Monday, 11 December 2023

बेहद क्रूर है केतु और उसकी महादशा--बिभाष मिश्रा

11th दिसंबर 2023 at 03:54 PM

7 वर्षीय केतु की महादशा बेहद कष्टकारी मानी जाती है


अचानक कभी कभी लगता है हम मज़बूत हो गए। कभी कभी लगता है हम टूट गए। बहाना कोई इंसान  है और कोई हालात भी लेकिन यह  सब ग्रह दशा के चलते हो रहा होता है। इस बार बिभाष मिश्रा जी ने अपनी रचना में केतु के संबंध में बेहद सादगी  भरे शब्दों के साथ बताया है। इसमें दी गई जानकारी आपसभी के लिए फायदेमंद हो सकती है अगर आप इसका फायदा उठाना चाहें तो? केतु की महादशा और इसके प्रभाव की जानकारी है इस विवेचन में।कार्तिका कल्याणी सिंह (समन्वय संपादक)

ज्योतिष की दुनिया से: 11 दिसंबर 2023: (बिभाष मिश्रा//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

आमतौर पर जब महादशा की बात आती है तो क्रूर ग्रह की महादशा जैसे शनि की महादशा ...और राहु की महादशा ...कष्ट देने वाली होती है ।।।  

 पर अनुभव में यह हमने पाया कि सबसे ज्यादा कष्ट देने वाली अगर कोई महादशा है तो वह केतु की महादशा होती है,  जो अच्छे-अच्छे इंसान की जड़े हिला देती है ।।।

एक चट्टान और बरगद के पेड़ के समान व्यक्तित्व भी जो बुद्ध की महादशा में फल फूल रहा हो ...केतु की महादशा में उसकी जड़ हिल जाती है...

इसलिए 7 वर्षीय केतु की महादशा बेहद कष्टकारी मानी जाती है ।।।

हम आज की इस पोस्ट में केतु को समझने की कोशिश करेंगे जैसा कि हम सभी जानते हैं की सर वाला भाग राहु है और धर वाला भाग केतु है ।।।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण का कारण बनने वाले राहु-केतु दोनों का जन्म वास्तव में महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ था।।।।

जब विष्णु मोहिनी रूप धारण करके देवताओं में अमृत बांट रहे थे, तो राहु भी छल से देवताओं की श्रेणी में जा बैठा ...और  अमृत का पान कर लिया, तो सूर्य और चंद्र के संकेत से नारायण के चक्र ने  राहु-केतु का सिर धड़ से अलग कर दिया ।।।

अमृत ग्रहण करने के कारण शरीर के दोनों हिस्से जीवित ही रहे और राहु और केतु के नाम से जाने जाने लगे ।।

राहु-केतु के जन्म की कथा स्कंद पुराण में मिलती है, वैदिक और पौराणिक शोध के आधार पर कहा जाता है कि स्कंद पुराण के अवंती खंड के अनुसार, उज्जैन राहु और केतु की जन्मस्थली है।।।

सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण बनने वाले ये दो छाया ग्रह विशेष रूप से उज्जैन में पैदा हुए थे।।।

अमृत ​​वितरण के समय राहु और केतु का जन्म हुआ, अवंती खंड कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकला अमृत महाकाल वन में वितरित हुआ था। ।।

इसी वन में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाया था। ।।

हालाँकि देवता के वेश में एक राक्षस ने अमृत पी लिया।।। 

परिणाम स्वरूप भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत ​​पीने से उनके शरीर के दोनों हिस्से जीवित रहे, और उन्हें राहु और केतु के नाम से जाना जाने लगा।।।

केतु का सिर नहीं है, जबकि राहु का धड़ नहीं है...

ज्योतिष में ये खगोलीय पिंड जिन्हें छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है, दोनों एक ही राक्षस के शरीर से प्राप्त हुए हैं।।। 

राहु राक्षस के सिर वाले हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि केतु धड़ का प्रतिनिधित्व करता है। ।।

केतु मोक्ष प्रदाता ग्रह है, चुकी अमृत वाला भाग केतु को प्राप्त हुआ इसलिए इससे आध्यात्मिक सुख भी देखी जाती है ।।

चूं कि कुंडली का बारहवां भाग मोक्ष का है, और केतु भी मोक्ष प्रदाता ग्रह है , इसलिए कुंडली के द्वादश भाव में बैठकर यह मोक्ष देता है ।।

आमतौर पर केतु अलगाववादी ग्रह है, या तो यह स्थिति को शून्य करता है या इतना देता है कि जातक तृप्त हो जाए क्योंकि केतु तृप्ति का कारक है ।।

उदाहरण स्वरूप किसी की जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में केतु बैठा है तो शोध में हमने देखा कि ऐसे जातक को जबर्दस्त आर्थिक तंगी होती है.. या ऐसे जातक के पास इतना धन होता है ...इतना धन होता है.. कि उसे धन के प्रति मोह ही खत्म हो जाता है ।।

इसी प्रकार अगर पंचम भाव में केतु हो, तो यह संतान की हानि कराता है, गर्भ हानि कराता है , या फिर चार-पांच संतान का पूर्ण सुख देता है ।।

कुंडली के नवम भाव और दशम भाव दोनों से पिता की सुख देखी जाती है, यहां पर बैठकर केतु या तो पिता का बिल्कुल सुख नहीं देता या पिता पूर्ण दीर्घायु होते हैं ।।।

बाकी घर के  बारे में भी ऐसा ही फलादेश समझे ।।

यानी केतु की अशुभ स्थिति फल में शुन्यता देगी और शुभ स्थिति प्रचुरता देगी ।।।

कुंडली में केतु अगर उच्च का बैठा हो,  खुद के नक्षत्र में बैठा हो तो ऐसी स्थिति में केतु को शुभ माना जाएगा ।।

वही केतु अगर कुंडली में नीच का बैठा हो,  या फिर षष्ठेश , अष्टमेश या द्वादशेश के नक्षत्र में बैठा हो तो यह अशुभ फल देने वाला माना जाएगा ।।

केतु वैराग का भी कारक है, एकांत मोक्ष का भी कारक है ।।

7 वर्षीय केतु की महादशा जीवन के वह रंग को दिखाती है जिसे जातक और किसी महादशा में नहीं सीख पाता ।।

द्वितीय धान भाव में अगर केतु बैठा हो और केतु की महादशा चल तो बड़े से बड़े खजाने में खाली हो जाते हैं और जातक के पास धन का भयंकर अभाव हो जाता है ।।

ज्‍योत‍िष शास्‍त्र के अनुसार कुंडली में केतु खराब होने पर जातक के बाल झड़ने लगते हैं, नसों में कमजोरी, पथरी की समस्‍या, जोड़ों में दर्द, स्किन प्राब्‍लम जैसी समस्‍याएं होती हैं. जातक की सुनने की क्षमता कम हो जाती है. संतान उत्‍पत्ति में समस्‍या होना, यूरिन संबंधी परेशानी होना भी शामिल है ।।।

गणेश जी को केतु का कारक देवता माना गया है। बुधवार के दिन गणेश पूजा, घी और दूर्वा से गणेश जी का हवन करने से केतु के दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता है। 

केतु दोष से मुक्ति के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना भी लाभकारी माना जाता है ।।

नीम के पेड़ से केतु का बड़ा गहरा संबंध है, नीम की लकड़ी से दातुन करना, नीम की लकड़ी से कंघी करना और अपने हाथों से नीम का पेड़ लगाना केतु को शुभ करने का उपाय है ।।

नेत्रहीन कोढ़ी अपंग के ऊपर केतु का प्रभाव है, इनको यथासंभव मदद कीजिए

हाथी, चींटी, मछली के ऊपर केतु का प्रभाव है।।

चींटी और मछली को चारा देना और हाथी दांत से बनी चीजों को व्यवहार में लाना केतु को शांति देने का उपाय है ।।  

Er. Bibhash Mishra

Research Scholar

Astrologer Consultant

+91 99559 57433

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