5th July 2021 at 4:35 PM
धर्म के क्षेत्र में है यह क्रन्तिकारी कदम और अन्यों के बहुत बड़ी सीख
नई दिल्ली: 5 जुलाई 2021: (*प्रीति सिंह//आराधना टाईम्ज़)::
महिला सशक्तिकरण के प्रेरणा स्रोत माता चंद कौर जी |
अप्रैल 2021 में नामधारी समाज के मुखी सतगुरु दलीप सिंह जी ने एक अनूठी पहल की, जिसमें उन्होंने पूर्ण रूप से नामधारी सिंघनियों (महिलाओं) को पुरुषों के तुल्य बैठने, पाठ करने, मंच संचालन, अरदास, अमृतपान, हवन-यज्ञ आदि ऐसे कई कार्यो में उच्च स्थान ही नहीं बल्कि संपूर्ण होला मोहल्ला कार्यक्रम का संचालन नामधारी सिंघनियों (महिलाओं) द्वारा करवाया गया। इस अवसर पर विवाह के लिए आनंद कारज की रस्में, अरदास, हवन-यज्ञ, लंगर बनाने से लेकर अमृतपान व अमृत बनाने आदि का कार्य संपन्न किया।
होला महल्ला कार्यक्रम में आनंद कारज (लावां) का उच्चारण नामधारी सिंघनियों (महिलाओं) द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में से किया गया तथा श्री दसम ग्रंथ साहिब जी में से होला महल्ला कार्यक्रम में भोग के श्लोक आदि सभी रीति-रिवाज महिलाओं ने संपन्न किए, जबकि ये सभी कार्य अभी तक सिंघ पुरुष ही करते थे। ये सभी परिवर्तन समाज में एक नई परंपरा का सूत्रपात करेंगे।
नामधारी सिख समुदाय ने अनूठी पहल शुरू करके पुरुषों द्वारा अमृतपान तथा अमृत बनाने का कार्य भी महिलाओं द्वारा शुरू करवाया जबकि सिखों की अन्य संप्रदायों में यह कार्य अभी तक पुरुषों द्वारा ही किया जाता है यहां तक कि तख्त श्री हजूर साहिल (नांदेड) में तो अभी तक स्त्रियों को अमृतपान नहीं करवाते।
सामान्यत: सिख पंथ में आज भी विवाह (आनंद कारज) से जुड़ी थार्मिक रीति-रिवाजों को गुरुद्वारे में तैनात कुछ पुरुषों द्वारा ही किया जाता है तथा महिलाओं की भागीदारी नाम मात्र भी नहीं रहती। जबकि, नामधारी पंथ ने अपने समुदाय में आनंद कारज की रीतियों में सिंघनियों (महिलाओं) को अधिकार प्रदान किया गया, जो कि महिला सशक्तिकरण में एक नया मील पत्थर साबित होगा।
धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं में महिलाओं को सक्रिय भागीदारी के साथ ही नामधारी संप्रदाय ने सामाजिक क्षेत्रों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी को सुदृढ़ किया है।
हमेशा से ही नामधारी गुरु साहिबानो एवं विशेष रूप से वर्तमान सतगुरु दलीप सिंह जी ने नामधारी संगत को बुद्धिजीवी बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बहुत सी ऐसी नई बातें बताईं, जिससे आने वाले समाज में महिलाओं के प्रति लोगों के मनोभाव, बुद्धिमता व सोच में बदलाव आएगा।
समाज का उद्धार तभी होता है जब किसी भी धार्मिक स्थलों पर धर्मगुरु कुछ ऐसे उदाहरण देते हैं जिससे लोगों की सोच को एक नई दिशा मिलती है। महिला सशक्त तभी कहलाती है जब समाज उसे पूर्ण रूप से स्वीकारता है।
नामधारी समाज महिला सशक्तिकरण वाले इस परिवर्तन को सहर्ष एवं पूर्णतया स्वीकार किया है। जो कि अपने आप में बहुत बड़ी बात हैं व कठिन हैं। क्योकि, समाज में परिवर्तन लाना जहां कठिन है वहां समाज द्वारा पुरातन परंपरा से निकलकर नई सोच तथा नई परंपरा को अपनाना और भी कठिन हैं। परंतु, नामधारियों ने अपने गुरु के आदेश को मानते हुए, महिला सशक्तिकरण को सहर्ष स्वीकार किया है। जो आश्चर्य जनक तथा प्रसन्नता की बात है। ---*प्रीति सिंह
*प्रीति सिंह विश्व सत्संग सभा, दिल्ली की प्रधान है और ऐसे विषयों पर लिखती रहती है
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