Sunday 3rd December 2023 at 4:00 PM
साध्वी सुश्री राजविद्या भारती ने सुनाई मनुष्य की करुण दास्तान
लुधियाना: 3 दिसंबर 2023: (कार्तिका कल्याणी सिंह//आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
समाज को जागरूक और आध्यात्मिक बनाए रखने के लिए जो संगठन सक्रिय हैं उनमें दिव्य जयोति जाग्रति संस्थान भी है। की तरफ से लगातार धार्मिक भजन संगीत के कार्यक्रम किए जाते हैं। इसी तरह का एक और प्रोग्राम हरनामपुरा आश्रम में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। इस आयोजन में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री राजविद्या भारती जी ने मनुष्य की लगातार सुख के पीछे लगी हुई दौड़ के विषय में अपने विचार रखे।
साध्वी जी ने कहा की जन्म से मृत्यु तक बचपन से बुढ़ापे तक एक दौर निरंतर चलता रहता है सुख को पाने का। मनुष्य अपना पूरा प्रयास करता है एक-एक सुख के तिनके को इकट्ठा करने के लिए।संपूर्ण शक्ति और कीमती समय सुख के तिनके के लिए खर्च होता है पर सुख के इस तिनके की तलाश में वह कहीं दूर ही चला गया,किसी और ही दिशा में पहुँच गया। किसी और ही उलझन को बुनता चला गया। धीरे-धीरे यह जाल इतना विशाल हो गया कि उसको कहीं छोर दिखाई नहीं दे रहा।
सुख के तिनके की लालसा उसके जीवन में ढेरों दुखों को निमंत्रण देने लगी है । कैसा आश्चर्य है? पाने की आकांक्षा कुछ और थी, परंतु प्राप्ति कुछ और की हो जाती है। आखिर इसके पीछे कारण क्या है? उन्होंने कहा कि इसका कारण और निवारण हमें तुलसीदास जी द्वारा रचित ज्ञानदीपक प्रसंग से स्पष्ट होता है। वे इस प्रसंग में लिखते हैं कि अगर एक मनुष्य अंधेरे कमरे में एक गांठ को सुलझाना चाहे, तो क्या होगा? वह उस गांठ को सुलझाने की बजाय उसे और अधिक उलझा देगा। वह गांठ उस अंधकार में कभी सुलझ ना पाएगी।
परंतु यदि उस कमरे में दीप जला दिया जाए, तो उस दीपक के प्रकाश में मनुष्य गांठ को शीघ्र ही सुलझा पाएगा। इसी प्रकार मनुष्य भी आज अज्ञानता रूपी अंधकार में विचरण कर रहा है। इसलिए आवश्यकता है, दीप जलाने की अर्थात् प्रकाश करने की। जब तक उसके हृदय में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित नहीं होगा, तब तक मनुष्य दुखों का अधिकारी रहेगा। परंतु यह ज्ञान का बीज केवल मात्र एक पूर्ण गुरु ही जीव के अंदर रोपित कर सकते हैं।
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