विचारधारक अंतरालों में एक पुल की तरह थे मनमोहन कौशल
लुधियाना: 6 मई 2023: (रेक्टर कथूरिया//आराधना टाईम्ज़)::
जलपान के लिए उनका अंदाज़ इतना ज़ोरदार रहता कि इनकार करने की कोई गुंजायश ही न बचती। वह हमें अपने ड्राइंग रूम में ले जाते और सरे परिवार से एक बार फिर मिलवाते। सभी से कहते रमेश के दोस्त आए हैं। उनका परिवार भी हमें मुस्कराहट से मिलता। रमेश के भाभी जी भी और बच्चे भी। झट से चाय या कॉफी आ जाती साथ ही कई तरह के मिष्ठान और नमकीन भी।
कामरेड रमेश शुरू से ही पूरी तरह से नास्तिक थे और दूसरी तरफ मनमोहन जी आस्तिक थे लेकिन विचारों का यह अंतर कभी भी उनकी ज़ुबान पर न आया। वह वाम सियासत पर भी बात करते और दूसरी सियासी पार्टियों पर भी लेकिन पारिवारिक मधुरता हमेशां बनी रहती। मनमोहन जी ने अपने जीवन काल में भागवत गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का भी गहन अध्ययन भी किया था। इसी अध्ययन के आधार पर उन्होंने बहुत से भजन भी लिखे और अन्य धार्मिक रचनाएं भी। बहुत सी रचनाओं के लिए उन्होंने गहन खोज भी की। उनकी रचनाएं बहुत लोकप्रिय भी हुईं।
वह एक ऐसी शख्सियत थे जो रमेश जी की नास्तिक सोच, विचारक स्वतंत्रता का सम्मान भी करते थे और स्वयं बिलकुल ही दुसरे ध्रुव पर खड़े हो कर अपने विचारों की रक्षा भी करते थे। कहा जा सकता है कि वह आस्तिकता और नास्तिकता के दरम्यान एक पल की तरह था। उनके पास बैठते हुए कभी पता न चलता कि कहां से नास्तिकता शुरू होती और कहां पर आस्तिकता अपना प्रभाव दिखाने लगती। रोज़ी रोटी के लिए उन्होंने अध्यापन के क्षेत्र को चुना था। वह हैड मास्टर के तौर पर रिटायर हुए थे।
इसी तरह उम्र के 87 बरस गुज़र गए। बिंद्राबन रोड पर इस्कॉन मंदिर के बिलकुल नज़दीक से निकलती हुई भंडारी स्ट्रीट का ज़रा सा ख्याल भी आता मन चाहता उनसे मिल कर चलें। रमेश जी की तरह हमें उनसे भी मित्रता भरा प्रेम हो ही गया था। दोनों भाईओं में प्रेम और भाईचारा लम्बे समय तक एक हकीकत की तरह रहा। जब रमेश कौशल ने सीपीआई से जुडी सक्रिय महिला नेता जीत कुमारी से विवाह किया तो उसका विरोध करने वालों में रमेश जी का परिवार भी शामिल था लेकिन भाई मनमोहन जी ने रमेश जी का साथ दिया। कामरेड जीत कुमारी को अपने जेठ मनमोहन कौशल जी की सब बातें आज भी याद हैं। आज भी जीत कुमारी की ऑंखें उन्हें याद करते हुए भीग जाती हैं।
फिर एक ऐसा समय भी आया जब मतभेद ज़्यादा उभरने लगे। कभी कभी ऐसा कुछ तकरीबन सभी घरों में होने लगता है सो कौशल परिवार में भी हुआ। घर में एक दीवार खड़ी हो गई। घर के बड़े गेट की बजाए दो दरवाज़े रमेश जी भी उदास थे और मनमोहन जी भी। दीवार होने के बाद हम लोगों का आना जाना भी कम होता गया। हम रमेश जी से मिलते और लौट पड़ते। कभी सोच भी न पाए कि मनमोहन जी एक दिन अदृश्य हो जाएंगे। केवल उनकी यादें ही शेष रह जाएंगी।
अब जबकि मनमोहन जी नहीं रहे तो यह उदास खबर भी साथी रमेश कौशल जी से ही मिली। वह भी देर तक मनमोहन जी की ज़िंदगी के पड़ावों को याद करते रहे-याद दिलाते रहे। वास्तव में ऐसे लोग केवल परिवार ही नहीं समाज के लिए भी एक लोह स्तंभ की तरह होते हैं जिन पर हमारा सिस्टम स्थिरता से टिका भी रहता है और सुचारु रूप से चलता भी रहता है। जब इस तरह का कोई स्तंभ गिरता है तो क्षति किसी एक परिवार की नहीं बल्कि पूरे समाज की होती है।
उनकी स्मृति में रस्म क्रिया और श्रद्धांजलि आयोजन सात मई को कैलाश सिनेमा चौक के नज़दीक पिंडी दयाल धर्मशाला में दोपहर को एक से दो बजे तक होना है। पिंडी दयाल धर्मशाला को कपूर धर्मशाला के तौर पर भी जाना जाता है। उनकी स्मृति में एकत्र होने वाले उनक यादों को फिर से तय करेंगें जिससे परिवार को उनके बिछड़ने का गम सहन करने में सहायता मिलेगी। आप भी ज़रूर आइए। इससे उनकी गैरमौजूदगी में उनकी मौजूदगी का अहसास और भी शिद्दत से महसूस होगा।
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