Wednesday 17 October 2018

FIB और बेलन ब्रिगेड ने भी की लुधियाना में दुर्गा पूजा

शिंगार सिनेमा के नज़दीक हुआ विशेष आयोजन 
लुधियाना: 16 अक्टूबर 2018: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
ज़िन्दगी खुशियों से भरी है, आनन्द से भरी है, बहुत ही मजेदार भी है लेकिन आसान नहीं है। खुशियों पर झपट रहे गिद्ध बार बार बेचैन करते हैं। कदम कदम पर आती मुसीबतें हताश करती हैं। गिरगिट की तरह रंग बदलते अपने ही लोग निराश करते हैं। किसी गीत में बहुत अच्छा कहा गया था-ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है। निरंतर संघर्ष, कभी विजय-कभी पराजय---इन मिले जुले अनुभवों से ही मिलता है ज़िंदगी का वस्तविक आनंद। कभी रिश्ते और संबंध बचने के लिए क्षमा मांगनी होती है, कभी क्षमा करना होता है इसी से समाज बचता भी है और विकास भी करता है। लेकिन कभी कभी दुष्टों को दंड देना भी आवश्यक होता है। नवरात्र की पूजा ज़िंदगी के इन नौ रंगों का बहुत ही समीप से अनुभव करवाती है। मन और तन की कमज़ोरी को दूर करके शक्ति संचय करने का त्यौहार है नवरात्र। 
दूर्गा पूजा; जिसे दुर्गोत्सव या "दुर्गा का उत्सव" के नाम से भी जाना जाता है।  

शरदोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला एक वार्षिक हिन्दू पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसमें छः दिनों को महालय, षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आता है तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है। इसका हर दिन ज़िंदगी के जहां रहस्यों की जानकारी देता है। प्रकृति के छुपे हुए रहस्यों से अवगत करवाता है। 
ज़िंदगी में खलल डालने वाली आसुरी शक्तियों के खिलाफ शुभ शक्तियों का निरंतर संग्राम करने की शक्ति विकसित करता है। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। लोग बहुत उत्साह से इसे मनाते हैं। 
देश के हर कोने में इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया।
उल्लेखनीय है कि दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। अब पंजाब में भी इस त्यौहार को बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है। घर घर में पूजा जैसा माहौल बन जाता है। 
"फर्स्ट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो" की देख रेख में कुछ स्थानीय संगठनों ने भी इसे बहुत ही उत्साह से मनाया। लगातार 9 अक्टूबर से पूजापाठ का सिलसिला बहुत ही श्रद्धा और उत्साह से जारी है। मां का अटूट लंगर भी चला। 
बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा ने भी इस अवसर पर अपनी हाज़िरी लगवाई और लोगों से अपील की कि नशा मुक्त समाज की स्थापना में बेलन ब्रिगेड का सहयोग करें। उन्होंने कहा कि हर नारी में दुर्गा शक्ति जगाना ही हमारा मुख्य मकसद है। अब भी जो लोग नारी को अबला समझते हैं उनको मां  दुर्गा सदबुद्धि दे। उन्होंने कहा कि जल्द ही बेलन ब्रिगेड का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप आपके आमने आने वाला है जो मां की कृपा से सम्भव हो पायेगा। 
फर्स्ट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (एफ आई बी) के प्रमुख डाक्टर भारत ने दिव्य शक्तियों की चर्चा करते हुए कहा कि आयोजकों को इस पूजा का शुभ फल जल्द मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज समाज में एक बार फिर असुरक्षा का माहौल है। देश और समाज के दुश्मन अपनी साज़िशों चालों से बाज़ नहीं आ रहे। इसलिए आज फिर मां दुर्गा की शक्ति को जगा कर ही हम देश और समाज को बचा सकते हैं। उन्होंने कहा की देश और समाज के लिए बिना कोई शोर मचाये बहुत ही सार्थक कार्य कर रहे लोगों को एफ आई बी की तरफ से बहुत जल्द सम्मानित किया जायेगा। 
एफ आई बी के ही एक और प्रमुख पदाधिकारी ओंकार सिंह पूरी ने भी मां के दरबार में अपनी हाज़िरी लगवाई और अपना संकल्प दोहराया कि देश की सुरक्षा में सेंध लगाने वालों के खिलाफ हमारा गुप्त अभियान जारी रहेगा। हम आतंकियों और गद्दारों को कभी भी कामयाब नहीं होने देंगें। 
इस अवसर पर चंद्रशेखर रामू, एडवोकेट रमन, धनंजय पण्डे, गुडडू व अन्य कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। 

Saturday 13 October 2018

वार्षिक जप-प्रयोग अमिट यादों के साथ सम्पन्न

जप प्रयोग में दृढ़ करवाई जाती है आध्यात्मिक साधना
जालंधर//दसूहा: 12 अक्टूबर 2018:(राजपाल कौर//पंजाब स्क्रीन)::
प्रत्येक साल की तरह इस साल भी सतगुरु दलीप सिंह जी की छत्रछाया में नामधारी संगत द्वारा शुरू किया गया वार्षिक जप-प्रयोग, आपसी एकता ,प्रेम और भाईचारे के संदेशों द्वारा अमिट छाप छोड़ता हुआ  आज सम्पन्न हुआ। आज से अस्सू के मेला बड़े उत्साह व उल्लास से शुरू हो गया है। सतगुरु राम सिंह जी द्धारा दर्शाये गए दिशा-निर्देश अनुसार चलते हुए, नामधारी सिक्ख जप-प्रयोग के आयोजन द्धारा अपने जीवन को गुरबाणी अनुसार जीने तथा इस पर दृढ रहने का अभ्यास करते हैं। इस दौरान अमृत वेले से लेकर शाम तक तकरीबन 8-9 घण्टे परमात्मा के साथ जुड़कर, एकाग्रचित हो कर सिमरन-साधना का अभ्यास, कथा-कीर्तन, गुरु इतिहास की जानकारी लेते हुए एक आदर्श जीवन जीने के गुण सीखते हैं। इस के इलावा भावी पीढ़ी को सेवा-सिमरन जैसे गुरसिक्खी आचरण बताते हुए उन्हें अपनी प्रतिभा निखारने का भी मौका दिया जाता है। इस जप-प्रयोग की विशेष बात यह है कि यह आयोजन श्री सतगुरु दलीप सिंह जी की आज्ञा से विशेष रूप से सरोवर अर्थात जल के पास ही करवाया जाता है क्योंकि गुरबाणी के अनुसार जल के पास बैठकर नाम सिमरन करने का बहुत महत्व माना गया है जैसे कि हम देखते हैं की गुरु साहबानों द्वारा कई धार्मिक स्थल सरोवर के किनारे ही स्थापित किये गए हैं। इस लिए सतगुरु जी की आज्ञा से यह आयोजन ,सतगुरु प्रताप सिंह सरोवर ,श्री जीवन नगर और प्राचीन पांडव तालाब मन्दिर,दसूहा जैसे पावन स्थानों पर होना नियत किया गया। चालीस दिन लगातार चलता हुआ यह कार्यक्रम प्रतिदिन आनन्द और सकारात्मक-ऊर्जा प्रदान करता रहा। संगत ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया और आनन्द की प्राप्ति की। 
               आज इस जप-प्रयोग की समाप्ति अमृत वेले आसा की वार के अमृतमयी कीर्तन और शाम के समय संत तेजा सिंह जी (खुड्डा वाले)की मनोहर और आनंदमयी कथा के साथ हुआ। उन्होंने संगत को नाम-बानी और जीवन में गुरु का महत्व बताया। आप जी ने बताया कि परमात्मा का वास हमारे अंदर ही है ,हम उसे बाहर ढूंढते रहते हैं। संत जी ने सतगुरु दलीप सिंह जी की कृपा से चल रहे इस शुभ कार्यक्रम की प्रशंसा की तथा आपस में मिल-जल कर रहने का सन्देश दिया। इस के साथ ही संगत को अस्सू का मेला शुरू होने की बधाइयाँ भी दी। 
   अंत में संत तेजा सिंह जी को नामधारी संगत द्वारा सम्मानित कर उनके कीमती समय निकलने का आभार भी प्रकट किया। इस अवसर पर प्रधान बलविंदर सिंह डुगरी,जागीर सिंह ,सुखविंदर सिंह ,बूटा सिंह,पलविंदर सिंह ,महिंदर सिंह ,रघबीर सिंह पटवारी ,प्रिंसिपल हरमनप्रीत सिंह काहलों ,सरपंच जोगिन्दर सिंह ,दर्शन सिंह मल्ली ,मास्टर इक़बाल सिंह ,रणजीत सिंह ,गुरदीप सिंह और विशाल संगत हाज़िर हुई।