Wednesday 14 November 2018

अखिल भारतीय संत समिति में हुए खास ऐलान

धर्मान्तरण तथा लव जेहाद आदि विषयों पर भी हुआ विचार विमर्श 
जालंधर//नई दिल्ली:13 नवम्बर 2018: (राजपाल कौर//आराधना टाईम्ज़)::

गत दिवस दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय संत समिति का विशाल आयोजन किया गया।इस समागम में विशेष रूप से समस्त भारत से आये हुए महामण्डलेश्वर ,शंकराचार्य तथा समूह साधु-संतों में ,नामधारी प्रमुख सतगुरु दलीप सिंह जी के अनुयायी भी काफी संख्या में हाजिर हुए। इस समागम में मुख्य रूप से 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद मारे जाने वाले सिक्खों और 7 नवम्बर 1986 को दिल्ली के रामलीला मैदान में गौवध को रोकने के लिए शहीद हुए संतों एवं गौभक्तों व श्री राम जन्म भूमि के कार सेवकों को श्रद्धांजली भेंट की गई। गौरतलब है कि ये लोग 30 अक्टूबर  और 2 नवम्बर 1990 को अयोध्या में मारे गए थे। इसके अलावा श्री राम जन्म भूमि पर भव्य मन्दिर के निर्माण तथा हमारे समाज में हो रहे धर्मान्तरण तथा लव जेहाद आदि विषयों पर विचार विमर्श किए गए। इस समिति की बैठक मेंखास तौर पर सतगुरु दलीप सिंह जी द्वारा भेजा गया संदेश श्री जयप्रकाश गोयल जी ने पढ़ कर सुनाया जो कि पवित्र गुरबाणी के अनुसार आपसी एकता और विशेष रूप से हिन्दु-सिक्ख एकता को और मजबूत करने वाला था, जिसमें अन्य त्योहारों को मिलकर मनाने के इलावा इस साल सांझीवालता व परस्पर प्रेम के प्रवर्तक सतगुरु नानक देव जी का 550 वां प्रकाश उत्सव गुरद्वारों के इलावा मंदिरों में भी धूमधाम से मनाने का सुझाव रखा। इस महान संदेश के समर्थन में सारा हॉल जो बोले सो निहाल तथा जय श्री राम के जयकारों से गूँज उठा।इस आयोजन के अध्यक्ष जगद्गुरु हंसादेव आचार्या जी ने नामधारी सतगुरु, ठाकुर दलीप सिंह जी के समाज कल्याण के कार्यो की चर्चा और प्रशंसा भी की। आप जी ने इस महान सभा में इस बात की भी बड़े गर्व से घोषणा की तथा वचन दिया कि अखिल भारतीय संत समिति और सारा संत समाज हमेशा सतगुरु, ठाकुर दलीप सिंह जी के साथ खड़ा है। इसके साथ ही आप जी ने यह भी बताया कि संघ तथा विश्व हिन्दु परिषद भी आपसे पूरी तरह जुड़े हैं तो हम भिन्न कैसे हो सकते हैं। इस अवसर पर महान संत, महन्त ज्ञानदेव जी, श्री श्री रविशंकर जी, शंकराचार्य वासुदेव जी, ब्रह्मचारी वागीश स्वरूप जी तथा तथा नामधारी पंथ के सूबा भगत सिंह जी महद्दीपुर, सूबा भगत सिंह जी यू.पी., सूबा अमरीक सिंह जी, तजिन्दर सिंह जी (विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्त प्रधान), वकील नरिंदर सिंह जी, हरभजन सिंह फोरमैन, मलकीत सिंह बीड़, अरविंदर सिंह दिल्ली ,पलविंदर सिंह कूकी,प्रभजिंदर सिंह,गुरदेव सिंह आदि हाजिर थे।    

Wednesday 17 October 2018

FIB और बेलन ब्रिगेड ने भी की लुधियाना में दुर्गा पूजा

शिंगार सिनेमा के नज़दीक हुआ विशेष आयोजन 
लुधियाना: 16 अक्टूबर 2018: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
ज़िन्दगी खुशियों से भरी है, आनन्द से भरी है, बहुत ही मजेदार भी है लेकिन आसान नहीं है। खुशियों पर झपट रहे गिद्ध बार बार बेचैन करते हैं। कदम कदम पर आती मुसीबतें हताश करती हैं। गिरगिट की तरह रंग बदलते अपने ही लोग निराश करते हैं। किसी गीत में बहुत अच्छा कहा गया था-ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है। निरंतर संघर्ष, कभी विजय-कभी पराजय---इन मिले जुले अनुभवों से ही मिलता है ज़िंदगी का वस्तविक आनंद। कभी रिश्ते और संबंध बचने के लिए क्षमा मांगनी होती है, कभी क्षमा करना होता है इसी से समाज बचता भी है और विकास भी करता है। लेकिन कभी कभी दुष्टों को दंड देना भी आवश्यक होता है। नवरात्र की पूजा ज़िंदगी के इन नौ रंगों का बहुत ही समीप से अनुभव करवाती है। मन और तन की कमज़ोरी को दूर करके शक्ति संचय करने का त्यौहार है नवरात्र। 
दूर्गा पूजा; जिसे दुर्गोत्सव या "दुर्गा का उत्सव" के नाम से भी जाना जाता है।  

शरदोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला एक वार्षिक हिन्दू पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसमें छः दिनों को महालय, षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आता है तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है। इसका हर दिन ज़िंदगी के जहां रहस्यों की जानकारी देता है। प्रकृति के छुपे हुए रहस्यों से अवगत करवाता है। 
ज़िंदगी में खलल डालने वाली आसुरी शक्तियों के खिलाफ शुभ शक्तियों का निरंतर संग्राम करने की शक्ति विकसित करता है। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। लोग बहुत उत्साह से इसे मनाते हैं। 
देश के हर कोने में इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया।
उल्लेखनीय है कि दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। अब पंजाब में भी इस त्यौहार को बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है। घर घर में पूजा जैसा माहौल बन जाता है। 
"फर्स्ट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो" की देख रेख में कुछ स्थानीय संगठनों ने भी इसे बहुत ही उत्साह से मनाया। लगातार 9 अक्टूबर से पूजापाठ का सिलसिला बहुत ही श्रद्धा और उत्साह से जारी है। मां का अटूट लंगर भी चला। 
बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा ने भी इस अवसर पर अपनी हाज़िरी लगवाई और लोगों से अपील की कि नशा मुक्त समाज की स्थापना में बेलन ब्रिगेड का सहयोग करें। उन्होंने कहा कि हर नारी में दुर्गा शक्ति जगाना ही हमारा मुख्य मकसद है। अब भी जो लोग नारी को अबला समझते हैं उनको मां  दुर्गा सदबुद्धि दे। उन्होंने कहा कि जल्द ही बेलन ब्रिगेड का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप आपके आमने आने वाला है जो मां की कृपा से सम्भव हो पायेगा। 
फर्स्ट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (एफ आई बी) के प्रमुख डाक्टर भारत ने दिव्य शक्तियों की चर्चा करते हुए कहा कि आयोजकों को इस पूजा का शुभ फल जल्द मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज समाज में एक बार फिर असुरक्षा का माहौल है। देश और समाज के दुश्मन अपनी साज़िशों चालों से बाज़ नहीं आ रहे। इसलिए आज फिर मां दुर्गा की शक्ति को जगा कर ही हम देश और समाज को बचा सकते हैं। उन्होंने कहा की देश और समाज के लिए बिना कोई शोर मचाये बहुत ही सार्थक कार्य कर रहे लोगों को एफ आई बी की तरफ से बहुत जल्द सम्मानित किया जायेगा। 
एफ आई बी के ही एक और प्रमुख पदाधिकारी ओंकार सिंह पूरी ने भी मां के दरबार में अपनी हाज़िरी लगवाई और अपना संकल्प दोहराया कि देश की सुरक्षा में सेंध लगाने वालों के खिलाफ हमारा गुप्त अभियान जारी रहेगा। हम आतंकियों और गद्दारों को कभी भी कामयाब नहीं होने देंगें। 
इस अवसर पर चंद्रशेखर रामू, एडवोकेट रमन, धनंजय पण्डे, गुडडू व अन्य कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। 

Saturday 13 October 2018

वार्षिक जप-प्रयोग अमिट यादों के साथ सम्पन्न

जप प्रयोग में दृढ़ करवाई जाती है आध्यात्मिक साधना
जालंधर//दसूहा: 12 अक्टूबर 2018:(राजपाल कौर//पंजाब स्क्रीन)::
प्रत्येक साल की तरह इस साल भी सतगुरु दलीप सिंह जी की छत्रछाया में नामधारी संगत द्वारा शुरू किया गया वार्षिक जप-प्रयोग, आपसी एकता ,प्रेम और भाईचारे के संदेशों द्वारा अमिट छाप छोड़ता हुआ  आज सम्पन्न हुआ। आज से अस्सू के मेला बड़े उत्साह व उल्लास से शुरू हो गया है। सतगुरु राम सिंह जी द्धारा दर्शाये गए दिशा-निर्देश अनुसार चलते हुए, नामधारी सिक्ख जप-प्रयोग के आयोजन द्धारा अपने जीवन को गुरबाणी अनुसार जीने तथा इस पर दृढ रहने का अभ्यास करते हैं। इस दौरान अमृत वेले से लेकर शाम तक तकरीबन 8-9 घण्टे परमात्मा के साथ जुड़कर, एकाग्रचित हो कर सिमरन-साधना का अभ्यास, कथा-कीर्तन, गुरु इतिहास की जानकारी लेते हुए एक आदर्श जीवन जीने के गुण सीखते हैं। इस के इलावा भावी पीढ़ी को सेवा-सिमरन जैसे गुरसिक्खी आचरण बताते हुए उन्हें अपनी प्रतिभा निखारने का भी मौका दिया जाता है। इस जप-प्रयोग की विशेष बात यह है कि यह आयोजन श्री सतगुरु दलीप सिंह जी की आज्ञा से विशेष रूप से सरोवर अर्थात जल के पास ही करवाया जाता है क्योंकि गुरबाणी के अनुसार जल के पास बैठकर नाम सिमरन करने का बहुत महत्व माना गया है जैसे कि हम देखते हैं की गुरु साहबानों द्वारा कई धार्मिक स्थल सरोवर के किनारे ही स्थापित किये गए हैं। इस लिए सतगुरु जी की आज्ञा से यह आयोजन ,सतगुरु प्रताप सिंह सरोवर ,श्री जीवन नगर और प्राचीन पांडव तालाब मन्दिर,दसूहा जैसे पावन स्थानों पर होना नियत किया गया। चालीस दिन लगातार चलता हुआ यह कार्यक्रम प्रतिदिन आनन्द और सकारात्मक-ऊर्जा प्रदान करता रहा। संगत ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया और आनन्द की प्राप्ति की। 
               आज इस जप-प्रयोग की समाप्ति अमृत वेले आसा की वार के अमृतमयी कीर्तन और शाम के समय संत तेजा सिंह जी (खुड्डा वाले)की मनोहर और आनंदमयी कथा के साथ हुआ। उन्होंने संगत को नाम-बानी और जीवन में गुरु का महत्व बताया। आप जी ने बताया कि परमात्मा का वास हमारे अंदर ही है ,हम उसे बाहर ढूंढते रहते हैं। संत जी ने सतगुरु दलीप सिंह जी की कृपा से चल रहे इस शुभ कार्यक्रम की प्रशंसा की तथा आपस में मिल-जल कर रहने का सन्देश दिया। इस के साथ ही संगत को अस्सू का मेला शुरू होने की बधाइयाँ भी दी। 
   अंत में संत तेजा सिंह जी को नामधारी संगत द्वारा सम्मानित कर उनके कीमती समय निकलने का आभार भी प्रकट किया। इस अवसर पर प्रधान बलविंदर सिंह डुगरी,जागीर सिंह ,सुखविंदर सिंह ,बूटा सिंह,पलविंदर सिंह ,महिंदर सिंह ,रघबीर सिंह पटवारी ,प्रिंसिपल हरमनप्रीत सिंह काहलों ,सरपंच जोगिन्दर सिंह ,दर्शन सिंह मल्ली ,मास्टर इक़बाल सिंह ,रणजीत सिंह ,गुरदीप सिंह और विशाल संगत हाज़िर हुई।

Tuesday 21 August 2018

श्री गणेश वन्दना MTSM तीज त्यौहार के दौरान

Hazrat Sunet Wali Shah 27th June 2018

कर्म परछाई की तरह पीछा करते हैं

*महाभारत के युद्ध के बाद*

Vipul Gaur ने फेसबुक पर ज़िंदगी इतनी भी आसान नहीं ग्रुप में पोस्ट किया 
18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था। श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था। युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी। ना कुछ समझने की क्षमता बची थी ना सोचने की। कुरूक्षेत्र मेें चारों तरफ लाशों के ढेर थे । जिनके दाह संस्कार के लिए न लोग उपलब्ध थे न साधन। शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर केे महल मेंं निश्चेष्ट बैठी हुई शूूूून्य को ताक रही थी । तभी कृष्ण कक्ष में प्रवेश करते हैं! 
महारानी द्रौपदी की जय हो। 
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है कृष्ण उसके सर को सहलातेे रहते हैं और रोने देते हैं थोड़ी देर में उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं। 
*द्रोपती* :- यह क्या हो गया सखा ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था।
*कृष्ण* :-नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई द्रौपदी ! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ । सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं सारे कौरव समाप्त हो गए तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! 
*द्रोपती*:-सखा तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए! 
*कृष्ण* :-नहीं द्रौपदी मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं। हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ मेें कुछ नहीं रहता।
*द्रोपती* :-तो क्या इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ? 
*कृष्ण* :-नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो।
लेकिन तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपती* :-मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?
*कृष्ण*:- 👉जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो शायद परिणाम कुछ और होते! 
👉इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते। 
और 
👉उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया वह नहीं करती तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता तब भी शायद परिस्थितियां कुछ और होती।

*हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ स्वयं को ही नहीं अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।*

*संसार में केवल मनुष्य*
*ही एकमात्र ऐसा प्राणी*
*है*

*जिसका " जहर "*
*उसके " दांतों " में नही,*
*" शब्दों " में है...*

*इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करिये। ऐसे शब्द का प्रयोग करिये जिससे किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।*

🙏🏻*जय श्री कृष्णा* 🙏🏻

Monday 30 July 2018

Ludhiana:नवनिर्मित ओशो मेडिटेशन सेंटर में ध्यान शिविर संपन्न

अमेरिका से आई माँ किम लॉरियल ने करवाई ध्यान विधियां
लुधियाना: 29 जुलाई 2018: (आराधना टाईम्ज़ टीम )::
पंजाब के हालात फिर नाज़ुक हैं। इस बार नशे की ओवर डोज़ आये दिन किसी न किसी घर में मातम ला रही है। पंजाब का शायद ही कोई गाँव बचा हो जहां नशे के आतंक ने मौत की दस्तक न दी हो। पंजाब की युवा पीढ़ी फिर मौत के मुँह में जा रही है। सियासी और समाजिक लोग इस मुद्दे पर कैंडल मार्च जैसे आयोजन करके अखबारी सुर्खियां बटोरने में लगे हैं। इस समस्या के हल की बात चलती है तो पता लगता है कि अफीम और भुक्की के ठेके खोल कर समस्या हल हो जाएगी। यानि एक नशा छुड़वा कर दूसरा नशा लगा दिया जायेगा। युवा वर्ग होश में आये यह बात शायद कोई नहीं चाहता। 
ऐसे माहौल में एक बार फिर पंजाब में जगा है ओशो का जादू। युवा वर्ग को नशे और जुर्म की दुनिया से दूर केवल मस्ती की दुनिया--एक ऐसी मस्ती जिसमें पूर्ण होश भी है। एक ऐसी मनोअवस्था जो ज़िंदगी और समाज की हर चुनौती का सामना करने में सक्षम बनने की क्षमता देती है। 
कैम्प में शामिल लोगों को एक नज़र देखा तो महसूस हुआ वे लोग बदल चुके थे। उनके चेहरों पर एक ऊर्जा की चमक थी। पूछने पर पता चला यह ऊर्जा और चमक उन्हें इसी कैम्प से मिली।  यह ध्यान शिविर तीन दिनों तक चला।  सादा सा सात्विक भोजन और संगीत की लहरियों में तन और मन को तनावमुक्त करती हुई साधना पद्धतियां।
यहां पुरुष भी थे-महिलाएं भी---पर किसी भी चेहरे पर वासना की कोई झलक तक न थी। सभी एक दिव्य रंग में रंगे हुए थे।फिर भी हमारी टीम का मन आशंकित था भला ऐसे कैसे हो सकता है। इतने में एक साधक ने किसी युवा और खूबसूरत साधिका को आवाज़ दी-मां ! ज़रा इधर आना। मीडिया वाले आये हैं।
बस यह मां शब्द सुनते ही हमारी सारी शंकाये दूर हो गयी। वास्तव में ओशो ने महिला को मां का दर्जा दे कर एक दैवी सम्मान दिया था। ओशो के पैरोकार अंध विश्वासी नहीं होते। उन्हें विश्वास नहीं शक करना सिखाया जाता है। यही शक उनको मार्ग दिखता है। हर रोज़ नए अनुभव कराता है।
ओशो लुधियाना मेडिटेशन सोसाइटी द्वारा गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में पहला तीन दिवसीय ओशो ध्यान शिविर करवाया गया। हंबड़ा रोड स्थित नवनिर्मित ओशो लुधियाना मेडिटेशन सेंटर में आयोजित इस ध्यान शिविर में अमेरिका से ओशो की विशेष दूत मा किम लॉरियल में ध्यान विधियों द्वारा सैंकड़ो मित्रों का मार्गदर्शन किया। विभिन ध्यान विधिया करवाते हुए किम लॉरियल ने सभी को ध्यान के द्वारा तनाव मुक्त जीवन जीने की कला से अवगत करवाया। साथ ही जीवन की सही राह के बारे में ओशो द्वारा रचित तंत्रा ध्यान विधियों को विस्तार पूर्वक समझाया गया। इस दौरान उत्तराखंड ऋषिकेश से पधारे संगीतज्ञ वायोलीन वादक शिवानंद शर्मा, बासुरी वादक  शिवरात्रि गिरि बाबाजी, तबला वादक सोमनाथ निर्मल ने संगीत यंत्रो के माध्यम से ध्यान विधिया करवाई। शिविर में 25 के करीब मित्रों ने सद्गुरु ओशो के नाम की दीक्षा ली। शिविर प्रबंधक स्वामी सुमित ने बताया मित्रों के उत्साह को देखते हुए अगले महीने इसी सेंटर में एक और ध्यान शिविर लगाया जाएगा, जिसकी तिथि की सूचना जल्द ही सभी को पहुंचा दी जाएगी। इस कैम्प को सफल बनाने में स्वामी सुमित, स्वामी रंजीत, स्वामी कुनाल धवन , स्वामी रिंकू , स्वामी अशोक भारती, स्वामी हितेश गुप्ता, स्वामी अमरजीत, स्वामी अजय, स्वामी रमन, स्वामी अतुल सहित सैंकड़ो मित्रों ने सहयोग दिया। (रेक्टर कथूरिया//एम एस भाटिया//सहयोग: अशोक भारती)

Friday 8 June 2018

लाखों मुस्लमानों ने अदा की अलविदा जुम्मे की नमाज

Fri, Jun 8, 2018 at 3:20 PM
रमजान का महीना अल्लाह से इश्क का महीना: शाही इमाम पंजाब
लुधियाना: 8 जून 2018: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
आज पवित्र रमजान शरीफ के अलविदा जुम्मा के मौके पर फील्डगंज चौंक स्थित ऐतिहासिक जामा मस्जिद में हजारों मुस्लमानों ने नमाज अदा की। नमाजियों की संख्या को देखते हुए शाहपुर रोड व जेल रोड पर नमाज के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे। इस मौके पर संबोधित करते हुए पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवी ने कहा कि रमजान शरीफ का महीना अल्लाह ताआला से इश्क और मोहब्बत का महीना है। इस मुबारक महीने में बंदा खुदा और उसके रसूल सल्ललाहु अलैहीवसल्लम से अपने इश्क का इकाहार करते हुए गुनाहों से तौबा करता है। शाही इमाम मौलाना हबीब ने कहा कि रमजान के आठ रोजे अभी बाकी है, हमें चाहिए कि इस वक्त की खूब कद्र करे और ज्यादा से ज्यादा इबादत में लगे रहे। खुले दिल से गरीबों की मदद करें। आपसी रंजिशों को खत्म करके एक-दूसरे से मोहब्बत का इकाहार करे। वर्णनयोग है कि आज पवित्र रमजान शरीफ का आखिरी जुम्मा था। शहर की सभी मस्जिदों में लाखों की संख्या में नामाजी एकत्रित हुए। नायब शाही इमाम मौलाना उसमान रहमानी लुधियानवी ने बताया कि शहर में 5 लाख से ज्यादा मुस्लमानों नें अलविदा जुम्मे की नमाज अदा की। तस्वीर में  आप हैं जामा मस्जिद लुधियाना में हजारों की संख्या में मुस्लमान नमाज अदा करते हुए। आप देख सकते हैं इनके चेहरे पर अंतर्मन की कितनी श्रद्धा झलक रही है। इबादत में झुके सिर ही इन्हें ज़िंदगी में हर मुसीबत से दूर रखते हुए हर क्षेत्र में विजय दिलाएंगे। गौरतलब है कि मज़ान या रमदान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है। इस साल रमजान का महीना अंग्रेजी कैलेंडर की 28 मई से शुरू है। इस बार पहला रोजा भारत में 15 घंटे लंबा होगा। रमजान को रहमतो और बरकतों का महीना कहा जाता है। इस माह को कुरान शरीफ के नाजिल का महीना भी माना जाता है। रमजान का महीने 24 जून को पूरा होगा।

Sunday 27 May 2018

बुराई की जड़ पर वार करना ज़रूरी-साध्वी महाशारदा भारती

Sun, May 27, 2018 at 2:27 PM
तभी मानव वास्तव में मानव बन पायेगा
लुधियाना: 27  मई 2018: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गांव हरनाममपुरा   में अध्यात्मिक सत्संग विचारों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ समुधर भजन ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान’ के गायन से की गई। 
इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को अध्यात्मिक विचार देते हुए श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी  महाशारदा भारती जी ने कहा कि वर्तमान समय में समाज नफरत, स्वार्थ, आतंकवाद जैसी तरह-तरह की कुरीतियों से ग्रस्त है। अमानवीय आचार-विचार मानवीय निष्ठाओं का गला घोंट रहे हैं। समाज में तरह-तरह की कुरीतियां मानव का दमन कर रही हैं। ऐसा नहीं कि कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा, निरन्तर कोशिशें जारी हैं, पर परिणाम सामने नजर नहीं आ रहे। दरअसल प्रयास तो मौजूद हैं, परन्तु सही दिशा का अभाव है। हमें खत्म करना था आतंकवाद को, लेकिन हमने खत्म किये आतंकवादी, हमें लगता है कि इसमें गलत क्या है। यहां पर एक छोटी सी गलती हो गई, हमने समाप्त करना था आतंकवाद एक, आतंकवादी को मार दिया और अनेकों आतंकवादियों ने जन्म ले लिया। ठीक वैसे ही जैसे एक

रोगी का रोग खत्म करने के स्थान पर हम उसका यदि रोग कुछ समय के लिए दबा दें तो क्या उसका रोग खत्म होगा, नहीं। उसका रोग समाप्त करने के लिए हमें रोग की जड़ तक जाना पड़ेगा, फिर ही वह रोगी रोग मुक्त होगा। साध्वी जी ने कहा जैसे यदि कोई जंगली पौधा उग जाए तो उसे समाप्त करने के लिए उसके पत्ते, टहनियों को काट देना प्रयत्न नहीं होता, उसकी जड़ पर वार करना पड़ता है। ठीक वैसे ही समाज में फैली समस्त कुरीतियों को ऊपज मानव मन है, आज आवश्यकता है ब्रह्मज्ञान द्वारा मन को सही दिशा पर लेकर जाने की। आज आवश्यकता है निकृष्ट विचारों का दमन करने की और यदि ऐसा हो जाता है तो
मानव वास्तव में मानव बन पायेगा। कार्यक्रम के अंत में ब्रह्मज्ञानी साधकों ने प्रभु ध्यान कर विश्व शांति की मंगल कामना की। 

Thursday 1 February 2018

अध्यातिमक परिर्वतन द्धारा ही युवा वर्ग कुरीतयो का अंत कर सकता है

Thu, Feb 1, 2018 at 11:08 AM
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्धारा होटल महल  में संगीत मई भजन संधया का आयोजन किया गया

लुधियाना: 31 जनवरी 2018: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
हमारी सनातन पद्धति को निभाते हुए श्री  रजनीश धिमान (बी.जे.पी सैकरेटरी लुधियाना), ज्ञान चनद शरमाजी के द्वारा ज्योति को प्रज्जवलित  किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के परम शिष्य साध्वी गरिमा भारती जी ने अध्यातम की जानकारी देते हुए समुह को संबोधित किया कि आज इंसान ने संसार की हर बुलंदी को छुआ है। चाहै वह विज्ञान का जगत हो या फिर राजनीतिक जगत। पर इन बुलंदीयो को प्राप्त कर लेना ही जीव की असल प्राप्ति नही है। कयोकि इन सभी का सबंध अध्यातिमक जगत से है। कयोकि अध्यातम को जाने बिनां इंसान का जीवन अपूर्ण है। जब इंसान अध्यात्म की शरण में जाता है तो उसके जीवन में आंतरिक बदलाव आता है। बाहर से जीव जितना भी बदल जाए कितनी भी उन्ती कयो न कर लें। यदि उसने अपने आप को नही बदला, अच्छाई को अपने भीतर आरोपित नही किया। तब तक वह असली जीत को हासिल नही कर सकता और यह बदलाव एक पुर्ण संत की शरण में जाकर ही हासिल हो सकता है।  
           आगे साध्वी जी ने बताया कि जैसे अंगुलीमार डाकू अपने जीवन में पाप करने के लिए चाहे कितना दृढ संकलपी था पर उसके जीवन को सही दिशा तब ही मिली, जब उसके जीवन में भगवान बुद्ध जी का आगमन हुआ। कयोंकि बुद्ध जी ने ऊंगलीमार के जीवन में अध्यातिमक परिर्वतन किया। जिसके कारण वह डाकु से भकत बन गया। संसार में अनेक प्रकार की क्रांतियां अनेक प्रयासों के द्धारा की जाती हैं। अध्यातिमक क्रांति केवल पुर्ण संत के द्धारा ही संभव है। सत्संग में जाकर इंसान की सोच परिवर्तित होती है और जो इंसान सोचता है वही उसके कर्म में दिखाई देता है और कर्म के आधार पर ही इंसान की आसतित्व निरधारित होता है। सत्संग में ही इंसान की हैबानीयत या बुराई भरी सोच को परिवर्तत करके अच्छाई में तबदील किया जाता है।  
           आगे साध्वी जी ने कहा कि आज समाज में जो सबसे बढी समस्या है वह है युवा वर्ग में नशे की समस्या नशे की बढती हुई लत। समाज का प्रत्येक वर्ग इस गंभीर बिमारी से जुझ रहा है। आज यदि इस समस्या को नियंत्रण ना किया गया तो इसके बहुत ही कुप्रभाव हमारे समाज को देखने को मिलेगे। एक मात्र सत्संग ही ऐसा माध्यम है जो युवा वर्ग को उस की वास्तविक पहचान करा सकता है। 
          इसी अवसर पर विशेष रूप में स्वामी प्रकाशानंद, स्वामी गुरु कृपा नंद, ने अपनी अपस्थित दी