Tuesday, 23 September 2025

मां बह्मचारिणी ने चुना था शिव की तरह कठिन साधना का जीवन

Research and Got on Tuesday 22nd September 2025 at 06:15 PM Regarding 3rd Navratri

उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित भी करती है

चंडीगढ़: 23 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

रास्ते दिखाने और रास्ता बताने वाले बहुत से लोग होते हैं लेकिन सही रास्ता बताने वाला बड़ी किस्मतों से ही मिलता है। हिमालय और देवी मैना की पुत्री को मिले नारद जी और उन्होंने जगा दी मन में शिव की लौ। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने नारद मुनि के कहने पर शिव जी की कठोर तपस्या की थी और इसके प्रभाव से उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। इस कथा से साफ़ ज़ाहिर है कि जिसे चाहो,जिसकी पूजा करो उसकी तरह होने के प्रयास भी करो। 

मुश्किलों और कठिनाईओं के बावजूद पार्वती अपनी आशा या शिव को जीतने का संकल्प नहीं खोतीं। वह शिव की तरह पहाड़ों में रहने लगती हैं और उन्हीं गतिविधियों में संलग्न हो जाती हैं जो शिव करते हैं, जैसे तप, योग और तपस्या; पार्वती का यही रूप देवी ब्रह्मचारिणी का रूप माना जाता है। उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित करती है और उनकी रुचि जागृत करती है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि 

इस दिन पूजा शुरू करने से पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

साफ कपड़े पहनें।

इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।

मां की प्रतिमा का अभिषेक करें।

मां ब्रह्मचारिणी को सफेद या पीले रंग के फूल, जैसे चमेली, गेंदा या गुड़हल आदि चढ़ाएं।

मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा उन्हें चीनी या गुड़ का भोग भी लगाया जा सकता है।

पूजा के साथ साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, और चेहरे पर निखार आ सकता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है, और व्यक्ति अधिक केंद्रित और स्थिर महसूस करता है, जिससे कार्य करने की क्षमता में सुधार होता है। हालाँकि, यदि व्यक्ति शारीरिक सुख की इच्छा रखता है, तो उसे अकेलापन या नकारात्मक भावनाएँ महसूस हो सकती हैं। 

मानसिक और शारीरिक लाभ

इस पूजा के दौरान बढ़ी हुई ऊर्जा ब्रह्मचर्य पालन से शरीर ऊर्जावान महसूस करता है, और शारीरिक शक्ति बढ़ती है। 

आत्मविश्वास और मनोबल: आत्मविश्वास और आत्म-नियंत्रण बढ़ता है, जिससे व्यक्ति किसी भी काम को करने में सक्षम महसूस करता है। 

एकाग्रता और ध्यान: मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे फोकस बेहतर होता है और कोई भी चीज़ जल्दी सीखी जा सकती है। 

स्वस्थ त्वचा और आभा: चेहरे पर चमक और त्वचा में निखार आ सकता है, जो एक प्रकार की पवित्रता की आभा को दर्शाता है। 

अन्य लाभ

उत्कृष्ट प्रदर्शन: व्यक्ति अपनी ऊर्जा को काम, पढ़ाई और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगाता है, जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है। 

मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक रूप से मजबूत होता है और जीवन के उतार-चढ़ावों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता: शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है। 


Monday, 22 September 2025

शक्ति संचय और शक्ति पूजन का पर्व शारदीय नवरात्रि 22 से शुरू

Research on 19th September 2025 at 04:45 AM for Aradhana Times

शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन: माँ शैलपुत्री की पूजा

चंडीगढ़:21 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

इस बार भी नवरात्रि का त्यौहार नै शक्ति और नई खुशियों का संदेश ले कर आया है। सूर्य की तीक्ष्ण गर्म और बाढ़ का प्रकोप देखने के बाद देवी मां नई हिम्मत और नई ऊर्जा देने आई है। मां बाढ़ से हुई तबाही में हमारी सार लेने आई है साथ ही हमें सांत्वना देने आई है। कल से अर्थात 22 सितंबर से यह शक्ति पर्व पूरा ज़ोर पकड़ लेगा। शरीर और मन में नई हिम्मत आ जाएगी। मन की नकारत्मक भी छू मंत्र हो कर निकल जाएगी। नई खुशियों हम सभी के किवाड़ों पर दस्तक देंगीं। 

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन, माँ दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है। माँ शैलपुत्री की आराधना से जीवन में स्थिरता, शक्ति और दृढ़ता आती है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं और उसे शांति का आशीर्वाद मिलता है। इनके स्वरूप की तस्वीर देखने से ही मन में गहरी शांति उतरने लगती है। तन में एक नई ऊर्जा नेहसूस होने लगती है। 

माँ शैलपुत्री का स्वरूप

माँ शैलपुत्री के स्वरूप में, उनके माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है। वे दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल धारण करती हैं और नंदी नामक बैल पर विराजमान होती हैं। यह स्वरूप शक्ति, पवित्रता और साहस का प्रतीक है। इस दिन कलश स्थापना के साथ ही नौ दिवसीय इस महापर्व का शुभारंभ होता है, जिसमें माँ शक्ति का आह्वान किया जाता है।

नवरात्रि और देवी के नौ रूप

नवरात्रि का पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग दिव्य रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक रूप एक विशेष गुण, ऊर्जा और जीवन के पहलू का प्रतीक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।

नवदुर्गा के नौ रूप इस प्रकार हैं:

1. माँ शैलपुत्री: प्रथम दिन इनकी पूजा होती है। यह शक्ति, पवित्रता और स्थिरता का प्रतीक हैं।

2. माँ ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह तपस्या, ज्ञान और वैराग्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।

3. माँ चंद्रघंटा: तीसरे दिन इनकी पूजा होती है। यह साहस और वीरता की प्रतीक हैं, और भक्तों को सभी भय से मुक्त करती हैं।

4. माँ कूष्मांडा: चौथे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह सृष्टि की रचनाकार मानी जाती हैं और जीवन में ऊर्जा व समृद्धि लाती हैं।

5. माँ स्कंदमाता: पाँचवें दिन इनकी आराधना होती है। यह मातृत्व और प्रेम का प्रतीक हैं।

6. माँ कात्यायनी: छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक हैं।

7. माँ कालरात्रि: सातवें दिन इनकी पूजा होती है। यह दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों को निर्भय बनाने वाली मानी जाती हैं।

8. माँ महागौरी: आठवें दिन इनकी आराधना की जाती है। यह पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं।

9. माँ सिद्धिदात्री: नौवें दिन इनकी पूजा होती है। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं।

यह नौ दिन, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में, देवी की शक्ति को सम्मान देने और आंतरिक शुद्धिकरण के लिए समर्पित हैं। लोग बहुत  ही आस्था और श्रद्धा से इस पर्व को मानते भी हैं और उत्साह के साथ मनाते भी हैं। मौसम की तब्दीली का यह अवसर भी शक्ति संचय में सहायक होता है।