Science and Spiritualty Desk posted on 30th April 2025 at 5:45 PM Aradhana Times
जो इशारा फिल्म लूसी करती है उसे ओशो ने बहुत पहले बताया था
चंडीगढ़: 30 अप्रैल 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधनात टाईम्स)::
सन 2014 में एक फिल्म आई थी लुसी Lucy जो अब भी गज़ब की फिल्म है। अब उसका दूसरा भाग भी तैयार है लेकिन उसे 2026 में रिलीज़ किया जाएगा। वास्तव में लूसी 2014 की अंग्रेजी भाषा की फ्रेंच साइंस फिक्शन एक्शन फिल्म है। जिसने शरीर और दिमाग के संबंधों पर बहुत दिलचस्प ढंग से रौशनी डाली है। शरीर का शक्ति और दिमाग की शक्तिं के प्रभाव और तीव्रता को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है।
इसे ल्यूक बेसन ने अपनी कंपनी यूरोपाकॉर्प के लिए लिखा और निर्देशित किया है, और उनकी पत्नी वर्जिनी बेसन-सिला ने इसका निर्माण किया है। इसे ताइपे , पेरिस और न्यूयॉर्क शहर में शूट किया गया था। इसमें स्कारलेट जोहानसन , मॉर्गन फ़्रीमैन , चोई मिन-सिक और अमर वेकेड ने अभिनय किया है। जोहानसन ने लूसी का किरदार निभाया है, जो एक ऐसी महिला है जो एक नॉट्रोपिक , साइकेडेलिक दवा के उसके रक्तप्रवाह में अवशोषित होने पर मनोविश्लेषणात्मक क्षमताएँ प्राप्त करती है। इस फिल्म को देखते हुए उन पौराणिक कथाओं की भी याद आती है जिनके मुताबिक मानव के मन, मस्तष्क और शरीर में अनंत शक्तिया छुपी होती हैं। पुराने समय में योगी और साधक अलग अलग तरह की साधनाओं के द्वारा रैप्ट और जागृत करते थे।
लूसी नाम की यह फिल्म 25 जुलाई 2014 को रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसने बहुत बड़ी सफलता हासिल की। दुनिया भर में तहलका मचा देने वाली इस फिल्म ने मानवीय क्षमताओं पर एक नै चर्चा शुरू की। बहुत सी नै उम्मीदें जगाई। एटम बमों जैसे हथियारों का निर्माण करके तबाही की स्क्रिप्ट लिख रही सरकारों के सामने उठाया कि मानवीय क्षमता बढ़ाने की तरफ भी तो काम होना चाहिए थे।
दिलचस्प तथ्य है कि अब भी दुनिया भर में इसकी डिमांड बढ़ती ही जा रही है। इस फिल्म ने दुनिया भर में $469 मिलियन से अधिक की कमाई की, जो $40 मिलियन के बजट से ग्यारह गुना अधिक है। इसे आम तौर पर सकारात्मक, लेकिन साथ ही ध्रुवीकृत, आलोचनात्मक समीक्षा मिली। हालाँकि इसके विषयों, दृश्यों और जोहानसन के प्रदर्शन की प्रशंसा की गई, लेकिन कई आलोचकों ने कथानक को निरर्थक पाया, विशेष रूप से मस्तिष्क के दस प्रतिशत मिथक और परिणामी क्षमताओं पर इसका ध्यान केंद्रित करना बहुत नई किस्म की उपलब्धि है। बहुत से लोगों ने इसके कथानक और कहानी को निरथर्क भी कहा और नकारने की कोशिश भी की। यह फिल्म जिस बात का संदेश देती है उसे बहुत विस्तार और स्पष्ट तरीके से ओशो बहुत पहले ही बता चुके हैं।
ओशो ने भोजन और खानपान के लाईफ स्टाईल की चर्चा के ज़रिए इस बात को पूरे तथ्यात्मक ढंग से सामने रखा है कि अगर जिस्म में गए भोजन को पचाने की ऊर्जा को बचाया जा सके तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। इसके बाद शुरू होता है अलौकिक किस्म की शक्तियों चमत्कारों के महसूस होने का सिलसिला।
सोशल मीडिया पर भोजन का एक नशा है पोस्ट सामने आई है। इसे पोस्ट किया है 29 अप्रैल 2025 की रात को 8:14 बजे लगातार जाग्रति लाने सक्रिय एक जागरूक कंट्रीब्यूटर संजीव मिश्रा ने।
ओशो बहुत ही रहस्य खोलते हुए बताते हैं: अगर तुम जरूरत से ज्यादा भोजन कर लो, तो भोजन अल्कोहलिक है। वह मादक हो जाता है, उसमें शराब पैदा हो जाती है। उसमें शराब पैदा होने का कारण है ,जैसे ही तुम ज्यादा भोजन कर लेते हो, तुम्हारे पूरे शरीर की शक्ति निचुड़कर पेट में आ जाती है.. क्योंकि भोजन को पचाना जरूरी है। तुमने शरीर के लिए एक उपद्रव खड़ा कर दिया, एक अस्वाभाविक स्थिति पैदा कर दी। तुमने शरीर में विजातीय तत्व डाल दिए। अब शरीर की सारी शक्ति इसको किसी तरह पचाकर और बाहर फेंकने में लगेगी। तो तुम कुछ और न कर पाओगे; सिर्फ सो सकते हो। मस्तिष्क तभी काम करता है, जब पेट हलका हो। इसलिए भोजन के बाद तुम्हें नींद मालूम पड़ती है। और अगर कभी तुम्हें मस्तिष्क का कोई गहरा काम करना हो, तो तुम्हें भूख भूल जाती है।
इसलिए जिन लोगों ने मस्तिष्क के गहरे काम किए हैं, वे लोग हमेशा अल्पभोजी लोग रहे हैं। और धीरे— धीरे उन्हीं अल्पभोजियों को यह पता चला कि अगर मस्तिष्क बिना भोजन के इतना सक्रिय हो जाता है, तेजस्वी हो जाता है, तो शायद उपवास में तो और भी बड़ी घटना घट जाएगी। इसलिए उन्होंने उपवास के भी प्रयोग किए। और उन्होंने पाया कि उपवास की एक ऐसी घड़ी आती है, जब शरीर के पास पचाने को कुछ भी नहीं बचता, तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। उस ऊर्जा के द्वारा ध्यान में प्रवेश आसान हो जाता है।*
जैसे भोजन अतिशय हो, तो नींद में प्रवेश आसान हो जाता है। नींद ध्यान की दुश्मन है; मूर्च्छा है। भोजन बिलकुल न हो शरीर में, तो शरीर को पचाने को कुछ न बचने से सारी ऊर्जा मुक्त हो जाती है पेट से, सिर को उपलब्ध हो जाती है- ध्यान के लिए उपयोगी हो जाती है।
लेकिन उपवास की सीमा है, दो—चार दिन का उपवास सहयोगी हो सकता है। लेकिन कोई व्यक्ति अतिशय उपवास में पड़ जाए तो फिर मस्तिष्क को ऊर्जा नहीं मिलती। क्योंकि ऊर्जा बचती ही नहीं।
इसलिए उपवास किसी ऐसे व्यक्ति के पास ही करने चाहिए जिसे उपवास की पूरी कला मालूम हो। क्योंकि उपवास पूरा शास्त्र है। कोई भी, कैसे भी उपवास कर ले तो नुकसान में पड़ेगा।
और प्रत्येक व्यक्ति के लिए गुरु ठीक से खोजेगा कि कितने दिन के उपवास में संतुलन होगा। किसी व्यक्ति को हो सकता है पंद्रह दिन या किसी को इक्कीस दिन का उपवास उपयोगी हो।
अगर शरीर ने बहुत चर्बी इकट्ठी कर ली है, तो इक्कीस दिन के उपवास में भी उस व्यक्ति के मस्तिष्क को ऊर्जा का प्रवाह मिलता रहेगा। रोज—रोज बढ़ता जाएगा।
जैसे—जैसे चर्बी कम होगी शरीर पर, वैसे—वैसे शरीर हलका होगा, तेजस्वी होगा, ऊर्जावान होगा। क्योंकि बढ़ी हुई चर्बी भी शरीर के ऊपर बोझ है और मूर्च्छा लाती है।
लेकिन अगर कोई दुबला—पतला व्यक्ति इक्कीस दिन का उपवास कर ले, तो ऊर्जा क्षीण हो जाएगी। उसके पास रिजर्वायर था ही नहीं; उसके पास संरक्षित कुछ था ही नहीं। उनकी जेब खाली थी। दुबला—पतला आदमी बहुत से बहुत तीन—चार दिन के उपवास से फायदा ले सकता है।
बहुत चर्बी वाला आदमी इक्कीस दिन, बयालीस दिन के उपवास से भी फायदा ले सकता है। और अगर अतिशय चर्बी हो, तो तीन महीने का उपवास भी फायदे का हो सकता है, बहुत फायदे का हो सकता है। लेकिन उपवास के शास्त्र को समझना जरूरी है।
तुम तो अभी ठीक विपरीत जीते हो, दूसरे छोर पर, जहां खूब भोजन कर लिया, सो गए। जैसे जिंदगी सोने के लिए है। तो मरने में क्या बुराई है! मरने का मतलब, सदा के लिए सो गए।
तो तामसी व्यक्ति जीता नहीं है, बस मरता है। तामसी व्यक्ति जीने के नाम पर सिर्फ घिसटता है। जैसे सारा काम इतना है कि किसी तरह खा—पीकर सो गए। वह दिन को रात बनाने में लगा है; जीवन को मौत बनाने में लगा है। और उसको एक ही सुख मालूम पड़ता है कि कुछ न करना पड़े। कुल सुख इतना है कि जीने से बच जाए जीना न पड़े। जीने में अड़चन मालूम पड़ती है। जीने में उपद्रव मालूम पड़ता है। वह तो अपना चादर ओढ़कर सो जाना चाहता है।
ऐसा व्यक्ति अतिशय भोजन करेगा। अतिशय भोजन का अर्थ है, वह पेट को इतना भर लेगा कि मस्तिष्क को ध्यान की तो बात दूर, विचार करने तक के लिए ऊर्जा नहीं मिलती। और धीरे— धीरे उसका मस्तिष्क छोटा होता जाएगा; सिकुड़ जाएगा। उसका तंतु—जाल मस्तिष्क का निम्न तल का हो जाएगा.......
ओशो; *गीता दर्शन, भाग - 8, अध्याय—17
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