Wednesday 24 April 2024

.... उस समय स्वयं के साथ युद्ध लड़ने जैसी हालत होती है

भ्रम की धुंध में दुविधा और किंकर्तव्यविमूढ़ता जैसी स्थिति बढ़ जाती है 


इस बार लुधियाना से ज्योतिष चर्चा: 23 अप्रैल 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

बहुत बार कहते कहलाते बुद्धिमान लोग भी भ्रम में पड़ जाते हैं। उन्हें दुविधा घेर लेती है। वे अपने गुणों के विपरीत चलते नज़र आने लगते हैं।  हम सभी न तो अर्जुन हैं, न ही हम महाभारत जैसा कोई  बहुत बड़ा धर्मयुद्ध  लड़ रहे हैं और न ही हमारे पास भगवान कृष्ण हैं जो हमें हर कदम पर हमें सही मार्ग दिखा सकें। आम तौर पर हमारी जंग हमारे दायरों और स्वार्थों तक सीमित रहती है। अपने ही मतलब और अपनी ही मजबूरी में सिमटी हुई। वह बड़ी हो कर कभी धर्मयुद्ध नहीं बन पाती। 

इसलिए हमें सहायता या मार्गदर्शन देने भगवान कृष्ण का  विराट रूप भी कहां नसीब होता है! हमारे जीवन के संघर्षों में कौन कौन निभाता है अपनी अपनी भूमिका? कयूं हम भ्रम का शिकार हो कर हार जाते हैं बहुत बार जीती हुई जंग को भी? बनी बनाई बात क्यूं हाथ से निकल जाती है हर बार और समझ भी नहीं आता कि ऐसा क्यूं हुआ? कई बार ऐसा बार बार भी होने लगता है। जब जाग खुलती है और होश आता है तो उस गीत के बोलों की तरह महसूस होने लगता है जिसे कभी जनाब गोपाल दास नीरज जी ने लिखा था नई उम्र की नई फसल नाम की फिल्म के लिए जो 1965 में आई थी। संगीत तैयार किया था जनाब रौशन साहिब ने। गीत के बोल हैं:

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। 

यह गीत वास्तव में हम में से  बहुत से लोगों की ज़िंदगी की झलक दिखलाता है। सपने देखना, सपने टूट जाना, कोशिशों का नाकाम हो जाना और सारी की सारी उम्र रेत की तरह हाथ में से निकल जाना। फिर समझ आते हैं इस गीत के बोल--आह तो निकल सकी  न पर उम्र निकल गई! हममें से बहुत से लोगों को भागदौड़ या तो बेकार सी साबित होने लगती है या फिर जिसे हम उपलब्धि समझने लगते हैं वह भी निरथर्क सी लगने लगती है। 

दूसरी तरफ ब्रह्मांड अपने नियमों के मुताबिक चलता रहता है। ग्रह भी अपने नियमों और रफ़्तार से चल रहे हैं। विज्ञान निरंतर इस सम्बन्ध में नई नई खोज करने में जुटा हुआ है। बहुत जल्द ज्योतिष और तन्त्र के वैज्ञानिक पह्लुयों पर चर्चा जरूरी समझी जाएगी। इस तरह की चर्चा के आयोजन में शामिल हो पाना गर्व की बात महसूस की जाएगी। विशेष शुल्क और विशेष समय निकाल कर इस ज्ञान विज्ञान पर बातें हुआ करेंगी।  

ज्योतिष का अध्यन करते हुए किसी किसी के जीवन में एक स्थिति वह भी आती है जब  गुरु राहू चंडाल दोष सामने आता है। यह दोष ज्योतिष और जीवन में कैसे और कितना प्रभावी होता है इस पर बहुत कुछ कहा सुना जा सकता है। इन्सान में उसकी सर्वोच्चता और नीचता स्वयंमेव आमने सामने आ  जाती हैं। उस समय होता है अंतर्मन की अच्छाई और बुराई में संघर्ष। कौन जीत जाए इसका फैसला कठिन होता है लेकिन इन्सान इसे खुद भी कर सकता है। बस थोड़े से उपाय, थोडा सा ध्यान और थोड़ी सी सावधानियां और इन्सान जीत सकता है सारी बाज़ी। 

गौरतलब है कि गुरु राहु चंडाल दोष का ज्योतिष और जीवन पर गहन प्रभाव होता ही है। गुरु राहु चंडाल दोष, जिसे गुरु चंडाल योग भी कहा जाता है, ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह तब बनता है जब गुरु और राहु कुंडली में 6, 8, या 12वें भाव में एक साथ होते हैं। इस तरह की स्थितियां कैसे कैसे क्यूं बनती हैं इस पर कभी अलग से भी चर्चा की जाएगी। 

फिलहाल इतना ही कि इस दोष का प्रभाव व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति और अन्य योगों पर निर्भर भी करता है और प्रभावी भी होता है। जब जब ऐसी स्थिति बनती है तब तब इसके संभावित प्रभाव बहुत सूक्ष्म भी हो सकते हैं बड़े भी। पीड़ित व्यक्ति के नकारात्मक विचारों और भ्रम में वृद्धि होने लगती है। सही गलत की पहचान भी आसान नहीं रहती। हर अच्छी और सकारात्मक बात में भी नेगेटिविटी नज़र आने लगती है। 

इसके साथ ही विभिन्न किस्म की स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी होने लगती हैं। जिस्म में कई तरह के दर्द भी उठने लगते हैं। कामकाज के लिए न मन करता है और न ही तन चुस्त रहता है। डाक्टर के पास जाओ तो वहां से कई गंभीर चिंताओं भरी रिपोर्ट मिलने लगती है। सब कुछ बड़ी तेजी से घटित होने लगता है। 

स्वास्थ्य के साथ साथ व्यापार में भी बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। कामकाज में रुकावटें तेज़ी से सिर उठाने लगती हैं। मंदीऔर घाटे वाले हालात दिखने लगते हैं। इन्वेस्टमेंट करने पर ऐसा लगता है जैसे सब मिटटी हुआ जा रहा है। अपने ही स्टाफ पर भरोसा नहीं रहता।  

इन सभी के साथ शत्रुओं से परेशानी भी बढने लगती है। धोखा, फरेब, गद्दारी जैसी आशंकाएं ज़ोर पकड़ने लगती हैं।  ऐसे नाज़ुक हालात के चलते मानसिक अशांति और डिप्रेशन में वृद्धि होने लगती है। तन मन में बने सुर भंग होने लगते हैं। यूं लगता है जैसे असुर-भावना बढ़ गई है। 

इतना कुछ होने पर पारिवारिक कलह भी बढने लगती है। परिवार में आपसी प्रेम और सद्भाव बुरी तरह से टूटने लगता है। यूं लगने लगता है कि किसी की नज़र लग गई हो या फिर किसी ने कुछ कर करा दिया हो। 

कैसे मिले इस तरह के हालात से छुटकारा इसकी चर्चा हम किसी अलग पोस्मेंट  बहुत जल्द करेंगे जिसका लिंक यहां भी प्रेषित किया जाएगा। 

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