Tuesday 30 May 2017

उसको सेवा से मिल गया सचमुच सच्चा मालिक

मजदूर हंसा ओर बोला-मजाक तो आप अब कर रहे हो
Courtesy Photo
"सतनाम श्री वाहेगुरु" 
एक मजदूर नया नया दिल्ली आया पत्नी को किराए के मकान मे छोडकर काम की तलाश मे निकला। एक जगह गुरद्वारे में सेवा चल रही थी कुछ लड़कों को काम करते देखा। उनसे पूछा-कया मे यहाँ काम कर सकता हूं? लड़कों ने हां कहा तो मजदूर पूछा-तुम्हारे मालिक कहा हैं? लड़कों को शरारत सूझी बोले मालिक बाहर गया हे तुम बस काम पर लग जाओ हम बता देगे आज से लगे। मजदूर खुश हुआ और काम करने लगा। रोज सुबह समय से आता शाम को जाता पूरी मेहनत लगन से काम करता। ऐसे हफ्ता निकल गया। मजदूर ने फिर लड़कों से पूछा मालिक कब आयेंगे? लड़कों ने फिर हफ्ता कह दिया। फिर से हफ्ता निकल गया। मजदूर लडको से बोला- भैया आज तो घर पर खाने को कुछ नही बचा पत्नी बोली कुछ पैसे लाओगे तभी खाना बनेगा मालिक से हमें मिलवा दो। लड़कों ने बात अगले दिन तक टाल दी मगर मजदूर के जाते ही उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगा ओर उनहोने आखिर फैसला किया वो मजदूर को सब कुछ सच सच बता देगे ये गुरूदा्रे की सेवा हे यहाँ कोई मालिक नही ये तो हम अपने गुरू महाराज जी की सेवा कर रहे हे। अगले दिन मजदूर आया तो सभी लड़कों के चेहरे उतरे थे वो बोले अंकल जी हमें माफ कर दो हम अबतक आपसे मजाक कर रहे थे ओर सारी बात बता दी। मजदूर हंसा ओर बोला-मजाक तो आप अब कर रहे हो हमारे मालिक तो सचमुच बहुत अच्छे है। कल दोपहर मे हमारे घर आये थे पत्नी को 1 महीने की पगार ओर 15 दिनों का राशन देकर गए। कौन मालिक मजदूर को घर पर पगार देता है।  राशन देता हे सचमुच हमारे मालिक बहुत अच्छे हैं। यह कह कर वह फिर अपने काम पर मेहनत से जुट गया। लड़कों की समझ मे आ गया जो बिना स्वार्थ के गुरु की सेवा करता है; गुरू हमेशा उसके साथ रहते हैं और उसके दुख तकलीफ दूर करते रहते हैं।  तो बोलिए:  

जो बोले सो निहाल

सत श्री अकाल, 


सतनाम श्री वाहेगुरु 

बाबा जी की चरणों की धूल कण समान
WhatsApp के P9 ग्रुप से साभार (R P Singh Ldh. posted on 28th May 2017 at 12:29 PM) 

Saturday 27 May 2017

दान हज़ारों गुना हो कर लौटता है पर इस नियत से दान मत करो

WhatsApp on 26 May 2017 at 18:16
राबिया बसरी की नज़र में आध्यात्मिक गुर 
चिड़ी चोंच भर ले गई नदी न घटयो नीर ;
दान दिये धन न घटे कह गये दास कबीर !
सुदूर देश में एक महिला संत हुई है-राबिया। बचपन काफी मुश्किलों में बीता पर परमात्मा की अपार अनुकम्पा से जवानी की दहलीज पर आते आते संत बन गई है।  

एक नगर के बाहर कुटिया बना कर के तो भजन-पाठ में जीवन बिताया करती है। बहुत ख्याति है राबिया की कि परमात्मा की परम अनुरक्ता है अतः लोग दूर दूर से आ कर के तो उससे अपनी समस्याओं का समाधान करवाया करते है। एक दफा दो फकीर राबिया की कुटिया पर पधारे है। बोले राबिया बहुत भूखे हैं। दो तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है। गर हो सके तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कीजियेगा। ठीक है महाराज। यह कह कर के राबिया बर्तनों में भोजन तलाशना शुरू कर देती है। पर यह क्या केवल दो ही रोटिया घर में हैं। इतने में ही एक भिखारी कुटिया के बाहर से आवाज लगाता है। भूखा हूँ। कोई खाने को दो। राबिया वे दोनों ही रोटिया उस भिखारी को दे देती है।
फकीर सब नजारा अपनी आँखों से देख रहे हैं। राबिया के इस व्यवहार से काफी अचंभित हुए हैं। इस से पहले कि वे राबिया को कुछ कहें। छोटी सी एक लड़की हाथो में पोटली लिये दौड़ी दौड़ी राबिया की कुटिया में आती है कहती है ये अम्मा ने भेजी हैं। राबिया उस पोटली को खोलती हैं। इसमें तो रोटिया हैं। उन्हें गिनती है पर कुछ सोच कर के तो पोटली बंद कर उसी लड़की के हाथों ही उसे वापिस भिजवा देती हैं। 
फकीर फटी आंखों से राबिया की इस "अशिष्टता" को देख रहेहैं। आपस में बुदबुदा रहे हैं। लगता है कि हमें भोजन ही नहीं करवाना चाहती। इस से पहले कि वो राबिया को क्रोधपूर्वक कुछ कहें वह लड़की पोटली लिये पुनः कुटिया में आती है अम्मा ने भेजी है। राबिया फिर से उन्हें गिनती है ठीक है। उन रोटियों को फकीरों की सेवा में परोसती है। भोजन कीजिये महाराज। राबिया भोजन तो हम बाद में करेगे पहले हमे जो कुछ भी हुआ सब समझाओ। 
ठीक है महाराज। जब मैंने देखा कि घर में केवल दो ही रोटिया हैं तो मैं सोच में पड़ गई कि इन से क्या होगा एक एक रोटी अगर मैं आप दोनों को ही दे दूं तो उस से पेट क्या भरेगा? अगर दोनों रोटिया आप में से किसी एक को ही दे दूं तो दूसरा नाराज हो जायेगा। इतने में भिखारी आ गया मैंने सोचा कम से कम इस का तो पेट भरा जा सकता है। सो परमात्मा का नाम ले कर के वे दोनों रोटिया मैंने उसे दे दी। साथ ही साथ परमात्मा से प्रार्थना भी की कि हे देवाधिदेव सुना है कि तुम दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करते हो। सो आज मुझे तुरंत ही इस दान का फल प्रदान कीजियेगा। वह लड़की पहली बार जब रोटिया ले कर आई तो गिनने पर पाया कि केवल 18 ही रोटिया हैं। जब कि दो का दस गुणा तो बीस होता है। मैंने सोचा क्या परमात्मा के नियत किये विधान में भी कोई गलती हो सकती है?अवश्य ही उस महिला से गलती लग गई होगी। सो पोटली ज्यों कि त्यों वापिस कर दी। अब क़ी बार जब पुनः पोटली में गिनती क़ी है तो पूरी बीस क़ी बीस रोटिया ही हैं। परमात्मा क़ी शुक्रगुजार हूँ क़ि उसने मेरी लाज रख ली क़ि जो द्वार पर आये आप लोगो को भूखा नहीं जाने दिया। धन्य हो राबिया तुम और तुम्हारी ईश्वरभक्ति! 
साधकजनों मानवता की भलाई के कार्यो में दिल खोल कर दान दिया कीजियेगा। ये परमात्मा का विधान है क़ि वह दान देने वाले को कभी किसी का मोहताज नहीं रहने देता। संत महात्मा फ़रमाते है क़ि वह दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करता है। नि:स्वार्थ भाव से दिये दान को कभी कभी वह हजारो-लाखो गुणा कर के भी लौटाया करता है गर उसकी रजा हुई तो। अतः नि:स्वार्थ भाव से जन-कल्याण के कार्यो में खूब दान दीजियेगा। वापिस मिलेगा यह सोच कर नहीं। यह तो उस पर निर्भर है क़ि वह किस कर्म का फल कब और किस काल में दे। 
मनमीत सिंह (9916324232) ने Sikh World नाम के वाटसअप ग्रुप में 26 मई 2017 को शाम 18:16 पर पोस्ट किया। 

Saturday 6 May 2017

राष्ट्रपति श्री बद्रीनाथ धाम में

 राष्ट्रपति को देख आस्था की लहर में आया और उत्साह 
The PresidenSht, ri Pranab Mukherjee at the Sri Badrinath Temple, at Badrinath, in Chamoli District, Uttarakhand on May 06, 2017.                                                    (PIB photo)