Friday, 21 May 2021

पशुपति और वीरेश्वर की पूजा में क्या अंतर है?

संघर्ष के बिना जय नहीं मिलती-आनंदमार्ग 

चंडीगढ़//खरड़: 21 मई 2021: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::
आनंदमार्ग वास्तव में एक ऐसी साधना पद्धति देता है जिसमें शामिल होने वाले साधक दुनिया से पलायन नहीं करते बल्कि हर चुनौती का सामना  करते हैं चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यूं न हो।  आनंदमार्ग का हर संदेश गहरा ज्ञान देता है। आज का संदेश लिया गया है दादा सत्यजीत आनंद के एक संदेश में से जो उन्होंने वाटसअप पर भेजा।  

वे मनुष्य जब साधना के पथ पर आते हैं, तब उन पर चारों तरफ से बाधा-विपत्तियाँ आती हैं। घर के सदस्य बाधा डालते हैं, बन्धु-बान्धव भी बाधा डालते हैं। अनेक तरह से अनेक प्रकार की बाधाएं आती हैं और वह साहस के साथ उनसे संघर्ष करता चला जाता है, लडता रहता है। लडे बिना तो जय मिलती नहीं। बिना लडे ही कभी किसी को जय मिलती है? अब यही जो लडाई है, इसे कौन लडता है? जो वीर है वही लडाई करता है, उसमें पशुभाव नहीं रहता, उस समय उसमें रहता है 'वीरभाव' | उस समय वह परमात्मा को 'वीरेश्वर कहकर पुकारता है | वह कहता है-'हे परमपुरुष! मैं वीर हूँ, तुम वीरेश्वर हो' इस अवस्था में साधक के इष्ट 'पशुपति' नहीं रहे, वे बन गए 'वीरेश्वर' वीरभाव, सदा प्राप्य क्रमेण देवता भवेत्' वह साधक अब पशु नहीं है और इस वीरभाव में जब वह प्रतिष्ठित हो जाता है, तो किसी पाप व किसी अनाचार को सहन नहीं कर सकता, तब वह स्वाभाविक रुप से अन्याय नहीं करता, अन्याय सहन भी नहीं करता, उसका यह एक स्वभाव बन जाता है। 

श्री श्रीआनंदमूर्तिजी 

'आनन्द वचनामृतम्', "सहज धर्म", पृष्ठ- 40 , चतुर्थ, पंचम और षष्ठ खण्ड

🌹बाबा नाम केवलम्🌹

आपको आनंदमार्ग के ये संक्षिप्त विचार कैसे लगे अवश्य बताएं। आनंदमार्ग से जुड़ने के इच्छुक अपने नज़दीकी जागृति  केंद्र  के साथ सम्पर्क कर सकते हैं। 

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