Sunday 5 November 2017

भगवान कृष्ण की रासलीला के गहन रहस्यों की चर्चा

Sun, Nov 5, 2017 at 12:45 PM
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से विशेष आयोजन 
लुधियाना: 5 नवंबर 2017: (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::  
जुर्म और बुराई की आंधी के बावजूद आध्यात्मिक तरंगों के आयोजन का सिलसिला लुधियाना में बड़े पैमाने पर जारी है। शायद इन्हीं तरंगो के कारण अभी तक बहुत से लोगों के मन में भगवान का डर बना हुआ है और वे पाप करते समय कई कई बार सोचते हैं।
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से गगन नगर, ग्यासपुरा में समूह इलाका निवासीयों के सहयोग से शुरू हुई नौ दिवसीय श्री मद्धभागवत  कथा ज्ञान यज्ञ के अष्टम दिवस की सभा का शुभारंभ श्री सि़ग़ल, सुमन ठाक़ुर जी ने  परिवार सहित भागवत पूजन कर किया। इसके उपरांत आज के मुख्य अतिथी विश्वनाथ सिह,रजिनदर मरपाल जी ने ज्योति प्रज्वलित कर किया। कथा को भक्तों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या महामनस्विनी कथा व्यास साध्वी भागयाश्री भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की अलौकिक लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि जिस प्रकार शबरी और केवट ने प्रभु श्री राम से अन्नय प्रेम स्थापित किया उसी प्रकार द्वापर में भी भगवान श्री कृष्ण के साथ गोपियों का अन्नय प्रेम था। भगवान श्री कृष्ण के साथ उन गोपियों का अटूट प्रेम, विश्वास एवं श्रद्धा थी। इसी कारण वह प्रेम में मगन हो चुकी थी। लेक्नि आज संसार गोपियों के उस प्रेम को संदेहात्मक दृष्टि से देखता है। इस संबंध में लोगो के तरह तरह के बिचार है कि वह तो गोपियों के साथ रासलीला करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ जो रासलीला की उस समय उनकी बालक अवस्था थी और गोपियाँ कुछ वृद्धा कुछ यौवनाए एवं बालक अवस्था की थी। रासलीला के पीछे छुपे हुए रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ संशयात्मक दृष्टिकोण को भी दूर किया कि वास्तव में रास लीला का क्या अर्थ है? हमारे शास्त्रों में कहा गया है जिस रस से आनन्द की प्राप्ति होती है वह रस है परमात्मा। परमात्मा ही रस है। श्वेतासर उपनिषद में भी इस संबंधी कहा गया है कि विश्व के निवासी उस अमृत रस रूपी ईश्वर संतान है। जब आत्मा और परमात्मा का मिलाप होता है तभी रास लीला होती है। यह अन्तर की स्थिति होती है। यह मिलन केवल पूर्ण संत सद्गुरू की कृपा से ही संभव है।
                 आगे साध्वी जी ने सदगुरु के बारे में बताते हुए कहा कि कुछ समाज विरोधी तत्व ऐसे गुरू का विरोध करते आए है। क्योकि वह नही चाहते कि समाज में किसी प्रकार की शांति या अमन फैले वह तो इंसान का इंसान से बंटवारा चाहते हैं। लोगो में एैसे संतो के विषय में निराधारा गलत धारणाओं व अफवाहों को फैला देते है तांकि लोगो के मन में ऐसे संतो के प्रति हफरत पैदा हो सके। लेकिन जिस ने भी संत सद्गुरू की कृपा से अपने भीतर प्रभु का दर्शन किया है वह कभी भी इस तरह की व्यर्थ बातों पर विश्वास नही करते। संत की पहचान करने वाले कभी भी संत का विरोध नही करते। विरोध करने वाले तो वह लोग होते है जिनका धर्म व सत्य से कोई लेना देना नही होता। आगे साध्वी जी ने कथा प्रसंग की आते हुए कहा कि भगवन श्री कृष्ण की लीलाएं एक दिव्य संदेश प्रस्तुत करती है। जिसका भगवन श्री कृष्ण ने भी भागवद्गीता में उद्घोषण किया है कि मेरे जन्म और कर्म दिव्य व अलौकिक है। पभु इन उदगारों का अर्थ यही है कि वह अपने जीवन के प्रत्येक पहलू से कोई ऐसी सीख, कोई ऐसा संदेश प्रस्तुत करते है जिसे अपने जीवन में धारण करने हर मानव दुख और क्षोभ को छोडकर आनन्द को प्राप्त कर सकेगा। उस सुख को प्राप्त कर सकेगा जिसकी प्राप्ति के लिए वह ताउम्र प्रयासों में लगा रहता है। यदि वर्तमान मानव की समस्याओं को देखे इससे निजात का मात्र एक ही तरीका है। प्रभु का साक्षातकार जिससे न केवल मन को सही दिशा ही मिलेगी बल्कि एक अंकुश भी मिलेगा। यह केवल पूर्ण गुरू के चरणों में अर्पित हो, ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति से ही सम्भव  है। ब्रह्म ज्ञान का अर्थ ही गुरू कृपा के द्धारा मानव तन के भीतर प्रभु दर्शन करना है या यूँ कहिए कि यही प्रभु का अवतरण है।
                      इसी अवसर पर साध्वी सुश्री भगवती भारती जी, साध्वी सुश्री सतिन्दर भारती जी, साध्वी पुष्पभद्रा भारती जी, साध्वी संदीप भारती, साध्वी रेनु भारती जी के द्वारा सुन्दर भजनों का गायन किया गया। विशेष रूप मे परमहंस, रमन शर्मा, के.एस. ठाकुर , लाला रमेश, संदीप सिंह ढिल्लों, दर्शन गोगना, अर्वन कुमार, सतनाम सिंह, सरबजीत सिंह, सधु सुद,  मान सिंह, कैलाश चौधरी, जतिंदर  मलहौत्रा जी ने अपनी हाजरी लगवाई। कथा को विराम प्रभु की पावन आरती के साथ दिया गया।