Thursday, 21 September 2023

माननीय दादा श्री सत्यश्रेयानन्द अवधूत बता रहे हैं सफलता के गुर

Thursday 21st September 2023 at 07:35 AM FB

बाबा आज भी मार्गियों को निकटता का अहसास दिलाते हैं 


नई दिल्ली
: 21 सितंबर 2023: (रेक्टर कथूरिया//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

आनंद मार्ग को जिन लोगों ने नज़दीक से देखा है उनको मालुम है कि आनंद मार्ग में रह कर इन्सान को जहां सात्विक और अध्यात्मिक ढंग से जीवन जीने के ढंग तरीके आ जाते हैं वहीं उसमें अनुशासन और एकाग्रता जैसे गुण भी धीरे धीरे विकसित हो जाते हैं।  साधक चमत्कारों और सिद्धियों से बहुत ऊंचा उठ कर केवल बाबा के चरणों में ध्यान लगाना ही सबसे आवश्यक समझने लगते हैं। समाज को कैसे ऊंचा उठाना है यही सोच अधिक सक्रिय हो जाती है। 

सफलता और खुशहाली  उनके कदम चूमने लगती है। पराजय उनसे दूर भागने लगती है। किसी भी तरह का भय उनके निकट नहीं आता। अंतर्मन से लेकर बाहरी जीवन तक में उनमे एक गरिमा और मज़बूती सी आ जाती है। किसी भी तरह की मुसीबत अगर उन पर आ भी जाए तो वह उन्हें और भी मज़बूत बना कर जाती है। 

खुशियों में भी संतुलित बनाए रहना और संकट में भी घबराहट से बचे रहना हर मार्गी के लाइफ स्टाईल में शामिल हो जाता है। ज़रूरत पड़ने पर वह बड़ी से बड़ी नकारत्मक शक्ति के खिलाफ स्टैंड लेने से गुरेज़ नहीं करता। हालाँकि हर क्षेत्र में सक्रिय मार्गी समाज उसका साथ देने को तत्पर रहता है लेकिन मार्गी साधक अकेले में भी बेहद बलवान हो जाता है। उसकी प्रतिबद्धता और संकल्पशीलता कभी भी डगमगाते ही नहीं। 

साधकों और दुसरे मार्गियों के लिए भी हर पल आनंद जैसी स्थिति ही बन जाती है इस सब के बावजूद ज़िंदगी हर कदम पर एक जंग कही जाती है। बिना संघर्ष वाले जीवन की मार्गी कल्पना भी नहीं करते। हर रोज़ सुबह से लेकर रात्रि तक उनका साधनामय जीवन उन्हें याद दिलाता है कि जीवन के एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देना। मानव जन्म अनमोल है इसलिए इस सो कर या खा कर व्यर्थ नहीं गंवाना है। 

इस सारे संघर्ष और साधनामय जीवन में बहुत सी मुश्किलें भी आती ही हैं। साधनापथ पर चलना सहज भी नहीं होता ख़ास तौर पर नए साधकों के लिए। इसी बात को सामने रख कर माननीय दादा श्री सत्यश्रेयानन्द अवधूत समय समय पर गहरे ज्ञान की बातें सोशल मीडिया पर भी शेयर करते रहते हैं।  

अपनी नई पोस्ट में दादा बताते हैं-अपने जीवन में चार बातें याद रखें।

1. अगर आप सही हैं तो इसे सबके सामने साबित करने में समय बर्बाद न करें।

 2. अगर आप गलत हैं तो सही होने का दिखावा करने में समय बर्बाद न करें।

 3. अगर आपको मदद की जरूरत है तो इसे मांगने में समय बर्बाद न करें ।

और

4.  हमेशा याद रखें कि जीवन बहुत छोटा है, अपना समय दुःख, उदासी और नकारात्मकता में बर्बाद न करें।

इसके साथ ही दादा याद दिलाते हैं कि बाबा ने समय समय पर बहुत से सूत्र बताए हैं जिन्हें अपना कर हम बड़े से बड़े संकट को हर सकते हैं। बाबा ने निन्दन्तु नीतिनिपुणा यद...निन्दन्त

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु ।

लक्ष्मी: समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ॥

अधैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा ।

न्याय्यात्पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा: ॥ ( भर्तृहरि )

अर्थ :- नीति को जानने वाले लोग चाहें निन्दा करें या प्रशंसा , धन आय या जाए, मृत्यु अभी आ जाए या चिरकाल के बाद आए प्रन्तु धैर्यवान् लोग न्याय के मार्ग से विचलित नही होते ।

इस श्लोक को अनेक प्रवचनों में कहा गया है। बाबा के प्रवचन पढ़ते या सुनते हुए या फिर कोई पुरानी वीडियो देखते हुए ऐसा लगने लगते है जैसे एक नई ऊर्जा हमें मिल रही है। कईओं की तो सुनते सुनते समाधि लग जाते है। कुछ साधक बैठे बैठे सुनते हुए ही आनंद विभोर हो जाते हैं। 

Thursday, 7 September 2023

बस भगवान कृष्ण का संदेश याद रखिए हर संकट आपसे हार जाएगा

भगवान कृष्ण हर संकट का सामना सहजता से करना सिखाते हैं


लुधियाना
: 6 सितम्बर 2023: (कार्तिका सिंह//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

यूं तो जन्माष्टमी एक हिन्दू त्यौहार के तौर पर ही जाना और मनाया जाता है लेकिन वास्तव में यह सारे  विभाजन हम लोगों ने ही बनाए और मज़बूत किए हैं जबकि वास्तव में धर्म की स्थापना के लिए आने वाले महापुरुषों का उपदेश सभी के लिए फायदेमंद होता है। जीवन की गहराइयां इन्हीं उपदेशों से समझ में आती हैं। धर्म कोई भी हो उसका मर्म बहुत गहरा होता है।   

बहुत से अन्य त्योहारों की तरह जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पूरी तरह से विलक्षण भी है। जन्म के साथ ही संघर्षों भरे जीवन के सत्य  है यह त्योहार। केवल जन्माष्टमी के पावन त्यौहार से ही हमें समझ में आता और समरण आने लगता है कि भगवान श्री कृष्ण तो जन्म के समय ही  मुसीबतों से घिरे हुए थे। इन मुश्किलों ने काफी देर तक उनका पीछा भी नहीं छोड़ा लेकिन इसके बावजूद वह हर संकट का सामना मुस्कराते हुए बहादुरी से करते हैं। 

यह ख़ास त्यौहार है जिसके आते और जाने की रात में ही मौसमी तब्दीली शुरू समझी जाती है। गर्मी का प्रकोप भी मंद पड़ना है। कुछ ही दिनों के बाद आने वाली गुलाबी ठंडक एक खास अहसास भी कराएगी। जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मुसीबतें भी मामूली नहीं थी। कंस सगा मामा ही तो था लेकिन हत्या पर उतारू था। आज हमारा कोई अपना अगर ज़रा सा भी हमारे खिलाफ हो जाए तो हम समझते हैं न जाने कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन भगवान् श्री कृष्ण ने बाकायदा एक जंग लड़ी अन्याय के खिलाफ। अत्याचार के खिलाफ। राजशाही के खिलाफ। 

आज हम में से कितने लोग हैं जो अपने बेगानी के रिश्ते को दरकिनार कर के गलत को गलत कहने की हिम्मत जुटा पाते हैं? भगवान श्री कृष्ण का जीवन और उपदेश हमें विपरीत प्रस्थितियों में भी हंसना, मुस्कराना, हिम्मत बनाए रखना और इन विपरीत हालात के साथ पूरी शक्ति से टकराना सिखाता है। 

आसान नहीं है भगवान कृष्ण का भक्त बन जाना। कालिया नाग आज भी ज़हर जैसी खतरनाक मुसीबतों का ही प्रतीक है। तस्वीर बहुत कुछ बताती और सिखाती है। उस कालिया नाग के फन पर नाचना आना चाहिए अगर जीवन जीना है तो।  हालत को अपने वश में करना सीखना होगा। भगवान श्री कृष्ण की हर बात बहुत कुछ सिखाती है। जीवन के गहन सत्यों से रूबरू करवाती है। 

जन्माष्टमी की रात्रि को लोग व्रत और उपवास रखते हैं-इसका भी गहरा अर्थ है। उपवास से ही भक्ति, आस्था, चेतना और हिम्मत का सामंजस्य बना रहता है। इसी से एक शक्ति जगती है। मदहोशी की नींद से जाग कर ही सम्भव हैं भगवान कृष्ण के दर्शन। इस लिए मध्यरात्रि में जब जन्म का समय आता है तो उस वक्त तक पूरी तरह से सतर्कता के साथ जागना, प्रेम के साथ जागना आम तौर पर सभी के लिए सम्भव नहीं रहता। बहुत कठिन होता है कुछ घंटों का ही यह जागरण लेकिन अगर आस्था, श्रद्धा और विधि से कर लिए जाए तो शक्ति की अनुभूति भी देता है। 

यह परम्परा भी है कि जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय मंदिरों और घरों में पूजा-अर्चना की जाती है। उस समय घंटियां बहुत मधुरता से सुनाई देती हैं। इस पूजा अर्चना और सेलिब्रेशन का भी बाकायदा एक विज्ञान है। जब अंतर्मन में जाग्रति आती है। किसी महान शक्ति की अनुभूति होती है और विराटता के दर्शन होते हैं तो संगीत सुनाई देने लगता है। घंटियां सी बजने लगती हैं। वास्तव में अगर आस्था और हसरद्दा सच में है तो आपके अंतर्मन में भी वही सब अनुभव होने लगेगा। बेशक आप मंदिर में न भी हों पर अगर वह आस्था और श्रद्धा नहीं है तो फिर मंदिर में बैठ कर भी शायद वो बात न बने। 

जन्माष्टमी के दिन लोग श्रीकृष्ण की कथाएँ सुनते हैं, भजन-कीर्तन में शामिल होते हैं और मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं। बच्चे श्रीकृष्ण के वेश में सजकर उनकी लीलाओं का अनुकरण करते हैं। यह सब हमारे अंतर्मन में एक सात्विक शख्सियत के निर्माण की प्रक्रिया का ही भाग होता है। इसका असर पूरे समाज के नव निर्माण तक पहुंचता है। इन्हीं छोटे छोटे कदमों से मिलने लगती हैं बड़ी बड़ी उपलब्धियां। 

इसी अवसर पर एक प्रमुख परंपरा 'दही-हांडी' की भी होती है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है लेकिन अब तो पंजाब में  लोकप्रिय होती जा रही है। इसमें एक ऊंचाई पर दही भरी मटकी (हांडी) टांग दी जाती है और युवक टोलियाँ उसे तोड़ने का प्रयास करते हैं। यह प्रसंग श्रीकृष्ण की माखन चोर लीला को प्रस्तुत करता है। बात केवल माखन चोरी की तो नहीं है। यह भी बेहद महत्वपूर संकट है कि ज़िंदगी में सफलता का माखन आसानी से नीचे बैठे बिठाए नहीं मिलता। उसके लिए संघर्ष की भी ज़रूरत होती है और साथियों के सहयोग की भी। तब बनती है बात। सफलता के लिए संघर्ष का ही संदेश है यह रस्म भी। 

दिलचस्प बात है कि जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण के जीवन, उनके संदेश और उनकी लीलाओं की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है। यह त्योहार विशेष रूप से भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना के साथ मनाया जाता है। बांसुरी और सुदर्शन चक्र के दरम्यान का समन्यव भगवन कृष्ण की बातों को गहराई से समझ कर ही समझा जा सकता है। ये प्रतीक बेहद अनमोल हैं।