Tuesday, 25 October 2022

क्यूं बनी सवाल उठाती फिल्म "सामान"? एक नज़रिया यह भी है!

 क्या हम सचमुच ही हत्यारे हैं?     कैसे हुआ हमारा पत्तन? 


लुधियाना
: 24 अक्टूबर 2022: (मीडिया लिंक रविंद्र//आराधना टाईम्ज़)::  
दिवाली का त्यौहार है तो दिवाली की बात ही करेंगे लेकिन एक सवाल आड़े आ रहा है। सवाल से पहले उस नौजवान की बात जिसने अपनी एक छोटी सी फिल्म के ज़रिए यह सवाल किया है। सम्राट सिंह नाम का यह नौजवान लगातार दिन रात सोचता रहा और मेहनत करता रहा तांकि पूरे समाज को हत्या के पाप से रोका  बचाया जा सके। फिर उसे लगा कि यह समाज कभी सुधरने वाला नहीं। वह निराश भी हुआ लेकिन उसने फिर हिम्मत जुटाई और सोचा चलो जितने लोग बच पाएं उतने ही सही। मैं सूर्य नहीं बन सकता तो दीपक ही सही। लेकिन जहां जितने रास्ते तक रौशनी कर सकूंवहां तक रौशनी तो करनी है।

उसका सवाल भी यही है कि जानेअनजानेहम अपने ही लोगों के हत्यारे तो नहीं बन गए? भगवान राम जी के अयोध्या आगमन की खुशियां मनाते मनाते कहीं हमें किस अज्ञात मायावी ने राक्षस तो नहीं बना दिया? हम खुद ही अपनों के  हत्यारे क्यूं और कैसे बन गए? हम धर्म के नाम पर अधर्म के मार्ग पर कैसे बढ़ने लगे? हमारे हाथ अपनों  से कैसे रंगे गए?  

समाज को झंकझौरने वाला सवाल करती इस फिल्म की मेकिंग की भी एक लम्बी कहानी है लेकिन इसकी चर्चा फिर कभी किसी अलग पोस्ट में जल्दी ही। सबसे पहले आप फिल्म देख लीजिए। शायद आप भविष्य में अब उस तरह की हत्यायें करना बंद कर दें जो हम  सभी मिलजुल कर बड़ी शान  ही जा रहे हैं। 

सम्राट का मानना है कि जिन जिन की हत्याएं भी हमसे हुई हैं उनकी बद दुआएं और उनके श्राप हमारा पीछा कर रहे हैं। हमारी कभी मुक्ति न होगी। हमारी मुक्ति कहीं पर भी न होगी। हमें कभी सुख न मिलेगा। एक ही रास्ता शेष शायद। बस अगर हम अब भी रुक जाएं। अभी  भी हत्या का यह सिलसिला बंद कर दें तो शायद बात बन जाए। अब भी क्षमा मांग लें तो शायद कुछ तर्पण भी हो सके। तर्पण हुए बिना  जन्मांतरों तक की भटकत और बेचैनी बनी रहेगी।  डाक्टर के पास नहीं होगा। खुद  पाप धोने होंगें। 

सारी विस्तृत चर्चा हम बहुत जल्द किसी अलग पोस्ट में करेंगे लेकिन फ़िलहाल आप फिल्म देख लीजिए बस यहां क्लिक करके। फिल्म मेकर सम्राट सिंह धर्म कर्म के साथ साथ इतिहास का भी ज्ञाता है और आधुनिक विज्ञान का भी। इसलिए उसकी फिल्मों और कथाओं में कुछ मिश्रित से प्रभाव भी महसूस होते है। कई बार बात बहुत ही गहरी चली भी जाती है।  उड़ान भी लगता है जैसे क्षितिज के पार चली गई हो। फिर भी उसमें गहरा मकसद  होता है। टीम के साथ उसका सम्पर्क बना रहता है।  वह अपने तन, मन और आत्मा में तारतम्य बनाए रखता है। 

इस ऊंची उड़ान को ज़मीन पर लाना भी तो एक कला है न जिसमें उसका परिवार और टीम पूरा सहयोग करते हैं।इस फिल्म से आपको उसे समझने में  सहायता मिलेगी। उसका संवेदना से भरा मानवीय दृष्टिकोण समझना आसान हो जाएगा। उसकी अन्य फिल्मों को समझना  भी सरल हो जाएगा। जल्द ही हम उसकी अन्य फिल्मों की चर्चा भी करेंगे।


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