Monday 25 December 2017

साध्वी मीमासां भारती ने किया सभी को मंत्रमुग्ध

Mon, Dec 25, 2017 at 11:24 AM
कर्म ही हमारे जीवन का करता धरता
लुधियाना: 25 दिसम्बर 2017: (आराधना टाईम्स ब्यूरो)::
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्धारा कैलाश नगर  आश्रम में अध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन किया गया जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी मीमासां भारती जी ने आए हुए समुह को संबोधित करते हुए कहा कि कण-कण में ईश्वर निवास करता है। वही ईश्वर हमारे घट में विराजमान है उसी से मिल जाना ही आज के इंसान का प्रथम लक्ष्य है। जिस प्रकार से तेज वेग के साथ बहती हुई नदी का लक्ष्य है सागर में मिलना ठीक वैसे ही एक जीव आत्मा का उदेश्य सागर रूपी प्रभु में मिल जाना है। तभी जीव आनंद, शांति और सुख को प्राप्त कर सकता है। हर जीव अपने कर्म के अनुसार ही सुख और दुख को प्राप्त करता है। कर्म ही हमारे जीवन का करता धरता भी है। जिसको किए बिना हमारा जीवन चल ही नही सकता। इंसान जीवन और मृत्यु के बीच में बहुत से कार्य करता है। पर हमने विचार यह करना है कि हमने कर्म कौन सा करना है। प्रमात्मा के द्धारा बनाई गई यह सृष्टि कितनी सुन्दर और कितनी प्रेरणा दायक है। अगर इंसान चाहे तो इससे बहुत कुछ सीख सकता है। जैसे हम हर सुबह सुरज को देखते है जब वह निकलता है तो जो उसकी रौशनी सारी धरती पर पड़ती है क्या वह सदा के लिए धरती पर रहती है? चांद निकलता है अपनी मधुर रौशनी देता है तो क्या उसकी रौशनी भी सदा के लिए धरती पर रहती है? विशाल सागर को देखे उसकी विशाल लहरे पुरे दम खम के साथ तट की और आती हैं उसे छुने के लिए तो क्या तट को छू लेने के बाद वह सदा सदा के लिए तट की होकर रह गई? नही यह  सत्य नहीं है। यह सभी कुछ हमारे लिए है हमे समझाने के लिए है सांझ ढलने पर जो सुरज की रौशनी है वह वापिस सूरज में समाहित होती है, चांद की रौशनी को चांद में लौटकर शांति मिलती है इसी तरह सागर की लहरों को भी सागर में लौटना होता है। क्यूँकि अंशी सदैव अपने अंश की और ही बढा करता है।
                        आगे साध्वी जी ने कहा कि प्रभु की एक अदुभुत भेंट इस सृष्टि को इंसान जिसका यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह ईश्वर का अंश है। इंसान के अंश होने के साथ इसका अंशी वह प्रमात्मा है। हम देखें कि जहां सभी अंश अपने अंशी की ओर जा रहे हैं वही पर आज के मानव को अपने अंशी की बिलकुल भी खबर नही है। उसकी बिलकुल भी याद इंसान के भीतर नही है।  वह प्रमात्मा से बेमुख हो चुका है। वह अपने कर्म को भुल कर इस संसार की मौह माया की नींद में सो गया है। लेकिन हमारे महापुरूष कहते है कि इंसान इस संसार में तेरा कोई नही है और ना ही तुमने इस संसार में सदा सदा के लिए रहना है तुझे एक ना एक दिन इस संसार को छोड कर जाना है इस लिए तु जाग इस नींद से और अपने अंशी उस प्रभु की और मुख कर उसे जान और अपने जीवन को सार्थक कर। और इस जीवन को मुल्य को जानने के लिए अपने अंशी से मिलने के लिए तुमे आज जरूरत है एक मार्ग दर्शक की। और इंसान का मार्ग दर्शक तो एक गुरू-एक संत ही हो सकता है जो उसका मार्ग प्रशस्त करे। इस संसार की ओर नही बल्कि उसके अंशी उस प्रमात्मा की तरफ जाना ही लक्ष्य हो। वह लक्ष्य जिससे मिलने के लिए उसे यह मानव तन प्राप्त हुआ। इंसान अपने जीवन में बहुत से पाप कर्म करता है इन पापों का निवारण इंसान गुरू की शरण को प्राप्त कर ही कर सकता है। ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करना और अपने जीवन को उसके माध्यम से सफल बनाना ही वह कर्म है जिसे करने के लिए प्रमात्मा ने इंसान को इस संसार में सब से ऊंचा दर्जा दिया। 

                        अंत में इसी अवसर पर साध्वी रवनीत भारती जी के द्धारा प्रेरणा दायक भजनों का गायन किया गया।  

Sunday 5 November 2017

भगवान कृष्ण की रासलीला के गहन रहस्यों की चर्चा

Sun, Nov 5, 2017 at 12:45 PM
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से विशेष आयोजन 
लुधियाना: 5 नवंबर 2017: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::  
जुर्म और बुराई की आंधी के बावजूद आध्यात्मिक तरंगों के आयोजन का सिलसिला लुधियाना में बड़े पैमाने पर जारी है। शायद इन्हीं तरंगो के कारण अभी तक बहुत से लोगों के मन में भगवान का डर बना हुआ है और वे पाप करते समय कई कई बार सोचते हैं।
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से गगन नगर, ग्यासपुरा में समूह इलाका निवासीयों के सहयोग से शुरू हुई नौ दिवसीय श्री मद्धभागवत  कथा ज्ञान यज्ञ के अष्टम दिवस की सभा का शुभारंभ श्री सि़ग़ल, सुमन ठाक़ुर जी ने  परिवार सहित भागवत पूजन कर किया। इसके उपरांत आज के मुख्य अतिथी विश्वनाथ सिह,रजिनदर मरपाल जी ने ज्योति प्रज्वलित कर किया। कथा को भक्तों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या महामनस्विनी कथा व्यास साध्वी भागयाश्री भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की अलौकिक लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि जिस प्रकार शबरी और केवट ने प्रभु श्री राम से अन्नय प्रेम स्थापित किया उसी प्रकार द्वापर में भी भगवान श्री कृष्ण के साथ गोपियों का अन्नय प्रेम था। भगवान श्री कृष्ण के साथ उन गोपियों का अटूट प्रेम, विश्वास एवं श्रद्धा थी। इसी कारण वह प्रेम में मगन हो चुकी थी। लेक्नि आज संसार गोपियों के उस प्रेम को संदेहात्मक दृष्टि से देखता है। इस संबंध में लोगो के तरह तरह के बिचार है कि वह तो गोपियों के साथ रासलीला करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ जो रासलीला की उस समय उनकी बालक अवस्था थी और गोपियाँ कुछ वृद्धा कुछ यौवनाए एवं बालक अवस्था की थी। रासलीला के पीछे छुपे हुए रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ संशयात्मक दृष्टिकोण को भी दूर किया कि वास्तव में रास लीला का क्या अर्थ है? हमारे शास्त्रों में कहा गया है जिस रस से आनन्द की प्राप्ति होती है वह रस है परमात्मा। परमात्मा ही रस है। श्वेतासर उपनिषद में भी इस संबंधी कहा गया है कि विश्व के निवासी उस अमृत रस रूपी ईश्वर संतान है। जब आत्मा और परमात्मा का मिलाप होता है तभी रास लीला होती है। यह अन्तर की स्थिति होती है। यह मिलन केवल पूर्ण संत सद्गुरू की कृपा से ही संभव है।
                 आगे साध्वी जी ने सदगुरु के बारे में बताते हुए कहा कि कुछ समाज विरोधी तत्व ऐसे गुरू का विरोध करते आए है। क्योकि वह नही चाहते कि समाज में किसी प्रकार की शांति या अमन फैले वह तो इंसान का इंसान से बंटवारा चाहते हैं। लोगो में एैसे संतो के विषय में निराधारा गलत धारणाओं व अफवाहों को फैला देते है तांकि लोगो के मन में ऐसे संतो के प्रति हफरत पैदा हो सके। लेकिन जिस ने भी संत सद्गुरू की कृपा से अपने भीतर प्रभु का दर्शन किया है वह कभी भी इस तरह की व्यर्थ बातों पर विश्वास नही करते। संत की पहचान करने वाले कभी भी संत का विरोध नही करते। विरोध करने वाले तो वह लोग होते है जिनका धर्म व सत्य से कोई लेना देना नही होता। आगे साध्वी जी ने कथा प्रसंग की आते हुए कहा कि भगवन श्री कृष्ण की लीलाएं एक दिव्य संदेश प्रस्तुत करती है। जिसका भगवन श्री कृष्ण ने भी भागवद्गीता में उद्घोषण किया है कि मेरे जन्म और कर्म दिव्य व अलौकिक है। पभु इन उदगारों का अर्थ यही है कि वह अपने जीवन के प्रत्येक पहलू से कोई ऐसी सीख, कोई ऐसा संदेश प्रस्तुत करते है जिसे अपने जीवन में धारण करने हर मानव दुख और क्षोभ को छोडकर आनन्द को प्राप्त कर सकेगा। उस सुख को प्राप्त कर सकेगा जिसकी प्राप्ति के लिए वह ताउम्र प्रयासों में लगा रहता है। यदि वर्तमान मानव की समस्याओं को देखे इससे निजात का मात्र एक ही तरीका है। प्रभु का साक्षातकार जिससे न केवल मन को सही दिशा ही मिलेगी बल्कि एक अंकुश भी मिलेगा। यह केवल पूर्ण गुरू के चरणों में अर्पित हो, ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति से ही सम्भव  है। ब्रह्म ज्ञान का अर्थ ही गुरू कृपा के द्धारा मानव तन के भीतर प्रभु दर्शन करना है या यूँ कहिए कि यही प्रभु का अवतरण है।
                      इसी अवसर पर साध्वी सुश्री भगवती भारती जी, साध्वी सुश्री सतिन्दर भारती जी, साध्वी पुष्पभद्रा भारती जी, साध्वी संदीप भारती, साध्वी रेनु भारती जी के द्वारा सुन्दर भजनों का गायन किया गया। विशेष रूप मे परमहंस, रमन शर्मा, के.एस. ठाकुर , लाला रमेश, संदीप सिंह ढिल्लों, दर्शन गोगना, अर्वन कुमार, सतनाम सिंह, सरबजीत सिंह, सधु सुद,  मान सिंह, कैलाश चौधरी, जतिंदर  मलहौत्रा जी ने अपनी हाजरी लगवाई। कथा को विराम प्रभु की पावन आरती के साथ दिया गया।  

Tuesday 12 September 2017

आज सारा संसार बारूद के ढेर पर बैठा है

Tue, Sep 12, 2017 at 5:48 AM
मन को बेलगाम छोड़े रखा तो विनाश निश्चित
लुधियाना: 12 सितम्बर 2017:(पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्धारा लोहारा में चल रहे दो दिवसीया सतसंग विचारों के दुसरे दिन की अध्यक्षता करते हुए श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी तेजस्वनी भारती जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि सादा सरल और सफल जीवन जीने के लिए कुदरत को समझना बहुत जरूरी है। मानव का कुदरत के नियमों के साथ अटूट संबंध है। मानव ने कुदरत में से ही जन्म लिया है लेकिन आज इंसान की जिन्दगी के अलग-अलग क्षेत्रों में गंभीर संकटो का सामना कर रहा है। पदार्थवाद का बढ़ रहा असर और जीवन में सुख प्राप्त करने की लालसा ने मानव की सामाजिक दशा के ऊपर बहुत असर डाला है। जिस कारन इंसान रूझान ऊँच कदरों कीमतों से मुडकर भ्रष्टाचार, नफरत और ईर्खा की और ज्यादा हो गया है। इसी कारण सत्य, दया और नैतिकता जैसे सदाचारक पहलुओं पर आधारित जीवन की कदरों कीमतों को बहुत नुकसान पहुँचा है। परिवारिक रिश्तों में विखराव बड़ गया है। इसको रोका जा सकता है अगर कुदरत के नियमों के अनुसार आपस में प्यार से रहते हुए ऊंचे सदाचारक गुणों को जीवन में धारण किया जाए और अध्यात्मिक और नैतिक क़द्रों कीमतों के उपर अधारित जीवन की तरफ कद़म बढाए जाएँ।

                   साध्वी जी ने कहा कि इंसान इस सृष्टि का सबसे विकसित प्राणी है। उसने अपनी बुद्धि से इस संसार के रहस्यों का काफी हद तक पता लगा लिया है। कुदरत में छिपे रहस्यों को जान कर उसने अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाया है। लेकिन इस विकास के दौर में उसका स्वार्थ पता नही कब शामिल हो गया कि उसने अपनी बुद्धि का नकारात्मक प्रयोग करना शुरू कर दिया। मानव का विकास तब तक अधुरा ही रहेगा जब तक वह अंत्रमुखी होकर अपने सच्चे स्वरूप की पहिचान नही कर लेता। जिस तरह विज्ञान बाहरी जगत से अवगत करवाता है इसी तरह अध्यात्म विज्ञान मानव के भीतरी जगत के भेद खोलता है। यह विज्ञान ही देन है कि आज सारा संसार बारूद के ढेर के उपर बैठा है। कोई पता कि कब एक धमाका हो और सारा विश्व तहस नहस हो जाए। मानवी समाज आज लाचार होकर विनाश के किनारे पर खड़ा  है। आज का मानव लोक कलयाण की भावना को विसार चुका है। मानव के अंदर बैठा शैतान इतनी तेजी से काम कर रहा है कि वह दिन दुर नही है जब जीवित लोग मुर्दों से ईर्ष्या करनी शुरू कर देंगे। नैतिक मुल्य स्वार्थ की भेंट चड़ कर अपने आप खत्म हो रहै है। आज युवा अपने राह से भटक रहा है और उसे देखकर यह लग रहा है कि अगर समय के रहते हुए उसे सही रास्ता ना दिखाया गया तो समाज का विनाश निशचित है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि नैतिक और अध्यात्मिक कदरो कीमतो के स्थान पर इंद्रीयों के सुख को ज्यादा महत्व देने वाले भौतकिवादी आदर्श और अपने सुख बढ़ाने वाले दुसरो का नुक्सान करने वाली प्रावृति मानवता को घोर विनाश के मार्ग की और लेकर जा रही है। अगर हमने अपने सुखो को प्राप्त करने के लिए अपनी आत्मा की आवाज को अनसुना कर दिया तो इन सब का कया लाभ? अगर इंसान अपने ही मन पर लागु नही कर सकता तो फिर अनेको पुलाड़ी यंत्रों को काबु करने का कया फायदा? जबकि हमारे महापुरूषों ने कहा है कि- ‘मन जीते जग जीत’ अगर हमने अपने मन को वश में कर लिया तो हम सारे संसार को जीत लेंगे। लेकिन हम अपने मन की लगाम को खुला छोडक़र सब कुछ हासिल करना चाहते है और हमारी इसी सोच के नतीजे आज हमारे सब के सामने है।  
             इसी अवसर पर साध्वी रवनीत भारती जी ने सुमधुर भजनो का गायन भी किया। विशेश रूप में मनजीत सिंह, बलबीर सिंह कुलार, सतवंत सिंह, जसप्रीत सिंह, सुखदेव सिंह, सतनाम सिंह आदि ने अपनी उपस्थति दी।

Monday 11 September 2017

शिष्य वही जिसे गुरू वचनों पर विश्वास है-साध्वी भारती जी

Mon, Sep 11, 2017 at 7:07 AM
शिष्य तो वह है जो चुनौतियों का डट कर सामना करे
लुधियाना: 11 सितम्बर 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: 
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा लोहारा में दो दिवसीय विषेश सभा का आयोजन किया गया।  प्रथम दिवस मे कार्यक्रम की शुरूआत साध्वी रवनीत भारती जी द्धारा गुरु महिमा में एक भजन ‘धीरज रख वो रहमत की वर्षा बरसा भी देगा’ गाकर की। इसके उपरांत सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी ममता भारती जी द्धारा उपस्थित भक्तों को विचार देते हुए कहा कि जैसे एक स्त्री श्रृंगार के बिना और वृक्ष पत्तों व फूल के बिना सुंदर नहीं लगते, ठीक वैसे ही एक साधक भी धीरज, दया, प्रेम, विश्वास, श्रद्धा आदि के बिना साधक नहीं बन पाता। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कहा गया कि शिष्य वो नहीं जो पल-प्रतिपल संकट से घबराकर डर जाये, शिष्य तो वह है जो चुनौतियों का डट कर सामना करे। जैसे भक्त हनुमान जी जब भक्ति को प्राप्त करने के लिए चले तो उनका मार्ग रोकने वाले कितने ही लोग आये, परन्तु वह सभी का डटकर सामना करते हैं। भक्त को यदि कोई विजय दिला सकता है तो वह भक्त का दृढ़ विश्वास जैसा विश्वास शबरी जी के पास था। उनके गुरु मंतग मुनी जी ने कहा एक दिन तुमहारी ‘कुटीया में श्रीराम जी अवश्य आयेंगे’। उन्हें अपने गुरु के वचनों पर विश्वास था और वह इंतजार करती है और एक दिन वह भी आता है, जब उसकी कुटिया में श्री राम जी आते भी हैं। कहने का भाव यदि विश्वास हो तो चट्टान की तरह मजबूत।
   आगे साध्वी जी ने कहा कि यदि हम संसार की ओर ध्यान से देखें तो इसमें यदि कुछ महतवपूर्ण है तो वह है केवल मात्र विश्वास-जैसे बनाने के लिए बहुत लम्बा समय लगता है और टूट जाने के लिए पल भर। इसलिए भक्त भी गुरु चरणों में सदैव विश्वास के सहारे अपनी प्रीत जोडक़र रखता है और ऐसी प्रीत की एक उदाहरण है भक्त प्रलाहद जी। उनका पिता उनके ऊपर कितने अत्याचार करता था, परन्तु भक्त प्रलाहद जी सदैव अपने श्री हरि पर विश्वास और प्रेम होने के कारण हर संकट से बच जाते और एक दिन जब प्रलाहद जी ने कहा कि मेरा प्रभु इस स्तंभ में भी है तो प्रभु को अपने भक्त की रक्षा और विश्वास को जीतने के लिए प्रकट होना पड़ता है। इसीलिए विश्वास सदैव जीतता है, हार कभी नहीं होती।
     अंत में साध्वी जी ने कहा कि हमें भी अपने ईष्ट पर पूर्ण विश्वास व श्रद्धा रखनी चाहिए। कार्यक्रम के अंत में सभी ने विश्व शांति की मंगलमयी कामना को धारण करते हुए सामूहिक ध्यान साधना भी की और साध्वी रवनीत भारती द्धारा समधुर भजनों का गायन किया गया।

Sunday 3 September 2017

गुरुद्धारा दुःख भंजन साहिब में गुरमति आयोजन

भाजपा नेता प्रवीण बांसल ने भी देर रात तक उठाया अलौकिक आनंद 
लुधियाना: 3 सितम्बर 2017: (कार्तिका सिंह//आराधना टाईम्स):: 
बहुत से लोग बेचैन हैं क्यूंकि उनके पास दो वक़्त की रोटी का भी प्रबंध नहीं। गरीबी ही उनको हर दुःख दर्द का कारण लगने लगती है जबकि ऐसा है नहीं।  दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जिनके पास कितना धन है इसका पता उनको खुद भी नहीं होता लेकिन वे गरीब से भी ज़्यादा दुखी हैं। हिम्मत करके पूछा शायद आपने किसी का हक मारा हो तो वो कर्म और उसका फल आपको दुखी कर रहा हो? जवाब मिला ऐसा भी नहीं। तब याद आये लुधियाना के जाने माने  रागी भाई हरबंस सिंह जगाधरी वाले जो बहुत ही अच्छा कीर्तन किया करते थे और साथ ही ध्यान में बिजली की तरह नाम कौंधा संत सिंह मस्कीन जी का जो कहा करते थे जिसे गुरबाणी का कीर्तन सुन कर आनंद नहीं आता उसे किसी भी सुख-सुविधा या अन्य गीत संगीत से आनंद नहीं आ सकता। 
संगीत के सुनिश्चित रागों में आधारित गुरुबाणी के शब्दों का गायन जब पूरी श्रद्धा और नियम से होता है तो अंतर्मन के सभी ताप और संताप तुरंत दूर होने लगते हैं।  एक अलौकिक सी शीतलता उस रूहानी संगीत की वर्षा से ऐसी उतरती है कि इंसान उसी में लीन हो जाता है।
पर आजकल के व्यस्त समय में न तो किसी के पास वक़्त है और न ही सुविधा के कुछ पल जो इस कीर्तन को सुन कर निहाल हो सके। नसीबों के बिना यह खज़ाना हाथ में आता भी नहीं। आज के व्यस्त जीवन में न्यू कुंदनपुरी में स्थित गुरुद्धारा श्री दुःख भंजन साहिब में अक्सर  ही ऐसे आयोजन होते रहते हैं जो इस तरह के अवसर प्रदान कराते हैं। ऐसा ही एक यादगारी आयोजन हुआ गत 2 सितंबर 2017 की रात को जो आधी रात तक जारी रहा। गर्मी के जाते हुए मौसम में रात के समय रुक रुक कर चलती ठंडी ठंडी हवा इस सारे माहौल को और भी प्राकृतिक और सुंदर बना रही थी। आसमान के सितारे और हवा का छूना आरती के शब्दों की याद दिला  रहा था। महसूस हो रहा था कि कैसे सारी प्रकृति उस अदृश्य भगवान का गुणगान कर रही है। 
इस अवसर पर जो लोग पहुँच सके वो बहुत ही किस्मत वाले लोग थे। इनमें जानेमाने भाजपा नेता प्रवीण बांसल भी शामिल थे जो अक्सर लोगों के हर दुःख सुख में अवश्य पहुंचते हैं। जागरण हो या कीर्तन दरबार वह अपनी हाज़िरी लगवाना नहीं भूलते। खास बात यह भी कि अन्य नेताओं की तरह झट से भागने की नहीं करते बल्कि आराम से बैठ कर भजनों और शब्दों का आनंद लेते हैं। उनकी मौजूदगी से सभी लोग अच्छा महसूस कर रहे थे। 
इस बार गुरमत समागम में भाई प्रिंस पाल सिंह, ज्ञानी निर्मल सिंह, भाई हरविंदर सिंह, भाई राणा प्रताप सिंह  के जत्थों ने कीर्तन और कथा से संगत को निहाल किया और याद दिलाया कि बाहर के इस संसार के साथ साथ एक संसार हमारे अंदर भी होता है। उसका सुधर नहीं हुआ तो बाहर की सारी उन्नति बेकार है। इसलिए अंतर मन की झलक भी लेते  रहना चाहिए और गुरुबाणी इसमें बहुत सहायक है। एक एक शब्द आपको बाहरी संसार और अंतर मन में बसी दुनिया की हकीकत बतलाता है। 
गुरुद्धारा प्रबंधक कमेटी की ओर से श्री बांसल और कीर्तनी जत्थों को सम्मानित भी किया गया। इसके बाद कड़ाह प्रसाद की देग भी सभी ने बहुत सम्मान से ली।  गुरु का अटूट लंगर भी देर रात तक चला जिसका आनंद ही कुछ और था। कुल मिला कर यह एक यादगारी आयोजन रहा। इस बार आपनाहीं आ पाए तो अगली बार के प्रोग्राम में आना न भूलें। 

दोराहा नहर में गणेश प्रतिमा को विसर्जित कर सभी आँखे हुई नम

लुधियाना से दोराहा तक गणपति बप्पा मौर्य के जयकारों की गूंज 
लुधियाना: 2 सितम्बर 2017: (आराधना टाईम्स ब्यूरो)::  
आशुतोष क्लब द्वारा 25 अगस्त से शुरू किए गए गणपति महोत्सव में शनिवार को दोराहा नहर में विधिपूर्वक विसर्जन से उत्सव का समापन हुआ न्यू कुंदन पूरी कृष्णा चौक से विशाल शोभायात्रा शुरू हुई जो उपकार नगर, कुंदन पूरी, प्रेम नगर, शाही मोहल्ला, वृंदावन रोड, सिंडिकेट चौक, कैलाश चौक, सैशन चौक, फव्वारा चौक इत्यादि कई क्षेत्रों तक गणेशमय संकीर्तन में ढोल नगाड़ों के साथ क्लब प्रधान नरेंद्र काकू व उनकी टीम के कुशल प्रबन्दन में पहुँची व आज श्री हिन्दू तख्त के प्रमुख प्रदेश प्रचारक वरुण मेहता प्रदेश कांग्रेस महासचिव अशोक पराशर पप्पी उप प्रमुख हरकीरत खुराना पूर्व पार्षद राजू थापर प्रमुख तौर पर शामिल थे।
फव्वारा चौक से सभी भक्त गाड़ियों में सवार होकर गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ का उद्धगोष करते हुए दोराहा नहर पर पहुँचे जहाँ सभी भक्तों ने जोश व उत्साह में जयकारे लगाते हुए लेकिन 8 दिन तक रोजाना पूजन करने से नम आंखों के साथ गणेश प्रतिमा को सनातन धर्म के पूर्ण रीति रिवाज़ों के साथ विधिपूर्वक विसर्जित किया व इस अवसर पर क्लब की तरफ से एक जरूरतमंद कन्या की शादी के लिए 5100 रुपए का शगुन भी दिया गया । वरुण मेहता ने कहा कि इस बार गणपति आयोजन पर क्लब की तरफ से वर्ष भर समाज सेवा कन्या भ्रूण हत्या रोकने व अन्य सामाजिक मुद्दों पर कार्य करने का संकल्प लिया गया है क्योकि धर्म व राष्ट्र प्रेम जाग्रत होने से हमारे समाज को नई दिशा मिलेगी इस अवसर पर प्रधान नरेंद्र चौधरी द्वारा चौथे गणपति उत्सव के दौरान सहयोग करने वाली सहयोगी सस्थायो व दानी सज़्ज़नो का आभार व्यक्त किया इस अवसर पर चंद्रमोहन  अशनूर सिद्धू  विमल कुमार नरेश कुमार सुनील कुमार रमेश कुमार कुलदीप सिंह देव कुमार आशीष कुमार नैतिक मेहता गौरव बावा नीना मेहता  शोभा रानी  गुरप्रीत नरेंद्र  शारदा रानी सीमा कुमारी व अन्य भी उपस्थित थे ।

Tuesday 8 August 2017

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने खोले रक्षा बंधन के गहन रहस्य

Tue, Aug 8, 2017 at 3:34 PM
सबसे उत्तम रिश्ता तो भक्त और भगवान का होता

लुधियाना: हमारा भारत देश ही एक ऐसा देश है जिसमें मनाया जाने वाला प्रत्येक पर्व हमें अपनी महान संस्कृति से परिचित करवाता है और हमें अध्यात्मिक रहस्यों से अवगत करवाता है। यह विचार दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा समराला चौक स्थित आश्रम में रक्षा बंधन पर्व को समर्पित भजन प्रभात में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री मीमांसा भारती जी ने कहे। उन्होंने कहा कि हमारे देश में कोई भी पर्व ऐसा नहीं मनाया जाता जिसका कोई अध्यात्मिक रहस्य न हो और यदि बात करें रक्षा बंधन पर्व की, तो यह पर्व भी हमें अध्यात्मिक संदेश प्रदान करता है। देखें तो यह पर्व है एक भाई-बहन का इस दिन एक बहन अपने भाई की क्लाई पर रेशम की डोर बांध कर अपनी रक्षा का वचन लेती है, परन्तु क्या भाई अपनी बहन की सच में रक्षा कर पाता है? यह प्रश्न वर्तमान समय को देखकर हमारे मन में सच में उठता है, जहां आज सारे रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। कितने ही ऐसे लोग हैं जो अपने ही रिश्तों का खून कर रहे हैं। हमारे घरों की बेटियां सुरक्षित नहीं, आए दिन तरह-तरह की खबरें हमें यह सोचने को मजबूर करती हैं कि आज कहीं पर कोई पवित्रता नहीं रही। फिर ऐसे में बहनों की रक्षा कैसे होगी? दूसरी ओर हमारा इतिहास है जो यह बताता है कि जब घर की नारियां असुरक्षित हो जाएं तो उनकी रक्षा कौन करता है। द्रौपदी इसका सबसे बड़ा परिणाम है। कहते हैं एक दिन भगवान श्री कृष्ण जी के हाथ में कुछ लग गया जिसके कारण उनके हाथ से रक्त बहने लगा। द्रौपदी जो पास ही खड़ी थी उसने अपनी साड़ी का पल्लू फाडक़र भगवान श्री कृष्ण जी के हाथ पर बांध दिया, तभी प्रभु ने कहा कि एक दिन में इस कपड़े के एक-एक धागे का रण उतारूंगा। वह दिन आया जब हस्तिनापुर की सभा में द्रौपदी का चीरहरण होने लगा तब भगवान ने साड़ी रूप धारण कर द्रौपदी की रक्षा की, जो काम सभा में बैठे गुरुजन, उसके पति व राजा नहीं कर सके, वह काम तब भगवान श्री कृष्ण जी ने किया। इसलिए संत कहते हैं कि वास्तव में हमारी रक्षा ईश्वर ही करता है। सबसे उत्तम रिश्ता तो भक्त और भगवान का होता है। आज आवश्यकता है कि हम भी उस सच्चे रिश्ते को समझ पाएं, जो कभी खत्म नहीं होता। कार्यक्रम के अंत में सभी साधकों ने गुरु महिमा से ओतप्रोत भजन को सुन परम आनंद को प्राप्त किया। विशेष रूप से गुरप्रीत, गुरचरण सिंह, कर्मजीत सिंह, रमन सैणी, जसवंत सिंह, उदय राज, सुभाष राणा, गुरनाम सिंह, वरुण कुमार आदि उपस्थित रहे।


Monday 7 August 2017

हम चिंतन में कम और चिंता में अधिक समय लगाते हैं

Mon, Aug 7, 2017 at 1:19 PM
चिंता है, चिता तक लेकर जाती है और चिंतन परम मोक्ष की ओर
लुधियाना: दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा मेहरबान राहों रोड पर एक दिवसीय अध्यात्मिक विचारों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी मनजीत भारती जी द्वारा समुधर वाणी के द्वारा संतों की रचना-मानत नहीं मन मोरा रे अनिक बार में इसे समझाऊं, जग में जीवन थोरा रे, के गायन से किया गया। इस अवसर पर श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी सुश्री सोमप्रभा भारती जी ने कहा कि हमारे संतों ने इस संसार को कभी रैन बसेरा, किराये का घर आदि अनेकों तरह की संज्ञा दी और समझाया कि जीवन तेरा कोई पक्का टिकाना नहीं, कहते हैं यह बात यदि कोई नहीं समझता वो हमारा मन है, जो यदि किसी को इस संसार में विदा होते हुए दिखता है, तो कहता है हमने भी एक न एक दिन इस संसार को छोडक़र जाना है, परन्तु जैसे ही कुछ दिन व्यतीत होते हैं, फिर से माया का प्रभाव पड़ जाता है और इंसान मौत को भूल जाता है। मन विकारों का संग कर भ्रमित करता है, परन्तु हमारे संतों ने अपनी अनेकों रचनाओं द्वारा समझाया है कि यदि मृत्यु पर विजय प्राप्त करना चाहते हो तो अपने जीवन में दो बातों को हमेशा याद रखें। पहला मौत व दूसरा ईश्वर को, जो जीवन में इसे ध्यान रखते हैं। वह अपने मन को समझाते हैं कि जन में जीवन में बहुत थोरा है, इसके समाप्त होने से पहले-पहले जीवन के उद्देश्य को जान लें। संत कबीर दास जी ने अपनी रचना में कहा हमारा एक-एक श्वास प्रभु की बंदगी के बिना व्यर्थ है। हमें एक-एक श्वास को ईश्वर के चिंतन में लगाना चाहिए, परन्तु हमारी आदत क्या है? हम चिंतन में कम और चिंता में अधिक समय लगाते हैं। चिंता है, चिता तक लेकर जाती है और चिंतन परम मोक्ष की ओर तो क्यों न जीवन में ईश्वर का चिंतन किया जाये, परन्तु एक प्रश्न है कि चिंतन तो उसी का हो सकता है, जिसे देखा है, क्या हमने जीवन में कभी ईश्वर को देखा है? यदि पूर्ण गुरु की कृपा से गुरु ने आपके अंतकरण में ईश्वर के प्रकाश रूप के दर्शन करवाए हैं तो उस प्रभु चिंतन करना कठिन नहीं। यदि अभी तक ब्रह्मज्ञान का आगमन जीवन में नहीं हुआ तो हमें सर्वप्रथम ऐसे गुरु की खोज करनी चाहिए जो आपके घट में दर्शन करवाए तो उसका ध्यान लगाया जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में सभी ने प्रभु ध्यान में रत होकर विश्व शांति की मंगल कामना के लिए ध्यान साधना की। इस अवसर पर साध्वी मनजीत भारती जी ने समुधर भजनों का गायन किया। इस मौके विशेष रूप से शंकर गुप्ता, धर्मपाल, करनैल सिंह, गुलजार सिंह, बहादुर सिंह, जग्गा सिंह, योगेश शर्मा, बिट्टू शर्मा, कोमल कुमार, अंतरप्रीत सिंह, परमिंदर सिंह, रमेश कुमार, संदीप, सतनाम सिंह, विकास कुमार, प्रदीप कुमार आदि ने अपनी हाजरी लगाई।

Tuesday 30 May 2017

उसको सेवा से मिल गया सचमुच सच्चा मालिक

मजदूर हंसा ओर बोला-मजाक तो आप अब कर रहे हो
Courtesy Photo
"सतनाम श्री वाहेगुरु" 
एक मजदूर नया नया दिल्ली आया पत्नी को किराए के मकान मे छोडकर काम की तलाश मे निकला। एक जगह गुरद्वारे में सेवा चल रही थी कुछ लड़कों को काम करते देखा। उनसे पूछा-कया मे यहाँ काम कर सकता हूं? लड़कों ने हां कहा तो मजदूर पूछा-तुम्हारे मालिक कहा हैं? लड़कों को शरारत सूझी बोले मालिक बाहर गया हे तुम बस काम पर लग जाओ हम बता देगे आज से लगे। मजदूर खुश हुआ और काम करने लगा। रोज सुबह समय से आता शाम को जाता पूरी मेहनत लगन से काम करता। ऐसे हफ्ता निकल गया। मजदूर ने फिर लड़कों से पूछा मालिक कब आयेंगे? लड़कों ने फिर हफ्ता कह दिया। फिर से हफ्ता निकल गया। मजदूर लडको से बोला- भैया आज तो घर पर खाने को कुछ नही बचा पत्नी बोली कुछ पैसे लाओगे तभी खाना बनेगा मालिक से हमें मिलवा दो। लड़कों ने बात अगले दिन तक टाल दी मगर मजदूर के जाते ही उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगा ओर उनहोने आखिर फैसला किया वो मजदूर को सब कुछ सच सच बता देगे ये गुरूदा्रे की सेवा हे यहाँ कोई मालिक नही ये तो हम अपने गुरू महाराज जी की सेवा कर रहे हे। अगले दिन मजदूर आया तो सभी लड़कों के चेहरे उतरे थे वो बोले अंकल जी हमें माफ कर दो हम अबतक आपसे मजाक कर रहे थे ओर सारी बात बता दी। मजदूर हंसा ओर बोला-मजाक तो आप अब कर रहे हो हमारे मालिक तो सचमुच बहुत अच्छे है। कल दोपहर मे हमारे घर आये थे पत्नी को 1 महीने की पगार ओर 15 दिनों का राशन देकर गए। कौन मालिक मजदूर को घर पर पगार देता है।  राशन देता हे सचमुच हमारे मालिक बहुत अच्छे हैं। यह कह कर वह फिर अपने काम पर मेहनत से जुट गया। लड़कों की समझ मे आ गया जो बिना स्वार्थ के गुरु की सेवा करता है; गुरू हमेशा उसके साथ रहते हैं और उसके दुख तकलीफ दूर करते रहते हैं।  तो बोलिए:  

जो बोले सो निहाल

सत श्री अकाल, 


सतनाम श्री वाहेगुरु 

बाबा जी की चरणों की धूल कण समान
WhatsApp के P9 ग्रुप से साभार (R P Singh Ldh. posted on 28th May 2017 at 12:29 PM) 

Saturday 27 May 2017

दान हज़ारों गुना हो कर लौटता है पर इस नियत से दान मत करो

WhatsApp on 26 May 2017 at 18:16
राबिया बसरी की नज़र में आध्यात्मिक गुर 
चिड़ी चोंच भर ले गई नदी न घटयो नीर ;
दान दिये धन न घटे कह गये दास कबीर !
सुदूर देश में एक महिला संत हुई है-राबिया। बचपन काफी मुश्किलों में बीता पर परमात्मा की अपार अनुकम्पा से जवानी की दहलीज पर आते आते संत बन गई है।  

एक नगर के बाहर कुटिया बना कर के तो भजन-पाठ में जीवन बिताया करती है। बहुत ख्याति है राबिया की कि परमात्मा की परम अनुरक्ता है अतः लोग दूर दूर से आ कर के तो उससे अपनी समस्याओं का समाधान करवाया करते है। एक दफा दो फकीर राबिया की कुटिया पर पधारे है। बोले राबिया बहुत भूखे हैं। दो तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है। गर हो सके तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कीजियेगा। ठीक है महाराज। यह कह कर के राबिया बर्तनों में भोजन तलाशना शुरू कर देती है। पर यह क्या केवल दो ही रोटिया घर में हैं। इतने में ही एक भिखारी कुटिया के बाहर से आवाज लगाता है। भूखा हूँ। कोई खाने को दो। राबिया वे दोनों ही रोटिया उस भिखारी को दे देती है।
फकीर सब नजारा अपनी आँखों से देख रहे हैं। राबिया के इस व्यवहार से काफी अचंभित हुए हैं। इस से पहले कि वे राबिया को कुछ कहें। छोटी सी एक लड़की हाथो में पोटली लिये दौड़ी दौड़ी राबिया की कुटिया में आती है कहती है ये अम्मा ने भेजी हैं। राबिया उस पोटली को खोलती हैं। इसमें तो रोटिया हैं। उन्हें गिनती है पर कुछ सोच कर के तो पोटली बंद कर उसी लड़की के हाथों ही उसे वापिस भिजवा देती हैं। 
फकीर फटी आंखों से राबिया की इस "अशिष्टता" को देख रहेहैं। आपस में बुदबुदा रहे हैं। लगता है कि हमें भोजन ही नहीं करवाना चाहती। इस से पहले कि वो राबिया को क्रोधपूर्वक कुछ कहें वह लड़की पोटली लिये पुनः कुटिया में आती है अम्मा ने भेजी है। राबिया फिर से उन्हें गिनती है ठीक है। उन रोटियों को फकीरों की सेवा में परोसती है। भोजन कीजिये महाराज। राबिया भोजन तो हम बाद में करेगे पहले हमे जो कुछ भी हुआ सब समझाओ। 
ठीक है महाराज। जब मैंने देखा कि घर में केवल दो ही रोटिया हैं तो मैं सोच में पड़ गई कि इन से क्या होगा एक एक रोटी अगर मैं आप दोनों को ही दे दूं तो उस से पेट क्या भरेगा? अगर दोनों रोटिया आप में से किसी एक को ही दे दूं तो दूसरा नाराज हो जायेगा। इतने में भिखारी आ गया मैंने सोचा कम से कम इस का तो पेट भरा जा सकता है। सो परमात्मा का नाम ले कर के वे दोनों रोटिया मैंने उसे दे दी। साथ ही साथ परमात्मा से प्रार्थना भी की कि हे देवाधिदेव सुना है कि तुम दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करते हो। सो आज मुझे तुरंत ही इस दान का फल प्रदान कीजियेगा। वह लड़की पहली बार जब रोटिया ले कर आई तो गिनने पर पाया कि केवल 18 ही रोटिया हैं। जब कि दो का दस गुणा तो बीस होता है। मैंने सोचा क्या परमात्मा के नियत किये विधान में भी कोई गलती हो सकती है?अवश्य ही उस महिला से गलती लग गई होगी। सो पोटली ज्यों कि त्यों वापिस कर दी। अब क़ी बार जब पुनः पोटली में गिनती क़ी है तो पूरी बीस क़ी बीस रोटिया ही हैं। परमात्मा क़ी शुक्रगुजार हूँ क़ि उसने मेरी लाज रख ली क़ि जो द्वार पर आये आप लोगो को भूखा नहीं जाने दिया। धन्य हो राबिया तुम और तुम्हारी ईश्वरभक्ति! 
साधकजनों मानवता की भलाई के कार्यो में दिल खोल कर दान दिया कीजियेगा। ये परमात्मा का विधान है क़ि वह दान देने वाले को कभी किसी का मोहताज नहीं रहने देता। संत महात्मा फ़रमाते है क़ि वह दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करता है। नि:स्वार्थ भाव से दिये दान को कभी कभी वह हजारो-लाखो गुणा कर के भी लौटाया करता है गर उसकी रजा हुई तो। अतः नि:स्वार्थ भाव से जन-कल्याण के कार्यो में खूब दान दीजियेगा। वापिस मिलेगा यह सोच कर नहीं। यह तो उस पर निर्भर है क़ि वह किस कर्म का फल कब और किस काल में दे। 
मनमीत सिंह (9916324232) ने Sikh World नाम के वाटसअप ग्रुप में 26 मई 2017 को शाम 18:16 पर पोस्ट किया। 

Saturday 6 May 2017

राष्ट्रपति श्री बद्रीनाथ धाम में

 राष्ट्रपति को देख आस्था की लहर में आया और उत्साह 
The PresidenSht, ri Pranab Mukherjee at the Sri Badrinath Temple, at Badrinath, in Chamoli District, Uttarakhand on May 06, 2017.                                                    (PIB photo)

Saturday 8 April 2017

मुगल शासन की नींव रखने में हम सब बने थे बाबर के सहायक?

केवल तीन दिनों में ही राणा सांगा की सेना मार दी गई थी 
वाटसएप: 8 अप्रैल 2017: (Divine way of life)::
Divine way of life
बाबर और राणा सांगा में भयानक युद्ध चल रहा था।
बाबर ने युद्ध में पहली बार तोपों का इस्तेमाल किया था। उन दिनों युद्ध केवल दिन में लड़ा जाता था, शाम के समय दोनों तरफ के सैनिक अपने अपने शिविरों में आराम करते थे। फिर सुबह युद्ध होता था !
लड़ते लड़ते शाम हो चली थी,  दोनों तरफ के सैनिक अपने शिविरों में भोजन तैयार कर रहे थे ।
बाबर टहलते हुए  अपने शिविर के बाहर खड़ा दुश्मन सेना के कैम्प को देख रहा था तभी उसे राणा सांगा की सेना के शिविरों से कई जगह से धुँआ उठता दिखाई दिया।
बाबर को लगा कि दुश्मन के शिविर में आग लग गई है, उसने तुरंत अपने सेनापति मीर बांकी को बुलाया और पूछा कि देखो दुश्मन के शिविर में आग लग गई है क्या? शिविर में पचासों जगहों से धुँआ निकल रहा हैं।
सेनापति ने अपने गुप्तचरों को आदेश दिया-जाओ पता लगाओ कि दुश्मन के सैन्य शिविर से इतनी बड़ी संख्या में इतनी जगहों से धुँओ का गुब्बार क्यों निकल रहा है?
गुप्तचर कुछ देर बाद लौटे उन्होंने बताया हुजूर दुश्मन सैनिक सब हिन्दू हैं वो एक साथ एक जगह बैठकर खाना नहीं खाते। सेना में कई जात के सैनिक है जो एक दूसरे का छुआ नहीं खाते इसलिए सब अपना अपना भोजन अलग अलग बनाते हैं अलग अलग खाते हैं। एक दूसरे का छुआ पानी तक नहीं पीते।
यह  सुनकर बाबर खूब जोर से हँसा काफी देर हँसने के बाद उसने अपने सेनापति से कहा .मीर बांकी फ़तेह हमारी ही होगी !
ये क्या हमसे लड़ेंगे, जो सेना एक साथ मिल बैठकर खाना तक नहीं खा सकती, वो एक साथ मिलकर दुश्मन के खिलाफ कैसे लड़ेगी? बाबर सही था।
तीन दिनों में राणा सांगा की सेना मार दी गई और बाबर ने मुग़ल शासन की नीव रखी।
भारत की गुलामी का कारण जातिवाद छुआछूत भेदभाव था जो आज भी जारी है।

🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹  Divine way of life ग्रुप से साभार 
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Tuesday 4 April 2017

गायत्री दीदी की अमृत वर्षा से दिव्य बना श्री राम कथा दरबार

झंक्झौर रही थी मंच से आती गायत्री दीदी की आवाज़ 
लुधियाना: 3 अप्रैल 2017: (आराधना टाईम्ज़ टीम)::
दूर दूर तक लाऊड स्पीकर से आती आवाज़ अपनी तरफ खींच रही थी। शायद कोई धार्मिक आयोजन था। कुछ आगे जा कर देखा तो  बहु चर्चित श्री राम कथा का आयोजन चल रहा था। भीड़ बहुत थी अंदर जाना आसान नहीं था लेकिन आयोजकों के शानदार प्रबन्धन ने सब आसान कर दिया। मंच के पास जाकर देखा तो सफेद वस्त्रों में अलौकिक आभा लिए एक दिव्य युवती कथा के साथ साथ गायन के ज़रिये भी माहौल को आध्यात्मिक रंग में रंग रही थी। पूछने पर पता चला यही तो थी गायत्री दीदी। प्रबन्धकों ने कहा कि दीदी को जम्मु से विशेष तौर पर बुलवाया गया है। 
इस कथा में आग्रह था--घरों के कलह क्लेश से मुक्ति पायो--भगवान से सुर मिलाओ। एक औजपूर्ण निवेदन था---देश और लोगों के काम आओ। साथ ही एक सवाल भी कि कलह क्लेश और नशे में अपनी ऊर्जा गंवाने वालों तुम देश के लिए क्या कर सकोगे? निराशा भी कि शायद कुछ भी नहीं। साथ ही मार्गदर्शन भी कि बहुत कुछ गंवा  लिया--अब तो जाग जायो। इसके साथ ही चेतावनी की सुर भी कि अब भी सम्भल जायो। बाकी नशे छोड़ कर भगवत रंग के नशे में जाओ। बहुत कुछ करना है --दुनिया के लिए।
आवाज़ में वरिष्ठ पारिवारिक सदस्य का दर्द भी छलक रहा था और मीठा मीठा क्रोध भी। चेतावनी भी थी और शिकवा भी।  तनाव और कलह क्लेश में डूबे घरों की चर्चा करते हुए चेहरे पर महसूस हो रहा दर्द बता रहा था कि यह मार्मिक चेतावनी और आग्रह किसी अपने के दिल से उठी आवाज़ है। किसी सन्त हृदय का दर्द है-किसी सियासी नेता का भाषण नहीं। माहौल शांत था। बीच बीच में संगीत की लहरियां सभी को संगीत के रंग में भी रंग रही थी।  
नवरात्र के पावन अवसर पर लुधियाना में भी राम नाम की गंगा निरन्तर बह रही है। जगह जगह कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कारोबारियों का शहर लुधियाना आध्यत्मिक रंग में रंगा हुआ है। इसी सिलसिले में श्री राम कथा का आयोजन हैबोवाल कलां टैंकी वाला पार्क में श्री राम महोत्सव कमेटी की ओर से भी हुआ। इसमें बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा भी विशेष तौर पर शामिल हुईं। कांग्रेस समर्थक मज़दूर संगठन इंटक के महिला विंग का प्रांतीय अध्यक्ष बनने के बाद किसी पब्लिक कार्यक्रम में अनीता शर्मा की यह पहली शमूलियत है। उन्होंने भगवान के चरणों में वन्दन करते हुए मज़दूरों के भले के लिए कुछ ठोस कर दिखाने की शक्ति भी मांगी। बहुत से अन्य धार्मिक, समाजिक और सियासी लोग भी इस दरबार में हाज़री लगवाने पहुंचे। 
इस कार्यक्रम के आयोजन में भी बार बार याद दिलाया गया कि भगवान राम का चरित्र विश्व में सबसे महान है। मर्यदा पुरषोत्तम भगवान राम के पूरे जीवन चरित्र से मानव को बेहद प्रेरणाएं मिलती हैं जिनसे चरित्र को ऊंचा उठाया जा सकता है। वक्तायों ने ज़ोर दिया कि हमें भगवान राम के जीवन चरित्र का अनुसरण करना चाहिए। यह भाव भक्ति योग फाउंडेशन की संस्थापिका गायत्री दीदी ने हैबोवाल कलां टैंकी वाला पार्क में श्री राम महोत्सव कमेटी की ओर से प्रधान सुरिंदर पाल शर्मा की अध्यक्षता में जारी श्री राम कथा के चौथे दिन उपस्थित भक्तों के विशाल समूह को संबोधित करते हुए प्रकट किए। गायत्री दीदी ने कहा कि हमें धार्मिक स्थल पर जाकर वहां की भव्यता नहीं बल्कि दिव्यता की बात करनी चाहिए। मीडिया से एक भेंट के दौरान दीदी गायत्री ने कहा धर्म की दिव्यता का अहसास उसे जीवन में उतारने से होगा। भगवान की चर्चा और धर्म स्थल तो हमें केवल रास्ता दिखाते हैं इन पर चलना तो हमें खुद ही होगा। उन्होंने कहा कि परिवारों में होती कलह और झगड़ों में अपनी ऊर्जा मत गंवायो। खुद ही खुद को नहीं सम्भल पयोगे तो देश को क्या संभालोगे? देश का क्या सँवारोगे? उन्होंने याद दिलाया कि अक्सर मानव अज्ञानता वश मंदिर में जाकर भी भगवान की प्रतिमाओं की सुंदरता का बखान करना शुरू कर देता है जबकि उसे भगवान की दिव्यता का ध्यान करना चाहिए। इस दौरान चेयरमैन सुनील सिंगला, प्रधान सुरिंदर पाल शर्मा, उत्तम चंद जुमवाल, जगदीश भाटिया, पवन सहदेव, अंजलि ठुकराल, अशोक शर्मा, केवल कृष्ण मोदी, सुनील मेहता, शिव कुमार गुप्ता, अशोक गुप्ता, अविनाश चावला ने मेहमानों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। कुल मिला कर आयोजन कामयाब रहा। कार्यक्रम में तकरीबन सभी धर्मों और राजनीतिक दलों से सबंधित लोग थे  एक ही रंग छाया था।  आध्यत्मिक रंग।


जीवन में बहुत कुछ गंवा लिया-अब तो जाग जायो-चेताया गायत्री दीदी ने 

Friday 31 March 2017

विश्वास की शक्ति: जब उसने भगवान को देखा

.........और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा
सोशल मीडिया: 30 मार्च 2017: (Classique Melodies//व्हाटसअप ग्रुप//आराधना टाईम्स)::
एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसे परमात्मा के बारे में कुछ भी पता नहीं था पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी।उसकी चाहत थी कि एक समय की रोटी वो परमात्मा के साथ खाये।
1 दिन उसने 1 थैले में 5- 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते-चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।
उसने देखा नदी के तट पर एक बुजुर्ग बूढ़ा बैठा है,जिनकी आँखों में बहुत गजब की चमक थी, प्यार था,और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहाँ बैठा उसका रास्ता देख रहा हो।
वो 6 साल का मासूम बालक बुजुर्ग बूढ़े के पास जा कर बैठ गया,अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।और उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढे की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा,बूढे ने रोटी ले ली, बूढ़े के झुर्रियों वाले चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे,,,,
बच्चा बूढ़े को देखे जा रहा था, जब बूढ़े ने रोटी खा ली बच्चे ने एक और रोटी बूढ़े को दी।
बूढ़ा अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाज़त ले घर की ओर चलने लगा वो बार- बार पीछे मुड़ कर देखता ! तो पाता बुजुर्ग बूढ़ा उसी की ओर देख रहा था।
बच्चा घर पहुँचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,बच्चा बहुत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया!
माँ.....आज मैंने परमात्मा के साथ बैठ क्ऱ रोटी खाई,आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,,माँ परमात्मा बहुत बूढ़े हो गये हैं,,,मैं आज बहुत खुश हूँ माँ
उस तरफ बुजुर्ग बूढ़ा भी जब अपने गाँव पहुँचा तो गाँव वालों ने देखा बूढ़ा बहुत खुश है,तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????
बूढ़ा बोला-----मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था....मुझे पता था परमात्मा आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ कर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई,बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया---परमात्मा बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।
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इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।

असल में बात सिर्फ इतनी है कि दोनों के दिलों में परमात्मा के लिए प्यार बहुत सच्चा है

और परमात्मा ने दोनों को, दोनों के लिये, दोनों में ही(परमात्मा) ने  खुद को भेज दिया।

जब मन परमात्मा भक्ति में रम जाता है तो हमें हर एक में वो ही नजर आता है।

परमात्मा सदा हमारे करीब है बहुत ज्यादा करीब है,हमारे आस-पास वो ही वो रहता है।

जब हम उसके दर्शन को सही मायनो में तरसते हैं तो हमें हर जगह वो ही वो दिखता है,हर एक में वो ही दिखता है। 

Thursday 30 March 2017

समस्तीपुर में आनन्द मार्ग का सेमिनार

अवधूतिका आनन्द चितप्रभा और मृदुला दीदी ने दिए सवालों के जवाब 
समस्तीपुर: 29 मार्च 2017: (कार्तिका//आराधना टाईम्स):: 
मानव जीवन बहुत अजीब सा है। साधना की तरफ आसानी से नहीं बढ़ता। इसे साधने के लिए नियमित साधना करना आवश्यक है। उच्च जीवन की तरफ ले जाने वाली सात्विक दिनचर्य और साधना के इस भाव को दृढ़ बनाये रखने के लिए आनन्द मार्ग में सेमिनारों का आयोजन समय समय पर अलग अलग स्थाननपर होता रहता है।   इन सेमिनारों में जहाँ समाज में  उतपन्न समस्यायों की चर्चा होती है वहीँ मानव जीवन को इन सभी कठिनाईयों का सामना करने के काबिल बनाने वाली साधना पद्धति को दृढ़ करने की  होतीहै।
आज समस्तीपुर भुक्ति के हिन्दुस्तान न्यूज कार्यालय में नारी सशक्तिकरण पर सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें भुक्ति के सशक्त महिलाओ ने अपना अपना वकतव्य दिया ।आनन्दमार्ग महिला कल्याण विभाग की ओर से अवधूतिका आनन्द चितप्रभा आचार्या ने भी अपनी बातें सभी के सामने रखीं तथा मृदुला दीदी ने सभी लोगों को महिला कल्याण विभाग द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला में आने हेतु निमन्त्रण दिया। इस सब के प्रसार के लिए दादा केवल सिन्हा ने सक्रिय योगदान दिया।