गंगा यमुना के साथ साथ धरती माता ने भी सुनाई अपनी करुण दास्तान
रोज़ गार्डन की तरफ निकलो तो अक्सर समय बहुत रुमंतिक होता है। उस दिन भी था। रुक रुक कर चलती हवा गर्मी में राहत प्रदान कर रही थी। अगर कुछ अजीब था तो बस यही की उस दिन वहां संगीतक फवारे के मधुर मधुर पुराने भजन या गीत नहीं चल रहे थे। पता लगाने के लिए ज़रा उधर का ध्यान किया तो नज़दीक ही नज़र आया एक आयोजन। लोग कुछ खड़े थे कुछ बैठे थे पर सभी मग्न होकर मंच की तरफ देख रहे थे। मीडिया के कैमरे का फायदा उठाते हुए हमारी टीम को भी थोड़ा आगे पहुँचाने में कोई दिक्कत नहीं हुयी। आगे पहुँच कर देखा तो माहौल ही कुछ और था। मंच पर भारत माता भी खड़ी हुयी महसूस हुयी और धरती माता भी। उनके साथ थे इन दोनों माताओं के सच्चे भक्त और उनके निशाने पर थे वे लोग जिन्हों ने गंगा माता और यमुना माता को बुरी तरह प्रदूषित करने के साथ साथ धरती माता की हरियाली का आवरण भी नोच डाला है और हवा को भी प्रदूषित कर दिया है।
यह सब कुछ प्रस्तुत कर रहे थे छोटे छोटे बच्चे जो यहाँ बिना किसी लालच के आये थे। ये वो कलाकार थे जिनके लिए कला धंधा नहीं बानी थी। इन्हीने अपनी अपनी कला को हथियार बना कर लोगों में चेतना फ़ैलाने का एक मिशन शुरू कर रखा है।
यह सब कुछ प्रस्तुत कर रहे थे छोटे छोटे बच्चे जो यहाँ बिना किसी लालच के आये थे। ये वो कलाकार थे जिनके लिए कला धंधा नहीं बानी थी। इन्हीने अपनी अपनी कला को हथियार बना कर लोगों में चेतना फ़ैलाने का एक मिशन शुरू कर रखा है।
दर्शकों में मौजूद थे इन बच्चों को प्रेरणा देने वाले डाक्टर अरुण मित्रा, एम इस भाटिया, डीपी मौड़, कामरेड रणधीर सिंह धीरा, डाक्टर गुरचरण कौर कोचर, मेजर शेर सिंह ओळख, पर्दी शर्मा और कई अन्य प्रमुख लोग जो हर रोज़ अपने आवश्यक कामों को छोड़ कर कुछ समय जन चेतना की तरफ लगाते हैं।
मंच के गीत संगीत और लघु नाटिकाओं को देख कर लगता था जैसे हम किसी मंदिर में हो! पर यह कौन सा मंदिर था? भारत मटका? धरती माता का? हमें नयी ज़िंदगी देती वायु का? या नया जीवन देते जल का? यहाँ गंगा प्रमुख देवी थी या यमुना? लगता था यह प्रकृति का सच्चा मंदिर तह जिसमें पुजारी और भक्त बानी थी वह जनता जो आडंबर नहीं करती केवल शुभ काम करती है। अस्समान के सितारे इसकी मंदिर की भव्यता को और बढ़ा रहे थे।
दिलचस्प बात है कि यह सारा आयोजन तकरीबन 20 वर्षों से भी अधिक समय से चल रहा है। साल में कभी कोई स्कूल, कभी कोई कालेज और कभी कोई बाग़। मकसद यही की तेज़ी से तबाह हो रही वैज्ञानिक मानसिकता को बचाना, दिल और दिमाग को कमज़ोर कर रहे अंध विशवास और वहम भरम के तूफ़ान को रोकना। लोगों में खोज और ज्ञान की लग्न पैदा करना। होशियार बच्चों को समानित करना। सारे खर्चे यह सदस्य मिलजुल कर करते हैं। हमने इन्हें कभीचंदा एकत्र करते नहीं देखा जैसा की इस आजकल आम रिवाज हो गया है।
भारत जन ज्ञान विज्ञानं जत्था के मेजर शेर सिंह औलख ने बताया कि किस अमेरिका का अयाशी भरी ज़िंदगी बिताने वाला कोई अमेरिकी व्यक्ति पर्यावरण किसी भारतीय के मुकाबले में 36 गुना अधिक बोझ डालता है। यही बात देश के अंदर अमीर और गरीब पर भी लागू होती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी।
भारत जन ज्ञान विज्ञानं जत्था के मेजर शेर सिंह औलख ने बताया कि किस अमेरिका का अयाशी भरी ज़िंदगी बिताने वाला कोई अमेरिकी व्यक्ति पर्यावरण किसी भारतीय के मुकाबले में 36 गुना अधिक बोझ डालता है। यही बात देश के अंदर अमीर और गरीब पर भी लागू होती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी।
संगठन सचिव एम इस भाटिया ने कहा कि कुछ लोगों की लगातार बढ़ रही गलत लालसाओं के कारण विकास पूरी तरह असंतुलित होकर भयानक परिणाम सामने ल रहा है।
पंजाब ईको फ्रेंडली एसोसिएशन के अध्यक्ष परमवीर सिंह बल ने कहा की इस तरह के शुभ आयोजनों में सभी को बढ़ चढ़ कर आगे आना चाहिए।
पीएयू से आये डाक्टर राजिंद्रपाल सिंह ने सब्ज़ियों के उत्पादन में बढ़ रहे कीटनाशकों के प्रयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की। वर्किंग वुमेन फॉर्म की संयोजक डाक्टर नरजीत कौर, राष्ट्रिय पुरस्कार विजेता सुश्री कुसुम लता, शिक्षा और साहित्य में लगातार सक्रिय बानी हुई डाक्टर गुरचरण को कोचर इत्यादि ने इस समस्या से जुड़े मुद्दों की चर्चा की। इस आंदोलन से लम्बे समय से जुड़े रंजीत सिंह ने एक क्विज़ का संचालन बहुय ही शानदार ढंग से किया। कुल मिलाकर यह एक यादगारी कार्यक्रम था जिसमें से उठने का मन ही नहीं हो रहा था लेकि आयोजकों ने समय सीमा का ध्यान रखते हुए इसे सम्पन्न करने का एलान कर दिया।
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