जो भाग्य में नहीं लिखा होता वह भी मिलने लगता है
इस प्रतीकात्मक तस्वीर को अभिनव गोस्वामी ने 11 नवम्बर 2015 को सुबह 11:16 पर क्लिक किया |
अध्यात्मिक दुनिया: 07 जुलाई 2020: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
सत्य विपरीत रूपों में भी सत्य ही रहता है। कभी कभीं उसके विपरीत ध्रुव या बदले हुए रूप देख कर कन्फ्यूज़न होने लगता है कि आखिर असली सच कौन सा है? लेकिन सच तो सच ही रहता है। उस पर रंग या हालात का असर महसूस होने भी लगे तो भी वे सभी प्रभाव अल्प काल के ही होते हैं।
यही कहानी जिंदगी और किस्मत के सत्यों पर भी लागू होती है। भले हीं आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर अगर गुरु की कृपा आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही लिखा था या नहीं लिखा हैं।
इस प्रतीकात्मक तस्वीर को Khirod Behera ने 07 जून 2020 को बाद दोपहर 1:00 बजे क्लिक किया |
शायद एक कहानी से आपको यह बात सुगमता से समझ में आ सके। काशी नगर के एक धनी सेठ थे जिनके कोई संतान नही थी। बड़े-बड़े विद्धान ज्योतिषियों से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठ जी को किसी ने सलाह दी कि आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते हैं और बहुत ही श्रद्धा और आस्था से पढ़ते हैं। जब वह रामायण पढ़ते हैं तो कहा जाता है कि तब भगवान राम स्वयं उस कथा को सुनने आते हैं। इसलिये उनसे कहना कि भगवान से पूछें कि आपके संतान कब होगी? सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते हैं। अपनी समस्या के बारे में भगवान से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है कि प्रभु वो सेठजी आये थे जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। तब भगवान राम ने कहा कि गोस्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं। इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं। दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।
थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते हैं और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है कि भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। व्यापारी की पत्नी संत जी को दो रोटी दे देती है। उससे प्रसन्न होकर संत जी ये कहकर चले जाते हैं कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी।
एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वां संताने हो जाती है। कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता है।व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते हैं। उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है कि ये बच्चे किसके हैं। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही हैं। आपने तो झूठ बोल दिया कि भगवान ने कहा की मेरे संतान नही होगी। पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वां संताने हुई हैं। गोस्वामी जी यह सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है। शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं तो भगवान उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया। आपने तो कहा ना कि व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है। फिर उसके दो संताने कैसे हो गई? तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता था क्योकि मैं नियमो की मर्यादा में बंधा हूं पर अगर मेरे किसी संत सतगुरु ने उन्हें कह दिया कि तुम्हारे संतान होगी तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी क्योकि मैं भी संतों की मर्यादा से बंधा हूं मै पूर्ण संतो के वचनों को काट नही सकता। मुझे संत की बात रखनी पड़ती हैं। इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते कि जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वह सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके भाग्य मे नही लिखा हैं।
--------इस कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही।
भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख।
भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता है।
सतिनाम श्री वाहिगुरू
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