ठाकुर दलीप सिंह जी के 69वें प्रकाश पर्व पर विशेष
दुनिया की बहुत सी आम लड़कियों की तरह हरप्रीत कौर भी सी लड़की ही थी। नामधारी परिवार था इसलिए घर का माहौल सात्विक था। नाम बाणी और कीर्तन का परवाह किसी न किसी बहाने चलता रहता। नामधारी लाईफ स्टाईल के मुताबिक सफेद रंग की पौशाक उसे दिव्यता प्रदान करती। जब आंखें बंद करके अरदास में जुड़ती तो लगता किसी और ही दुनिया से आई है। सफेद वस्त्रों में दिव्यता का संदेश देती कोई परी है शायद। वस्त्रों की सफेदी जीवनभर स्वयं को बेदाग़ रखने का संकल्प समरण करवाती रहती है। वह कैसे "एक जोत दो रूप" बनी इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है। बिलकुल सच्ची कहानी।
बहुत पूछने पर वह कहती यह तो मेरा रूहानी खज़ाना है। पूरी तरह व्यकितिगत और गोपनीय। इसे सबसे शेयर नहीं कर सकती। इससे अध्यात्म की शक्ति क्षीण होने लगती है। इंसान चमत्कारों में उलझ जाता है। ऋद्धियां सिद्धियां उसे भगवान के सच्चे मार्ग से भटका देती हैं इस लिए इस पर प्लीज़ कुछ मत पूछो। फिर कोई बात निकालनी पड़ती है। बार बार गुजारिशों करनी पड़ती है पर हरप्रीत कौर प्रीत बस एक झलक की बात बताने को राज़ी हो जाती है। साथ ही चेतावनी भी देती है ऐसी बातें न किसी से पूछा करो न ही बताया करो। इन अनुभवों को पूरी तरह गुप्त रखने से ही फायदा होता है। भगवान और उसकी दुनिया की झलक आम बातों में आती ही नहीं। जब भगवान चाहते हैं कि दुनिया तक कोई बात पहुंचानी है तो भगवान इसका माहौल भी स्वयं ही तैयार करते हैं। किस के ज़रिए सारी बात कहनी है उसका चुनाव भी भगवान स्वयं करते हैं। मुझे भगवान के विधिविधान में दख्ल देने का कोई अधिकार ही नहीं। जब जब ठाकुर जी कृपा करते हैं तब तब ही मैं कुछ कर या कह पाती हूं। बार बार ज़ोर देने पर वह राज़ी होती है संक्षिप्त सी चर्चा के लिए। वह बताती है जबकी बात है वह वक्त था जब नामधारी समाज के गुरु की ज़िम्मेदारी सतिगुरु जगजीत सिंह जी के चरणों में थी।
समय तेज़ी से गुज़रता जा रहा था। सतिगुरु जगजीत सिंह जी का शरीर कमज़ोर होता होता क्षीण होता जा रहा था। सतगुरु जगजीत सिंह जी के शरीर छोड़ने के कुछ महीने पहले ही मुझे सपने में उनके दर्शन हुए। इस दर्शन में ही सतिगुरु जगजीत सिंह जी वो मेरा हाथ किसी और को पकड़ा कर खुद दूर चले गए। मैं अचंभित थी। भी थी। कुछ उलझन भी बढ़ गई थी। कौन है वह जिसके हाथों में सतिगिरु जगजीत सिंह मेरा हाथ पकड़ा कर स्वयं गए हैं। कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक दिन खबर आई सतिगुरु जगजीत सिंह जी सचमुच हम सभी को छोड़ कर इस लोक से उस लोक में चले गए हैं। सब अख़बारों वह नहीं रहे। तब मुझे स्वप्न समझ आने लगा।
जब गुरु जी शरीर छोड़ कर सचमुच चले गए। तब से उस अज्ञात चेहरे की " मक्खन शाह लुभाने" की तरह तलाश करने लगी। किसको पकड़ाया हाथ? कुछ समझ न आता। हर पल आंखों में आंसू बहते रहते थे। उस बिरहा के पलों में दर्द शायरी लिखने की आदत पढ़ गई। मुझे शायरी। घरेलू लड़की से लेखिका बन गई। मैं उस वक्त भी नहीं जानती थी कि भगवान लीला कर रहे हैं। वास्तव में मुझे यह दर्द और निखारने के लिए दिया गया था। इस बिरहा के दर्द दुनिया करना शुरू कर दिया। इसी तरह दो महीने बीत गए। मुझे अपने नए सदगुरु के दीदार नहीं हुए। मुझे लगता सदगुरु मेरे साथ लुकाछिपी का कोई खेल रहे हैं। हैं। आसपास ही हैं लेकिन दिखाई नहीं दे रहे हैं।
फिर संकेत मिला नए सदगुरु ठाकुर दलीप सिंह जी ही हैं लेकिन एक बार भी उनके दीदार नहीं हुए। मेरी तड़प शिखर छूने लगी। जहां वो जाते थे, मैं भी वहीँ मिलने के लिए जाती लेकिन मेरे पहुंचने से पहले ही वह कहीं ओर रवाना हो जाते थे। मुझे गुस्सा भी आता। खीझ भी आती लेकिन अंत में केवल आँखों में आंसू ही बचते। फिर किसी अनुभवी साधक ने बताया किस्मत वाली हो। यह आंसू बिना नसीब के कहां मिलते हैं। बस इसी तरह काफी देर चलता रहा। दीवानगी जैसी हालत बन गई। इंतज़ार हर पल रहने लगी। फिर मेरे इंतजार की भी इंतहा हो गई। कहीं से कुछ खबर मिली तो मैं उन्हें मिलने उत्तर प्रदेश स्थित एक गांव में चली गई। वहां पर भी दर्शन तो हुए पर प्यास नही मिट रही थी। उन्हें अपनी बिरहा का हाल सुनाने के लिए स्टेज पर समय ले लिया। उनकी याद में जो बिरहा के गीत लिखे थे। रोते रोते स्टेज पर ही सुना आई। फिर ठाकुर जी ख़ुद भी वैराग में आ गए। सारा पंडाल ही आंसू बहाने लगा था। शयद मेरी विनती सुन ली गई थी। मेरी तड़प देख। मेरे आंसू उस दर पर कबूल हो गए थे।
फिर ठाकुर जी से विनती कर चरणों में सीस रख बिरहा शांत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तबसे ठाकुर जी ने बांह पकड़ी है " जीवन जीने की कला उन्होंने ही सिखाई है"। मुझमें जो भी है गुण उन्ही के हैं। उस वक्त अहसास हुआ-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लगूं पाए।
बलिहारी गुर आपने, जिन गोविंद दियो मिलाए।।
उसके बाद बहुत कुछ हुआ। बहुत से करिश्मे हुए। बहुत से चमत्कार भी हुए। मैंने तो हैरान होना भी छोड़ दिया। बस एक दर्शक की भांति देखती जाती। मैं किसी काबिल नहीं थी लेकिन ठाकुर जी ने अपनी कृपा से मेरे ही हाथों बहुत से काम करवाए। आ जाते हैं। गला है। लगती है। हम भी कुछ पल रुक जाते हैं। जल्द ही हम कोशिश करेंगे अन्य बातें ही आपके सामने ला सकें अपनी किसी नई पोस्ट में। जिनमें होगी बहुत से दिव्य चमत्कारों और करिश्मों की बात जो आपको भी हैरान कर देगी। --कार्तिका सिंह
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