Writeup By Krishna Goyal on 12th February 2025 at 12:34 WhatsApp Regarding Kumbh Sankranti Panchkula
सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है
कुंभ संक्रांति के रहस्यों पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख
कुंभ संक्रांति शब्दार्थ: सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को सूर्य का दूसरी राशि में संक्रमण (जाना) कहते हैं! पृथ्वी सूर्य के गिर्द चक्कर लगाती है। इस घूमने को क्रांति कहते हैं। संक्रमण + क्रांति =संक्रांति।
सूर्य के इस प्रवेश (एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) का समय लगभग एक घंटा 49 मिनट होता है। प्रवेश के समय से कुछ घंटे पहले और कुछ घंटे बाद के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। इस समय में पूजा पाठ दान इत्यादि किया जाता है। इस समय के दौरान कोई सांसारिक/शुभ कार्य जैसे विवाह, ग्रह प्रवेश इत्यादि नही किया जाता। कुंभ संक्रांति का महत्व और कई दुसरे पहलुओं पर कृष्णा गोयल का विशेष आलेख जिसमें हैं कई जानकारियां
बात यह नही है कि सूर्य स्थाई है अपितु सूर्य भी अपने सूर्य परिवार के साथ अपनी आकाश गंगा (गैलेक्सी) के गिर्द चक्कर लगाता है। ऐसी लाखों आकाश गंगाएं आकाश में हैं। हमारी गैलेक्सी भी अपने परिवार के साथ धीरे-धीरे किसी बड़ी गैलेक्सी के गिर्द घूमती है।
वर्ष के 365 दिन क्यों पृथ्वी का सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने का पथ 360 degree है। पृथ्वी एक दिन में एक डिग्री चलती है। 360 degree 360 दिनों में पूरे हो जाने चाहिए थे। परंतु जब तक पृथ्वी सूर्य के गिर्द 360 डिग्री का एक चक्कर लगाती है, सूर्य थोड़ा सा आगे खिसक जाता है। उस दूरी को पूरा करनें केलिए पृथ्वी को 5 दिन, 5 घंटे, 58 मिनट और 46 सेकिंड लगते है। इस लिए वर्ष के 360 दिन न होकर 365 दिन होते हैं। बाकी का समय चार वर्षों के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है। इसलिए चार वर्षों के बाद फरवरी के महीने में एक दिन और जोड़ दिया जाता है। जिसको लीप ईयर की संज्ञा दी जाती है। (Leep का अर्थ है jump, भाव प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन jump हो जाता है, बढ़ जाता है।) जो बाकी के मिनट और सेकंड बच जाते हैं, वह 72 वर्ष के बाद एक दिन के बराबर हो जाता है, जिसकी गिनती हमारे कैलेंडर में नही आती। यही कारण है कि मकर संक्रति का दिन कुछ समय बाद बदल जाता है। कभी यह मकर सक्रांति 12 दिसंबर को होती थी।
खगोलीय घटनाओं का महत्व समझना तो दूर (कुछ विद्वानों को छोड़ कर) आम लोग इसके बारे जानते ही नहीं जब कि पुरातन काल में हमारे घरों में यह ज्ञान आम था क्योंकि हमारी दादी ही बोल देती थी कि आज पुष्य नक्षत्र है, आज बच्चों को स्वर्णप्राशन (इम्युनिटी की आयुर्वेदिक बूंदे) पिला कर ले आओ" या आज ये नक्षत्र है आज ये कम नहीं करना" इत्यादि! परंतु संयुक्त परिवार न होने के कारण ये ज्ञान आगे नहीं बढ़ा।
इन घटनाओं का ज्ञान हमारे पूर्वजों ने हमें पर्व के रूप में सौंपा है ताकि पर्व के बहाने हम खगोलीय घटना चक्र को समझें और उसका लाभ उठा सकें।
आज 12 फरवरी 2025 को कुंभ संक्रांति है और पूर्णिमा भी है। पूर्णिमा और कुंभ संक्रांति एक ही दिन, ये पर्व 144 वर्ष के बाद आया है
जैसे कि पहले कहा गया है सूर्य जिस मार्ग पर घूमता है उसको क्रांति पथ कहते हैं। संक्रमण का अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित। सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश कर रहा है। इस प्रवेश को मकर से कुंभ में सूर्य का संक्रमण कहा जाता है। इस लिए सांक+राँती ( संक्र मण + क्रांति) (संक्र+क्रांति)
संक्रांति।सूर्य के इस प्रवेश को अति उत्तम माना गया है।
प्रवेश के समय को पुण्यकाल कहा जाता है। ये लगभग चार घंटे का होता है।
पुण्य काल में पाठ पूजा की जाती है, दान किया जाता है जिस से सब कष्ट दूर होते हैं। व्रत पर्व विवरण - संत रविदास जयंती, ललिता जयंती, माघ पूर्णिमा, विष्णुपदी संक्रांति ( आज संक्रांति पुण्यकाल दोपहर 12:41 से सूर्यास्त तक)*
पुण्यकाल के दौरान शारीरिक कष्ट दूर करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें 108 बार, इच्छापूर्ति के लिए गायत्री मंत्र , स्वास्थ्य के लिए ॐ नम: शिवाय या ॐ का जप करें या गुरु चरणों में ध्यान लगाते हुए गुरबाणी का जाप करें तदोपरांत गुड और गेहूं का दान करें।
इस पर्व पर ईश्वर से प्रार्थना है कि ईश्वर की कृपा से आपके सब कष्ट दूर हों, मनोकामना की पूर्ति हो, ढेरों खुशियां मिलें। ***
लेखिका कृष्णा गोयल
पूर्व जॉइंट रजिस्ट्रार
12.2.2025
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