Wednesday, 15 December 2021

सिख कौन है//ठाकुर दलीप सिंह जी की कलम से विशेष लेख

15th December 2021 at 9:12 PM

किन श्रद्धालुओं को मिलाकर , “सिख पंथ/धर्म” बनता है ?

१ਓ सतिगुरु प्रसादि।                 


सतगुरु नानक देव जी पर श्रद्धा रखने वाला प्रत्येक प्राणी “सिख" है , क्योंकि "सिखी" श्रद्धा से है; मेरे प्रभि सरधा भगति मनि भावे ( महला १ ) | जिस सर्प ने गुरु जी पर छाया की थी, वह भी “सिख" था। सभी गुरु नानक नाम लेवा (नानक पंथियों) को मिलाकर ही "सम्पूर्ण सिख पंथ" बनता है। 
इस लेख के लेखक
ठाकुर दलीप सिंह
 
"सिख पंथ", केवल “अमृतधारी खालसे" ही नहीं, जबकि “अमृतधारी खालसे " ( खालसा पंथ ) तो सम्पूर्ण सिख पंथ का एक श्रेष्ठ अंग है। भाई कन्हैया, भाई नंदलाल , दीवान टोडर मल आदि सिख; दसवें पातशाह जी के समय भी “अमृतधारी" नहीं थे लेकिन वो भी महान “ सिख" थे। आज जो भी हिन्दू, मुसलमान, जैन, बौद्ध आदि गुरु जी पर श्रद्धा रखते हैं, वो  सभी “नानकपंथी ” हैं और “सिख” ( शिष्य / मुरीद ) है। क्योंकि , गुरु जी ने कभी कोई अलग पंथ/धर्म नहीं बनाया और न ही उन्होंने कभी यह वचन दिया : " मैं यह अलग से नया पंथ बना रहा हूँ, इसका नाम “ सिख " (*अ ) होगा। 

यदि गुरु जी ने अपना नया अलग पंथ बनाकर उसको “सिख" नाम दिया होता तो मुसलमानों के बड़े - बड़े पीर : जैसे साईं मियां मीर, पीर बुद्धु शाह आदि ; कभी भी गुरु जी के श्रद्धालु न बनते। यदि गुरु जी ने अलग से नया पंथ बनाया होता, तो पीर भीखन शाह दो कुज्जियों  के स्थान पर, तीन कुज्जियाँ ले कर आता। लेकिन गुरु जी ने अपना अलगाव: अलग धर्म, अलग पंथ कभी बनाया ही नहीं। गुरु जी ने तो चमत्कार/दैविक शक्तियाँ  दिखाईं और साँझा शुभ उपदेश दिया, तभी: लामे, हिन्दू, मुसलमान, बौद्ध आदि सभी सतगुरु नानक देव जी के श्रद्धालु सेवक बने। इसलिए प्रत्येक गुरु नानक नाम लेवा श्रद्धालु “सिख" है। जो भी सतगुरु नानक देव जी को मानता/श्रद्धा रखता है और उनके गद्दी नशीन गुरु साहिबानों को मानता है; चाहे वह एक को माने या अधिक को माने; वह मनुष्य अपने उसी विश्वास व श्रद्धा के साथ ही सिख/शिष्य/मुरीद है। जैसे:मुसलमान, धीरमलिए, रामराईए, सहजधारी, नामधारी आदि।

“गुरु नानक पंथियों” को, वे जिस विश्वास से भी सतगुरु नानक देव जी व उनके गद्दी नशीन गुरु साहिबानों को मानते हैं, उन श्रद्धालुओं को, उसी रूप में “ नानक पंथी ” होने के कारण “सिख" स्वीकार करना उचित है। जैसे उदासी: सतगुरु नानक देव जी के उपरांत बाबा श्री चन्द जी को, रामराईए: बाबा राम राए जी को और नामधारी: सतगुरु राम सिंह जी को मानते हैं। इसी तरह अन्य संप्रदायों की भी अपनी-अपनी मान्यताएं व विश्वास हैं, उनके विश्वास को उसी तरह ही स्वीकार  कर लेना चाहिए और किसी भी संप्रदाय को अपने विश्वास व मान्यताएं, दूसरी संप्रदाय पर थोपने नहीं चाहिए। यदि हम इस उत्तम व विशाल सोच को अपना लें, तो सभी गुरु नानक पंथियों को मिलाकर सिख पंथ की गिनती 50 करोड़ से भी अधिक हो जायेगी। (क्योंकि बहुत से हिन्दू कहलाये जाने भाई, सतगुरु नानक देव जी को मानते हैं) 

अक्टूबर-2019 में जब कराची में नगर कीर्तन निकला तो सिंधी संगत को सुसावगतम कहने के लिए  ननकाना साहिब से सैंकड़ों की संख्या में लोग बहुत ही प्रेम और सम्मान के साथ आए-देखो कितनी आस्था है सिंधियों में-नानक सभी के हैं Courtesy Photo
क्योंकि, सतगुरु नानक देव जी की रंग-बिरंगी फुलवारी के रंग-बिरंगे फूल; कई सम्प्रदाओं  के रूप में हैं। कुछ “गुरु नानक नाम लेवा सम्प्रदायों" के नाम निम्नलिखित हैं, परन्तु सभी नहीं मिले:

1) उदासी  2) सिन्धी  3) धीरमलिए 4) रामराईए  5) सति करतारिए  6) हिंदालिए  7) हीरा दासिए  8) नामधारी  9) निरंकारी  10)  निहंग  11) बंदई  12) निर्मले 13) सेवा पंथी  14) गहिर गम्भीरिए  15 ) नीलधारी 16) अकाली 17) भगतपंथी 18) सिकलीगर 19) सतनामी  20) जौहरी 21) अफगानी  22)  मरदाने के  23) असामी  24) लामे  25) वनजारे  26) अगरहारी   27) सहजधारी आदि। 

विशेष: इन सम्प्रदाओं की मान्यताएं, बाहरी स्वरुप और परंपराएं अपनी-अपनी, अलग-अलग हैं। उस अंतर व विलक्षणता के कारण ही सतगुरु नानक देव जी की फुलवाड़ी रंग-बिरंगी है। उस रंग-बिरंगी फुलवाड़ी को रंग-बिरंगी ही रखने की आवश्यकता है। 

 (अ) संस्कृति के “शिष्य" शब्द से पंजाबी का शब्द “सिख" बना है । गुरु जी के शिष्य / सिख होने के कारण हमारा 'सिख' नाम प्रचलित हो गया है। जोकि सही है, इस नाम का उपयोग करना उचित है। आज विश्व भर में "सिख" नाम वाले धर्म / पंथ का बहुत यश है।

 नोट: सिख पंथ की चढ़दी कला (उन्नति) चाहने वाले सज्जन, अपने विचार (तर्क सहित) बेझिझक होकर निम्नलिखित नंबरों व ईमेल द्वारा भेजने की कृपालता करें:                                                                                             --ठाकुर दलीप सिंह जी 

संपर्क नंबर : राजपाल कौर 9023150008 , रतनदीप सिंह 9650066108 

ई-मेल:  rajpal16773@gmail.com       ratandeeps5@gmail.com

---------------------------------------------------------------------------------------------------


तुम जब जाते हो मंदिर तो तुम मांगने जाते हो ! तुम्हारी प्रार्थना झूठी है ! नानक भी जाते है ! वे धन्यवाद देने जाते है ! वे कहने जाते है , जो तूने दिया है वह भरोसे के बाहर है ! कोई कारण नही मेरे भीतर की मुझे मिले ! कोई मेरी योग्यता नही ! न मिले , शिकायत करने का कोई उपाय नही ! और तू देता चला जाता है !
परमात्मा औघड़ दानी है, अस्तित्व दिए चला जाता है ! और हम? हमसे ज्यादा कृतघ्न लोग खोजने कठिन है! हम धन्यवाद भी नही दे सकते! उसके देने का अंत नही है और हमारी कृतघ्नता का कोई अंत नही! हम कृतज्ञता भी प्रगट नही कर सकते ! हम यह भी नही कह सकते की धन्यवाद! कि हम आभारी है! कि तेरा शुक्रिया! उतना भी हमसे नही होता ! उतने में भी हमें बड़ी कठिनाई मालूम पड़ती है! हमारा कंठ अवरुद्ध हो जाता है ! --- ओशो ( एक ओंकार सतनाम )

बिमारी कभी अकेली क्यूं नहीं आती?-ओशो

पढिए तन्त्र स्क्रीन में 

No comments:

Post a Comment