Wednesday, 30 April 2025

सही खानपान सीख लो तो जान सकते हो खुद में छुपी क्षमताओं को

Science and Spiritualty Desk  posted on 30th April 2025 at 5:45 PM Aradhana Times

जो इशारा फिल्म लूसी करती है उसे ओशो ने बहुत पहले  बताया था 


चंडीगढ़
: 30 अप्रैल 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधनात टाईम्स)::

सन 2014 में एक फिल्म आई थी लुसी Lucy जो अब भी गज़ब की फिल्म है। अब उसका दूसरा भाग भी तैयार है लेकिन उसे 2026 में रिलीज़ किया जाएगा। वास्तव में लूसी 2014 की अंग्रेजी भाषा की फ्रेंच साइंस फिक्शन एक्शन फिल्म है। जिसने शरीर और दिमाग के संबंधों पर बहुत दिलचस्प ढंग से रौशनी डाली है। शरीर का शक्ति और दिमाग की शक्तिं के प्रभाव और तीव्रता को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। 

इसे ल्यूक बेसन ने अपनी कंपनी यूरोपाकॉर्प के लिए लिखा और निर्देशित किया है, और उनकी पत्नी वर्जिनी बेसन-सिला ने इसका निर्माण किया है। इसे ताइपे , पेरिस और न्यूयॉर्क शहर में शूट किया गया था। इसमें स्कारलेट जोहानसन , मॉर्गन फ़्रीमैन , चोई मिन-सिक और अमर वेकेड ने अभिनय किया है। जोहानसन ने लूसी का किरदार निभाया है, जो एक ऐसी महिला है जो एक नॉट्रोपिक , साइकेडेलिक दवा के उसके रक्तप्रवाह में अवशोषित होने पर मनोविश्लेषणात्मक क्षमताएँ प्राप्त करती है। इस फिल्म को देखते हुए उन पौराणिक कथाओं की भी याद आती है जिनके मुताबिक मानव के मन, मस्तष्क और शरीर में अनंत शक्तिया छुपी होती हैं। पुराने समय में योगी और साधक अलग अलग तरह की साधनाओं के द्वारा रैप्ट और जागृत करते थे।  

लूसी नाम की यह फिल्म 25 जुलाई 2014 को रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसने बहुत बड़ी सफलता हासिल की। दुनिया भर में तहलका मचा देने वाली इस फिल्म ने मानवीय क्षमताओं पर एक नै चर्चा शुरू की। बहुत सी नै उम्मीदें जगाई। एटम बमों जैसे हथियारों का निर्माण करके तबाही की स्क्रिप्ट लिख रही सरकारों के सामने  उठाया कि मानवीय क्षमता बढ़ाने की तरफ भी तो काम होना चाहिए थे। 

दिलचस्प तथ्य है कि अब भी दुनिया भर में इसकी डिमांड बढ़ती ही जा रही है। इस फिल्म ने दुनिया भर में $469 मिलियन से अधिक की कमाई की, जो $40 मिलियन के बजट से ग्यारह गुना अधिक है। इसे आम तौर पर सकारात्मक, लेकिन साथ ही ध्रुवीकृत, आलोचनात्मक समीक्षा मिली। हालाँकि इसके विषयों, दृश्यों और जोहानसन के प्रदर्शन की प्रशंसा की गई, लेकिन कई आलोचकों ने कथानक को निरर्थक पाया, विशेष रूप से मस्तिष्क के दस प्रतिशत मिथक और परिणामी क्षमताओं पर इसका ध्यान केंद्रित करना बहुत नई किस्म की उपलब्धि है। बहुत से लोगों ने इसके कथानक और कहानी को निरथर्क भी कहा और नकारने की कोशिश भी की। यह फिल्म जिस बात का संदेश देती है उसे बहुत विस्तार और स्पष्ट तरीके से ओशो बहुत पहले ही बता  चुके हैं। 

ओशो ने भोजन और खानपान के लाईफ स्टाईल की चर्चा के ज़रिए इस बात को पूरे तथ्यात्मक ढंग से सामने रखा है कि अगर जिस्म में गए भोजन को पचाने की ऊर्जा को  बचाया जा सके तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। इसके बाद शुरू होता है अलौकिक किस्म की शक्तियों  चमत्कारों  के महसूस होने का सिलसिला। 

सोशल मीडिया पर भोजन का एक नशा है  पोस्ट सामने आई है। इसे पोस्ट किया है 29 अप्रैल 2025 की रात को 8:14 बजे लगातार जाग्रति लाने सक्रिय एक जागरूक कंट्रीब्यूटर संजीव मिश्रा ने। 

ओशो बहुत ही रहस्य खोलते हुए बताते हैं: अगर तुम जरूरत से ज्यादा भोजन कर लो, तो भोजन अल्कोहलिक है। वह मादक हो जाता है, उसमें शराब पैदा हो जाती है। उसमें शराब पैदा होने का कारण है ,जैसे ही तुम ज्यादा भोजन कर लेते हो, तुम्हारे पूरे शरीर की शक्ति निचुड़कर पेट में आ जाती है.. क्योंकि भोजन को पचाना जरूरी है। तुमने शरीर के लिए एक उपद्रव खड़ा कर दिया, एक अस्वाभाविक स्थिति पैदा कर दी। तुमने शरीर में विजातीय तत्व डाल दिए। अब शरीर की सारी शक्ति इसको किसी तरह पचाकर और बाहर फेंकने में लगेगी। तो तुम कुछ और न कर पाओगे; सिर्फ सो सकते हो। मस्तिष्क तभी काम करता है, जब पेट हलका हो। इसलिए भोजन के बाद तुम्हें नींद मालूम पड़ती है। और अगर कभी तुम्हें मस्तिष्क का कोई गहरा काम करना हो, तो तुम्हें भूख भूल जाती है।

इसलिए जिन लोगों ने मस्तिष्क के गहरे काम किए हैं, वे लोग हमेशा अल्पभोजी लोग रहे हैं। और धीरे— धीरे उन्हीं अल्पभोजियों को यह पता चला कि अगर मस्तिष्क बिना भोजन के इतना सक्रिय हो जाता है, तेजस्वी हो जाता है, तो शायद उपवास में तो और भी बड़ी घटना घट जाएगी। इसलिए उन्होंने उपवास के भी प्रयोग किए। और उन्होंने पाया कि उपवास की एक ऐसी घड़ी आती है, जब शरीर के पास पचाने को कुछ भी नहीं बचता, तो सारी ऊर्जा मस्तिष्क को उपलब्ध हो जाती है। उस ऊर्जा के द्वारा ध्यान में प्रवेश आसान हो जाता है।*

जैसे भोजन अतिशय हो, तो नींद में प्रवेश आसान हो जाता है। नींद ध्यान की दुश्मन है; मूर्च्छा है। भोजन बिलकुल न हो शरीर में, तो शरीर को पचाने को कुछ न बचने से सारी ऊर्जा मुक्त हो जाती है पेट से, सिर को उपलब्ध हो जाती है- ध्यान के लिए उपयोगी हो जाती है।

लेकिन उपवास की सीमा है, दो—चार दिन का उपवास सहयोगी हो सकता है। लेकिन कोई व्यक्ति अतिशय उपवास  में पड़ जाए तो फिर मस्तिष्क को ऊर्जा नहीं मिलती। क्योंकि ऊर्जा बचती ही नहीं।

इसलिए उपवास किसी ऐसे व्यक्ति के पास ही करने चाहिए जिसे उपवास की पूरी कला मालूम हो। क्योंकि उपवास पूरा शास्त्र है। कोई भी, कैसे भी उपवास कर ले तो नुकसान में पड़ेगा।

और प्रत्येक व्यक्ति के लिए गुरु ठीक से खोजेगा कि कितने दिन के उपवास में संतुलन होगा। किसी व्यक्ति को हो सकता है पंद्रह दिन या किसी को इक्कीस दिन का उपवास उपयोगी हो। 

अगर शरीर ने बहुत चर्बी इकट्ठी कर ली है, तो इक्कीस दिन के उपवास में भी उस व्यक्ति के मस्तिष्क को ऊर्जा का प्रवाह मिलता रहेगा। रोज—रोज बढ़ता जाएगा।

जैसे—जैसे चर्बी कम होगी शरीर पर, वैसे—वैसे शरीर हलका होगा, तेजस्वी होगा, ऊर्जावान होगा। क्योंकि बढ़ी हुई चर्बी भी शरीर के ऊपर बोझ है और मूर्च्छा लाती है।

लेकिन अगर कोई दुबला—पतला व्यक्ति इक्कीस दिन का उपवास कर ले, तो ऊर्जा क्षीण हो जाएगी। उसके पास रिजर्वायर था ही नहीं; उसके पास संरक्षित कुछ था ही नहीं। उनकी जेब खाली थी। दुबला—पतला आदमी बहुत से बहुत तीन—चार दिन के उपवास से फायदा ले सकता है।

बहुत चर्बी वाला आदमी इक्कीस दिन, बयालीस दिन के उपवास से भी फायदा ले सकता है। और अगर अतिशय चर्बी हो, तो तीन महीने का उपवास भी फायदे का हो सकता है, बहुत फायदे का हो सकता है। लेकिन उपवास के शास्त्र को समझना जरूरी है।

तुम तो अभी ठीक विपरीत जीते हो, दूसरे छोर पर, जहां खूब भोजन कर लिया, सो गए। जैसे जिंदगी सोने के लिए है। तो मरने में क्या बुराई है! मरने का मतलब, सदा के लिए सो गए।

तो तामसी व्यक्ति जीता नहीं है, बस मरता है। तामसी व्यक्ति जीने के नाम पर सिर्फ घिसटता है। जैसे सारा काम इतना है कि किसी तरह खा—पीकर सो गए। वह दिन को रात बनाने में लगा है; जीवन को मौत बनाने में लगा है। और उसको एक ही सुख मालूम पड़ता है कि कुछ न करना पड़े। कुल सुख इतना है कि जीने से बच जाए जीना न पड़े। जीने में अड़चन मालूम पड़ती है। जीने में उपद्रव मालूम पड़ता है। वह तो अपना चादर ओढ़कर सो जाना चाहता है।

ऐसा व्यक्ति अतिशय भोजन करेगा। अतिशय भोजन का अर्थ है, वह पेट को इतना भर लेगा कि मस्तिष्क को ध्यान की तो बात दूर, विचार करने तक के लिए ऊर्जा नहीं मिलती। और धीरे— धीरे उसका मस्तिष्क छोटा होता जाएगा; सिकुड़ जाएगा। उसका तंतु—जाल मस्तिष्क का निम्न तल का हो जाएगा.......

ओशो; *गीता दर्शन, भाग - 8, अध्‍याय—17

Sunday, 23 February 2025

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से बचा जा सकता है रेडिएशन के कहर से

Sent by Writer Krishna Goyal on the eve of MahaShivratri   16th February 2025 at 21:14 WhatsApp

जानीमानी लेखिका कृष्णा गोयल  ने बताए हैं गहरे रहस्य 


पंचकूला
: 23 फरवरी 2025: (कृष्णा गोयल//आराधना टाईम्ज़ डेस्क )::

पारद से बने शिवलिंग पर दूध और पानी मिलाकर कच्ची लस्सी चढ़ाने  से जो प्रतिक्रिया होती है वह हमको अल्ट्रावायलेट किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाती है।  इसीलिए शिवलिंग पर चढ़ाए हुए जल को लांघते नही है। जल चढ़ाने के बाद आधी परिक्रमा ही की जाती है। जिस नाली में से चढ़ाया हुआ जल बहता है, उधर माथा टेक कर फिर वापिस आ कर बाकी की परिक्रमा पूरी करते हैं। 

खगोलीय तथ्य:

यह तो हम सब जानते हैं कि 23 मार्च के आस पास दिन-रात बराबर होते हैं क्योंकि 23 मार्च को पृथ्वी भूमध्य रेखा पर आ जाती है और इस समय सूर्य की सीधी किरणे पृथ्वी पर पड़ती हैं।  शिवरात्रि से 15-20 दिनों के बाद पृथ्वी ठीक भूमध्य रेखा पर होती है, जैसे जैसे पृथ्वी भूमध्य रेखा की ओर  बढ़ती है UV किरणों से होने वाला किरणपात बढ़ने लगता है जो जनजीवन के लिए अच्छा नहीं होता। 

यह किरणपात (रेडिएशन) शिवरात्रि को शुरू हो जाता है, जो लोगों के शरीर को अंदर से और बाहर से जला देता है जिस से लोगों को बुखार, जुकाम, अनपच की शिकायत होने लगती है। वास्तव में यह सब सूर्य की बाह्य लपटों से होने वाले किरणपात (रेडिएशन) के कारण होता है। पारद से बने शिवलिंग पर दूध मिला पानी चढ़ाने से जो रासायनिक क्रिया होती है उससे वातावरण में UV किरणपात का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है। इस किरणपात को हमारे ऋषि मुनियों ने जाना, समझा और हमारे लिए कुछ नियम बना दिए जिससे हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।

शास्त्रों में कहा गया हैब्रह्माण्ड़ेयस्ति यत्किंचित् पिण्ड़ेप्यस्ति सर्वथा।

ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु किसी-न-किसी रूप में मानव पिण्ड में विद्यमान है। इसीलिये मानव शरीर को दुर्लभ बतलाया गया है जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अपितु हमारा धर्म है जिस के लिए जो नियम बनाए उनको त्योहारों से जोड़ दिया गया ताकि लोग इस घटनाचक्र को भूल न जाएं और धर्म के साथ भी जोड़ दिया गया ताकि लोग श्रद्धा से उनका पालन करें।

शिवलिंग पर दूध की आस्था भरी तस्वीरें पूरे ध्यान से देखते हुए मनन करें तो आपको हिन्दू समाज के रीतिरिवाजों के मिथक कहे जाने स्वयं भी समझ आने लगेंगें। मिथक कहे पर लेखिका कृष्णा गोयल ने एक विशेष किताब लिखी जो हर बात  तथ्यों सहित जवाब भी देती है। इसी मुद्दे पर अन्य बौद्धिक क्षेत्रों में भी विचार विमर्श जारी है। इन क्षेत्रों में चल रहे सक्रिय विचार विमर्श में जो लोग रूचि ले रहे हैं उनमें से गैर हिन्दू भी शामिल हैं। संकेतक तस्वीरें यहाँ भी दी गई हैं। 

इसके साथ ही एक बात और भी कि आक, धतूरा, भांग और बिल्वपत्र जो शिवलिंग पर चढ़ाए जाते  हैं हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए औषधियां है। आक के फूल की डोडी खाने से उल्टियां वगैरह रुक जाती हैं। धतूरे के औषधि रूप से  बाहरी त्वचा की समस्या दूर होती है जबकि सही मात्रा में भांग पीने से हमारे अंदरूनी प्रणाली पर रेडिएशन के प्रभाव से पड़ी दरारें ठीक होती हैं, इन्हीं दरारों के कारण पेट दर्द व हाजमे की परेशानियां होती हैं। बिल्वपत्र पर चंदन का लेप करके शिवलिंग को ढका जाना पावन समझा जाता है जो ये संकेत देता है कि इन दिनों यदि हम चंदन का लेप करके बिल्वपत्र से सिर ढक  कर गर्म धूप में भी निकलते हैं तो  UV किरणों के दुष्प्रभाव से बचाव किया जा सकता है। पुरातन काल में लिखने की विधि विकसित न होने के कारण ये सारा ज्ञान  सांकेतिक भाषा में था और जुबानी ही आगे बढ़ाया जाता था जो चिरकाल से समाप्त प्राय: हो गया है। इसलिए इस दुर्लभ ज्ञान की खोज और प्रसार बहुत आवश्यक है। 

सुश्री कृष्ण गोयल की एक विशेष खोजपूर्ण रचना आप आराधना टाईम्ज़ में पढ़ ही रहे हैं। भविष्य में हमारा प्रयास रहेगा कि ऐसी सामग्री आप तक पहुँचती रहे।  हिन्दू मिथक के वैज्ञानिक पहलुओं पर आई इस विशेष पुस्तक पर आधारित यह विशेष पोस्ट आप सभी तक पहुंचनी ज़रूरी भी है। 

हिन्दू रीति रिवाजों को मिथक कहे जाने के विरोध में सुश्री कृष्ण गोयल ने तकरीबन हर संशय को दूर करने की कोशिश की है। जिस जिस बात पर आशंका की जाती है हर उस बात का जवाब वैज्ञानिक पहलु से देने का प्रयास किया है। 

ये भी सभी को ज्ञात है कि हमारे 12 महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग एक ही लाइन में एक ही ऊंचाई पर स्थापित किए गए हैं। कदाचित हमारे पूर्वजों को यह ज्ञान था कि इस जगह पर यूवी किरणों का दुष्प्रभाव अधिकतम हो सकता है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए लोग देश के  सभी भागों से आते हैं, अभिषेक करते हैं और ज्योतिर्लिंग पर कच्ची लस्सी चढ़ाते हैं, जिस से यूवी किरणों का दुष्प्रभाव शांत रहता है। दुनिया में सभी कहीं हमने ज्वालामुखी फटते हुए सुने हैं, परंतु भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ। जिस जगह पर रेडिएशन ज्यादा हो जाती है और पृथ्वी भी यदि उसी जगह भौगोलिक कारणों से ज्यादा गर्म है तो लावा फटना शुरू हो जाता है। परंतु भारत में ऐसी जगह पर वातावरण को  समय अनुसार शांत कर दिया  जाता है (पारद के बने ज्योतिर्लिंग पर कच्ची लस्सी चढ़ाने की क्रिया से), इसी लिए भारत में ज्वालामुखी आमतौर पर चिंताजनक हालात तक नहीं फटे।

पाश्चात्य प्रभाव में आकर हमारे उच्च शिक्षित वर्ग में से कुछ लोग इन क्रियाओं को रूढ़िवादी कहने लगे हैं, जबकि ऐसा करने से पहले हमको हमारे पूर्वजों की बुद्धिमता से मार्गदर्शन को धन्यवाद देना चाहिए।

गौरतलब है कि दुष्प्रभाव वाली यूवी किरणों का प्रभाव जो अमावस्या (शिवरात्रि) को शुरू होता है वह पूर्णिमा तक उच्चतम होता है, इसी लिए शिवरात्रि के बाद आने वाली पूर्णिमा को हम होली के रूप में मनाते है (इन दिनों को जलते बलते दिन कहा जाता है) जब अबीर उड़ाने और एक दूसरे पर अबीर लगाने की प्रथा है। अबीर उड़ाने से वातावरण का प्रकोप कम होता है और चेहरे पर लगने से जलन दूर होती है। 

आजकल अबीर का स्थान घटिया किस्म के गुलाल ने ले लिया है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। पंजाब में होली के बाद बासडा भी तो मनाते हैं क्योंकि मीठा और तला हुआ भोजन खाने से शरीर की अंदर की प्रणाली में जो दरारें आ जाती हैं, उनकी मालिश हो जाती है और हम स्वस्थ रहते हैं। नमन है हमारे पूर्वजों की दार्शनिकता को जो ये जानते थे कि आने वाली पीढ़ियां शायद ये प्रभाव/दुष्प्रभाव को भूल न जाएं, इसी लिए इन खगोलीय घटनाचक्रों को त्योहारों का नाम दे दिया।

शिवरात्रि के पावन सुअवसर पर आप सभी इन रीति रिवाजों को गहराई से समझें और बेहद गंभीरता से इन्हें अपने जीवन में भी उतारें। आप देखेंगे कि आपको अपने जीवन में बहुत कुछ बदलता हुएभी महसूस होने लगेगा। तन को नै आभा मिलेगी हुए मन को एक नै शक्ति भी। आपका प्रभामंडल आपके आसपास के माहौल को भी प्रभावित करने लगेगा। मुसीबतों और कठिनाईओं के जो रूप सांप की तरह सामने आ कर दस्ते हुए से लगते हैं वे भी आपके मित्र बन जाएंगे। आपकी शक्ति बन जाएंगे।  

***   

नोट: यह रचना सुश्री कृष्ण गोयल की बहु चर्चित पुस्तक "हिंदू त्यौहार और विज्ञान" में भी संकलित है। 

Wednesday, 12 February 2025

सूर्य भी अपने परिवार के साथ अपनी आकाश गंगा के गिर्द चक्कर लगाता है

Writeup By Krishna Goyal on 12th February 2025 at 12:34 WhatsApp Regarding Kumbh Sankranti Panchkula

सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है

कुंभ संक्रांति के रहस्यों पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख 


पंचकूला:12 फरवरी 2025: (कृष्णा गोयल//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

कुंभ संक्रांति शब्दार्थ: सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को सूर्य का दूसरी राशि में संक्रमण (जाना) कहते हैं! पृथ्वी सूर्य के गिर्द चक्कर लगाती है। इस घूमने को क्रांति कहते हैं। संक्रमण + क्रांति =संक्रांति।

सूर्य के इस प्रवेश (एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) का समय लगभग एक घंटा 49 मिनट होता है। प्रवेश के समय से कुछ घंटे पहले और  कुछ घंटे बाद के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। इस समय में पूजा पाठ दान इत्यादि किया जाता है। इस समय के दौरान कोई सांसारिक/शुभ कार्य जैसे विवाह, ग्रह प्रवेश इत्यादि नही किया जाता। कुंभ संक्रांति का महत्व और कई दुसरे पहलुओं पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख जिसमें हैं कई जानकारियां 

पृथ्वी सूर्य के गिर्द चक्कर लगाती है। पृथ्वी के घूमने के पथ को क्रांतिवृत कहते हैं। खगोल के अध्ययन के लिए  इस परिधि को 12 भागों में बांट कर 12 राशियों का नाम दिया गया है। पृथ्वी जब एक राशि से दूसरी राशि में जाती है उसको सक्रांति कहते हैं। प्रत्येक राशि में पृथ्वी पर प्रभाव अलग-अलग होता है। उस प्रभाव को समझने के लिए क्रांतिवृत की 360 डिग्री को 12 से भाग करके हरेक राशि 30 डिग्री की मानी जाती है। प्रत्येक राशि का ब्रह्मांड में विशेष स्थान है। हम जानते हैं कि हरेक राशि 30 डिग्री की नही होती, थोड़ा कम या ज़्यादा डिग्री की होती है, परंतु अपनी सुविधा के लिए हम प्रत्येक राशि को 30 डिग्री का ही मान लेते हैं।

बात यह नही है कि सूर्य स्थाई है अपितु सूर्य भी अपने सूर्य परिवार के साथ अपनी आकाश गंगा (गैलेक्सी) के गिर्द चक्कर लगाता है। ऐसी लाखों आकाश गंगाएं आकाश में हैं। हमारी गैलेक्सी भी अपने परिवार के साथ धीरे-धीरे किसी बड़ी गैलेक्सी के गिर्द घूमती है। 

वर्ष के 365  दिन क्यों पृथ्वी का सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने का पथ 360 degree है। पृथ्वी एक दिन में एक डिग्री चलती है। 360 degree 360 दिनों  में पूरे हो जाने चाहिए थे। परंतु जब तक पृथ्वी सूर्य के गिर्द 360 डिग्री का एक चक्कर लगाती है, सूर्य थोड़ा सा आगे खिसक जाता है। उस दूरी को पूरा करनें केलिए पृथ्वी को 5 दिन, 5 घंटे, 58 मिनट और 46 सेकिंड लगते है। इस लिए वर्ष के 360 दिन न होकर 365 दिन होते हैं। बाकी का समय चार वर्षों के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है। इसलिए चार वर्षों के बाद फरवरी के महीने में एक दिन और जोड़ दिया जाता है। जिसको लीप ईयर की संज्ञा दी जाती है। (Leep का अर्थ है jump, भाव प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन jump हो जाता है, बढ़ जाता है।) जो बाकी के मिनट और सेकंड बच जाते हैं, वह 72 वर्ष के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है, जिसकी गिनती हमारे कैलेंडर में नही आती। यही कारण है कि मकर संक्रति का दिन कुछ समय बाद बदल जाता है। कभी यह मकर सक्रांति 12 दिसंबर को होती थी।

खगोलीय घटनाओं का महत्व समझना तो दूर (कुछ विद्वानों को छोड़ कर) आम लोग इसके बारे जानते ही नहीं जब कि  पुरातन काल में हमारे घरों में यह ज्ञान आम था क्योंकि हमारी दादी ही बोल देती थी कि आज पुष्य नक्षत्र है, आज बच्चों को स्वर्णप्राशन (इम्युनिटी की आयुर्वेदिक बूंदे) पिला कर ले आओ"  या आज ये नक्षत्र है आज ये कम नहीं करना" इत्यादि! परंतु संयुक्त परिवार न  होने के कारण ये ज्ञान आगे नहीं बढ़ा।

इन घटनाओं का ज्ञान हमारे पूर्वजों ने हमें पर्व के रूप में सौंपा है ताकि पर्व के बहाने हम खगोलीय घटना चक्र को समझें और उसका लाभ उठा सकें।

आज 12 फरवरी 2025 को कुंभ संक्रांति है और पूर्णिमा भी है। पूर्णिमा और कुंभ संक्रांति एक ही दिन, ये पर्व 144 वर्ष के बाद आया है

जैसे कि पहले कहा गया है सूर्य जिस मार्ग पर घूमता है उसको क्रांति पथ कहते हैं। संक्रमण का अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित। सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश कर रहा है। इस प्रवेश को मकर से कुंभ में सूर्य का संक्रमण कहा जाता है। इस लिए सांक+राँती ( संक्र मण + क्रांति) (संक्र+क्रांति)

संक्रांति।सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है। 

प्रवेश के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। ये लगभग चार घंटे का होता है। 

पुण्य काल  में पाठ पूजा की जाती है, दान किया जाता है जिस से सब कष्ट दूर होते हैं।  व्रत पर्व विवरण - संत रविदास जयंती, ललिता जयंती, माघ पूर्णिमा, विष्णुपदी संक्रांति ( आज संक्रांति पुण्यकाल दोपहर 12:41 से सूर्यास्त तक)*

पुण्यकाल के दौरान शारीरिक कष्ट दूर करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें 108 बार, इच्छापूर्ति के लिए गायत्री मंत्र , स्वास्थ्य के लिए ॐ नम: शिवाय या ॐ का जप करें या गुरु चरणों में ध्यान लगाते  हुए गुरबाणी का जाप करें तदोपरांत गुड और गेहूं का दान करें।

इस पर्व पर ईश्वर से प्रार्थना है कि ईश्वर की कृपा से आपके सब कष्ट दूर हों, मनोकामना की पूर्ति हो, ढेरों खुशियां मिलें।   ***

लेखिका कृष्णा गोयल

पूर्व जॉइंट रजिस्ट्रार

12.2.2025