मृत्यु का कारक शनि है और शमशान का कारक राहु है
ज्योतिष की दुनिया से (आराधना टाइम्स ज्योतिष डेस्क)::
शनि, राहु, केतु, जीवन, मृत्यु. सफलता और असफलता जैसे कई मुद्दों को लेकर लोग परेशान रहते हैं। रहस्यों को इस बार भी सुलझा रहे हैं माननीय बिभाष मिश्रा। इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले जिज्ञासुयों के लिए उनके विचार आप तक प्रामाणिक जानकारी पहुंचाने की पूरी कोशिश करते हैं। इस बार हम बात कर रहे हैं शनि,राहु और कर्म बोध की। कर्म बोध के आधार और विज्ञान के संबंध में पते की और गहरी बातें कर रहे हैं जमशेदपुर (झारखंड) के प्रसिद्ध ज्योतिष विशेषज्ञ बिभाष मिश्रा। उनका का यह विशेष लेख इस संबंध में कई नै जानकारियां। ज्योतिष में रुचि रखने वालों के लिए इस बार की चर्चा भी अत्यंत ज्ञानवर्धक होगी। ---कार्तिका कल्याणी सिंह (समन्वय संपादक)
जमशेदपुर (झारखंड): 6 दिसंबर 2023: (बिभाष मिश्रा//(आराधना टाइम्स ज्योतिष डेस्क)::
कर्म बोध और शनि पर बिभाष मिश्र जी विशेष चर्चा करते हुए बता रहे हैं ज्योतिष के जहां रहस्य जो आपके जीवन की सफलता और हालात के साथ भी जुड़े हुए। इन्हीं में छुपा है सफकता प्राप्ति का मार्ग और मन्त्र।
आज की इस पोस्ट में शनि और मानव के द्वारा किए गए कर्मों की चर्चा है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शनि आपके कर्म फल को निर्धारित करने वाला ग्रह है
इंसान जो कुछ भी आज प्राप्त कर रहा है चाहे वह सुख हो चाहे दुख वह उसके ही किए गए कर्मों का फल होता है। इस रहस्य को समझ लेना ही इस विज्ञान को समझने के रस्ते पर पहला महत्वपूर्ण कदम है।
शायद इसी के लिए कहा गया है कि कर्म फल को भोगना पड़ता है
और कर्म फल की बात हो और चर्चा शनि की ना हो या हो ही नहीं सकता है.....!
नवग्रह में सबसे धीरे चलने वाला ग्रह शनि है, और कुंडली में चंद्रमा आपका मन है, और जब उस मन रूपी चंद्रमा पर शनि का गोचर हो तो उसे हम शनि के साढेसाती कहते हैं, क्योंकि शनि सबसे धीरे चलता है इसलिए शनि की महादशा या साढेसाती में आपका मन स्थिर, शिथिल निराश हो जाता है ..
नवग्रह में शनि को न्यायाधीश की उपाधि दी गई है
हमने देखा है अपनी ज्योतिषीय यात्रा में कई लोग जो शनि की साढ़ेसाती में जबरदस्त उन्नति में रहते हैं, और कई लोग साढेसाती ना हो तब भी दुखी रहते हैं इसे अपने किए गए पूर्व और संचित कर्म ही कहेंगे ना ॥।
जीवन एक चक्र है जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह प्रसव पीड़ा के दौरान काफी संघर्ष में उसकी उत्पत्ति होती है.. जीवन के संघर्षों का यही चक्र बेहद है।
उसके बाद प्रारंभिक पढ़ाई करता है, तो पढ़ाई के वक्त भी उसे काफी कुछ सीखना होता है पेंसिल पकड़ना और बाकी चीज लिखना वह भी एक संघर्ष है ...
उसके बाद शिक्षा काल में उसकी 12वीं तक की पढ़ाई होती है जिसमें हर वर्ष व प्रतिस्पर्धा करता है और एक संघर्ष हासिल करता है
तत्पश्चात उसको उच्च शिक्षा हेतु भी संघर्ष करना पड़ता है
उसके बाद नौकरी प्राप्ति हेतु उसे जबरदस्त संघर्ष या प्रतियोगिता परीक्षा में प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है
उसके बाद उसका विवाह होता है और विवाह के बाद तो ऐसी प्रतिस्पर्धा की क्या कहना...
फिर उसके बच्चे होते हैं... फिर बच्चे बड़े होते हैं... फिर उनका विवाह ...
और फिर एक वक्त बुढ़ापा दस्तक देती है...!
यानी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक वह सिर्फ संघर्ष करता है और शनि इसी संघर्ष का परिचायक है...
कहने का तात्पर्य जातक जन्म से लेकर बुढ़ापे तक शनि के ही सीसीटीवी पर रहता है...
और अपने ही कर्म फल को भोगता रहता है...
एक जातक बड़ी आसानी से पराई स्त्री को गंदी नजर से देख लेता है.... उसे यह पता भी नहीं रहता कि उसके घर में भी एक स्त्री है उसकी बहन रूपी... उसकी बेटी रुपी...
और जब यही प्रारब्ध लौटता है तो वह दुखी हो जाता है...
हर आदमी यही चाहता है कि हम परस्त्री को तो भले देख ले पर हमारी बहन और हमारी बीवी को कोई गंदी नजर से ना देखें...
पर सदैव ध्यान रखें शनि सब देखता है...
कलयुग में लोग नाना प्रकार का मांस भक्षण कर रहे हैं, पर स्त्री गमन कर रहे हैं, और तमाम प्रकार का वह काम कर रहे हैं जो उन्हें हर दिन काल के गाल में भेज रही है फिर भी वह मदमस्त हैं...
यह सभी कर्म आहिस्ता आहिस्ता संचित होते हैं, और शनि की साढ़ेसाती में रौद्र रूप धारण कर लेते हैं...
शनि यथार्थ का कारक है, वह बताता है कि तमाम प्रकार के रिश्ते सगे संबंधी सभी महज दिखावे हैं, और यह तभी है जब तक आपके पास धन पद प्रतिष्ठा है... धन पद प्रतिष्ठा अपने पास गिरवी रखकर शनि आपको आपके ही समाज के हकीकत को दर्शाता है...
और साढेसाती या महादशा खत्म होने के बाद वह पद प्रतिष्ठा जो अपने पास गिरवी रखा था वह आपको वापस लौटा देता है ...
आपकी जीभ को करेला कतई पसंद नहीं है...जबकि वह शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है , जबकि आपके जीभ को जलेबी पसंद है जबकि वह आपके शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक है ..
शनि वही नीम है... करेला है... जो आपके शरीर को कुंदन बनाता है ॥।
प्रारब्ध का बोध... कर्म का बोध शनि कराता है...
और अपनी महादशा या साढेसाती में इतना दुख देता है की जातक के आंखों का आंसू उसे कुंदन बना देता है...
सारे रिश्ते तार-तार हो जाते हैं ...जमीन और आसमान एक हो जाते हैं वह यथार्थ शनि दिखाता है..
और यहां जब शनि की मित्रता या साथ राहु के संग हो जाए तो जरा सोचे के जातक की क्या हालत होती है ...
क्योंकि कर्म फल के मामले में शनि और राहु दोनों सगे मित्र हैं
शायद इसलिए कहा जाता है कि मृत्यु से बड़ा कोई उत्सव नहीं... और शमशान से बड़ा कोई तीर्थ नहीं ॥
यहां मृत्यु से तात्पर्य जातक के खुद की मृत्यु से है, मृत्यु के नाम से सांसारिक लोग भय पाते हैं, जबकि साधु आनंद मनाते हैं...
उन्हें मालूम भी नहीं उनकी खुद की मृत्यु से बड़ा कोई उत्सव भी नहीं और यह परम आनंद है और इस संसार के दुष्चक्र से उसकी मुक्ति है...
और उस मृत्यु का कारक शनि है॥
और शमशान से बड़ा कोई तीर्थ नहीं॥
जो एक कड़वी सच्चाई है इसलिए जरूरत ना भी हो तो शमशान की पवित्र भूमि को महीने में एक बार स्पर्श जरूर करना चाहिए, कि जीवन की एकमात्र वह सच्चाई है ॥
आप जीवन में करोड़पति बनेंगे... आपके पास तीन मंजिला मकान होगा... आप सुखी होंगे... इसमें संचय है, पर शमशान एक दिन जाना है यह परम सत्य है ॥
और उसे शमशान का कारक राहु है ॥।
जिस दिन पाठकगण आपने शनि और राहु को अपना दायी और बायी भुजा , और अपना अस्त्र और शास्त्र मान लिया , मानो जीवन में आपने परम विजय और दीर्घायु जीवन को प्राप्त कर लिया॥।
Er. Bibhash Mishra
Research Scholar and Astrologer Consultant
+91 99559 57433
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