Friday 26 April 2024

ब्रह्मांड शून्यता--एस्ट्रो विज्ञान--ज्योतिष-तंत्र और सुपरमैन

 Friday 25th April 2024 at 6:45 PM

वास्तविक जीवन में एस्ट्रो साइंस के प्रभाव पर एक फैंटेसी फिक्शन जैसी हकीकत 

उस क्षितिज से लौट कर जहां कल्पना और हकीकत मिलती हुई महसूस होती हैं:


शुक्रवार26 अप्रैल 2024: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क):: 
इस पोस्ट को समझना शायद आसान न लगे। शायद इसका मर्म और संदेश भी सभी को समझ न  आ सके। इसमें जिस हकीकत की बात की गई है वो शायद कुछ लोग ही समझ पाएंगे लेकिन जिस कल्पना की बात भी दर्ज है उसे भी शायद बहुत से लोग सभी न समझ पाएं।  आशंकाओं के बावजूद आइए बात तो शुरू करते ही हैं। आपके अंदर मौजूद चेतना आपका मार्गर्दर्शन करेगी ही। 

ब्रह्मांड शून्यता का एक विशाल, अनंत विस्तार था, जो उस समय एक तरह से किसी भी प्रकार के जीवन या चेतना से रहित था।  संभावनाओं के बावजूद यह ठहराव की एक सतत स्थिति थी, शून्यता के अलावा कुछ भी नहीं का एक कालातीत अस्तित्व। कुछ ऐसा ही महसूस होने लगता है अगर मेडिटेशन करते करते पीछे चले जाओ तो। इससे सबंधित किताबी ज्ञान भी सबंधित माहौल जैसी तस्वीरें हमारी कल्पना में लाने लगता। है 

यहां कुछ और कहना ज़रूरी है कि उस  माहौल में उदासी कुछ ज़्यादा थी और फिर, एक चिंगारी भी थी।  एक छोटी, महत्वहीन चिंगारी जिसने ब्रह्मांडीय संलयन को प्रज्वलित किया, घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू की जो अस्तित्व को जन्म देगी जैसा कि हम जानते हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। आकाशगंगाएँ, तारे, ग्रह और चंद्रमा अस्तित्व में आए। यह सिलसिला भी जारी है। उनके आकर्षण और प्रतिकर्षण का जटिल नृत्य ब्रह्मांडीय कैनवास पर जीवन की एक टेपेस्ट्री बुन रहा था। इसी में निहित थे शिव  शक्ति के  रहस्य  जी  अतिआधुनिक युग में भी किस्मत से ही समझ आते हैं। 

बहुत ही अद्भुत सा दृश्य उभरता है। आशा, निराशा, हिम्मत और उत्साह से भरी आशाएं बलवती होती लगीं थीं। इन अनगिनत दुनियाओं में से एक पर, एक अनाम महासागर के अलौकिक समुद्र में तैरते हुए, जीवन का एक छोटा सा कण था. यह एक एकल कोशिका वाला जीव था, जो बमुश्किल जीवित था, अपने चारों ओर मौजूद कठोर तत्वों के खिलाफ जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहा था। समय बीतता गया और यह छोटा प्राणी विकसित हुआ. इसका आकार और जटिलता बढ़ती गई, नए अंगों और प्रणालियों का विकास हुआ जिसने इसे अपने पर्यावरण के अनुकूल होने की अनुमति दी। आख़िरकार, यह एक मछली बन गई, जो पानी में तैर रही थी, भोजन की तलाश कर रही थी और शिकारियों से बच रही थी। यह भी जीवन का ही रूप था जो पहले से बहुत अधिक अच्छा और खूबसूरत था। माहौल भी बेहतर था। इसके बावजूद संघर्ष जारी था। अभी भी यह संघर्ष ज़िन्दगी के लिए जंग के एलान जैसा ही था।सावधानी और सतर्कता अब भी हर कदम पर थी। 

मीन राशि वालों के जीवन  में थोड़ा सा भी झांक कर देखें तो इस तरह के बहुत से दृश्य साकार होते से नज़र आने लगेंगे। वैसे हर राशि का स्वरुप और उसका स्वभाव उसकी प्रकृति के मुताबिक भी स्पष्ट होने लगेगा। थोड़ा और कुरेदा जाए तो सब कुछ स्पष्ट भी दिखने लगेगा। कुरेदना से मतलब कुछ और अधिक ध्यान देना ही था। यह नियम अन्य राशियों पर भी लागू होता है। जन्म की तारीख, दिन और समय बहुत मह्त्वपूण भूमिका निभाता है जीवन में। 

इसी से याद आ रहा है हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला जाएं तो करीब आठ दस किलोमीटर ऊपर स्थित है-मैक्लोडगंज- जहां तिब्बती समुदाय का मुख्यालय है। यहां ज्योतिष को आधार बना कर भी गंभीर बिमारियों का इलाज किया जाता है। इस संबंध में पूरा विवरण आप पढ़ सकते हैं इस लिंक को क्लिक कर के। 

प्रकृति की निकटता ही हमारे अतीत में थी और इसी निकटता से हमारा भविष्य संवर सकेगा।  हमारा शक्ति स्रोत भो तो यही है। बिलकुल उसी तरह जिस मछली से हुए शुभारंभ की हम बात कर रहे थे।  जैसे-जैसे उस आरंभिक मछली का विकास जारी रहा, वह बड़ी और अधिक बुद्धिमान होती गई। इसके अंग भी और विकसित होते चले गए। 

यह जीव अद्भुत भी रहा। ज्योतिष की दुनिया में आखरी और बारहवीं राशि होती है मीन। विकास के लिए लम्बे संघर्षों के बाद ही यह जीव तट पर भी चढ़ सका और पानी से परे की दुनिया का भी पता लगा सका।  अनगिनत पीढ़ियों से, यह प्राणी लगातार अनुकूलन और विकास करता रहा, अंततः एक मानव सदृश प्राणी बन गया। यह पहले आए किसी भी अन्य प्राणी से भिन्न प्राणियों की एक प्रजाति थी, जिनमें सोचने, महसूस करने और सृजन करने की क्षमता कमाल की थी। उन्होंने शहर बनाए, भाषाएँ विकसित कीं और कला का निर्माण किया। उन्होंने समय और स्थान के रहस्यों को उजागर करते हुए ब्रह्मांड के रहस्यों की भी अद्भुत खोज की। आज भी उस खोज का महत्व कम नहीं हुआ। आज भी उसे सहारा बना कर ही नई खोज का मॉडल बनता और विकसित होता जा रहा है। इसे एक दूरबीन की तरह मान कर भविष्य की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। 

और फिर भी, उनकी सभी उपलब्धियों के बावजूद, भौतिक दुनिया पर उनकी मुहारत के बावजूद, अभी भी एक रहस्य था जो उनसे दूर था: यन्त्र मन्त्र तन्त्र का रहस्य। लंबे समय से भूली हुई भाषा में लिखे गए इन प्राचीन ग्रंथों में उनके दिमाग और आत्माओं की वास्तविक क्षमता को उजागर करने की कुंजी थी। इन रहस्यों के खुलते खुलते बहुत से रहस्य  खुलते जा रहे थे। कहा जाता है कि यंतर मंत्र में ब्रह्मांड का ज्ञान, सृजन और विनाश के रहस्य और वास्तविकता को आकार देने की शक्ति शामिल थी। 

पीढ़ियों से, विद्वानों ने प्राचीन चर्मपत्र को सुशोभित करने वाले गूढ़ प्रतीकों और जटिल पैटर्न को समझने की कोशिश की थी, लेकिन सभी प्रयास व्यर्थ रहे थे. ऐसा लगता था कि यन्त्र मन्त्र तन्त्र के भीतर निहित ज्ञान को केवल वही समझ सकता है जो अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए नियत था. और इसलिए, ग्रंथों को ताले और चाबी के नीचे रखा गया था, उनकी वास्तविक प्रकृति कुछ चुनिंदा लोगों को छोड़कर बाकी सभी से छिपी हुई थी। ऐसा करना आवश्यक भी था। 

इसके बावजूद जितना ज्ञान मानवजाति ने अर्जित कर लिया यह एक सौभाग्य  बेहद खतरनाक भी तो है। इसके परिणाम स्वरूप निकट भविष्य में तबाही का तांडव अपनी झलक अभी से दिखाने लगा है। दुनिया खुद को पतन के कगार पर महसूस कर रही है।  विनाशकारी घटनाओं की एक शृंखला इस ग्रह को विनाश के कगार पर ला रही है। फसलें बर्बाद हो गईं, शहर ढह गए और सभ्यता गुमनामी के कगार पर पहुंच गई ऐसा लगने लगा है। 

क्या कोई पीर पैगंबर बचा पाएगा इस धरती को पूर्ण विनाश से? हताशा भी है और गहरी निराशा  भी है। इस नाज़ुक दौर के बेहद संवेदनशील समय में सुना जाने लगा कि था कि एक विशेष चुना हुआ व्यक्ति, जिसे यंतर मंत्र तंत्र की शक्ति का उपयोग करना था, जिसे आप आधुनिक युग का कोई पीर, पैगंबर या अवतार कह सकते हैं.  अंततः खुद को प्रकट करके सामने लाने वाला है। यह एक बेहद संवेदनशील मोड़ होगा। एक नै करवट भी कह सकते हैं। बहुत से पापियों को सज़ा मिलेगी और बहुत से सतकर्मियों को भी बचाया भी जाएगा। 

इसी तरह के संगम युग वाले दौर में सभी पता चलेगा कि  कि वास्तविक जीवन में एस्ट्रो साइंस कैसे अपना प्रभाव सभी पर डालती है। ऐसे हालात में चुना हुआ व्यक्ति जिसका कल्पित नाम शक्तिमान रख लें  वह प्रकृतिक शक्ति और वैज़ान के बहुत से चमत्कार दिखाएगा। वह पूरी तरह से एक विनम्र व्यक्ति भी होगा लेकिन न्याय और अनुशासन के मामले में सख्त भी होगा। वह वास्तव में ज़हीन ही तो था। किसी छद्म वेश में छुपा हुआ सब देख रहा था। अपनी असली पहचान और नियति से वाकिफ होने के बावजूद अज्ञात की तरह था। वह वर्षों से आबादी के बीच रह रहा था। जैसे ही उसने  अपनी नई शक्तियों और जिम्मेदारियों के साथ आने के लिए संघर्ष किया, उसे  प्राचीन ग्रंथों में सांत्वना मिली, उनके पृष्ठों पर डालना और ब्रह्मांड के तरीकों को सीखना. उन्होंने पाया कि यंतर मंत्र तंत्र केवल रहस्यमय ज्ञान का संग्रह नहीं था, बल्कि एक जीवित, सांस लेने वाली इकाई थी जो उनके जैसे किसी व्यक्ति के आने का धैर्यपूर्वक इंतजार कर रही थी। दबे कुचले लोगों को एक सांत्वना भी मिली। 

दुनिया विनाश के कगार पर होने के कारण, उसे अर्थात शक्तिमान को पता था कि उसे तेजी से कार्य करना होगा। यंतर मंत्र की शक्ति का उपयोग करके, वह ग्रह के पतन के पाठ्यक्रम को उलटने और दुनिया में संतुलन बहाल करने में सक्षम था। उनके कार्यों ने अनगिनत लोगों की जान बचाई और शांति और समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत की। जैसे ही दुनिया ठीक होने लगी, उस सुपरमैन को पता चल गया कि उसका काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है. वह समझ गया कि यन्त्र मंत्र तन्त्र केवल दुनिया को बचाने का एक उपकरण नहीं था, बल्कि एक जिम्मेदारी, एक बोझ भी था जिसे उसे अपने बाकी दिनों के लिए सहन करना होगा। 

और इसलिए, उस शक्तिमान ने यन्त्र मंत्र तन्त्र के भीतर निहित ज्ञान की रक्षा और संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह गलत हाथों में नहीं पड़ेगा और बुरे उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाएगा। उन्होंने दुनिया की यात्रा की, दूसरों को संतुलन और सद्भाव के महत्व के बारे में सिखाया, और जो कोई भी सुनने को तैयार था, उसके साथ यन्त्र मंत्र तन्त्र का ज्ञान साझा किया। उस शक्तिमान के मार्गदर्शन में, एक नई व्यवस्था का जन्म हुआ, जहां यंत्र मंत्र तंत्र की शक्ति को जिम्मेदारी से और अधिक अच्छे को ध्यान में रखकर संचालित किया गया था। 

लेकिन जब  शक्तिमान ने दुनिया के भविष्य की सुरक्षा के लिए अथक प्रयास किया, तब भी वह जानता था कि उसका समय समाप्त होने वाला है. वह बूढ़ा हो रहा था, और यंत्र मंत्र तंत्र का ज्ञान ले जाने का बोझ उस पर भारी पड़ रहा था. आरन सोचने लगा कि जब वह चला जाएगा तो उसकी जगह कौन लेगा, जो काम उसने शुरू किया था उसे कौन जारी रखेगा। 

यह तब था जब शक्तिमान नामक उस सुपरमैन ने अपने आस-पास समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक समूह को इकट्ठा करने का फैसला किया, जिन्होंने यंतर मंत्र तंतर की शक्ति से संतुलित दुनिया के अपने दृष्टिकोण को साझा किया. उन्होंने उन्हें प्राचीन ग्रंथों के तरीकों में प्रशिक्षित किया, उन्हें न केवल अपनी शक्ति का उपयोग करना सिखाया बल्कि जिम्मेदारी से इसका उपयोग करना भी सिखाया. जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए, इन व्यक्तियों ने यंत्र मंत्र तंत्र के आदेश के रूप में जाना जाने लगा। 

इस सारे अनुशासन और प्रबंधन को कई शाखाओं में व्यवस्थित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक यन्त्र मंत्र तंत्र की शिक्षाओं के एक अलग पहलू में विशेषज्ञता रखती थी. ऐसे लोग थे जिन्होंने खगोल विज्ञान और ज्योतिष पर ध्यान केंद्रित किया, आकाशीय पिंडों की गतिविधियों का अध्ययन किया और दुनिया पर उनके प्रभावों की व्याख्या की. अन्य लोग कीमिया में उतर गए, तत्वों की शक्ति का उपयोग करने और नए पदार्थ बनाने की कोशिश की, जबकि अन्य ने बीमारियों के लिए नए इलाज और उपचार विकसित करने के लिए प्राचीन ग्रंथों का उपयोग करते हुए, उपचार और चिकित्सा के अध्ययन के लिए खुद को समर्पित कर दिया। 

जैसे-जैसे  सुपरमैन अपनी बालपन की उम्र में से निकलता हुआ में बड़ा हुआ, उसने अपने सबसे होनहार छात्रों को इस नए युग के नेताओं के रूप में कार्यभार संभालने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया।  वह जानता था कि अंततः, उसका समय आएगा, और वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि उसने जो ज्ञान संरक्षित किया था वह पीढ़ियों तक चलता रहे. इन वर्षों में, आरन ने गर्व के साथ देखा क्योंकि उनके छात्र अपने आप में बुद्धिमान और सक्षम नेताओं में विकसित हुए, प्रत्येक व्यक्ति ने यंत्र मंत्र तंत्र की प्राचीन शिक्षाओं के लिए अपने स्वयं के अनूठे दृष्टिकोण और व्याख्याएं लायीं। 

किसी अलग पोस्ट में पढ़िए  कहां कहां होता है ज्योतिष के आधार पर बिमारियों का इलाज 

Wednesday 24 April 2024

.... उस समय स्वयं के साथ युद्ध लड़ने जैसी हालत होती है

भ्रम की धुंध में दुविधा और किंकर्तव्यविमूढ़ता जैसी स्थिति बढ़ जाती है 


इस बार लुधियाना से ज्योतिष चर्चा: 23 अप्रैल 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

बहुत बार कहते कहलाते बुद्धिमान लोग भी भ्रम में पड़ जाते हैं। उन्हें दुविधा घेर लेती है। वे अपने गुणों के विपरीत चलते नज़र आने लगते हैं।  हम सभी न तो अर्जुन हैं, न ही हम महाभारत जैसा कोई  बहुत बड़ा धर्मयुद्ध  लड़ रहे हैं और न ही हमारे पास भगवान कृष्ण हैं जो हमें हर कदम पर हमें सही मार्ग दिखा सकें। आम तौर पर हमारी जंग हमारे दायरों और स्वार्थों तक सीमित रहती है। अपने ही मतलब और अपनी ही मजबूरी में सिमटी हुई। वह बड़ी हो कर कभी धर्मयुद्ध नहीं बन पाती। 

इसलिए हमें सहायता या मार्गदर्शन देने भगवान कृष्ण का  विराट रूप भी कहां नसीब होता है! हमारे जीवन के संघर्षों में कौन कौन निभाता है अपनी अपनी भूमिका? कयूं हम भ्रम का शिकार हो कर हार जाते हैं बहुत बार जीती हुई जंग को भी? बनी बनाई बात क्यूं हाथ से निकल जाती है हर बार और समझ भी नहीं आता कि ऐसा क्यूं हुआ? कई बार ऐसा बार बार भी होने लगता है। जब जाग खुलती है और होश आता है तो उस गीत के बोलों की तरह महसूस होने लगता है जिसे कभी जनाब गोपाल दास नीरज जी ने लिखा था नई उम्र की नई फसल नाम की फिल्म के लिए जो 1965 में आई थी। संगीत तैयार किया था जनाब रौशन साहिब ने। गीत के बोल हैं:

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। 

यह गीत वास्तव में हम में से  बहुत से लोगों की ज़िंदगी की झलक दिखलाता है। सपने देखना, सपने टूट जाना, कोशिशों का नाकाम हो जाना और सारी की सारी उम्र रेत की तरह हाथ में से निकल जाना। फिर समझ आते हैं इस गीत के बोल--आह तो निकल सकी  न पर उम्र निकल गई! हममें से बहुत से लोगों को भागदौड़ या तो बेकार सी साबित होने लगती है या फिर जिसे हम उपलब्धि समझने लगते हैं वह भी निरथर्क सी लगने लगती है। 

दूसरी तरफ ब्रह्मांड अपने नियमों के मुताबिक चलता रहता है। ग्रह भी अपने नियमों और रफ़्तार से चल रहे हैं। विज्ञान निरंतर इस सम्बन्ध में नई नई खोज करने में जुटा हुआ है। बहुत जल्द ज्योतिष और तन्त्र के वैज्ञानिक पह्लुयों पर चर्चा जरूरी समझी जाएगी। इस तरह की चर्चा के आयोजन में शामिल हो पाना गर्व की बात महसूस की जाएगी। विशेष शुल्क और विशेष समय निकाल कर इस ज्ञान विज्ञान पर बातें हुआ करेंगी।  

ज्योतिष का अध्यन करते हुए किसी किसी के जीवन में एक स्थिति वह भी आती है जब  गुरु राहू चंडाल दोष सामने आता है। यह दोष ज्योतिष और जीवन में कैसे और कितना प्रभावी होता है इस पर बहुत कुछ कहा सुना जा सकता है। इन्सान में उसकी सर्वोच्चता और नीचता स्वयंमेव आमने सामने आ  जाती हैं। उस समय होता है अंतर्मन की अच्छाई और बुराई में संघर्ष। कौन जीत जाए इसका फैसला कठिन होता है लेकिन इन्सान इसे खुद भी कर सकता है। बस थोड़े से उपाय, थोडा सा ध्यान और थोड़ी सी सावधानियां और इन्सान जीत सकता है सारी बाज़ी। 

गौरतलब है कि गुरु राहु चंडाल दोष का ज्योतिष और जीवन पर गहन प्रभाव होता ही है। गुरु राहु चंडाल दोष, जिसे गुरु चंडाल योग भी कहा जाता है, ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह तब बनता है जब गुरु और राहु कुंडली में 6, 8, या 12वें भाव में एक साथ होते हैं। इस तरह की स्थितियां कैसे कैसे क्यूं बनती हैं इस पर कभी अलग से भी चर्चा की जाएगी। 

फिलहाल इतना ही कि इस दोष का प्रभाव व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति और अन्य योगों पर निर्भर भी करता है और प्रभावी भी होता है। जब जब ऐसी स्थिति बनती है तब तब इसके संभावित प्रभाव बहुत सूक्ष्म भी हो सकते हैं बड़े भी। पीड़ित व्यक्ति के नकारात्मक विचारों और भ्रम में वृद्धि होने लगती है। सही गलत की पहचान भी आसान नहीं रहती। हर अच्छी और सकारात्मक बात में भी नेगेटिविटी नज़र आने लगती है। 

इसके साथ ही विभिन्न किस्म की स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी होने लगती हैं। जिस्म में कई तरह के दर्द भी उठने लगते हैं। कामकाज के लिए न मन करता है और न ही तन चुस्त रहता है। डाक्टर के पास जाओ तो वहां से कई गंभीर चिंताओं भरी रिपोर्ट मिलने लगती है। सब कुछ बड़ी तेजी से घटित होने लगता है। 

स्वास्थ्य के साथ साथ व्यापार में भी बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। कामकाज में रुकावटें तेज़ी से सिर उठाने लगती हैं। मंदीऔर घाटे वाले हालात दिखने लगते हैं। इन्वेस्टमेंट करने पर ऐसा लगता है जैसे सब मिटटी हुआ जा रहा है। अपने ही स्टाफ पर भरोसा नहीं रहता।  

इन सभी के साथ शत्रुओं से परेशानी भी बढने लगती है। धोखा, फरेब, गद्दारी जैसी आशंकाएं ज़ोर पकड़ने लगती हैं।  ऐसे नाज़ुक हालात के चलते मानसिक अशांति और डिप्रेशन में वृद्धि होने लगती है। तन मन में बने सुर भंग होने लगते हैं। यूं लगता है जैसे असुर-भावना बढ़ गई है। 

इतना कुछ होने पर पारिवारिक कलह भी बढने लगती है। परिवार में आपसी प्रेम और सद्भाव बुरी तरह से टूटने लगता है। यूं लगने लगता है कि किसी की नज़र लग गई हो या फिर किसी ने कुछ कर करा दिया हो। 

कैसे मिले इस तरह के हालात से छुटकारा इसकी चर्चा हम किसी अलग पोस्मेंट  बहुत जल्द करेंगे जिसका लिंक यहां भी प्रेषित किया जाएगा। 

Monday 1 April 2024

गुरु एक शुभ ग्रह है-सात्विक है, साधु है जबकि राहु राक्षसी प्रवृत्ति का ग्रह है

Monday 29th March 2024 08:18 AM

 गुरु राहु चांडाल दोष पर बिल्कुल नवीनतम रिसर्च जिस से आपको मिलेंगे बिलकुल नए तथ्य 

 ज्योतिष की दुनिया से31 मार्च 2023: (बिभाष मिश्रा//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::


कल एक बहन ने व्हाट्सएप पर मुझसे संपर्क किया

उनका कहना था कि किसी ज्योतिष ने यह कहा है कि उनके पति की कुंडली में गुरु राहु का चांडाल दोष है ।।।

अब यह सुनकर वह इतना भयभीत हो गई कि अपने पति में ही चांडाल गुण समझने लगी ।।

पर हकीकत में यह जब उन्हें समझाया की चांडाल दोष क्या होता है, और कितना प्रभावित होता है तो वह इतनी खुश हुई कि मुझे सलाह दी कि सर यह पोस्ट फेसबुक पर जरूर कीजिए ताकि मुझ जैसे कितने भ्रमित लोगों का कल्याण हो...

सबके मन का भी भ्रम दूर हो सके... तो आइए चांडाल दोष के concept को समझते हैं ..

गुरु एक शुभ ग्रह है गुरु सात्विक है, साधु है, और राहु एक राक्षसी प्रवृत्ति का ग्रह है, तामसिक ग्रह है ..

 गुरु सात्विक है, राहु मांस मदिरा यह सब पसंद करने वाला है ।।

अब आप ही सोचो जब जब एक सात्विक रूपी गुरु के ऊपर एक मांस मदिरा चरित्रहीन रूपी राहु का प्रभाव आए तो गुरु का  चांडाल के साथ होना ही गुरु चांडाल दोष कहलाता है ।।

उदाहरण के तौर पर जब भी कोई संत को आप देखते हैं तो आपके मन में उनके प्रति 1 दैविय भावना उत्पन्न होती है, पर जब आपको यह समझ में आए या दिखे की वह संत कहीं शराब का सेवन कर रहे हैं, मांस का सेवन कर रहे हैं, या उनके चरित्र में थोड़ी भी खराबी है तो आपके मन में उनके प्रति जो दिव्य भावना है वह एकदम से टूट जाएगी ।।   

वह गुरु चांडाल स्वरूपी होकर इसी को चांडाल दोष कहते हैं ।।

मतलब कि गुरु के ऊपर जब भी अधर्म और चांडाल का साया हो तो इसे ही चांडाल दोष कहते हैं ।।

यही कारण है कि कुंडली में कहीं पर भी गुरु के साथ राहु आ जाए तो यहां पर गुरु अपने आप को असहज महसूस करता है और वह गुरु की पवित्रता कम हो जाती है जिसके कारण से हम उसको चांडाल दोष कहते हैं ।।।

यह तो एक उदाहरण हुआ कि गुरु कितना कमजोर है, अगर गुरु के अंदर की शक्ति कमजोर है तो हो सके गुरु किसी सुंदर स्त्री को देखकर अपना ब्रह्मचर्य को खराब कर ले ।।

पर वही अगर वह गुरु बहुत मजबूत हुआ तो उसी स्त्री को अपनी बहन या बेटी बना लेगा या उसी चांडाल को अपना शिष्य बना लेगा ।।।

उदाहरण के तौर पर एक कहानी सुनते हैं

बचपन में एक कहानी हम पढ़ते थे तोड़ो नहीं जोड़ो ...

अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था। वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था। इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था। मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था। लोग उससे बहुत डरते थे। उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे।  

संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले। लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वे वहां से चले जाएं। अंगुलिमाल ऐसा डाकू है, जो किसी के भी आगे नहीं झुकता। 

बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला| वे बेधड़क वन में घूमने लगे। 

जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुंझलाकर बुद्ध के पास आया। वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया। 

बुद्ध ने उससे कहा-"सुनो भाई, सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड़ लाओगे?"

 अंगुलिमाल के लिए यह क्या मुश्किल था! वह दौड़कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया। 

 बुद्ध ने कहा -"अब एक काम और करो| जहां से इन पत्तों को तोड़कर लाए हो, वहीं इन्हें लगा आओ।"    

 अंगुलिमाल बोला -"यह कैसे हो सकता है?"

 बुद्ध ने कहा-"भैया! जब तुम जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?"

 इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और वह उस दिन से अपना धंधा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया|

अब कहानी वही है पर यहां पर गुरु बलवान है

कहने का मतलब यहां पर कुंडली में अगर गुरु भगवान बुध का रूप धारण किए हो तो राहु रुपी उंगलीमाल भी गुरु रूपी गौतम बुध का शिष्य बन जाएगा ।।

और गुरु चांडाल दोष कभी नहीं लगेगा ।।

कहने का तात्पर्य कुंडली में जब भी गुरु धनु राशि, मीन राशि या कर्क राशि का बैठा हो, तो वहां पर आपकी कुंडली में उपस्थित गुरु भगवान बुध की तरह और स्वामी विवेकानंद की तरह होगा।।

और ऐसी स्थिति में अगर राहु गुरु के साथ युति भी करे तो भी राहु रूपी उंगलीमाल, उच्च के यानी धनु ,मीन ,कर्क के वृहस्पति रूपी गौतम बुध का शिष्य बन जाएगा ...

और कुंडली में वह आपका चांडाल दोष गुरु राहु की युति होने के बावजूद भी फलित नहीं होगा ।।

एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहा मुझे आप से ही विवाह करना है ताकि आपका जैसा ही तेजस्वी पुत्र मुझे प्राप्त हो ।।

स्वामी विवेकानंद जी का जवाब सुनिए ..

उन्होंने कहा बहन मेरे द्वारा आप एक पुत्र की उत्पत्ति करेंगे, अब पुत्र होगा कि नहीं होगा क्या पता ..बाद की बात है ।।

आप मुझे ही अपना पुत्र समझ लें और आज से मुझे ही अपना पुत्र माने ।।

अब यहां स्वामी विवेकानंद रुपी उच्च के गुरु ने स्त्री को क्या जवाब दिया ..

मतलब स्वामी विवेकानंद रूपी गुरु के पास भी चांडाल रूपी ऑफर मिला जबकि यहां चांडाल दोष संपन्न नहीं हुआ ।।

अगर गुरु नीच का होता मकर राशि का, और यह स्वामी विवेकानंद के जगह कोई सामान्य गुरु होते,  जिन्हें यह ऑफर अगर कोई महिला देती तो शायद यह ऑफर गुरु स्वीकार कर लेते और यहीं पर गुरु राहु का चांडाल दोष संपन्न होता ।।।

कहने का मतलब है सिर्फ कुंडली में गुरु और राहु की युति देख लेना और यह कह देना कि चांडाल दोष है यह उचित नहीं ।।

हां अगर गुरू कुंडली में मकर राशि का हो अस्त हो कमजोर हो और वहां पर राहु की युति हो तो यहां पर चांडाल दोष पूर्ण फलित होगा ।।

और गुरु भी चांडाल के रूप रंग में आकर शराब मांस मदिरा और चरित्र को खराब कर लेंगे ।।

पर वही अगर गुरु बलवान हो तो वह गुरु गौतम बुद्ध और स्वामी विवेकानंद की तरह अडिग रहेंगे, और अपने पास आने वाले चांडाल रुपी राहु को भी अपना शिष्य बना लेंगे और यहां चांडाल दोष फलित नहीं होगा ।।।

महिला के पति की कुंडली में मीन का गुरु, राहु के साथ है, जब हमने यह कांसेप्ट समझाया तो इतनी खुश हुई कि क्या कहना..

 कल की कहानी हमने आज आपलोगो के साथ शेयर किया ताकि आप सब लोगो का कांसेप्ट क्लियर हो सके ।।

और हमारे अथक रिसर्च का लाभ उठा सकें

Er. Bibhash Mishra-Research Scholar and Astrologer Consultant

+91 99559 57433

Friday 29 March 2024

महादशा का खेल समझ सको तो बहुत कुछ समझ सकोगे

Sunday 28th March 2024 at 7:8 AM

जानेमाने ज्योतिषी बिभाष मिश्रा बता रहे हैं महादशा  रहस्य 

इस लेख को पूरा पढ़ें और इस महाअनुभव का लाभ उठाएं


ज्योतिष की दुनिया से
28 मार्च 2023: (बिभाष मिश्रा//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

आज के इस लेख में हम यह जानेंगे कि महादशा कैसे कार्य करता है

इसका मिसाल आप इस तरीका से समझे 

आप एक खुले मैदान में खड़े हैं, और आपके  कमर में रस्सी के सहारे एक बड़ा सा पत्थर बांध दिया गया हो ..तो आपको चलने में परिश्रम की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि आप जब चलेंगे तो आपके कमर में बंधा हुआ रस्सी आपके ठीक पीछे उस बड़े पत्थर का भी भार को लिए रहेगा यानी आपको चलने में दुगना परिश्रम का अनुभव महसूस होगा...   

इसका अन्य मिसाल ऐसा है कि आप रेल यात्रा के दौरान प्लेटफार्म पर कुली की अनुपस्थिति में  अपना सारा लगेज आप अपने हाथों में लिए हो, और किसी कारण से आपको कुली ने मिल पाया हो और अपना सारा सामान अपने कंधे में और हाथ में लिए हो और चलने में बेहद असहज महसूस कर रहे हो ...

अब अन्य उदाहरण से हम समझते हैं

अगर आपको 10 मंजिला इमारत पर आपको 9वीं मंजिल पर जाना हो और लिफ्ट खराब हो.. और आपको सिढी के सहारे नौवीं मंजिल तक जाना हो..

उपरोक्त सभी उदाहरण में आपको कष्ट और दुगने परिश्रम की अनुभूति होगी

शारीरिक श्रम भी होगा, थकान भी महसूस होगा, कष्ट भी होगा, और अत्यधिक समय भी लगेगा ..

अभी सभी ही उदाहरण का vice versa करते हैं

आप जैसे ही प्लेटफार्म में पहुंचे कुली ने आपका सारा सामान लेकर आपके एसी कोच तक पहुंचा दिया हो और आप आराम से वहां जाकर बैठ जाए..

नौवीं मंजिल पर जाने के लिए आपके पास Lift उपलब्ध हो और आप सिर्फ 9 बटन को क्लिक करते हैं और मिनटों में नौवीं मंजिल पर पहुंच जाते हैं..

किसी अत्याधुनिक मॉल, एयरपोर्ट पर ऑटोमेटिक सीढ़ी की व्यवस्था होती है बस आप खड़े रहे सिढी खुद ही आपको वहां तक पहुंचा देगी आपको चलने की कोई आवश्यकता नहीं..

बहुत एयरपोर्ट पर ऐसी भी व्यवस्था रहती है कि बस अब खड़े रहे और एक यंत्र तेजी से आपको आगे की ओर बढ़ाता चला जाएगा, और अगर आप वहां चले तो दुगनी गति से आप अपने गंतव्य तक पहुंच सकेंगे ..

उपरोक्त सभी उदाहरण ग्रहों की महादशा पर आधारित है

अगर अरिष्ट ग्रह की महादशा चल रही हो, तो आपके जीवन में भी जिम्मेदार रूपी समस्या का एक पत्थर आपके कमर पर बंधी रहती है, और आपको जीवन रूपी गाड़ी को चलाने में दोगुनी परिश्रम की आवश्यकता होती है...

वही कारक और राजयोगी ग्रह की महादशा जब चलती है खुद-ब-खुद कभी लिफ्ट तो कभी आधुनिक यंत्र का काम करती है और आपके काम दुगनी गति से कराती है ...

भले ही आप खड़े ही क्यों ना रहे, ग्रह खुद काम करके आप को आगे बढ़ाते रहते है, जैसे कि मॉल या एयरपोर्ट पर ऑटोमेटिक सीढ़ी जिसमें आप खड़े भी रहे तो वह आपको ऊपर और नीचे खुद ब खुद पहुंचा देती है ...

वास्तव में महादशा आपके जीवन की दिशा तय करती हैं ..

उदाहरण के तौर पर किसी की राहु की महादशा का अंतिम चरण चल रही है और आपको विशेष अनुभव होने भी लगे हैं इसके साथ ही ... आने वाली गुरु की महादशा है

तो आप ऐसा समझे कि राहु अपना कार्यकाल समाप्त कर रहे हैं और बृहस्पति अपना कार्यभार संभालेंगे ।।।

राज्य में जो भूमिका मुख्यमंत्री की है आपकी कुंडली वही भूमिका महादशा कि है

हमने पहले ही कहा था कि हो सके कि अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री सात्विक हो, और जब उसे मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिले तो राज्य के तमाम बूचड़खाने को बंद करवा दें और अवैध स्लॉटरिंग को बंद भी कर दें या खुले में मांस बेचने पर प्रतिबंध भी लगा दे ।।।

गुरु सात्विक ग्रह है,  राहु की महादशा खत्म होगी..

गुरु मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभालेंगे, तो राहु में हुए जितने भी अवैध कार्य था उस पर लगाम लगाएंगे, अंकुश करेंगे और शायद जातक के खराब प्रवृत्ति को सुधार करके जातक को सात्विक भी बना दे ।।।

मुख्यमंत्री अपने हिसाब से राज्य को चलाते हैं

महादशा भी बिल्कुल अपने हिसाब से कुंडली को चलाते हैं..

इसका ज्वलंत उदाहरण मैं आपको देता हूं

एक जातक की कुंडली में लग्न में बृहस्पति था

अब आमतौर पर लोगों की अवधारणा है कि लग्न में बैठा बृहस्पति यानी कि साधु.. उसका अपना अलग ही महत्व होता है-- और जब यह बृहस्पति धनु का बैठे, मीन का बैठे, कर्क का बैठे तो क्या ही कहना हुआ मानव रुपी देव होता है ।।

जातक का कर्क लग्न की कुंडली लग्न में बैठा उच्च का चंद्र गुरु।।

कोई भी एक झटके में देखे तो लगे भगवान श्री राम की कुंडली

पर जब जातक का रहन-सहन देखा हमने तो जातक का धर्म कर्म पूजा पाठ में दूर-दूर तक कोई रुचि नहीं थी

जातक शराब-शबाब और कबाब में खोया हुआ था..

गहराई से देखा तो जातक की चतुर्थेश और लाभेश शुक्र की महादशा चल रही थी

अब आपको पूरी कहानी का Concept Clear हो जाएगा

देखें राज्य का मुख्यमंत्री यहां शुक्र है ..

अब जातक की शुक्र की महादशा चल रही है..

शुक्र का दूर-दूर तक पूजा-पाठ और अध्यात्म से कोई नाता नहीं ।।

शुक्र तो उमंग है, शुक्र तो सुख है, शुक्र तो आनंद है,  शुक्र तो वासना है , शुक्र तो धन है.. शुक्र तो जीवन की तमाम सुख सुविधा है.. शुक्र तो भोग है 

जीवन का तमाम भौतिक सुख शुक्र है

और जीवन का तमाम आध्यात्मिक सुख बृहस्पति है

शुक्र को शराब पसंद है.. गुरु को दूध ..

शुक्र को मयखाना पसंद है.. तो गुरु को मंदिर ..

अब महादशा रूपी मुख्यमंत्री शुक्र ने ऐसा धमाल मचाया कि लग्न में बैठा बृहस्पति कहां खो गए पता ही नहीं चला...

अब आपको समझ में आ रहा होगा कि महादशा का कितना प्रभाव है ।।

महादशा वो खिलाड़ी है जो क्रिकेट के मैच में पिच पर बैटिंग कर रहा है ..

और बाकी के खिलाड़ी पवेलियन बैठे मैच का लुफ्त उठा रहे हो

लग्न में बैठा बृहस्पति वह भी उच्च का गुरु इस जातक को कहीं कथावाचक होना चाहिए ..

पर मुख्यमंत्री शुक्र ने ऐसा धमाल मचाया की लगन में बैठे उसके बृहस्पति देव पैवेलियन बैठे मात्र शुक्र का कारनामा देख रहे हो और मजबूर हो ..और कह रहे हो कि बस आने दो मेरी सरकार.....

पर शुक्र ने भी कहा कि 20 साल तो मैं राज करूंगा और गुरुदेव आपकी सरकार कभी आएगी ही नहीं ...

क्योंकि मेरे बाद सूर्य देव, चंद्र देव, मंगल देव, और राहु देव अपना कार्यकाल पूरा करेंगे.. उसके बाद आप आएंगे ..तब तक तो जातक का जीवन लीला ही समाप्त हो जाएगी ।‌।

तो बेहतर आप पर पैवेलियन में बैठ मैच का लुफ्त उठाएं और फिलहाल बल्लेबाजी शुक्र की चल रही है...

वह भी 20 वर्षों तक..

कहानी जारी रहेगी... 

Er. Bibhash Mishra-Research Scholar and Astrologer Consultant

+91 99559 57433

Sunday 17 March 2024

आत्मा कारक ग्रह//वृद्धावस्था ग्रह-विशेष आयु-विशेष प्रभाव-विशेष शक्ति

Saturday 16th March 2024 at 09:33 AM

बिभाष मिश्रा बता रहे हैं ज्योतिष से सबंधित इस पहलु के भी गहन रहस्य 


ज्योतिष की दुनिया से
16 मार्च 2023: (बिभाष मिश्रा//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

ज्योतिष शास्त्र में दो ऐसे शब्द जो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिनका मायने लगभग एक समान है, पर परिभाषा अलग-अलग है, आज इसके कांसेप्ट को समझने की कोशिश करते हैं ।।।

ग्रहों की तीन अवस्थाएं होती है बाल्यावस्था, युवावस्था ,और वृद्धावस्था

बाल्यावस्था ग्रह - 0 से 10 डिग्री ।।

युवावस्था ग्रह - 10 डिग्री से 25 डिग्री ।।

वृद्धावस्था ग्रह - 25 डिग्री से 30 डिग्री ।‌

ज्योतिष कहता है जब कोई ग्रह वृद्धा अवस्था में होता है मतलब 25 डिग्री से 30 डिग्री के मध्य होता है,  तो अपनी क्षमता को खो देता है, यानी उसकी क्षमता उस प्रकार नहीं रहती है जितना ग्रह अगर कोई युवावस्था में हो ।।।

अगर कोई ग्रह उदाहरण के तौर पर 29 डिग्री का है तो वह वृद्धावस्था कहलाएगा और वह पूर्णतया फल देने लायक नहीं रहेगा ।।।

अब सिक्के के अगले पहलू को समझते हैं, अगला कॉन्सेप्ट यह कहता है कि आपकी कुंडली में जो ग्रह सर्वाधिक डिग्री का है वह आत्मकारक हुआ,  और यह ग्रह बाकी के 8 ग्रह की तुलना में आपके ऊपर सर्वाधिक प्रभाव रखता है ।।

एक तरफ वृद्धावस्था कहकर उसे आप कमजोर कह रहे हैं दूसरी तरह आत्मकारक कहकर उसे सर्वाधिक बली ।।।

सही मायने में दोनों ही अपने-अपने जगह सही है सिर्फ समझने का फेर है ।।

यकीनन अगर कोई ग्रह सर्वाधिक डिग्री का होकर वृद्धावस्था में है तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ जाती है, उसके तुलना में युवा ग्रह जो 10 से 25 डिग्री के मध्य हैं वह बेहतर परिणाम देने वाले होते हैं ।।।

पर अनुभव की बात करें तो वृद्धावस्था वाले ग्रह के पास ज्यादा अनुभव होता है ।।

उदाहरण के तौर पर एक परिवार में एक वृद्ध माता-पिता जिनके परिवार में रहना मात्र ही उस परिवार की हरियाली को बताता है ।।।

एक वृद्ध माता-पिता आर्थिक तौर पर परिवार में कोई योगदान नहीं देते हैं , यहां तक की परिवार के देखरेख में उनका कोई शारीरिक योगदानभी  नहीं होता है , परंतु उनका परिवार में उपस्थित होना ही यही परिवार के लिए बहुत बड़ा धन होता है ।।

युवा धन कमाते हैं, पर अगर कहीं वह संकट में फंसते हैं तो वह सलाह वृद्ध माता-पिता से ही लेते हैं ।।

वृद्ध माता-पिता अपना तजुर्बा, अपना अनुभव अपने बेटे को शेयर करते हैं ।‌।

एक अन्य उदाहरण से समझते हैं सिटी एसपी शहर का कप्तान होता है और पुलिस की सभी कार्यभार को S.P ही संभालता है

पर जहां वह आपराधिक गतिविधि या अन्य मामलों के निपटारे में खुद को असहाय महसूस करता  है, तो वह सलाह अपने वरीय पदाधिकारी DIG,  IG और DGP से लेता है जो अभिभावक के तौर पर अपना अनुभव SP को  शेयर करते हैं ।।

युवावस्था वाले ग्रह की भूमिका SP की भूमिका से समझना चाहिए ।।

वृद्धावस्था वाले ग्रह की भूमिका DIG,  IG, और DGP की भूमिका से समझना चाहिए ।।।

उम्मीद करता हूं कि आपका कांसेप्ट क्लियर हो गया होगा ।।

Er. Bibhash Mishra-Research Scholar and Astrologer Consultant

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Saturday 10 February 2024

चंद्रमा आपका मन है और मन पूरे शरीर के ऊपर एकाअधिकार रखता है

 Thursday 9th February 2024 at 11:46 AM

केमुन्द्रम दोष के बहाने से इंजीनियर बिभाष मिश्रा आपके सामने रख रहे हैं बहुत से रहस्य 


ज्योतिष की दुनिया से
03 फरवरी 2023: (बिभाष मिश्रा//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

पीड़ित चंद्रमा ... 

जन्म कुंडली में चंद्रमा एक बेहद विशेष स्थान रखता है

चंद्रमा आपका मन है और मन पूरे शरीर के ऊपर एकाअधिकार रखता है

कहावत भी है मन के जीते जीत ... और मन के हारे हार...

अर्थात जिसने मन पर  विजय हासिल किया है,वह विकट परिस्थिति में भी विजयी है,  और जो मन से हार चुका है वह लाख सुख सुविधा के बावजूद भी दुखी है ।।।

वेद में कहा गया है कि, चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत: च् !

अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है, मन का स्वामी होने के कारण यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो, जातक को मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं. चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है, इसकी राशि कर्क होती हैं !।।

चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है, परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है ।। 

यानी नवग्रहों में यह सबसे तेज चलने वाला ग्रह है ।।

चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है ।।

चंद्रमा आपकी कुंडली में कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसका उदाहरण ऐसे समझिए ।।

विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है ।।

गोचर कुंडली और शनि की साढेसाती भी चंद्र से ही देखी जाती है ।।

चन्द्र जिस नक्षत्र में बैठा हो उसके स्वामी ग्रह से ही जन्म की महादशाएं शुरू होती है ।।।

अर्थात जिस प्रकार आपके पूरे घर की व्यवस्था, घर का खानपान ,रखरखाव,राशन इत्यादि घर की कमी- बढ़त तमाम व्यवस्थाएं मां के द्वारा देखी जाती है ।।

इसी प्रकार आपकी कुंडली की तमाम व्यवस्थाएं चंद्रमा के द्वारा देखी जाती है ।।

इसीलिए ज्योतिष में चंद्रमा को मां की उपाधि दी गई है ।।

और मां शब्द के ऊपर में वही चंद्रबिंदु है ।।

तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद भी जिस प्रकार एक मां के घर में ना होना पूरे घर को वीरान कर देता है,  उसी प्रकार आपकी कुंडली में तमाम राज योग होने के बावजूद एकमात्र चंद्रमा का पीड़ित होना आपके कुंडली के तमाम राजयोगों को वीरान और तन्हा कर देता है ।।

अब बात आती है चंद्रमा पीड़ित कब होता है और कैसे होता है

जब भी आपकी कुंडली में चंद्रमा राहु के संग ...केतु के संग बैठा हो, चंद्रमा नीच राशि वृश्चिक का बैठा हो तो पीड़ित कहलाएगा ।।

चंद्रमा के एक घर पहले और एक घर बाद कोई ग्रह ना हो जिसे केमुन्द्रम दोष कहते हैं तो चंद्रमा पीड़ित कहलाता है ।।

इसका उदाहरण ऐसा समझते हैं।। 

अगर कोई अकेली महिला सुनसान सड़क पर चल रही है और उसके दाएं और बाएं कोई ना हो तो उसके मन में एक अनजान सब भय रहेगा, एक हवा का झोंका भी चले तो वह सहसा सहम जाएगी ।।

वही महिला के दाहिने और बाएं दोनों ओर में एक-एक भाई हो तो वह महिला बड़े रौब के साथ सड़क पर चलेगी, क्योंकि उसके दाएं और बाएं में सुरक्षा हेतु उसके भाई खड़े हैं ।।

केमुन्द्रम दोष में भी चंद्रमा के जब दाहिने और बाएं ओर कोई ग्रह नहीं होता है तो अकेला पाकर चंद्रमा वही सहमी हुई महिला के समान है जो अपने आप को असहाय और डरी हुई महसूस करती है ‌‌।।

वही अनजान सा भय, चंचल मन, अस्थिर स्वभाव, मानसिक तनाव आपकी कुंडली का पीड़ित चंद्रमा है ।।

जैसे-जैसे चंद्रमा कला में कमजोर होती है जैसे अमावस्या की तिथि तो भय और डिप्रेशन बढ़ता जाता है ।।

यही कारण है कि पीड़ित चंद्रमा वाले अमावस्या के दिन खासकर ज्यादा मानसिक तनाव महसूस करते हैं ।।

और मानसिक तनाव कभी-कभी इतना बढ़ जाता है कि आत्महत्या तक के ख्याल आ जाते हैं ।।।

जब चंद्रमा पीड़ित हो तो जातक के मन का मिसाल तो बस ऐसा है ...

जैसे घना समंदर हो.... लहर के ऊपर लहर उठ रही हो... और भीतर कुप्प घना अंधेरा हो ...

ऐसा घना अंधेरा कि कोई अपना हाथ भी बाहर निकाले तो वह दिखाई ना दे ।।

और ऐसी स्थिति में ईश्वर ही एकमात्र बचाने वाला हो ।।।

चंद्रमा पीड़ित होने पर निर्णय क्षमता कमजोर हो जाती है , जातक बेहद भावुक हो जाता है , मानसिक तनाव बहुत ज्यादा हो जाती है , जातक एकांत प्रिय हो जाता है , और मन में चंचलता बेहद बढ़ जाती है ।।

उसे सही मायने में एक अच्छे सलाहकार की जरूरत होती है जो उसे ऐसे निराशावादी दौड़ से दूर  निकाल ले ।।

पीड़ित चंद्रमा के प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार-बार आते रहते हैं !!

जातक किसी की कही गई बातों को दिल पर लेने लगता है और डिप्रेशन में चला जाता है ।।

खासकर चंद्रमा जब कुंडली में राहु के साथ हो तो स्थिति बड़ी ही भयावह हो जाती है ।।

जातक के पास तमाम सुख सुविधा हो, जो कुंडली में उपस्थित राजयोग से प्राप्त होती है,  उसके पास आलीशान मकान, वाहन , तमाम सुख सुविधा होती है ।।

फिर भी जातक भीड़ में तन्हा हो जाता है ....

उसकी तमाम सुख सुविधा कागज के रद्दी के ढेर के समान हो जाती है, और वह एकांत जीवन जीता है ।।

इसीलिए आपके पास आलीशान सुख सुविधा कुंडली में उपस्थित राजयोगी ग्रह तो दे देंगे,  पर उस सुख सुविधाओं को आप भोग कितना करेंगे यह तो कुंडली में उपस्थित चंद्रमा ही निर्धारित करेगी ।।

और आपकी कुंडली में अगर चंद्रमा पीड़ित हुआ तो सभी भोग रूपी वस्तु मिट्टी के ढेले के समान हो जाएंगे ।।

चंद्रमा केतु के साथ हो तो स्थिति उतनी भयावह तो नहीं होती , जितनी चंद्रमा, राहु के साथ हो तो होती है ।।

जातक तार्किक हो जाता है,  और कभी-कभी अच्छा सलाहकार भी हो जाता है, कड़वे अनुभव से सीख कर अच्छा सलाहकार भी हो जाता है ।।।

वही चंद्रमा जब शनि के साथ बैठा हो तो जातक में आध्यात्मिक गुण आ जाते हैं,  और अध्यात्म के क्षेत्र में शिखर तक पहुंचता है ।।

वही चंद्रमा जब केमुन्द्रम दोष में हो तो जातक के मन में एक अनजान सा भय, डर समाए रहता है ।।

पीड़ित चंद्रमा को ठीक करने का सबसे बेहतरीन उपाय अपने आप को ज्यादा से ज्यादा सकारात्मक बनाए रखना,  ऐसी चीजों से बेहद दूर रहना जो निराशावादी सोच देती है ।।

ऐसे लोगों से दूर रहना जो निराशावादी हो ।।

अकेले में ज्यादा न रहकर लोगों के मध्य रहना और हंसी-खुशी जीवन जीने का प्रयास करना,  जितना पास में हो उतना में संतुष्ट रहना और अनिश्चितता के पीछे ना भगाना ।।

दूसरे से अपने खुद की तुलना कदापि न करना ...

और शिव की पूजा में खुद को समर्पित करना नित्य कच्चे दूध से शिवजी का अभिषेक करना और सोमवार का उपवास करना पीड़ित चंद्रमा को शांत करने का उपाय है ।। 

Er. Bibhash Mishra-Research Scholar and Astrologer Consultant

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Sunday 4 February 2024

जब आसमान में दो चन्द्रमा दिखते हैं और उल्कापात होता है

दुनिया और ज़िंदगी के लिए होता है वह समय बहुत ही विशेष 


लुधियाना: 04 फरवरी 2024: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

ज्योतिष और अध्नायात्बम के जानकार  के गोपाल
उत्तर भारत में जब पंजाब पहुंच कर लुधियाना से जगराओं की तरफ जाया जाए तो थोड़ी सी दूरी पर ही  मुल्लांपुर, रायकोट और जगराओं के इलाकों में एक जाना माना नाम है जनाब के. गोपाल जी का। बहुत लोकप्रिय शख्सियत हैं वह। समाजसेवी, जहां फिलास्फर और पत्रकार  होने के साथ साथ वह बहुत अच्छे ज्योतिषी भी हैं। उनकी भविष्यवाणियां बहुत बार सच भी साबित हो चुकी हैं। 

कई बार उनकी गहन बातों को समझ पाना सबके बस में भी नहीं होता। आज उन्होंने कहा है कि आसमान में दो चांद नज़र आने वाले हैं। साथ ही उल्कापात वाली बरसात भी होगी। उल्का पिंड की बरसात या उल्कापात का सिलसिला बहुत पुराना है। समय समय पर इसके आसार बनते ही रहते हैं। उनकी राजनैतिक उथल पुथल की बातें भी सच निकलती रही हैं। 

आज सुबह सुबह मुंह अंधेरे पांच बजे से पहले ही उन्होंने भविष्वाणी की है कि आज आसमान में दो चांद नज़र आएंगे। इसके साथ ही उल्कापात भी देखने को मिलेगा। जहां जहां भी यह देखा जा सकेगा वहां के लोगों के लिए यह बहुत ही यादगारी भी होगा। इस तरह के पल बहुत काव्यपूर्ण और रूमानी भी महसूस हो सकते हैं। यदि किसी को किसी गृह के प्रकोप का विचार मन में हो तो उसके लिए भयानक महसूस भी हो सकते हैं। अर्थात आपके  भी होगा उसका अनुपर कई गुना बढ़ जाएगा। आपकी यादें सचमुच यादगारी बन जाएंगी। 

गौरतलब है कि इस तरह की बरसात के संबंध में बहुत कुछ कहा सुना जाता रहा है। उल्का वर्षा  अर्थात meteor shower एक खगोलीय घटना है जिसमें किसी ग्रह पर आकाश के एक ही स्थान से बार-बार कई उल्का बरसते हुए प्रतीत होते हैं। प्रकृतिक तौर पर यह एक सौंदर्यपूर्ण दृश्य भी बन सकता है। 

वैज्ञानिक तौर पर इसके अलग पहलू होते ही हैं। मानव और अन्य जीवों पर इसके प्रभाव भी हो सकते हैं।  यह उल्का पात वास्तव में खगोलीय मलबे की धाराओं के ग्रह के वायुमंडल पर अति-तीव्रता से गिरने से प्रस्तुत होते हैं। अधिकतर का आकार बहुत ही छोटा (रेत के कण से भी छोटा) होता है इसलिए वह सतह तक पहुँचने से बहुत पहले ही ध्वस्त हो जाते हैं। सो कई बार इनके गिरने का पता नहीं भी चलता। हां अगर अधिक घनी उल्का वर्षा को उल्का बौछार अर्थात meteor outburst  या फिर उल्का तूफ़ान meteor storm कहते हैं और इनमें एक घंटे में 1000 से अधिक उल्का गिर सकते हैं। इसकी कल्पना मात्र से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि दृश्य कैसा लग सकता है।  तन और मन में क्या महसूस हो सकता है। 

हमने एक गीत के बोलों की चर्चा की थी संगीत स्क्रीन में-

कैसी हसीन आज बहारों की रात है-एक चाँद आसमां पे है एक मेरे साथ है....

बेहद लोकप्रिय हुए इस गीत में दो पंक्तियां और भी विशेष हैं जो ब्रह्मण्ड के रहस्यों और ईश कृपा की तरफ भी इशारा करती हैं। 

देखिए ज़रा इन पंक्तियों की गहराई भी-

देने वाले तू ने तो कोई कमी न की;अब किस को क्या मिला ये मुक़द्दर की बात है

अगर आप किसी तरह आज की इस बरसात और दो चांद नज़र आने के दृश्य को देखने में कामयाब हो जाते हैं तो अवश्य बताएं कि आपको कैसा महसूस हुआ यह सब अलौकिक सा दृश्य? अब इस तरह के दो चन्द्रमा और उल्काजोोू आपके भविष्य और वॉटरमैन पर कैसा असर डालेगा इसका सही पता अच्छे ज्योतिषी ही बता सकेंगे।