Saturday, 15 February 2020

संकीर्तन और साधना मन को सहजता से वश में करना सिखाते हैं

आनंदमार्ग की साधना ले जाती है प्रगति पथ पर 
लुधियाना: 15 फरवरी 2020: (रेक्टर कथूरिया//आराधना टाईम्ज़)::
मन बहुत चंचल है। जल से भी अधिक तरल है शायद। जैसे ही नीचे की तरफ ले जाने वाला ज़रा सा कोई ख्याल आया तो मन उसी तरफ चल निकलता है। शरीर तो उसका अनुचर है।  वफादार नौकर। तुरंत शरीर भी मन के पीछे पीछे चल निकलता है। इसका अहसास मुझे स्वयं भी कई कई बार हुआ है। विभिन्न धार्मिक संगठनों में कई कई तरह की विधियाँ हैं वे सभी इस मन के नियन्त्रण को बनाये रखने का ही काम करती हैं। आनंदमार्ग बहुत ही नया धर्म है। इसे धर्म के तौर पर मान्यता दिलाने के लिए बहुत संघर्ष भी हुआ है। दमन और विरोध के बावजूद आनन्दमार्ग ने दुनिया भर में अपनी जगह बनायी है। तीखे विरोधों के बावजूद आनन्दमार्ग ने न अपनी दिनचर्या बदली न ही मर्यादा और न ही पूजा पद्धति। शरीर से ले कर आत्मा तक खुद को उंचाईयों के शिखर तक पहुँचाने की विधा आनन्दमार्ग के साधकों को दीक्षा के समय ही सिखा दी जाती हैं जिनका क्रमिक विकास समय और साधना के साथ साथ चलता है लेकिन मन की चंचलता बहुत से साधकों को फिर दुनिया के चक्कर में फंसा कर साधना से विमुख कर देती है या फिर कमजोर कर देती है। आनन्द मार्ग के सेमिनार इस नाज़ुक स्थिति में भी साधक को साधना में भी परिपक्व बनाते हैं और जीवन की सफलता के गुर भी बताते हैं। आनन्दमार्ग दुनिया में रहते हुए अध्यात्मिक साधना से जोड़ने के रहस्य सिखाता है। दुनिया में रह कर भी आनन्द मार्ग का  सच्चा साधक परमपिता से जुड़ा रहता है। जैसे कमल का फूल कीचड़ में रह कर भी स्वच्छ बना रहता है उसी तरह आनन्द मार्ग  का साधक भी खुद पर दुनिया के घातक प्रभाव नहीं पड़ने देता। आनन्द मार्ग चुनौतियों से भागने का रास्ता नहीं दिखाता बल्कि उनका सामना करने का साहस देता है। यह साहस हर रोज़ सुबह पांच बजे उसे मिलता है निरंतर साधना के शुभारम्भ से। आनन्द मार्ग की साधना के दरम्यान अक्सर चमत्कारों का अहसास भी कई बार होता है लेकिन बाबा कहते हैं इस तरफ ध्यान भी मत दो वरना नुकसान होगा।  इसे देख ज़रूर लेता है लेकिन इन चमत्कारों की तरफ आकर्षित नहीं होता। उसका रास्ता वही है साधना का रास्ता। संघर्ष, हिम्मत और सही रास्ते पर कठिनाइयों के बावजूद आगे बढना सिखाता है आनंदमार्ग। 
लुधियाना के न्यू कुंदनपुरी स्थित जागृति और अन्य स्थानों पर होते ही रहते हैं ऐसे आयोजन।  पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ इत्यादि बहुत से स्थानों पर होते हैं आयोजन। कभी कहीं तो कभी कहीं। जो लोग जागृति से जुड़े रहते हैं उनको ऐसे आयोजनों का सारा कर्यक्रम समय पर पता लगता रहता है। मुझे याद है वर्ष 2018 मुझे भी  सेमिनार में शामिल होने का सौभाग्य मिला। इस अवसर पर आचार्य कल्याण मित्रानंद अवधूत मुख्य वक्त थे। उन्होंने साधना और ज़िंदगी की बहुत सी बरीकियां बहुत ही सादगी भरे शब्दों से समझायीं। "पंचजन्य" की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सुबह पांच बजे उठने के नियम का पालन आवश्यक है। उस समय "बाबा नाम केवलम" का कीर्तन किसी संगीत सिस्टम से सुनने की बजाये खुद गायन करना चाहिए।  ऐसा करने से ज़्यादा लाभ होगा।
उन्होंने और अन्य वक्ताओं ने ज़िंदगी की छोटी बड़ी मुश्किलों का ज़िक्र भी किया। कैसे सामना करना है इन चुनौतियों का इस गुर भी सिखाया। जब मन डगमगाने लगे, जी घबराने लगे तब कैसे संभालना है खुद को। इन सभी समस्याओं के बहुत  गुर हैं आनंदमार्ग के पास। 
सुबह सुबह पांच बजे उठना आनंदमार्ग के लाईफ स्टाईल में एक आवश्यक नियम है। दिलचस्प बात है कि उस समय नींद भी ज़ोरों से आती है। दिल करता है सब छोडो और थोड़ी देर और सो। आचार्य कल्याण मित्रानन्द ने नींद की  इन मीठी झपकियों में मस्त होने से भी सावधान किया और बताया कि हम आचार्य लोग मुश्किल से केवल तीन घंटे ही सो पाते हैं और इसी में हमारी नींद पूरी हो जाती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर साधना से जुड़ोगे तो घड़ी का अलार्म तो बाद में बोलेगा लेकिन अपने शरीर में छुपा मन का अलार्म पहले बजेगा।  उसे सुनना सीखना आवश्यक है। उन्होंने याद दिलाया कि उस वक़्त बाबा आते हैं और साधक के पास होते हैं। इस तरह इस पद्धति से जहाँ तन मन अरोग रहते हुए वश में तेहते हैं वहीँ ज़िंदगी की अन्य बड़ी बड़ी समस्याएं भी सहजता से हल होती जाती हैं। 

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