उसके लिए तुम अपना जीवन क्यों खराब कर रहे हो? तुम कुछ और कर लो। ईश्वर तो है ही नहीं, बात खत्म हो गई। लेकिन जीवनभर व्यतीत करते हैं!
मेरी अपनी प्रतीति यह है कि कभी—कभी भक्तों को भी वे मात कर देते हैं। भक्त भी इतनी संलग्नता से जीवन व्यतीत नहीं करता परमात्मा के लिए, जितना नास्तिक करते हैं। लिखते हैं, सोचते हैं, तर्क जुटाते हैं, समझाते हैं, शास्त्र लिखते हैं बड़े—बड़े कि ईश्वर नहीं है।
इस सब के पीछे कुछ मनोविज्ञान होना चाहिए। जो है ही नहीं, उसकी कौन फिक्र करता है? कोई तो सिद्ध नहीं करता कि आकाश—कुसुम नहीं होते। कोई तो सिद्ध नहीं करता कि गधे को सींग नहीं होते। इसको क्या सिद्ध करना है! और जो सिद्ध करे, वह गधा। क्योंकि इसको क्या प्रयोजन है? गधे को सींग नहीं होते, यह जाहिर बात है, खत्म हो गई। इसको कोई भी सिद्ध करने की जरूरत नहीं है।
लेकिन ईश्वर नहीं है, अगर ईश्वर भी ऐसा है जैसे कि गधे के सींग नहीं हैं, तो क्या पागलपन कर रहे हो! किसको सिद्ध कर रहे हो? किसके लिए लड़ रहे हो? क्या प्रयोजन है? सिद्ध भी कर लोगे, तो क्या सार है? जो था ही नहीं, उसको तुमने सिद्ध कर लिया कि वह नहीं है, क्या पाया? कहीं और जीवन ऊर्जा को लगाते, कहीं और खोजते।
लेकिन नास्तिक के पीछे एक ग्रंथि है। वह ग्रंथि यह है कि अगर वह सिद्ध न करे कि ईश्वर नहीं है, तो डर है कि कहीं फिर कदम उसी तरफ न उठने लगें। यह बड़ी अचेतन प्रक्रिया है। यह उसके अनकांशस में है। उसे भी पता नहीं है। --संजीव वर्मा 
गीता दर्शन, प्रवचन -179, ओशो

Tuesday 7 July 2020

गुरुकृपा से बन जाती है हर एक बिगड़ी बात

 जो भाग्य में नहीं लिखा होता वह भी मिलने लगता है  
इस प्रतीकात्मक तस्वीर को अभिनव गोस्वामी ने 11 नवम्बर 2015 को सुबह 11:16 पर क्लिक किया
अध्यात्मिक दुनिया: 07 जुलाई 2020: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
सत्य विपरीत रूपों में भी सत्य ही रहता है। कभी कभीं उसके विपरीत ध्रुव या बदले हुए रूप देख कर कन्फ्यूज़न होने लगता है कि आखिर असली सच कौन सा है? लेकिन सच तो सच ही रहता है। उस पर रंग या हालात का असर महसूस होने भी लगे तो भी वे सभी प्रभाव अल्प काल के ही होते हैं। 
यही कहानी जिंदगी और किस्मत के सत्यों पर भी लागू होती है। भले हीं आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर अगर गुरु की कृपा आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही लिखा था  या नहीं लिखा हैं।
इस प्रतीकात्मक तस्वीर को Khirod Behera ने 07 जून 2020 को
बाद दोपहर 1:00 बजे क्लिक किया 
शायद एक कहानी से आपको यह बात सुगमता से समझ में आ सके। काशी नगर के एक धनी सेठ थे जिनके कोई संतान नही थी। बड़े-बड़े विद्धान ज्योतिषियों से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठ जी को किसी ने सलाह दी कि आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते हैं और बहुत ही श्रद्धा और आस्था से पढ़ते हैं। जब वह रामायण पढ़ते हैं तो कहा जाता है कि तब भगवान राम स्वयं उस कथा को सुनने आते हैं। इसलिये उनसे कहना कि भगवान से पूछें कि आपके संतान कब होगी? सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते हैं। अपनी समस्या के बारे में भगवान से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है कि प्रभु वो सेठजी आये थे जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। तब भगवान राम ने कहा कि गोस्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं। इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं। दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।
थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते हैं और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है कि भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। व्यापारी की पत्नी संत जी को दो रोटी दे देती है। उससे प्रसन्न होकर संत जी ये कहकर चले जाते हैं कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी। 
एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वां संताने हो जाती है। कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता है।व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते हैं। उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है कि ये बच्चे किसके हैं। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही हैं। आपने तो झूठ बोल दिया कि भगवान ने कहा की मेरे संतान नही होगी। पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वां संताने हुई हैं। गोस्वामी जी यह सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है।  शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं तो भगवान उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया। आपने तो कहा ना कि व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है। फिर उसके दो संताने कैसे हो गई? तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता था क्योकि मैं नियमो की मर्यादा में बंधा हूं पर अगर मेरे किसी संत सतगुरु ने उन्हें कह दिया कि तुम्हारे संतान होगी तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी क्योकि मैं भी संतों की मर्यादा से बंधा हूं मै पूर्ण संतो के वचनों को काट नही सकता। मुझे संत की बात रखनी पड़ती हैं। इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते कि जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वह सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके भाग्य मे नही लिखा हैं।

--------इस कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही।

भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख।

भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता है।

सतिनाम श्री वाहिगुरू 

Sunday 28 June 2020

रूस के लोग अंधविश्वासी नास्तिक हैं-ओशो

 हिंदुस्तान के लोग अंधविश्वासी आस्तिक हैं-ओशो 
सोशल मीडिया//Whats App//28 जून 2020:(आराधना टाईम्ज़ रिसर्च डेस्क)::
ईश्वर को मानने वाला भी अंधविश्वासी हो सकता है, ईश्वर को न मानने वाला भी उतना ही अंधविश्वासी, उतना ही सुपरस्टीशस हो सकता है। अंधविश्वास की परिभाषा समझ लेनी चाहिए। अंधविश्वास का मतलब है, बिना जाने अंधे की तरह जिसने मान लिया हो। रूस के लोग अंधविश्वासी नास्तिक हैं, हिंदुस्तान के लोग अंधविश्वासी आस्तिक हैं। दोनों अंधविश्वासी हैं। न तो रूस के लोगों ने पता लगा लिया है कि ईश्वर नहीं है और तब माना हो, और न हमने पता लगा लिया है कि ईश्वर है और तब माना हो। तो अंधविश्वास सिर्फ आस्तिक का होता है, इस भूल में मत पड़ना। नास्तिक के भी अंधविश्वास होते हैं। बड़ा मजा तो यह है कि साइंटिफिक सुपरस्टीशन जैसी चीज भी होती है, वैज्ञानिक अंधविश्वास जैसी चीज भी होती है। जो कि बड़ा उलटा मालूम पड़ता है कि वैज्ञानिक अंधविश्वास कैसे होगा! वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होता है।

अगर आपने युक्लिड की ज्यामेट्री के बाबत कुछ पढ़ा है, तो आप पढ़ेंगे, बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं ज्यामेट्री तो युक्लिड कहता है रेखा उस चीज का नाम है जिसमें लंबाई हो, चौड़ाई नहीं। इससे ज्यादा अंधविश्वास की क्या बात हो सकती है? ऐसी कोई रेखा ही नहीं होती, जिसमें चौड़ाई न हो। बच्चे पढ़ते हैं कि बिंदु उसको कहते हैं जिसमें लंबाई चौड़ाई दोनों न हों। और बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इसको मानकर चलता है कि बिंदु उसे कहते हैं जिसमें लंबाई  चौड़ाई न हो। जिसमें लंबाई चौड़ाई न हो, वह बिंदु हो सकता है?

हम सब जानते हैं कि एक से नौ तक की गिनती होती है, नौ डिजिट होते हैं, नौ अंक होते’ हैं गणित के। कोई पूछे कि यह अंधविश्वास से ज्यादा है? नौ ही क्यों? कोई वैज्ञानिक दुनिया में नहीं बता सकता कि नौ ही क्यों? सात क्यों नहीं? सात से क्या काम में अड़चन आती है? तीन क्यों नहीं? ऐसे गणितज्ञ हुए हैं। लिबनीत्स एक गणितज्ञ हुआ है जिसने तीन से ही काम चला लिया। है।, उसका ऐसा है कि एक, दो, तीन, फिर आता है दस, ग्‍यारह, बारह, तेरह, फिर आता है बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस। बस, ऐसी उसकी संख्या चलती है। काम चल जाता है, कौन सी अड़चन होती है! वह भी गिनती कर लेगा यहां बैठे लोगों की। और वह कहता है कि मेरी गिनती गलत, तुम्हारी सही, कैसे तुम कहते हो २: हम तीन से ही काम चला लेते हैं। वह कहता है, नौ की जरूरत क्या है? नौ कौन कहता है? आइंस्टीन ने बाद में कहा कि तीन भी फिजूल है, दो ही से काम चल जाता है। सिर्फ एक से नहीं चल सकता, बहुत मुश्किल होगी। दो से भी चल सकता है। नाइन डिजिट, नौ आकड़े होने चाहिए गणित में, यह एक वैज्ञानिक अंधविश्वास है। लेकिन गणितज्ञ भी पकडे हुए बैठा है कि इतने ही हो सकते हैं आकड़े। उससे कहो कि सात से काम चलेगा, तो वह भी मुश्किल में पड़ जाएगा। यह भी मान्यता है, इसमें कुछ और ज्यादा मतलब नहीं है।

हजारों चीजें वैज्ञानिक रूप से हम मानते हैं कि ठीक हैं, वे अंधविश्वास ही होती हैं। तो वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होते हैं। इस युग में तो धार्मिक अंधविश्वास क्षीण होते जा रहे हैं, वैज्ञानिक अंधविश्वास मजबूत होते चले जा रहे हैं। फर्क इतना होता है कि अगर धार्मिक आदमी से पूछो कि भगवान का तुम्हें कैसे पता चला? तो वह कहेगा कि गीता में लिखा है। और अगर उससे यह पूछो कि तुम यह कह रहे हो कि गणित में नौ आकड़े होते हैं, यह तुम्हें कैसे पता चला है? तो वह कहेगा कि फलां गणितज्ञ की किताब में लिखा हुआ है। फर्क क्या हुआ इन दोनों में? एक गीता बता देता है, एक कुरान बता देता है, एक गणित की किताब बता देता है। फर्क क्या है?

मैं अंधविश्वास के एकदम विरोध में हूं। सब तरह के अंधविश्वास टूटने चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तोड्ने के लिए अंधविश्वासी हूं कि किसी भी चीज को तोडना चाहिए तो फिर बिना फिकिर उसको तोड्ने में लग जाने की जरूरत है। वह ठीक है या गलत, इसकी फिक्र छोड़ो, तोड़ो पहले, तोडना जरूरी है। फिर यह तोडना भी एक अंधविश्वास हो जाएगा।

इसका मतलब यह हुआ कि हमें समझ लेना चाहिए कि अंधविश्वास, सुपरस्टीशन का मतलब क्या है।

 सुपरस्टीशन का मतलब है कि जिसे हम बिना जाने मान लेते हैं। और हम बहुत सी चीजें मान लेते हैं। और बहुत सी चीजें बिना जाने इनकार कर देते हैं, यह भी अंधविश्वास है।

ओशो
मैं मृत्यु सिखाता हूँ

Saturday 6 June 2020

श्री अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई से नियमों का पूरा विवरण इस पोस्ट में

 यात्रा के दिन केवल 14 होंगें-स्वास्थ्य नियमों में होगी ज़यादा सख्ती  
जम्मू: 6 जून 2020: (कार्तिका सिंह//आराधना टाईम्ज़)::
बाबा अमरनाथ बर्फानी के दर्शन एक ऐसा दिव्या सपना है जो किस्मत वाले लोग ही देखते हैं। इनमें से भी केवल वही खुशनसीब कहे जाते हैं जिनका ह सपना साकार भी हो जाता है। किस्मतवालों को इन दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है वरना ज़िंदगी की मजबूरियां किसी न किसी रूप में आ कर रास्ता रोक ही लेती हैं। ऐसे में दिव्य कृपा ही सहायक होती है। इस बार कोरोना के कहर में ज़िंदगी पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गयी है। स्थानीय धर्म स्थल भी एक लम्बे आरसे के बाद खुलने वाले हैं। ऐसे में कोरोना के कारण इस बार की अमरनाथ यात्रा भी मात्र 14 दिनों की ही होगी। 
इस बार यह यात्रा 21 जुलाई को शुरू हो कर 3 अगस्त तक चलेगी। तीन अगस्त को आ रही श्रावण पूर्णिमा को यह यात्रा समाप्त होगी। इस यात्रा में शिरकत करने वालों के लिए इस बार भी बहुत सी शर्तों का ढेर है। दुर्गम स्थानों की यात्रा के लिए ऐसा करना आवश्यक भी है। 
इनमें मुख्य शर्त यह है कि 14 साल से कम और 55 साल से अधिक आयु वालों को इस यात्रा की अनुमति नहीं होगी जबकि स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के अतिरिक्त कोरोना टेस्ट करवा कर उसका प्रमाणपत्र भी संलग्न करना होगा। इस तरह बहुत से लोग श्रद्धा भावना के बावजूद इस पावन यात्रा से वंचित रह जायेंगे। आज्ञा मिलने के बाद श्रद्धालु बालटाल मार्ग से यात्रा करेंगे लेकिन कितनी संख्या में करेंगे फिलहाल इसकी जानकारी नहीं है।
यह जानकारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अधिकारी ने बाकायदा अपनी वेबसाईट पर भी दी है। जानकारी के मुताबिक पवित्र गुफा तक के मार्ग से बर्फ हटाने का काम शुरू हो गया है। इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि  इस बार यात्रियों के पास कोरोना टेस्ट प्रमाणपत्र होना अनिवार्य होगा। यह प्रमाण पत्र जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर जांचे जाएंगे। यात्रा परमिट या एप्लिकेशन फॉर्म के लिए निश्चित परफॉर्मा यहां क्लिक करके देखा जा सकता है। 
बहुत से लोग इस पावन यात्रा को अपने अपने ग्रुप बना कर करते हैं। ग्रुप को पंजीकृत करने की प्रक्रिया अलग से होती है। उसके नियम कुछ अलग हैं। उसकी सावधानियां और ज़िम्मेदारियाँ भी अलग से होती हैं। बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सुरक्षित यात्रा के लिए ऐसा करना आवश्यक भी है। उन नियमों और प्रक्रिया को देखने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं
 बहुत से लोग अपने अपने तौर पर बैंकों के ज़रिये रजिस्ट्रेशन करवा कर इस यात्रा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। ऐसी स्थिति में यह पता लगाना भी कई बार कठिन होता है कि किस बैंक की किस शाखा में यह सुविधा है और कहाँ नहीं है? इस दुविधा को दूर करने का प्रयास करते हुए हम यहां विभिन्न राज्यों में स्थित सबंधित बैंकों की सूची भी दे रहे हैं जिसे आप यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं। 
 यात्रा के लिए स्वास्थ्य नियमों का पालन बहुत ही कढ़ाई से होता है। इस बार कोरोना के कारण सख्ती और भी ज़्यादा होगी। हैल्थ एडवाईजरी का पालन सभी के हिट में होगा। व्यक्तिगत हित में भी और परिवार बी सामूहिक समाज के हित में भी। ऐसे में श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड ने हैल्थ एडवाईजरी भी जारी की है जिसे आप विस्तार से देख सकते हैं बस यहां क्लिक करके। हम अपनी अन्य पोस्टों में भी इस यात्रा से सबंधित विवरण देते रहेंगे। 

Tuesday 12 May 2020

पुरानी कहानियां भी दे रही हैं नए नए संदेश

उनमें छुपे शाश्वत सत्यों को समझिये और जीवन में उतारिये 
लुधियाना12 मई 2020: (कार्तिका सिंह//आराधना टाईम्ज़)::
वक्त बदला तो कहानियां भी बदल रही हैं। लॉक डाउन ने बहुत कुछ नया सोचने का वक्त भी दिया है। लॉक डाउन से सन्नाटा छाया मोर भी बाहर आ गये और एनी पक्षी भी। कछुए ने फिर खरगोश को ललकारा तो खरगोश बोला चलो अभी दौड़ते हैं। खरगोश इस बार स्मार्ट निकला। रास्ते में कहीं नहीं रुका और मिनटों में ही मंज़िल पर अपनी जीत का ध्वज लहरा कर लौट आया। इधर कछुआ तो धेरे धीरे सरक ही रहा था। खरगोश बोला मित्र हर युग की बात हर युग में नहीं चलती। मैंने अपनी हार से सबक सीख लिया था। 
इसी तरह एक और पुरानी कथा भी इस समय के लिए आज भी बहुत ही प्रसांगिक है।
एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया। ...✍
Admin: रमन गोयल 
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी। नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे।... तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक  दोहा पढ़ा -
"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए ।"
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा।
जब यह दोहा  गुरु जी ने सुना और गुरु जी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को  अर्पण कर  दीं।
दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने  भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
दोहा सुनते ही राजा के पुत्र युवराज ने भी अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया।
राजा बहुत ही अचिम्भित हो गया।
सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या! अचानक एक दोहे से सब  अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तिकी को समर्पित कर रहें हैं,
 राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला *एक दोहे* द्वारा एक सामान्य नर्तिका  होकर तुमने सबको लूट लिया ।"

जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे-"राजा! इसको नीच नर्तिकी  मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है क्योंकि इसने दोहे से मेरी आँखें खोल दी हैं। दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई! मैं तो चला।" यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
राजा की लड़की ने कहा-पिता जी! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही। क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है?"
युवराज ने कहा- "पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने समझाया कि पगले! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है। धैर्य रख।"
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया- "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ। फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा-पुत्री! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया।
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा-"मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा नृत्य  बन्द करती हूं और कहा कि "हे प्रभु! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।"
वही कुछ अब लॉक डाउन के दौर में हमारी जिंदगी में भी घटित हो रहा है।
"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए ।"
 आज हम इस दोहे को यदि हम  कोरोना को लेकर अपनी समीक्षा करके देखे तो हमने पिछले 22 तारीख से जो संयम बरता, परेशानियां झेली ऐसा न हो हमारी कि अंतिम क्षण में एक छोटी सी भूल, हमारी लापरवाही, हमारे साथ पूरे समाज को न ले बैठे।
आओ हम सब मिलकर कोरोना से संघर्ष करे,  घर पर रह सुरक्षित रहे व सावधानियों का विशेष ध्यान रखें।
                                                                                                     --जय सिंह
आप इस लोकप्रिय कथा-कहानी को
फेसबुक पर भी देख सकते हैं अन्धविश्वास की कैद... ग्रुप में बस यहां क्लिक के।
(Whats App के Helping Hands Club NGO में  +919569360200 ने फारवर्ड किया)

Sunday 3 May 2020

पूज्य श्री श्री आनंदमूर्ति जी का 99 वां आनंद पूर्णिमा दिवस 7 मई को

लॉक डाउन के चलते सभी मार्गी घरों में मनाएंगे जन्मोत्सव 
पुरुलिया: 2 मई 2020: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
आनंद मार्ग के सौजन्य से प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस बार पूज्य गुरुदेव भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी का 99 वां आनंद पूर्णिमा दिवस 7 मई 2020 को सभी मार्गी अपने अपने घर में मनाएंगे। यह फैसला कोरोना के चलते लॉक डाउन को देखते हुए लिया गया है। इस संबंध में पुरुलिया स्थित  केन्द्रीय कार्यालय:-आनन्द नगर प.बंगाल से आनंद मार्ग प्रचारक संघ ने सभी मार्गियों के नाम एक अपील भी जारी की है। इस अपील में कहा गया है:
प्रिय मार्गी भाइयों एवं बहनों 
नमस्कार।
आशा करता हूं बाबा के कृपा से आप सपरिवार स्वस्थ होंगे।
वर्तमान वैश्विक संकट कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न महामारी से निजात पाने के लिए जो लॉक डाउन लगाया गया उसी के मध्य नजर पूज्य गुरुदेव भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी का 99 वां आनंद पूर्णिमा दिवस 7 मई 2020  को सभी मार्गी अपने अपने घर में ही मनाएंगे।
6 मई को ही संध्या में साधना स्थल को सजा लेंगे।
 कार्यक्रम इस प्रकार है :____ 
 सुबह 4:00 जाग जायें। 
  गुरु सकाश, शपथ स्मरण, उत्क्षेप मुद्रा, नित्य क्रिया, स्नान एवं सज-धज कर पोशाक पहनकर

 4 बजकर 50 मिनट तक अपने घर में जहाँ साधनास्थल तय किया है वहां पर ही परिवार के सभी सदस्य गण बैठकर प्रेम और निष्ठा से 

5:00 बजे 5:35 तक पाञ्चजन्य करें ।
पाञ्चजन्य के उपरांत 

5 बजकर 35 मिनट से लेकर 6:00 बजकर 7 मिनट तक आविर्भाव,  व आगमन के सम्बन्धित प्रभात संगीत गायन करें । 
जो लोग प्रभात संगीत नहीं जानते हैं वे 5 बजकर 35 मिनट से 6 बजकर 7 मिनट तक 
कीर्तन करते रहें। 

6 बजकर 7 में शंख ध्वनि करें और जहां शंख नहीं है वहां कोई भी वाद्य यंत्र जैसे थाली, ताली , झाल बजाकर जयघोष करें ।

 6:10 से 6: 20 तक प्रभात संगीत:- 1. तुमि जे एसे छो आज व्यथित जनेर कथा भाविते, 
2. तुमि एसे छो भालोबेसेछो मोरे विश्वे तोमार नय कोनो तुलना 3.आये हो तुम,आये हो तुम युगों के बाद प्यारे का गायन करें :

 तदोपरांत कीर्तन 6:20 से 6:35 तक और 

6:35 से 7:05 बजे तक आधे घंटे का सामूहिक साधना करें 

7:05 से 7:30 तक आनन्द वाणी पाठ और व्याख्या करें । आनंद वाणी पाठ के बाद सामूहिक रूप से आसन, कौशिकी एवं तांडव करने के बाद प्रसाद वितरण करें। हर्ष उल्लास के साथ स्वादिष्ट भोजन बनाकर पूरे परिवार मिलजुल कर भोजन करें। सेवा के रूप में कम से कम एक आदमी का भोजन(50रूपये) ,अधिक आपकी क्षमता पर निर्भर करता है, कोरोना रिलीफ ऑपरेशन चला रहे अपने भुक्ति कमिटी को 
सुपुर्द करें।
नाश्ता के उपरांत जीवन वेद एवं चर्याचर्य प्रथम भाग द्वितीय भाग एवं तृतीय भाग से प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम अवश्य करें।
दोपहर में सामूहिक साधना करने के बाद मिलित भोजन ग्रहण करें।

विशेष द्रष्टव्य :--- किन्हीं के परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक है या दृढ़ संकल्प शक्ति है तो तो वे 3 घंटे 6 घंटे का अखंड कीर्तन करने के लिए स्वतंत्र हैं।

            आपका ही
आचार्य सत्याश्रयानंद अवधूत
 केंद्रीय धर्म प्रचार सचिव
 आनंद मार्ग प्रचारक संघ

Monday 13 April 2020

कोरोना के कहर में फंसे लोगों का दर्द सुना ठाकुर दलीप सिंह ने

कुलदीप कौर की टीम को भेजा ज़रूरतमंद घरों तक ज़रूरी सामान के साथ 
पटियाला: 13 अप्रैल 2020: (कार्तिका सिंह//आरधना टाईम्ज़)::
कोरोना का कहर टूटा तो सबसे अधिक दिक्कत आई उन लोगों को जो हर रोज़ दिहाड़ी करके कमाते थे और उसी से उनका घर चलता था।  इसके साथ ही वे लोग भी थे मध्यवर्गों से सबंधित थे। जब मार्च के अंत में लॉक डाउन शुरू हुआ तो  उनके घरों का राशन भी समाप्त हो चुका था और वेतन अभी मिला नहीं था। साथ ही गली मौहल्लों के वो दुकानदार भी इसी संकट का शिकार हुए जिनकी दुकानें कर्फ्यू के कारण बंद करा दी गईं थीं। छोले-भटूरे, टिक्की-समोसा, भुजे हुए चने इत्यादि और चाय बेचने वालों का भी यही हाल हुआ। इन लोगों ने कभी ज़िंदगी में हाथ नहीं फैलाया था। हमेशां अपना कमाते और जो कमाई होती उसी में खुश रहते हुए ज़िंदगी काटते। कोरोना के संकट की बात तो किसी की कल्पना में भी नहीं थी। सबसे ज़्यादा  दिक्क्त समाज के इन्हीं वर्गों से सबंधित लोगों को आई। न तो ये लोग गरीबों के लिए बनी राशन वितरण लाइनों में जा कर खड़े हो सकते थे और न ही किसी और के पास जा सकते थे। ऐसे लोगों की आवाज़ नामधारी प्रमुख ठाकुर दलीप सिंह ने सुनी और वह भी इन लोगों के बोले बिना। ठाकुर दलीप सिंह ने विदेश की धरती से ही अपने पैरोकारों से कहा कि इस तरह के सभी वर्गों का पता लगाएं और बिना कोई शोर या प्रचार किये इन लोगों तक सहायता पहुंचाएं। 
आदेश का पालन भी तुरंत शुरू हुआ। घरों की रसोई के लिए आवश्यक सामान को छोटे छोटे पैकटों में बंद कराया गया। उनकी किट अर्थात गठड़ियाँ बनवायीं गईं। हर ज़रूरतमंद के घर तक यह सब सामान पहुंचा दिया गया। साथ ही दवाई और दूध जैसे ज़रूरी खर्चों के लिए एक निश्चित अमाउंट के पैसे भी सभी घरों तक पहुंचाए गए। हर घर का पता लगाना।  फिर बिना किसी को बताए चुपके से अचानक जा कर उनका दरवाज़ा खटखटाना और जब दरवाज़ा खुलना तो बहुत ही स्नेह और सम्मान के साथ उनको वह राशन की किट भी पकड़ा देनी और साथ ही पैसे भी। देश भर के बहुत से राज्यों में यह सिलसिला शुरू हुआ और अब तक जारी है। ठाकुर दलीप सिंह के सेवक पंजाब, हरियाणा, यूपी, बिहार, राजस्थान, दिल्ली सहित कई राज्यों के पिछड़े इलाकों तक भी तेज़ी से पहुंचे। ख़ामोशी के साथ सेवा का यह बिलकुल ही नया अध्याय बना। 
पटियाला में इसकी कमान संभाली महिला वैलफेयर सोसायटी की प्रमुख कुलदीप कौर और उनकी टीम ने। इस टीम ने कच्चा राशन भी ज़रूरतमंद लोगों के घरों तक पहुंचाया और पका हुआ लंगर भी। इस मकसद के लिए इन्होने अपनी चिर परिचित वैन का सदुपयोग किया जिसे आप तस्वीर में भी देख सकते हैं।   
टीम की अध्यक्षा कुलदीप कौर के साथ महासचिव-बीमा सेन, कोषाधिकारी-मनप्रीत कौर और जसबीर कर सहित अन्य पदाधिकारी भी साथ रहे। पुरुष सहयोगियों में से हरमीत सिंह, चरणजीत सिंह मंगा और रवनीत सिंह ने भी सक्रिय हो कर इस टीम का साथ दिया।
यह भी पढ़िए बस यहां नीचे दिए गए  नीले लिंक पर क्लिक करके 
 नामधारी संगत के साथ शहीद सरबजीत की बहन ने भी बांटा राशन 

Monday 30 March 2020

कोरोना और कर्फ्यू:बहुत जल्द सब ठीक हो जायेगा-लेकिन ध्यान रखिये

तब तक तन और मन दोनों की शक्ति बढ़ाते रहिये 
मोहाली: 30 मार्च 2020: (पुष्पिंदर कौर//आराधना टाईम्ज़)::
लुधियाना:पुराने डीएमसी अस्पताल के निकट लाडी शाह जी के दरबार की तस्वीर
जब मन बेबस सा हो जाये तो भगवान याद आते हैं। धर्म स्थल भी बंद हैं लेकिन फिर भी आजकल लोगों की आस्था लगातार बढ़ रही है। बहुत से लोगों से पूछा आज कल क्या कर रहे हो घर बैठे तो ज़यादातर लोगों का जवाब था पाठ कर रहे हैं। शायद कभी भी ऐसा समय पहले नहीं आया कि नवरात्र में मंदिर बंद हो गए हों। शहीद भगत सिंह को श्रद्धासुमन अर्पित करने हों तो आसपास के शहीदी स्मारक बंद नज़र आएं। एक बारगी तो कोरोना ने सभी एक दुसरे के बराबर कर दिए है। सभी को कोरोना डर पूरो शिद्द्त से शता रहा है। जिनकी कहीं न कहीं आस्था है वे लोग फिर भी काफी शांत हैं। उनको यकीन है कि जल्द ही भगवान कोई करिश्मा दिखाएंगे। कोरोना का कहर जल्द ही शांत होगा। जैसे पर्यावरण का प्रदूषण हट गया है वैसे ही दिल, दिमाग और मन के प्रदूषण भी हट जायेंगे। कोरोना ने सभी को इतना अकेला ज़रूर कर दिया है की सब खुद के अंदर झाँक सकें। खुद के बारे में खुद की बात कर सकें। 
अकेलापन शायद बुरा भी हो सकता है लेकिन एकांत तो बहुत ही रचनत्मक बना देती है।  कुछ ऐसा ही हुआ लगता है लुधियाना स्थित पत्रकार और शायर रेक्टर कथूरिया के साथ। फोन करके पूछा तो पता चला कि हाल ही में कुछ तस्वीरें खींचने के लिए बाहर निकले थे। फिर घर में बैठे शायरी करने लगे। कुछ किताबें भी पढ़ीं। जिन्हें आप देख रहे हैं यह हाल ही की तस्वीरें हैं और शेयर भी ताज़ा ही लिखा है। 
एक तस्वीर है लुधियाना के पुराने डीएमसी अस्पताल के नज़दीक स्थित लाडी शाह जी के दरबार की जहां लोग अपने मन की मुरादें पूरी कराने के लिए मन्नतें मांगते हैं। लोगों का कहना है कि उनकी मुरादें पूरी भी होती हैं। नंगे पाँव आते है युवा लड़के और लड़कियां। नव विवाहित जोड़े। दरबार में आ कर लम्बे समय तक आँखें बंद करके बैठते हैं। उस वक़्त उनके चेहरे पर एक अलग किस्म का सकून नज़र आता है। यह तस्वीर 19 मार्च 2020 को खुद रेक्टर कथूरिया ने ही क्लिक की। 
इसके बाद शुरू हुआ लॉक डाउन का सिलसिला और फिर कर्फ्यू।  रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म और ान प्लेटफार्मों को जोड़ने वाले पुल की तस्वीरें भी आज के समय की उदासी और बेबसी को दर्शाती हैं। आजकल का ज़्यादा समय किताबें पढ़ने और ब्लॉग लिखने में गुज़रता है। ज़रूरी लगे तो कभी कभार कवरेज के लिए भी निकलना पढ़ता है लेकिन बहुत ही आवश्यक हो तो। उनका भी कहना है कि सरकार का कहा मानने में ही भलाई है हम सभी की। कोरोना से बचने का यही एक तरीका है। घर में रहना आवश्यक हो गया है। जो घरों में रहेंगे वही बचेंगे।  

Thursday 26 March 2020

इच्छापूर्ति वॄक्ष आपके पास भी है

चाहो तो आज ही पा लो--लेकिन साधना तो करनी ही होगी 
चर्चा-विचार चर्चा और नए पहलू: 26 मार्च 2020: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
आप ने इच्छापूर्ति वृक्ष की कहानी सुनी है? जीवन की विकट स्थितियों पर नियन्त्रण पाने के बहुत ही गहरे रहस्य हैं उसमें। सुना है एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर कोई भी इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी। किसी को भी इसका एतबार न होता लेकिन थी यह एक हकीकत। 
यह बात बहुत कम लोग जानते थे..क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था। इसलिए इस लिए इस हकीकत को बहुत ही कम लोग जानते थे लेकिन बिना जानने इसे मानने वालों की संख्या भी कम न थी। इस तरह यह एक किवदन्ती भी बन गयी। 
इन्हीं कहानियों के बीच एक बार संयोग से एक थका हुआ व्यापारी उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई। उस पेड़ के नीचे सपने भी बहुत सुंदर आये। उस दिन नींद भी बहुत अच्छी आई। जाग खुली तो आत्मविश्वास भी पहले से ज्यादा था और मूड भी बहुत अच्छा। लेकिन भूख कहाँ टिकने देती है यह सब? जागते ही उसे बहुत भूख लगी,उसने आस पास देखकर सोचा- 'काश !
कुछ खाने को मिल जाए ! तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई।
व्यापारी ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..काश कुछ पीने को मिल जाए..तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए अनेक शरबत आ गए। यह तो कमाल हो गया था।  यकीन ही नहीं हो रहा था। कभी कभी सुख का भी यकीन नहीं होता। आनन्द भी हो तो भी सपना ही लगने लगता है। 
इस तरह का मीठा शरबत पहले कभी न पिया था। शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा-कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। दिल में आशंका अपना घर बनाने लगी। शक उठने शुरू हो गए। शक के साथ ही मनोस्थिति भी बदलने लगी। 
वह हैरान था।  बेहद हैरान। हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा था-न ही सुना था।  उसे लगा जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर मोटा ताज़ा कर रहा है और बाद में मुझे खा लेगा। मन में उठी आशंका विकराल रूप लेने लगी। हम से बहुतों के साथ यही तो होता है। बस ऐसा सोचना ही था कि तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया। उसे हैरान होने और सवाल पूछने का भी मौका नहीं मिला। देखते ही देखते वह वर्तमान से अतीत बन गया। अक्सर हममें से अधिकांश की जिंदगी के साथ यही तो होता है। सारी उम्र खत्म हो जाती है लेकिन हम ज़िंदगी को पहचान ही नहीं पाते। नकारत्मक विचरों की भीड़ में हम अपना हर सकारत्मक गुण गंवा बैठते हैं। सब कुछ लुटा के होश में आते हैं लेकिन उस समय कुछ सम्भव ही नहीं होता। 
इच्छापूर्ति वृक्ष और भूत के इस प्रसंग से भी आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे वह आपको अवश्य मिलेगी। यह बात शत प्रतिशत सही है। इसलिए कोई इच्छा भी करना तो बहुत ही सोच समझ कर ही करना वरना खुद के जाल में ही उलझ कर रह जाओगे। 
यही वजह है कि अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसी लिए मिलती हैं क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं। जाने या अनजाने वे इन नैगेटिव विचारों से ही घिरे रहते हैं। इन नैगेटिव विचारों से उनके कर्म हबी भी नैगेटिव ही होते चले जाते हैं। इस पर वे खुद को नहीं सुधारते बस किस्मत को कोसते हैं जिसका कोई कसूर ही नहीं होता। किस्मत तो उनको भी बहुत कुछ दे रही थी लेकिन उन्होंने बुरा ही चुना। 
ऍम इन्सान की रोज़ की ज़िंदगी पर ज़रा एक नजर तो डालो। इंसान ज्यादातर समय सोचता है-कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ..और वह बीमार हो जाता हैं..! यह सब तकरीबन हर रोज़ होता है। इसी तरह बार बार इंसान सोचता है - मेरी किस्मत ही खराब है .. और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..! उसके हाथ में आये बहुत से सुनहरी अवसर झट से निकल जाते हैं। इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है..! आप क्या पाना चाहते हैं यह आप ने ही फैसला करना है। इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए। यदि गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे। विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है..! इसके बाद ही शुरू होता है विजय या पराजय का सिलसिला। आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो.. स्वर्ग बनता है या नरक..उनकी बदौलत ही आपका जीवन सुखमय या दुख:मय बनता है...।
यह बहुत बड़ा सत्य है कि वास्तव में विचार जादूगर की तरह होते है जिन्हें बदलकर आप सचमुच अपना जीवन बदल सकते है।  इसलिये सदा सकारात्मक सोच रखें। यदि आप अच्छा सोचने लगते है तो पूरी कायनात आपको और अच्छा देने में लग जाती है। इसलिए देरी मत कीजिये। आज ही कीजिये विचारों में परिवर्तन और पाईये मन चाही मुराद।