Sunday 3rd October 2021 10:17 PM
स्मृतियों के झरोखों से झांकते हुए जोधपुरी जी के अंर्तमन की झलक
सोशल मीडिया: 5 अक्टूबर 2021 (आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
जिन दिनों कॉलर टयून, हैलो टयून, रिंग टोन जैसे रिवाज नए नए चले थे उन दिनों गीतों का बोलबाला था। फिर धीरे धीरे भजन भी आए। गुरुबाणी शब्दों सेट हुआ था भाई सुरिंदर सिंह जोधपुरी जी के शब्दों से। सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुआ था उनका गया शब्द "हरि जीउ निमाणिआ तू माणु---" जब कठिन वक्त अत है। मुसीबतें आती हैं तब सबसे पहले वही लोग छोड़ जाते हैं जिन पर सबसे से ज़्यादा गहरा विश्वास और प्रेम होता है। दुनिया जब नकार देती है तन मन की पीड़ा और बढ़ जाती है---उस समय यह शब्द भी बहुत हौंसला देता है और भगवन के साथ जोड़ता है। गुरु के कीर्तन को घर घर पहुँचाने वाले भाई सुरिंदर सिंह जोधपुरी जी ने अपने परिवार सहित खुद भी बहुत सी मुसीबतों का सामना किया। अफ़सोस उन की कुर्बानियों की कभी चर्चा नहीं हुई। वह स्वयं भी भगवन के रंग में मगन रहने वाले थे। बहुत कुछ था जो उनके साथ चला गया लेकिन कीर्तन का अनमोल खज़ाना, अपने गायन की अनमोल निधि वह चरणजीत सिंह हीरा जी को दे गए। उन्होंने एक आलेख फेसबुक पर भी पोस्ट किया तीन अक्टूबर 2021 की रात्रि को 10:17 पर। यह आलेख जोधपुरी जी के उस अंतर्मन की थोड़ी सी झलक देता है जिसकी चमक उनके चेहरे पर सदैव रही। स्वार्थों भरी दुनिया में उनकी मासुमियत भी बरकरार रही। एक दिव्यता उनकी शख्सियत में थी। पढ़िए आप स्वयं ही पढ़िए चरणजीत सिंह हीरा जी की वह पोस्ट। जिनमें कीर्तन की बात के साथ साथ इस रूहानी मिलन की बातें भी हैं। जो बताती हैं कि आजकल भी ऐसे मिलन होते हैं। --रेक्टर कथूरिया
इस वीडियो में है अंतिम संस्कार के कार्यक्रम की कुछ यादें, कुछ तस्वीरें, कुछ वीडियो क्लिप। यही है आजकल यादों को संभालने का सिलसिला।
अगर किसी ने जोधपुरी जी का कीर्तन सुनने के रस लिया हैं। तो मैंने उस कीर्तन करने का स्वाद चखा है।
मैंने उनका ज़हन पिया है। उनकी चेतना की गहराइयों को जाना है जिससे कीर्तन उत्पन्न होता है। वो गहराई जहां भीतर का अनंत आकाश शुरू होता है।
इसलिए मुझे किसी और का कीर्तन बहुत पसंद नहीं है।
उन्होंने मेरे जीवन को कीर्तन से भर दिया। कीर्तन-मय कर दिया।
1995-96 के आसपास जब हम उन्हें फ़ोन करते थे। जब कभी भी वह दिल्ली में मॉडल टाउन के पास किसी एक भारी शरीर वाले गुरसिख के घर पर ठहरते थे।
फोन पर वे मुझे मज़ाक में चिढ़ाते थे, "की हाल है Mr. हीरा आंनद गुणी गहिरा ?" शायद मजाक में ही सही मुझे वह कीर्तन का वरदान दे गए।
उन दिनों में ही मैंने कीर्तन करना थोड़ा थोड़ा इज़ात कर लिया था। रकाब गंज गुरुद्वारा में मेरे पिता जी ने उनसे कहा कि यह भी कीर्तन भी लेता है। ओर आपके शब्द गाता है।
और उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा, "बेटा, तुम्हें बहुत मेहनत करनी है, बहुत मेहनत करनी है।"
और एक बार रेलवे कॉलोनी रानी बाग में उनका कीर्तन हुआ। और कीर्तन के बाद, उनसे बात करते हुए, सहज में अपने हाथ को बातों बातों में ऊपर कर रहे थे और मैं अपना हाथ नीचे कर रहा था । मेरे हाथ में जेल पेन था । जो उनके हाथ में ज़ोर से लगा।
एक बार जब हम जगाद्री कीर्तन दरबार में मिले, तो मैं उनके पैर छूने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पकड़ लिए और कहा, "चलो, अच्छा है, कोई तो मुझे गाने वाला हुआ।"
उनके साथ मेरा रिश्ता इतना गहरा है कि या तो वे जानते थे या मैं। इस कीर्तन दात के लिए मुझे चुनने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अंदर ही अंदर सारा हस्तांतरण कर दिया।
मुझे इतना अपना बनाने के लिए धन्यवाद। इतना अपना जो दूसरों को कभी नहीं पता नही चल पाएगा।
बिछड़ी रूह को कोट कोट नमन एवं श्रद्धांजलि।
चरणजीत सिंह "हीरा"
Waheguru ji bless u wd more n more charddi kla n u keep on accelerating wd kirtan nirmolak heera wali amul daat
ReplyDeleteWaheguru ji bless Bhai saheb z pious soul
ReplyDeleteGuru Maharaj Apne charna vich nivas bhakshan
ReplyDeleteअगर आप के पास भी ऐसे ही अनुभवों का खज़ाना हो तो अवश्य ही भेजें या सूचित करें----ईमेल है--medialink32@gmail.com--और व्हाटसप नम्बर है---+919915322407
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