Tuesday, 23 September 2025

मां बह्मचारिणी ने चुना था शिव की तरह कठिन साधना का जीवन

Research and Got on Tuesday 22nd September 2025 at 06:15 PM Regarding 2nd Navratri

उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित भी करती है

चंडीगढ़: 23 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

रास्ते दिखाने और रास्ता बताने वाले बहुत से लोग होते हैं लेकिन सही रास्ता बताने वाला बड़ी किस्मतों से ही मिलता है। हिमालय और देवी मैना की पुत्री को मिले नारद जी और उन्होंने जगा दी मन में शिव की लौ। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने नारद मुनि के कहने पर शिव जी की कठोर तपस्या की थी और इसके प्रभाव से उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। इस कथा से साफ़ ज़ाहिर है कि जिसे चाहो,जिसकी पूजा करो उसकी तरह होने के प्रयास भी करो। 

मुश्किलों और कठिनाईओं के बावजूद पार्वती अपनी आशा या शिव को जीतने का संकल्प नहीं खोतीं। वह शिव की तरह पहाड़ों में रहने लगती हैं और उन्हीं गतिविधियों में संलग्न हो जाती हैं जो शिव करते हैं, जैसे तप, योग और तपस्या; पार्वती का यही रूप देवी ब्रह्मचारिणी का रूप माना जाता है। उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित करती है और उनकी रुचि जागृत करती है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि 

इस दिन पूजा शुरू करने से पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

साफ कपड़े पहनें।

इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।

मां की प्रतिमा का अभिषेक करें।

मां ब्रह्मचारिणी को सफेद या पीले रंग के फूल, जैसे चमेली, गेंदा या गुड़हल आदि चढ़ाएं।

मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा उन्हें चीनी या गुड़ का भोग भी लगाया जा सकता है।

पूजा के साथ साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, और चेहरे पर निखार आ सकता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है, और व्यक्ति अधिक केंद्रित और स्थिर महसूस करता है, जिससे कार्य करने की क्षमता में सुधार होता है। हालाँकि, यदि व्यक्ति शारीरिक सुख की इच्छा रखता है, तो उसे अकेलापन या नकारात्मक भावनाएँ महसूस हो सकती हैं। 

मानसिक और शारीरिक लाभ

इस पूजा के दौरान बढ़ी हुई ऊर्जा ब्रह्मचर्य पालन से शरीर ऊर्जावान महसूस करता है, और शारीरिक शक्ति बढ़ती है। 

आत्मविश्वास और मनोबल: आत्मविश्वास और आत्म-नियंत्रण बढ़ता है, जिससे व्यक्ति किसी भी काम को करने में सक्षम महसूस करता है। 

एकाग्रता और ध्यान: मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे फोकस बेहतर होता है और कोई भी चीज़ जल्दी सीखी जा सकती है। 

स्वस्थ त्वचा और आभा: चेहरे पर चमक और त्वचा में निखार आ सकता है, जो एक प्रकार की पवित्रता की आभा को दर्शाता है। 

अन्य लाभ

उत्कृष्ट प्रदर्शन: व्यक्ति अपनी ऊर्जा को काम, पढ़ाई और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगाता है, जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है। 

मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक रूप से मजबूत होता है और जीवन के उतार-चढ़ावों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता: शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है। 


Monday, 22 September 2025

शक्ति संचय और शक्ति पूजन का पर्व शारदीय नवरात्रि 22 से शुरू

Research on 19th September 2025 at 04:45 AM for Aradhana Times

शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन: माँ शैलपुत्री की पूजा

चंडीगढ़:21 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

इस बार भी नवरात्रि का त्यौहार नै शक्ति और नई खुशियों का संदेश ले कर आया है। सूर्य की तीक्ष्ण गर्म और बाढ़ का प्रकोप देखने के बाद देवी मां नई हिम्मत और नई ऊर्जा देने आई है। मां बाढ़ से हुई तबाही में हमारी सार लेने आई है साथ ही हमें सांत्वना देने आई है। कल से अर्थात 22 सितंबर से यह शक्ति पर्व पूरा ज़ोर पकड़ लेगा। शरीर और मन में नई हिम्मत आ जाएगी। मन की नकारत्मक भी छू मंत्र हो कर निकल जाएगी। नई खुशियों हम सभी के किवाड़ों पर दस्तक देंगीं। 

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन, माँ दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है। माँ शैलपुत्री की आराधना से जीवन में स्थिरता, शक्ति और दृढ़ता आती है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं और उसे शांति का आशीर्वाद मिलता है। इनके स्वरूप की तस्वीर देखने से ही मन में गहरी शांति उतरने लगती है। तन में एक नई ऊर्जा नेहसूस होने लगती है। 

माँ शैलपुत्री का स्वरूप

माँ शैलपुत्री के स्वरूप में, उनके माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है। वे दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल धारण करती हैं और नंदी नामक बैल पर विराजमान होती हैं। यह स्वरूप शक्ति, पवित्रता और साहस का प्रतीक है। इस दिन कलश स्थापना के साथ ही नौ दिवसीय इस महापर्व का शुभारंभ होता है, जिसमें माँ शक्ति का आह्वान किया जाता है।

नवरात्रि और देवी के नौ रूप

नवरात्रि का पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग दिव्य रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक रूप एक विशेष गुण, ऊर्जा और जीवन के पहलू का प्रतीक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।

नवदुर्गा के नौ रूप इस प्रकार हैं:

1. माँ शैलपुत्री: प्रथम दिन इनकी पूजा होती है। यह शक्ति, पवित्रता और स्थिरता का प्रतीक हैं।

2. माँ ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह तपस्या, ज्ञान और वैराग्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।

3. माँ चंद्रघंटा: तीसरे दिन इनकी पूजा होती है। यह साहस और वीरता की प्रतीक हैं, और भक्तों को सभी भय से मुक्त करती हैं।

4. माँ कूष्मांडा: चौथे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह सृष्टि की रचनाकार मानी जाती हैं और जीवन में ऊर्जा व समृद्धि लाती हैं।

5. माँ स्कंदमाता: पाँचवें दिन इनकी आराधना होती है। यह मातृत्व और प्रेम का प्रतीक हैं।

6. माँ कात्यायनी: छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक हैं।

7. माँ कालरात्रि: सातवें दिन इनकी पूजा होती है। यह दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों को निर्भय बनाने वाली मानी जाती हैं।

8. माँ महागौरी: आठवें दिन इनकी आराधना की जाती है। यह पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं।

9. माँ सिद्धिदात्री: नौवें दिन इनकी पूजा होती है। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं।

यह नौ दिन, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में, देवी की शक्ति को सम्मान देने और आंतरिक शुद्धिकरण के लिए समर्पित हैं। लोग बहुत  ही आस्था और श्रद्धा से इस पर्व को मानते भी हैं और उत्साह के साथ मनाते भी हैं। मौसम की तब्दीली का यह अवसर भी शक्ति संचय में सहायक होता है। 

Monday, 28 July 2025

एक दिवसीय गुरबाणी कीर्तन के आयोजन में विशेष प्रवचन

Received From DJJS Ludhiana on 28th July 2025 at 3:41 PM

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का लुधियाना में एक और यादगारी कार्यक्रम 


लुधियाना: 28 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने अपने स्थानीय आश्रम हरनामपुरा में एक दिवसीय गुरबाणी कीर्तन का आयोजन किया जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी के सेवक गुरुमुख भाई विष्णुदेवानंद जी ने कहा कि हमारे महापुरुष कहते हैं कि बेशक वो ईश्वर सर्वव्यापी है, परन्तु जिसने भी उसे देखा है,  अपने भीतर से देखा है क्योंकि यह शरीर ही ईश्वर का मंदिर है। जो कुछ हम बाहर देखते हैं या जहाँ हम अनंत जन्म लेने के बाद भी नहीं पहुँच सकते, उसे अपने भीतर ही देखा जा सकता है। 

हमारे महापुरुष कहते हैं कि यदि कोई वास्तविक मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद है, तो वह शरीर है। मनुष्य स्वयं बाहरी मंदिर आदि बनाता है, परन्तु यह शरीर रूपी मंदिर स्वयं ईश्वर ने बनाया है। जिसने भी इस मंदिर के भीतर खोजा है, वह निराश नहीं हुआ। 

ईश्वर को खोजने के लिए हम इस शरीर से जितना दूर जाएंगे, वो हमसे उतना ही दूर होते जाएंगे। जैसा कि महापुरुष कहते हैं कि जब एक बच्चा माँ के गर्भ में होता है, तो वह ईश्वर से जुड़ा होता है। उसे ईश्वर के दर्शन हो रहे होते हैं। 

जब वह बच्चा जन्म लेता है, तो उसका ध्यान टूट जाता है। जब उसकी आँखें खुलती हैं, तो वह अपनी माँ को देखता है, फिर अपने भाई-बहनों को, घर के दूसरे लोगों को, मोहल्ले को, शहर को, देश को, विदेश को, इस तरह वह और दूर होता जाता है। इसलिए अगर हमें उस ईश्वर से मिलना है, तो वह बाहर नहीं, हमारे भीतर ही है।

गुरुमुख भाई ने कहा कि अगर हम चाहें कि हमें इस शरीर रूपी मंदिर में उस ईश्वर के दर्शन अपने आप हो जाएं तो यह असंभव है। हमारे धार्मिक शास्त्र कहते हैं कि इसके लिए हमें एक पूर्ण गुरु की शरण लेनी होगी, जो हमारे मस्तक पर  हाथ रखकर हमें अपने इस शरीर रूपी मंदिर में प्रवेश करवा दे। उसके बाद ही हमें ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं, उससे पहले नहीं।

Sunday, 29 June 2025

मठपति जगदीपा भारती ने बताए ब्रह्मज्ञान

From Divya Jyoti Jagrati Sansthan on Sunday 29th June 2025 at 3:40 PM by Email 

 ब्रह्मज्ञान से आन्त्रिक परिवर्तन संभव-जगदीपा भारती 


लुधियाना
: 29 जून 2025: (कार्तिका कल्याणी सिंह/ /आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

बाहर का जीवन एक बिलकुल ही अलग सा घटनाक्रम है। जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत से अनुभव होते हैं। कुछ याद रहते हैं और कुछ भूल जाते हैं। दूसरी तरफ अंतर्मन की दुनिया बिलकुल ही अलग सी होती है। इस दुनिया में भी इंसान या तो ऊंचाई की तरफ जाता है और या फिर गिरावट की तरफ भी जा सकता है। इसके रहस्य और रास्ते आम तौर पर सभी को पता नहीं लगते। इन जहां रहस्यों की झलक दिखाती हैं दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की मठपति जगदीप भारती। 

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम कैलाश नगर में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें उपस्थित भक्तों को दर्शन देते हुए श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य मठपति जगदीपा भारती जी ने कहा कि अंतरात्मा हर व्यक्ति पवित्र है, दिव्य है। यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी। आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार विकार मन का परिचय उसके इस शिष्य, सात्विक आत्मस्वरूप से गृहस्थ जाए।
यह बाहरी टूल से परिचय संभव नहीं है। केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त अग्नि ही व्यक्ति के हर मानदंड को प्रकाशित कर सकती है। यही नहीं, मनुष्य के नीचे उतरने की दिशा में 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से ऊर्ध्वमुखी या ऊंचे शिखर की दिशा में मोड़ा जा सकता है। इससे वह एक उपयुक्त व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है।
'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद ध्यान-साधना करने से हमारे गुणधर्म दिव्य कर्मों में बदल जाते हैं। हमारा व्यक्तित्व का अंधकारमय पक्ष दूर होना प्रतीत होता है। विचार में सकारात्मक परिवर्तन एक प्रतीत होता है और नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दूर होती हैं। अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके लिए असमान वृद्धि प्रतीत होता है। धारणाओं, भ्रांतियों और नकारात्मक प्रभावों में उलझा हुआ मन आत्मा में स्थित होने लगता है। वह अपने उन्नत स्वभाव अर्थात समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ रही है। यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है।

यदि हम जीवन का यह वास्तविक तत्त्व अर्थात 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें शिष्य सद्गुरु की शरण में जाना होगा। वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोल कर, ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहां मुक्ति और आनंद का साम्राज्य है। सच तो यह है कि हमारा एक ही उपकरण है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युक्ति द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है।

कार्यक्रम के अंत में अनाथ मैत्रेयी भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन किया। इसका भी एक अलौकिक सा आनंद था। अच्छा हो अगर आप भी इसे स्वयं महसूस करने के लिए इस सतसंग में शामिल हों। 

Wednesday, 30 April 2025

सही खानपान सीख लो तो जान सकते हो खुद में छुपी क्षमताओं को

Science and Spiritualty Desk  posted on 30th April 2025 at 5:45 PM Aradhana Times

जो इशारा फिल्म लूसी करती है उसे ओशो ने बहुत पहले  बताया था 


चंडीगढ़
: 30 अप्रैल 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधनात टाईम्स)::

सन 2014 में एक फिल्म आई थी लुसी Lucy जो अब भी गज़ब की फिल्म है। अब उसका दूसरा भाग भी तैयार है लेकिन उसे 2026 में रिलीज़ किया जाएगा। वास्तव में लूसी 2014 की अंग्रेजी भाषा की फ्रेंच साइंस फिक्शन एक्शन फिल्म है। जिसने शरीर और दिमाग के संबंधों पर बहुत दिलचस्प ढंग से रौशनी डाली है। शरीर का शक्ति और दिमाग की शक्तिं के प्रभाव और तीव्रता को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। 

इसे ल्यूक बेसन ने अपनी कंपनी यूरोपाकॉर्प के लिए लिखा और निर्देशित किया है, और उनकी पत्नी वर्जिनी बेसन-सिला ने इसका निर्माण किया है। इसे ताइपे , पेरिस और न्यूयॉर्क शहर में शूट किया गया था। इसमें स्कारलेट जोहानसन , मॉर्गन फ़्रीमैन , चोई मिन-सिक और अमर वेकेड ने अभिनय किया है। जोहानसन ने लूसी का किरदार निभाया है, जो एक ऐसी महिला है जो एक नॉट्रोपिक , साइकेडेलिक दवा के उसके रक्तप्रवाह में अवशोषित होने पर मनोविश्लेषणात्मक क्षमताएँ प्राप्त करती है। इस फिल्म को देखते हुए उन पौराणिक कथाओं की भी याद आती है जिनके मुताबिक मानव के मन, मस्तष्क और शरीर में अनंत शक्तिया छुपी होती हैं। पुराने समय में योगी और साधक अलग अलग तरह की साधनाओं के द्वारा रैप्ट और जागृत करते थे।  

लूसी नाम की यह फिल्म 25 जुलाई 2014 को रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसने बहुत बड़ी सफलता हासिल की। दुनिया भर में तहलका मचा देने वाली इस फिल्म ने मानवीय क्षमताओं पर एक नै चर्चा शुरू की। बहुत सी नै उम्मीदें जगाई। एटम बमों जैसे हथियारों का निर्माण करके तबाही की स्क्रिप्ट लिख रही सरकारों के सामने  उठाया कि मानवीय क्षमता बढ़ाने की तरफ भी तो काम होना चाहिए थे। 

दिलचस्प तथ्य है कि अब भी दुनिया भर में इसकी डिमांड बढ़ती ही जा रही है। इस फिल्म ने दुनिया भर में $469 मिलियन से अधिक की कमाई की, जो $40 मिलियन के बजट से ग्यारह गुना अधिक है। इसे आम तौर पर सकारात्मक, लेकिन साथ ही ध्रुवीकृत, आलोचनात्मक समीक्षा मिली। हालाँकि इसके विषयों, दृश्यों और जोहानसन के प्रदर्शन की प्रशंसा की गई, लेकिन कई आलोचकों ने कथानक को निरर्थक पाया, विशेष रूप से मस्तिष्क के दस प्रतिशत मिथक और परिणामी क्षमताओं पर इसका ध्यान केंद्रित करना बहुत नई किस्म की उपलब्धि है। बहुत से लोगों ने इसके कथानक और कहानी को निरथर्क भी कहा और नकारने की कोशिश भी की। यह फिल्म जिस बात का संदेश देती है उसे बहुत विस्तार और स्पष्ट तरीके से ओशो बहुत पहले ही बता  चुके हैं। 

ओशो ने भोजन और खानपान के लाईफ स्टाईल की चर्चा के ज़रिए इस बात को पूरे तथ्यात्मक ढंग से सामने रखा है कि अगर जिस्म में गए भोजन को पचाने की ऊर्जा को  बचाया जा सके तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। इसके बाद शुरू होता है अलौकिक किस्म की शक्तियों  चमत्कारों  के महसूस होने का सिलसिला। 

सोशल मीडिया पर भोजन का एक नशा है  पोस्ट सामने आई है। इसे पोस्ट किया है 29 अप्रैल 2025 की रात को 8:14 बजे लगातार जाग्रति लाने सक्रिय एक जागरूक कंट्रीब्यूटर संजीव मिश्रा ने। 

ओशो बहुत ही रहस्य खोलते हुए बताते हैं: अगर तुम जरूरत से ज्यादा भोजन कर लो, तो भोजन अल्कोहलिक है। वह मादक हो जाता है, उसमें शराब पैदा हो जाती है। उसमें शराब पैदा होने का कारण है ,जैसे ही तुम ज्यादा भोजन कर लेते हो, तुम्हारे पूरे शरीर की शक्ति निचुड़कर पेट में आ जाती है.. क्योंकि भोजन को पचाना जरूरी है। तुमने शरीर के लिए एक उपद्रव खड़ा कर दिया, एक अस्वाभाविक स्थिति पैदा कर दी। तुमने शरीर में विजातीय तत्व डाल दिए। अब शरीर की सारी शक्ति इसको किसी तरह पचाकर और बाहर फेंकने में लगेगी। तो तुम कुछ और न कर पाओगे; सिर्फ सो सकते हो। मस्तिष्क तभी काम करता है, जब पेट हलका हो। इसलिए भोजन के बाद तुम्हें नींद मालूम पड़ती है। और अगर कभी तुम्हें मस्तिष्क का कोई गहरा काम करना हो, तो तुम्हें भूख भूल जाती है।

इसलिए जिन लोगों ने मस्तिष्क के गहरे काम किए हैं, वे लोग हमेशा अल्पभोजी लोग रहे हैं। और धीरे— धीरे उन्हीं अल्पभोजियों को यह पता चला कि अगर मस्तिष्क बिना भोजन के इतना सक्रिय हो जाता है, तेजस्वी हो जाता है, तो शायद उपवास में तो और भी बड़ी घटना घट जाएगी। इसलिए उन्होंने उपवास के भी प्रयोग किए। और उन्होंने पाया कि उपवास की एक ऐसी घड़ी आती है, जब शरीर के पास पचाने को कुछ भी नहीं बचता, तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। उस ऊर्जा के द्वारा ध्यान में प्रवेश आसान हो जाता है।*

जैसे भोजन अतिशय हो, तो नींद में प्रवेश आसान हो जाता है। नींद ध्यान की दुश्मन है; मूर्च्छा है। भोजन बिलकुल न हो शरीर में, तो शरीर को पचाने को कुछ न बचने से सारी ऊर्जा मुक्त हो जाती है पेट से, सिर को उपलब्ध हो जाती है- ध्यान के लिए उपयोगी हो जाती है।

लेकिन उपवास की सीमा है, दो—चार दिन का उपवास सहयोगी हो सकता है। लेकिन कोई व्यक्ति अतिशय उपवास  में पड़ जाए तो फिर मस्तिष्क को ऊर्जा नहीं मिलती। क्योंकि ऊर्जा बचती ही नहीं।

इसलिए उपवास किसी ऐसे व्यक्ति के पास ही करने चाहिए जिसे उपवास की पूरी कला मालूम हो। क्योंकि उपवास पूरा शास्त्र है। कोई भी, कैसे भी उपवास कर ले तो नुकसान में पड़ेगा।

और प्रत्येक व्यक्ति के लिए गुरु ठीक से खोजेगा कि कितने दिन के उपवास में संतुलन होगा। किसी व्यक्ति को हो सकता है पंद्रह दिन या किसी को इक्कीस दिन का उपवास उपयोगी हो। 

अगर शरीर ने बहुत चर्बी इकट्ठी कर ली है, तो इक्कीस दिन के उपवास में भी उस व्यक्ति के मस्तिष्क को ऊर्जा का प्रवाह मिलता रहेगा। रोज—रोज बढ़ता जाएगा।

जैसे—जैसे चर्बी कम होगी शरीर पर, वैसे—वैसे शरीर हलका होगा, तेजस्वी होगा, ऊर्जावान होगा। क्योंकि बढ़ी हुई चर्बी भी शरीर के ऊपर बोझ है और मूर्च्छा लाती है।

लेकिन अगर कोई दुबला—पतला व्यक्ति इक्कीस दिन का उपवास कर ले, तो ऊर्जा क्षीण हो जाएगी। उसके पास रिजर्वायर था ही नहीं; उसके पास संरक्षित कुछ था ही नहीं। उनकी जेब खाली थी। दुबला—पतला आदमी बहुत से बहुत तीन—चार दिन के उपवास से फायदा ले सकता है।

बहुत चर्बी वाला आदमी इक्कीस दिन, बयालीस दिन के उपवास से भी फायदा ले सकता है। और अगर अतिशय चर्बी हो, तो तीन महीने का उपवास भी फायदे का हो सकता है, बहुत फायदे का हो सकता है। लेकिन उपवास के शास्त्र को समझना जरूरी है।

तुम तो अभी ठीक विपरीत जीते हो, दूसरे छोर पर, जहां खूब भोजन कर लिया, सो गए। जैसे जिंदगी सोने के लिए है। तो मरने में क्या बुराई है! मरने का मतलब, सदा के लिए सो गए।

तो तामसी व्यक्ति जीता नहीं है, बस मरता है। तामसी व्यक्ति जीने के नाम पर सिर्फ घिसटता है। जैसे सारा काम इतना है कि किसी तरह खा—पीकर सो गए। वह दिन को रात बनाने में लगा है; जीवन को मौत बनाने में लगा है। और उसको एक ही सुख मालूम पड़ता है कि कुछ न करना पड़े। कुल सुख इतना है कि जीने से बच जाए जीना न पड़े। जीने में अड़चन मालूम पड़ती है। जीने में उपद्रव मालूम पड़ता है। वह तो अपना चादर ओढ़कर सो जाना चाहता है।

ऐसा व्यक्ति अतिशय भोजन करेगा। अतिशय भोजन का अर्थ है, वह पेट को इतना भर लेगा कि मस्तिष्क को ध्यान की तो बात दूर, विचार करने तक के लिए ऊर्जा नहीं मिलती। और धीरे— धीरे उसका मस्तिष्क छोटा होता जाएगा; सिकुड़ जाएगा। उसका तंतु—जाल मस्तिष्क का निम्न तल का हो जाएगा.......

ओशो; *गीता दर्शन, भाग - 8, अध्‍याय—17

Sunday, 23 February 2025

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से बचा जा सकता है रेडिएशन के कहर से

Sent by Writer Krishna Goyal on the eve of MahaShivratri   16th February 2025 at 21:14 WhatsApp

जानीमानी लेखिका कृष्णा गोयल  ने बताए हैं गहरे रहस्य 


पंचकूला
: 23 फरवरी 2025: (कृष्णा गोयल//आराधना टाईम्ज़ डेस्क )::

पारद से बने शिवलिंग पर दूध और पानी मिलाकर कच्ची लस्सी चढ़ाने  से जो प्रतिक्रिया होती है वह हमको अल्ट्रावायलेट किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाती है।  इसीलिए शिवलिंग पर चढ़ाए हुए जल को लांघते नही है। जल चढ़ाने के बाद आधी परिक्रमा ही की जाती है। जिस नाली में से चढ़ाया हुआ जल बहता है, उधर माथा टेक कर फिर वापिस आ कर बाकी की परिक्रमा पूरी करते हैं। 

खगोलीय तथ्य:

यह तो हम सब जानते हैं कि 23 मार्च के आस पास दिन-रात बराबर होते हैं क्योंकि 23 मार्च को पृथ्वी भूमध्य रेखा पर आ जाती है और इस समय सूर्य की सीधी किरणे पृथ्वी पर पड़ती हैं।  शिवरात्रि से 15-20 दिनों के बाद पृथ्वी ठीक भूमध्य रेखा पर होती है, जैसे जैसे पृथ्वी भूमध्य रेखा की ओर  बढ़ती है UV किरणों से होने वाला किरणपात बढ़ने लगता है जो जनजीवन के लिए अच्छा नहीं होता। 

यह किरणपात (रेडिएशन) शिवरात्रि को शुरू हो जाता है, जो लोगों के शरीर को अंदर से और बाहर से जला देता है जिस से लोगों को बुखार, जुकाम, अनपच की शिकायत होने लगती है। वास्तव में यह सब सूर्य की बाह्य लपटों से होने वाले किरणपात (रेडिएशन) के कारण होता है। पारद से बने शिवलिंग पर दूध मिला पानी चढ़ाने से जो रासायनिक क्रिया होती है उससे वातावरण में UV किरणपात का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है। इस किरणपात को हमारे ऋषि मुनियों ने जाना, समझा और हमारे लिए कुछ नियम बना दिए जिससे हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।

शास्त्रों में कहा गया हैब्रह्माण्ड़ेयस्ति यत्किंचित् पिण्ड़ेप्यस्ति सर्वथा।

ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु किसी-न-किसी रूप में मानव पिण्ड में विद्यमान है। इसीलिये मानव शरीर को दुर्लभ बतलाया गया है जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अपितु हमारा धर्म है जिस के लिए जो नियम बनाए उनको त्योहारों से जोड़ दिया गया ताकि लोग इस घटनाचक्र को भूल न जाएं और धर्म के साथ भी जोड़ दिया गया ताकि लोग श्रद्धा से उनका पालन करें।

शिवलिंग पर दूध की आस्था भरी तस्वीरें पूरे ध्यान से देखते हुए मनन करें तो आपको हिन्दू समाज के रीतिरिवाजों के मिथक कहे जाने स्वयं भी समझ आने लगेंगें। मिथक कहे पर लेखिका कृष्णा गोयल ने एक विशेष किताब लिखी जो हर बात  तथ्यों सहित जवाब भी देती है। इसी मुद्दे पर अन्य बौद्धिक क्षेत्रों में भी विचार विमर्श जारी है। इन क्षेत्रों में चल रहे सक्रिय विचार विमर्श में जो लोग रूचि ले रहे हैं उनमें से गैर हिन्दू भी शामिल हैं। संकेतक तस्वीरें यहाँ भी दी गई हैं। 

इसके साथ ही एक बात और भी कि आक, धतूरा, भांग और बिल्वपत्र जो शिवलिंग पर चढ़ाए जाते  हैं हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए औषधियां है। आक के फूल की डोडी खाने से उल्टियां वगैरह रुक जाती हैं। धतूरे के औषधि रूप से  बाहरी त्वचा की समस्या दूर होती है जबकि सही मात्रा में भांग पीने से हमारे अंदरूनी प्रणाली पर रेडिएशन के प्रभाव से पड़ी दरारें ठीक होती हैं, इन्हीं दरारों के कारण पेट दर्द व हाजमे की परेशानियां होती हैं। बिल्वपत्र पर चंदन का लेप करके शिवलिंग को ढका जाना पावन समझा जाता है जो ये संकेत देता है कि इन दिनों यदि हम चंदन का लेप करके बिल्वपत्र से सिर ढक  कर गर्म धूप में भी निकलते हैं तो  UV किरणों के दुष्प्रभाव से बचाव किया जा सकता है। पुरातन काल में लिखने की विधि विकसित न होने के कारण ये सारा ज्ञान  सांकेतिक भाषा में था और जुबानी ही आगे बढ़ाया जाता था जो चिरकाल से समाप्त प्राय: हो गया है। इसलिए इस दुर्लभ ज्ञान की खोज और प्रसार बहुत आवश्यक है। 

सुश्री कृष्ण गोयल की एक विशेष खोजपूर्ण रचना आप आराधना टाईम्ज़ में पढ़ ही रहे हैं। भविष्य में हमारा प्रयास रहेगा कि ऐसी सामग्री आप तक पहुँचती रहे।  हिन्दू मिथक के वैज्ञानिक पहलुओं पर आई इस विशेष पुस्तक पर आधारित यह विशेष पोस्ट आप सभी तक पहुंचनी ज़रूरी भी है। 

हिन्दू रीति रिवाजों को मिथक कहे जाने के विरोध में सुश्री कृष्ण गोयल ने तकरीबन हर संशय को दूर करने की कोशिश की है। जिस जिस बात पर आशंका की जाती है हर उस बात का जवाब वैज्ञानिक पहलु से देने का प्रयास किया है। 

ये भी सभी को ज्ञात है कि हमारे 12 महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग एक ही लाइन में एक ही ऊंचाई पर स्थापित किए गए हैं। कदाचित हमारे पूर्वजों को यह ज्ञान था कि इस जगह पर यूवी किरणों का दुष्प्रभाव अधिकतम हो सकता है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए लोग देश के  सभी भागों से आते हैं, अभिषेक करते हैं और ज्योतिर्लिंग पर कच्ची लस्सी चढ़ाते हैं, जिस से यूवी किरणों का दुष्प्रभाव शांत रहता है। दुनिया में सभी कहीं हमने ज्वालामुखी फटते हुए सुने हैं, परंतु भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ। जिस जगह पर रेडिएशन ज्यादा हो जाती है और पृथ्वी भी यदि उसी जगह भौगोलिक कारणों से ज्यादा गर्म है तो लावा फटना शुरू हो जाता है। परंतु भारत में ऐसी जगह पर वातावरण को  समय अनुसार शांत कर दिया  जाता है (पारद के बने ज्योतिर्लिंग पर कच्ची लस्सी चढ़ाने की क्रिया से), इसी लिए भारत में ज्वालामुखी आमतौर पर चिंताजनक हालात तक नहीं फटे।

पाश्चात्य प्रभाव में आकर हमारे उच्च शिक्षित वर्ग में से कुछ लोग इन क्रियाओं को रूढ़िवादी कहने लगे हैं, जबकि ऐसा करने से पहले हमको हमारे पूर्वजों की बुद्धिमता से मार्गदर्शन को धन्यवाद देना चाहिए।

गौरतलब है कि दुष्प्रभाव वाली यूवी किरणों का प्रभाव जो अमावस्या (शिवरात्रि) को शुरू होता है वह पूर्णिमा तक उच्चतम होता है, इसी लिए शिवरात्रि के बाद आने वाली पूर्णिमा को हम होली के रूप में मनाते है (इन दिनों को जलते बलते दिन कहा जाता है) जब अबीर उड़ाने और एक दूसरे पर अबीर लगाने की प्रथा है। अबीर उड़ाने से वातावरण का प्रकोप कम होता है और चेहरे पर लगने से जलन दूर होती है। 

आजकल अबीर का स्थान घटिया किस्म के गुलाल ने ले लिया है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। पंजाब में होली के बाद बासडा भी तो मनाते हैं क्योंकि मीठा और तला हुआ भोजन खाने से शरीर की अंदर की प्रणाली में जो दरारें आ जाती हैं, उनकी मालिश हो जाती है और हम स्वस्थ रहते हैं। नमन है हमारे पूर्वजों की दार्शनिकता को जो ये जानते थे कि आने वाली पीढ़ियां शायद ये प्रभाव/दुष्प्रभाव को भूल न जाएं, इसी लिए इन खगोलीय घटनाचक्रों को त्योहारों का नाम दे दिया।

शिवरात्रि के पावन सुअवसर पर आप सभी इन रीति रिवाजों को गहराई से समझें और बेहद गंभीरता से इन्हें अपने जीवन में भी उतारें। आप देखेंगे कि आपको अपने जीवन में बहुत कुछ बदलता हुएभी महसूस होने लगेगा। तन को नै आभा मिलेगी हुए मन को एक नै शक्ति भी। आपका प्रभामंडल आपके आसपास के माहौल को भी प्रभावित करने लगेगा। मुसीबतों और कठिनाईओं के जो रूप सांप की तरह सामने आ कर दस्ते हुए से लगते हैं वे भी आपके मित्र बन जाएंगे। आपकी शक्ति बन जाएंगे।  

***   

नोट: यह रचना सुश्री कृष्ण गोयल की बहु चर्चित पुस्तक "हिंदू त्यौहार और विज्ञान" में भी संकलित है। 

Wednesday, 12 February 2025

सूर्य भी अपने परिवार के साथ अपनी आकाश गंगा के गिर्द चक्कर लगाता है

Writeup By Krishna Goyal on 12th February 2025 at 12:34 WhatsApp Regarding Kumbh Sankranti Panchkula

सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है

कुंभ संक्रांति के रहस्यों पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख 


पंचकूला:12 फरवरी 2025: (कृष्णा गोयल//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

कुंभ संक्रांति शब्दार्थ: सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को सूर्य का दूसरी राशि में संक्रमण (जाना) कहते हैं! पृथ्वी सूर्य के गिर्द चक्कर लगाती है। इस घूमने को क्रांति कहते हैं। संक्रमण + क्रांति =संक्रांति।

सूर्य के इस प्रवेश (एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) का समय लगभग एक घंटा 49 मिनट होता है। प्रवेश के समय से कुछ घंटे पहले और  कुछ घंटे बाद के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। इस समय में पूजा पाठ दान इत्यादि किया जाता है। इस समय के दौरान कोई सांसारिक/शुभ कार्य जैसे विवाह, ग्रह प्रवेश इत्यादि नही किया जाता। कुंभ संक्रांति का महत्व और कई दुसरे पहलुओं पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख जिसमें हैं कई जानकारियां 

पृथ्वी सूर्य के गिर्द चक्कर लगाती है। पृथ्वी के घूमने के पथ को क्रांतिवृत कहते हैं। खगोल के अध्ययन के लिए  इस परिधि को 12 भागों में बांट कर 12 राशियों का नाम दिया गया है। पृथ्वी जब एक राशि से दूसरी राशि में जाती है उसको सक्रांति कहते हैं। प्रत्येक राशि में पृथ्वी पर प्रभाव अलग-अलग होता है। उस प्रभाव को समझने के लिए क्रांतिवृत की 360 डिग्री को 12 से भाग करके हरेक राशि 30 डिग्री की मानी जाती है। प्रत्येक राशि का ब्रह्मांड में विशेष स्थान है। हम जानते हैं कि हरेक राशि 30 डिग्री की नही होती, थोड़ा कम या ज़्यादा डिग्री की होती है, परंतु अपनी सुविधा के लिए हम प्रत्येक राशि को 30 डिग्री का ही मान लेते हैं।

बात यह नही है कि सूर्य स्थाई है अपितु सूर्य भी अपने सूर्य परिवार के साथ अपनी आकाश गंगा (गैलेक्सी) के गिर्द चक्कर लगाता है। ऐसी लाखों आकाश गंगाएं आकाश में हैं। हमारी गैलेक्सी भी अपने परिवार के साथ धीरे-धीरे किसी बड़ी गैलेक्सी के गिर्द घूमती है। 

वर्ष के 365  दिन क्यों पृथ्वी का सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने का पथ 360 degree है। पृथ्वी एक दिन में एक डिग्री चलती है। 360 degree 360 दिनों  में पूरे हो जाने चाहिए थे। परंतु जब तक पृथ्वी सूर्य के गिर्द 360 डिग्री का एक चक्कर लगाती है, सूर्य थोड़ा सा आगे खिसक जाता है। उस दूरी को पूरा करनें केलिए पृथ्वी को 5 दिन, 5 घंटे, 58 मिनट और 46 सेकिंड लगते है। इस लिए वर्ष के 360 दिन न होकर 365 दिन होते हैं। बाकी का समय चार वर्षों के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है। इसलिए चार वर्षों के बाद फरवरी के महीने में एक दिन और जोड़ दिया जाता है। जिसको लीप ईयर की संज्ञा दी जाती है। (Leep का अर्थ है jump, भाव प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन jump हो जाता है, बढ़ जाता है।) जो बाकी के मिनट और सेकंड बच जाते हैं, वह 72 वर्ष के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है, जिसकी गिनती हमारे कैलेंडर में नही आती। यही कारण है कि मकर संक्रति का दिन कुछ समय बाद बदल जाता है। कभी यह मकर सक्रांति 12 दिसंबर को होती थी।

खगोलीय घटनाओं का महत्व समझना तो दूर (कुछ विद्वानों को छोड़ कर) आम लोग इसके बारे जानते ही नहीं जब कि  पुरातन काल में हमारे घरों में यह ज्ञान आम था क्योंकि हमारी दादी ही बोल देती थी कि आज पुष्य नक्षत्र है, आज बच्चों को स्वर्णप्राशन (इम्युनिटी की आयुर्वेदिक बूंदे) पिला कर ले आओ"  या आज ये नक्षत्र है आज ये कम नहीं करना" इत्यादि! परंतु संयुक्त परिवार न  होने के कारण ये ज्ञान आगे नहीं बढ़ा।

इन घटनाओं का ज्ञान हमारे पूर्वजों ने हमें पर्व के रूप में सौंपा है ताकि पर्व के बहाने हम खगोलीय घटना चक्र को समझें और उसका लाभ उठा सकें।

आज 12 फरवरी 2025 को कुंभ संक्रांति है और पूर्णिमा भी है। पूर्णिमा और कुंभ संक्रांति एक ही दिन, ये पर्व 144 वर्ष के बाद आया है

जैसे कि पहले कहा गया है सूर्य जिस मार्ग पर घूमता है उसको क्रांति पथ कहते हैं। संक्रमण का अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित। सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश कर रहा है। इस प्रवेश को मकर से कुंभ में सूर्य का संक्रमण कहा जाता है। इस लिए सांक+राँती ( संक्र मण + क्रांति) (संक्र+क्रांति)

संक्रांति।सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है। 

प्रवेश के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। ये लगभग चार घंटे का होता है। 

पुण्य काल  में पाठ पूजा की जाती है, दान किया जाता है जिस से सब कष्ट दूर होते हैं।  व्रत पर्व विवरण - संत रविदास जयंती, ललिता जयंती, माघ पूर्णिमा, विष्णुपदी संक्रांति ( आज संक्रांति पुण्यकाल दोपहर 12:41 से सूर्यास्त तक)*

पुण्यकाल के दौरान शारीरिक कष्ट दूर करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें 108 बार, इच्छापूर्ति के लिए गायत्री मंत्र , स्वास्थ्य के लिए ॐ नम: शिवाय या ॐ का जप करें या गुरु चरणों में ध्यान लगाते  हुए गुरबाणी का जाप करें तदोपरांत गुड और गेहूं का दान करें।

इस पर्व पर ईश्वर से प्रार्थना है कि ईश्वर की कृपा से आपके सब कष्ट दूर हों, मनोकामना की पूर्ति हो, ढेरों खुशियां मिलें।   ***

लेखिका कृष्णा गोयल

पूर्व जॉइंट रजिस्ट्रार

12.2.2025