Monday, 25 December 2017

साध्वी मीमासां भारती ने किया सभी को मंत्रमुग्ध

Mon, Dec 25, 2017 at 11:24 AM
कर्म ही हमारे जीवन का करता धरता
लुधियाना: 25 दिसम्बर 2017: (आराधना टाईम्स ब्यूरो)::
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्धारा कैलाश नगर  आश्रम में अध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन किया गया जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी मीमासां भारती जी ने आए हुए समुह को संबोधित करते हुए कहा कि कण-कण में ईश्वर निवास करता है। वही ईश्वर हमारे घट में विराजमान है उसी से मिल जाना ही आज के इंसान का प्रथम लक्ष्य है। जिस प्रकार से तेज वेग के साथ बहती हुई नदी का लक्ष्य है सागर में मिलना ठीक वैसे ही एक जीव आत्मा का उदेश्य सागर रूपी प्रभु में मिल जाना है। तभी जीव आनंद, शांति और सुख को प्राप्त कर सकता है। हर जीव अपने कर्म के अनुसार ही सुख और दुख को प्राप्त करता है। कर्म ही हमारे जीवन का करता धरता भी है। जिसको किए बिना हमारा जीवन चल ही नही सकता। इंसान जीवन और मृत्यु के बीच में बहुत से कार्य करता है। पर हमने विचार यह करना है कि हमने कर्म कौन सा करना है। प्रमात्मा के द्धारा बनाई गई यह सृष्टि कितनी सुन्दर और कितनी प्रेरणा दायक है। अगर इंसान चाहे तो इससे बहुत कुछ सीख सकता है। जैसे हम हर सुबह सुरज को देखते है जब वह निकलता है तो जो उसकी रौशनी सारी धरती पर पड़ती है क्या वह सदा के लिए धरती पर रहती है? चांद निकलता है अपनी मधुर रौशनी देता है तो क्या उसकी रौशनी भी सदा के लिए धरती पर रहती है? विशाल सागर को देखे उसकी विशाल लहरे पुरे दम खम के साथ तट की और आती हैं उसे छुने के लिए तो क्या तट को छू लेने के बाद वह सदा सदा के लिए तट की होकर रह गई? नही यह  सत्य नहीं है। यह सभी कुछ हमारे लिए है हमे समझाने के लिए है सांझ ढलने पर जो सुरज की रौशनी है वह वापिस सूरज में समाहित होती है, चांद की रौशनी को चांद में लौटकर शांति मिलती है इसी तरह सागर की लहरों को भी सागर में लौटना होता है। क्यूँकि अंशी सदैव अपने अंश की और ही बढा करता है।
                        आगे साध्वी जी ने कहा कि प्रभु की एक अदुभुत भेंट इस सृष्टि को इंसान जिसका यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह ईश्वर का अंश है। इंसान के अंश होने के साथ इसका अंशी वह प्रमात्मा है। हम देखें कि जहां सभी अंश अपने अंशी की ओर जा रहे हैं वही पर आज के मानव को अपने अंशी की बिलकुल भी खबर नही है। उसकी बिलकुल भी याद इंसान के भीतर नही है।  वह प्रमात्मा से बेमुख हो चुका है। वह अपने कर्म को भुल कर इस संसार की मौह माया की नींद में सो गया है। लेकिन हमारे महापुरूष कहते है कि इंसान इस संसार में तेरा कोई नही है और ना ही तुमने इस संसार में सदा सदा के लिए रहना है तुझे एक ना एक दिन इस संसार को छोड कर जाना है इस लिए तु जाग इस नींद से और अपने अंशी उस प्रभु की और मुख कर उसे जान और अपने जीवन को सार्थक कर। और इस जीवन को मुल्य को जानने के लिए अपने अंशी से मिलने के लिए तुमे आज जरूरत है एक मार्ग दर्शक की। और इंसान का मार्ग दर्शक तो एक गुरू-एक संत ही हो सकता है जो उसका मार्ग प्रशस्त करे। इस संसार की ओर नही बल्कि उसके अंशी उस प्रमात्मा की तरफ जाना ही लक्ष्य हो। वह लक्ष्य जिससे मिलने के लिए उसे यह मानव तन प्राप्त हुआ। इंसान अपने जीवन में बहुत से पाप कर्म करता है इन पापों का निवारण इंसान गुरू की शरण को प्राप्त कर ही कर सकता है। ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करना और अपने जीवन को उसके माध्यम से सफल बनाना ही वह कर्म है जिसे करने के लिए प्रमात्मा ने इंसान को इस संसार में सब से ऊंचा दर्जा दिया। 

                        अंत में इसी अवसर पर साध्वी रवनीत भारती जी के द्धारा प्रेरणा दायक भजनों का गायन किया गया।  

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