Thursday, 11 December 2025

नियमित ध्यान से संभव है समस्त रोगों का निवारण:स्वामी आनंद सिद्धार्थ

WhatsApp On  Thursday 11th December 2025 at 10:13 From Ashok Bharti 

ओशो के जन्मदिवस पर हुआ विशेष आयोजन 


लुधियाना: 11 दिसंबर २०२५:  (मीडिया लिंक 32/ /आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

ओशो मेडिटेशन लवर परिवार द्वारा एक दिवसीय ध्यान शिवर आयोजन  बहुत ही धूमधाम के साथ ओशो के विशेष दूत स्वामी  आनंद सिद्धार्थ (डॉक्टर रवींद्र सेठ) की  अध्यक्षता में बहुत ही धूमधाम से महानगर के एक रिजॉर्ट्स में  किया गया। जिसमें पंजाब के दूर-दूर मोहाली,चंडीगढ़ लुधियाना ब राजपुरा इत्यादि से आए  मित्रों ने शिविर का आनंद लिया। स्वामी सिद्धार्थ ने विशेष रूप से ओशो द्वारा रचित ध्यान विधियां वार्डो, ज़िबारिश, नादब्रह्म,लाफ्टर ध्यान,विपासना,गोल्डन फ्लावर नाइट ध्यान इत्यादि विस्तार पूर्वक समझाते हुए बताया कि इन ध्यान वीडियो को करने से हमें क्या-क्या लाभ हो सकता है। 

उन्होंने स्पष्ट किया कि नियमित ध्यान करने से हम सभी प्रकार के रोगों से बच सकते हैं।इस शिविर में स्वामी जगदीश सदाना,स्वामी गुरचरण नारंग,स्वामी मनजीत सिंह,स्वामी अशोक भारती,योग गुरु स्वामी राजिंदर धरवाल,अतुल जैन,स्वामी आकाश वर्मा,स्वामी विजय जिंदल,सतनाम सिंह,मनजीत कौर,संभव जैन,स्वामी मनु समयाल,स्वामी शाम शर्मा,स्वामी प्रदीप इत्यादि ने शिविर का आनंद लिया।

तस्वीरें,  समाचार और अन्य विवरण अशोक भारतीय के सौंजन्य से। 

Friday, 28 November 2025

उडुपी, कर्नाटक में श्री कृष्ण मठ में लक्ष कंठ गीता पारायण कार्यक्रम में

 प्रधानमंत्री कार्यालय//Azadi Ka Amrit Mahotsav//प्रविष्टि तिथि: 28 NOV 2025 at 3:26 PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पाठ


नई दिल्ली: 28 नवंबर 2025: (पीआईबी दिल्ली )::

एल्लारीगू नमस्कारा !

जय श्री कृष्णा !

जय श्री कृष्णा !

जय श्री कृष्णा !

मैं अपनी बात बताना शुरू करूं उसके पहले, यहां कुछ बच्चे चित्र बनाके ले आए हैं, जरा SPG के लोग और लोकल पुलिस के लोग मदद करें, उसको कलेक्ट कर लें। अगर आपने उसके पीछे अपना एड्रेस लिखा होगा, तो मैं जरूर आपको धन्यवाद पत्र भेजूंगा। जिसके पास कुछ न कुछ है, दे दीजिए, वो कलेक्ट कर लेंगे, और आप फिर शांति से बैठ जाइए। ये बच्चे इतनी मेहनत करते हैं, और कभी-कभी, मैं उनके साथ कभी अन्याय कर देता हूं, तो दुख होता है मुझे।        

जय श्री कृष्णा !

भाइयों-बहनों, 

कर्नाटका की इस भूमि पर, यहां के स्नेही जनों के बीच आना मेरे लिए सदा ही एक अलग अनुभूति होती है। और उडुपी की धरती पर आना तो हमेशा अद्भुत होता है। मेरा जन्म गुजरात में हुआ, और गुजरात और उडुपी के बीच एक गहरा और विशेष संबंध रहा है। मान्यता है कि यहां स्थापित भगवान श्री कृष्ण के विग्रह की पूजा पहले द्वारका में माता रुक्मिणी करती थीं। बाद में जगदगुरु श्री मध्वाचार्य जी ने इस प्रतिमा को यहां प्रतिष्ठापित किया। और आप तो जानते हैं, अभी पिछले ही वर्ष मैं समुद्र के भीतर श्री द्वारका जी का दर्शन करने गया था, वहां से भी आशीर्वाद ले आया। आप खुद समझ सकते हैं कि मुझे इस प्रतिमा के दर्शन करके क्या अनुभूति हुई होगी। इस दर्शन ने मुझे एक आत्मीय आध्यात्मिक आनंद दिया है। 

साथियों, 

उडुपी आना मेरे लिए एक और वजह से विशेष होता है। उडुपी जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के सुशासन की, मॉडल की कर्मभूमि रही है। 1968 में, उडुपी के लोगों ने जनसंघ के हमारे वीएस आचार्या जी को, यहां की नगर पालिका परिषद में विजयी बनाया था। और इसके साथ ही उडुपी ने एक नए गवर्नेंस मॉडल की नींव भी रखी थी। आज हम स्वच्छता के जिस अभियान को राष्ट्रीय रूप देख रहे हैं, उसे उडुपी ने 5 दशक पहले अपनाया था। जल आपूर्ति और ड्रेनेज सिस्टम का एक नया मॉडल देना हो, उडुपी ने ही 70 के दशक में इन कार्यक्रमों की शुरुआत की थी। आज ये अभियान देश के राष्ट्रीय विकास का, राष्ट्रीय प्राथमिकता का हिस्सा बनकर हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। 

साथियों, 

राम चरित मानस में लिखा है- कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा॥ अर्थात, कलियुग में केवल भगवद् नाम और लीला का कीर्तन ही परम साधन है। उसके गायन कीर्तन से, भवसागर से मुक्ति हो जाती है। हमारे समाज में मंत्रों का, गीता के श्लोकों का पाठ तो शताब्दियों से हो रहा है, पर जब एक लाख कंठ, एक स्वर में इन श्लोकों का ऐसा उच्चारण करते हैं, जब इतने सारे लोग, गीता जैसे पुण्य ग्रंथ का पाठ करते हैं, जब ऐसे दैवीय शब्द एक स्थान पर, एक साथ गूंजते हैं, तो एक ऐसी ऊर्जा निकलती है, जो हमारे मन को, हमारे मस्तिष्क को एक नया स्पंदन, एक नई शक्ति देती है। यही ऊर्जा, आध्यात्म की शक्ति की है, यही ऊर्जा, सामाजिक एकता की शक्ति है। इसलिए आज लक्ष कंठ गीता का ये अवसर एक विशाल ऊर्जा-पिंड को अनुभव करने का अवसर बन गया है। ये विश्व को सामूहिक चेतना, Collective Consciousness की शक्ति भी दिखा रहा है।

साथियों, 

आज के दिन, विशेष रूप से मैं परमपूज्य श्री श्री सुगुणेंद्र तीर्थ स्वामी जी को प्रणाम करता हूं।  उन्होंने लक्ष कंठ गीता के इस विचार को इतने दिव्य रूप में साकार किया है। पूरे विश्व में, लोगों को अपने हाथ से गीता लिखने का विचार देकर, उन्होंने जिस कोटि गीता लेखन यज्ञ की शुरुआत की है, वो अभियान सनातन परंपरा का एक वैश्विक जनांदोलन है। जिस तरह से हमारा युवा भगवद्गीता के भावों से, इसकी शिक्षाओं से जुड़ रहा है, वो अपने आप में बहुत बड़ी प्रेरणा है। सदियों से भारत में वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों के ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की परंपरा रही है। और ये कार्यक्रम भी इसी परंपरा का भगवद्गीता से अगली पीढ़ी को जोड़ने का एक सार्थक प्रयास बन गया है।

साथियों, 

यहां आने से तीन दिन पहले मैं अयोध्या में भी था। 25 नवंबर को विवाह पंचमी के पावन दिन अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर में धर्म ध्वजा की स्थापना हुई है। अयोध्या से उडुपी तक असंख्य रामभक्त इस दिव्यतम और भव्यतम उत्सव के साक्षी बने हैं। राम मंदिर आंदोलन में उडुपी की भूमिका कितनी बड़ी है, सारा देश इसे जानता है। परमपूज्य स्वर्गीय विश्वेश तीर्थ स्वामी जी ने दशकों पहले राम मंदिर के पूरे आंदोलन को जो दिशा दी, ध्वजारोहण समारोह उसी योगदान की सिद्धि का पर्व बना है। उडुपी के लिए राम मंदिर का निर्माण एक और कारण से विशेष है। नए मंदिर में जगदगुरु मध्वाचार्य जी के नाम पर एक विशाल द्वार भी बनाया गया है। भगवान राम के अनन्य भक्त, जगदगुरु मध्यावार्य जी ने लिखा था- रामाय शाश्वत सुविस्तृत षड्गुणाय, सर्वेश्वराय बल-वीर्य महार्णवाय, अर्थात, भगवान श्री राम—छः दिव्य गुणों से विभूषित, सर्वेश्वर, और अपार शक्ति-साहस के सागर हैं। और इसीलिए राम मंदिर परिसर का एक द्वार उनके नाम पर होना उडुपी, कर्नाटका और पूरे देश के लोगों के लिए बहुत गौरव की बात है। 

साथियों, 

जगद्गुरु श्री मध्वाचार्य जी भारत के द्वैत दर्शन के प्रणेता और वेदांत के प्रकाश-स्तंभ हैं। उनके द्वारा बनाई गई उडुपी के अष्ट मठों की व्यवस्था, संस्थाओं और नव परंपराओं के निर्माण का मूर्त उदाहरण है। यहां भगवान श्री कृष्ण की भक्ति है, वेदांत का ज्ञान है, और हजारों लोगों की अन्न सेवा का संकल्प है। एक तरह से ये स्थान ज्ञान, भक्ति और सेवा का संगम तीर्थ है। 

साथियों, 

जिस काल में जगदगुरु मध्वाचार्य जी का जन्म हुआ, उस काल में भारत बहुत सी आंतरिक और बाहर की चुनौतियों से जूझ रहा था। उस काल में उन्होंने भक्ति का वो मार्ग दिखाया, जिससे समाज का हर वर्ग, हर मान्यता जुड़ सकते थे। और इसी मार्गदर्शन के कारण आज कई शताब्दियों के बाद भी उनके द्वारा स्थापित मठ प्रतिदिन लाखों लोगों की सेवा का कार्य कर रहे हैं। उनकी प्रेरणा के कारण द्वैत परंपरा में ऐसी कई विभूतियां जन्मी हैं, जिन्होंने सदा धर्म, सेवा और समाज निर्माण का काम आगे बढ़ाया है। और जनसेवा की ये शाश्वत परंपरा ही, उडुपी की सबसे बड़ी धरोहर है। 

साथियों, 

जगद्गुरु मध्वाचार्य की परंपरा ने ही, हरिदास परंपरा को ऊर्जा दी। पुरंदर दास, कनक दास जैसे महापुरुषों ने भक्ति को सरल, सरस और सुगम कन्नड़ा भाषा में जन-जन तक पहुंचाया। उनकी ये रचनाएं, हर मन तक, गरीब से गरीब वर्ग तक पहुंचीं, और उन्हें धर्म से, सनातन विचारों से जोड़ा। ये रचनाएं आज की पीढ़ी में भी वैसी की वैसी ही हैं। आज भी हमारे नौजवान सोशल मीडिया की रील्स में, श्री पुरंदरदास द्वारा रचित चंद्रचूड़ शिव शंकर पार्वती सुनकर एक अलग भाव में पहुंच जाते हैं। आज भी, जब उडुपी में मेरे जैसा कोई भक्त एक छोटी सी खिड़की से भगवान श्री कृष्ण का दर्शन करता है, तो उसे कनक दास जी की भक्ति से जुड़ने का अवसर मिलता है। और मैं तो बहुत सौभाग्यशाली हूं, मुझे इसके पहले भी, ये सौभाग्य प्राप्त होता रहा है। कनकदास जी को नमन करने का सौभाग्य मिला है। 

साथियों, 

भगवान श्री कृष्ण के उपदेश, उनकी शिक्षा, हर युग में व्यवहारिक हैं। गीता के शब्द सिर्फ व्यक्ति ही नहीं, राष्ट्र की नीति को भी दिशा देते हैं। भगवदगीता में, श्री कृष्ण ने सर्वभूतहिते रता: ये बात कही है। गीता में ही कहा गया है- लोक संग्रहम् एवापि, सम् पश्यन् कर्तुम् अर्हसि ! इन दोनों ही श्लोकों का अर्थ यही है कि हम लोक कल्याण के लिए काम करें। अपने पूरे जीवन में, जगदगुरु मध्वाचार्य जी ने इन्हीं भावों को लेकर भारत की एकता को सशक्त किया। 

साथियों, 

आज सबका साथ, सबका विकास, सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, ये हमारी नीतियों के पीछे भी भगवान श्री कृष्ण के इन्हीं श्लोकों की प्रेरणा है। भगवान श्री कृष्ण हमें गरीबों की सहायता का मंत्र देते हैं, और इसी मंत्र की प्रेरणा आयुष्मान भारत और पीएम आवास जैसी स्कीम का आधार बन जाती है। भगवान श्री कृष्ण हमें नारी सुरक्षा, नारी सशक्तिकरण का ज्ञान सिखाते हैं, और उसी ज्ञान की प्रेरणा से देश नारी शक्ति वंदन अधिनियम का ऐतिहासिक निर्णय करता है। श्रीकृष्ण हमें सबके कल्याण की बात सिखाते हैं, और यही बात वैक्सीन मैत्री, सोलर अलायंस और वसुधैव कुटुंबकम की हमारी नीतियों का आधार बनती है। 

साथियों, 

श्रीकृष्ण ने गीता का संदेश युद्ध की भूमि पर दिया था। और भगवद्गीता हमें ये सिखाती है कि शांति और सत्य की स्थापना के लिए अत्याचारियों का अंत भी आवश्यक है। राष्ट्र की सुरक्षा नीति का मूल भाव यही है, हम वसुधैव कुटुंबकम भी कहते हैं, और हम धर्मो रक्षति रक्षित: का मंत्र भी दोहराते हैं। हम लालकिले से श्री कृष्ण की करुणा का संदेश भी देते हैं, और उसी प्राचीर से मिशन सुदर्शन चक्र की उद्घोषणा भी करते हैं। मिशन सुदर्शन चक्र, यानि, देश के प्रमुख स्थानों की, देश के औद्योगिक और सार्वजनिक क्षेत्रों की सुरक्षा की ऐसी दीवार बनाना, जिसे दुश्मन भेद ना पाए, और अगर दुश्मन दुस्साहस दिखाए, तो फिर हमारा सुदर्शन चक्र उसे तबाह कर दे।

साथियों, 

ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई में भी देश ने हमारा ये संकल्प देखा है। पहलगाम के आतंकी हमले में कई देशवासियों ने अपना जीवन गंवाया। इन पीड़ितों में मेरे कर्नाटका के भाई-बहन भी थे। लेकिन पहले जब ऐसे आतंकी हमले होते थे, तो सरकारें हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाती थीं। लेकिन ये नया भारत है, ये ना किसी के आगे झुकता है, और ना ही अपने नागरिकों की रक्षा के कर्तव्य से डिगता है। हम शांति की स्थापना भी जानते हैं, और शांति की रक्षा करना भी जानते हैं।

साथियों,

भगवद् गीता हमें कर्तव्यों का, हमारे जीवन संकल्पों का बोध कराती है। और इसी प्रेरणा से मैं आज आप सभी से कुछ संकल्पों का आग्रह भी करूंगा। ये आग्रह, 9 संकल्प की तरह हैं, जो हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है। संत समाज जब इन आग्रहों पर अपना आशीर्वाद दे देगा, तो इन्हें जन-जन तक पहुंचने से कोई रोक नहीं पाएगा।

साथियों, 

हमारा पहला संकल्प होना चाहिए, कि हमें जल संरक्षण करना है, पानी बचाना है, नदियों को बचाना है। हमारा दूसरा संकल्प होना चाहिए, कि हम पेड़ लगाएंगे, देशभर में एक पेड़ मां के नाम अभियान को गति मिल रही है। इस अभियान के साथ अगर सभी मठों का सामर्थ्य जुड़ जाएगा, तो इसका प्रभाव और व्यापक होगा। तीसरा संकल्प कि हम देश के कम से कम एक ग़रीब का जीवन सुधारने का प्रयास करें, मैं ज्यादा नहीं कह रहा हूं। चौथा संकल्प स्वदेशी का विचार होना चाहिए। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हम सब स्वदेशी को अपनाएं। आज भारत आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी के मंत्र पर आगे बढ़ रहा है। हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे उद्योग, हमारी टेक्नोलॉजी, सब अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो रहे हैं। इसलिए हमें जोर-शोर से कहना है- Vocal for Local. Vocal for Local. Vocal for Local. Vocal for Local. 

साथियों, 

पाँचवे संकल्प के रूप में हमें नैचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देना है। हमारा छठा संकल्प होना चाहिए, कि हम हेल्दी लाइफ स्टाइल को अपनाएंगे, मिलेट्स अपनाएंगे, और खाने में तेल की मात्रा कम करेंगे। हमारा सातवां संकल्प ये हो कि हम योग को अपनाएं, इसे जीवन का हिस्सा बनाए। आठवां संकल्प- मैन्युस्क्रिप्ट, पांडुलिपियों के संरक्षण में सहयोग करें। हमारे देश का बहुत सा पुरातन ज्ञान पांडुलीपियों में छिपा हुआ है। इस ज्ञान को संरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार ज्ञान भारतम मिशन पर काम कर रही है। आपका सहयोग इस अमूल्य धरोहर को बचाने में मदद करेगा।

साथियों, 

आप नौवां संकल्प लें कि हम कम से कम देश के 25 ऐसे स्थानों का दर्शन करेंगे, जो हमारी विरासत से जुड़े हैं। जैसे मैं आपको कुछ सुझाव देता हूं। 3-4 दिन पहले, कुरुक्षेत्र में महाभारत अनुभव केंद्र की शुरुआत हुई है। मेरा आग्रह है कि आप इस केंद्र में जाकर भगवान श्रीकृष्ण का जीवन दर्शन देखें। गुजरात में हर साल भगवान श्रीकृष्ण और मां रुक्मिणी के विवाह को समर्पित माधवपुर मेला भी लगता है। देश के कोने-कोने से और खासकर के नॉर्थ ईस्ट से बहुत से लोग इस मेले में खासतौर पर पहुंचते हैं। आप भी अगले साल इसमें जाने का प्रयास जरूर करिएगा।

साथियों, 

भगवान श्री कृष्ण का पूरा जीवन, गीता का हर अध्याय, कर्म, कर्तव्य और कल्याण का संदेश देता है। हम भारतीयों के लिए 2047 का काल सिर्फ अमृत काल ही नहीं, विकसित भारत के निर्माण का एक कर्तव्य काल भी है। देश के हर नागरिक की, हर भारतवासी की अपनी एक जिम्मेदारी है। हर व्यक्ति का, हर संस्थान का अपना एक कर्तव्य है। और इन कर्तव्यों की पूर्णता में कर्नाटका के परिश्रमी लोगों की भूमिका बहुत बड़ी है। हमारा हर प्रयास देश के लिए होना चाहिए। कर्तव्य की इसी भावना पर चलते हुए विकसित कर्नाटका, विकसित भारत का स्वप्न भी साकार होगा। इसी कामना के साथ उडुपी की धरती से निकली ये ऊर्जा, विकसित भारत के इस संकल्प में हमारा मार्गदर्शन करती रहे। एक बार फिर इस पवित्र आयोजन से जुड़े हर सहभागी को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। और सबको- जय श्री कृष्णा ! जय श्री कृष्णा ! जय श्री कृष्णा ! 

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MJPS/VJ/RK/AK//(रिलीज़ आईडी: 2195836)

Saturday, 25 October 2025

बहुत रहस्य्मय मंदिर और कितना रहस्य्मय रहा होगा निर्माण?

19 October 2025 at 02:00 AM Surya Mandir Konarka-Aradhana Times

आज भी दूर दूर से बुलाती हैं इसकी तरंगे 


घुमक्क्ड़ टीम:09 अक्टूबर 2025:(कार्तिका कल्याणी सिंह/मीडिया लिंक32/आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

दूरदराज की दुनिया जब अपनी तरंगों से किसी को खींचती है तो लम्बी और कठिन दूरियां भी आसान हो जाती हैं। सफर के कष्ट भी सहल हो जाते हैं। लम्बे सफर के कष्ट झेलने के बाद जो आनंद वहां मिलता है उसकी बराबरी शायद किसी और आनंद से संभव ही नहीं हो पाती। आज चर्चा करते हैं सूर्या मंदिर कोणार्क की। 

कोणार्क के सूर्य मंदिर को लेकर बहुत सी बातें और बहुत सी कहानियां प्रचल्लित हैं। कई लोग कुछ बातों को किवदंतियां कहते हैं और कई लोग बिलकुल सच्ची  कथाएं। वास्तव में यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि यह अद्भुत मंदिर गिना जाता रहा। अब भी इसकी मान्यता काम नहीं है। आप इसे एक जीवित मंदिर भी कह सकते हैं। 

समुन्द्र में गुज़रने वाले बड़े बड़े पोत और जहाज़ इसी मंदिर की तरफ खींचे चले आते थे। बहुत रहस्य्मय आकर्षण था इस मंदिर की इमारत में। इस मंदिर के दर्शन करते ही मन में आस्था जगने लगती थी। धर्म का अहसास तीव्र होने लगता था। जैसे सूर्य की किरणें पलक झपकते ही गहन अँधेरे को भी दूर कर देती हैं-उसी तरह मन का अंधेरा भी इस धर्म स्थल को देखने मात्र से दूर होने लगता और तन मन में एक सकारत्मकता छा जाती। आशाएं और उम्मीदें भी पूरी होने लगतीं।  

ज़रा अनुमान लगाएं कितना कठिन और कितना रहस्य्मय रहा होगा इस मंदिर का निर्माण। कितने कारीगर कब तक लगे रहे होंगें। कौन कौन सी समग्री कितनी कितनी मात्रा में लगी होगी।  गौरतलब है की निर्माण के आरंभिक बरसों में न तो जे सी बी जैसी बड़ी मशीनें हुआ करती थी और न ही क्रेन जैसे सिस्टम। इसके बावजूद मंदिर को कितने खूबसूरत अंदाज़ में तराशा गया। इस ऊंचाई और गहराई थ्री डी सिस्टम को मात देती है। 

स पर खोज की जाए तो बहुत से अद्भुत तथ्य सामने आते हैं। इतिहास की किताबें ,  धार्मिक साहित्य और इंटरनेट का युग इस मंदिर के संबंध में हैरानकुन आंकड़े बताता है। 

निर्माण अवधि: मंदिर का निर्माण 1238 से 1264 ईस्वी के बीच हुआ और इसे पूरा होने में लगभग 12 साल लगे। 

कारीगर और श्रमिक: लगभग 1,200 कुशल कारीगरों ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से इसे आकार दिया। 

सामग्री: मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग किया गया। 

वास्तुशिल्प और डिज़ाइन: इसे सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है, जिसमें 24 पहिए हैं। इनमें से कुछ पहिए आज भी धूपघड़ी का काम करते हैं। 

उद्देश्य: इस मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम की विजय और सूर्य देव के प्रति उनकी भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। 

इंजीनियरिंग: पत्थरों को जोड़ने के लिए आधुनिक लोहे के क्लैंप (लॉ प्लेट्स) का उपयोग किया गया था, जो उस समय की उन्नत इंजीनियरिंग को दर्शाता है। 

यूनेस्को विश्व धरोहर: इस मंदिर को 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। 

अब देखिए सुश्री वत्सला सिंह जी का सवाल कितनी अहम बात करता है !  महसूस करेंगे तभी इस सवाल के जवाब में उठे अहसासों का आप महसूस भी कर पाएंगे। शायद आप उस आस्था ,  श्रद्धा और पूजा भाव को महसूस कर पाएं जिनके चलते इस मंदिर के अद्भुत निर्माण  की साधना में आई कठिनाईओं को आप मामूली सा भी समझ पाएं। 

महसूस कीजिए 1250 ई. में कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण को... pic.twitter.com/2YnYF41t1i


 घुमक्क्ड़ों की दुनिया में घुम्मकड़ों की टीम: 09 अक्टूबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

Tuesday, 23 September 2025

मां बह्मचारिणी ने चुना था शिव की तरह कठिन साधना का जीवन

Research and Got on Tuesday 22nd September 2025 at 06:15 PM Regarding 2nd Navratri

उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित भी करती है

चंडीगढ़: 23 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

रास्ते दिखाने और रास्ता बताने वाले बहुत से लोग होते हैं लेकिन सही रास्ता बताने वाला बड़ी किस्मतों से ही मिलता है। हिमालय और देवी मैना की पुत्री को मिले नारद जी और उन्होंने जगा दी मन में शिव की लौ। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने नारद मुनि के कहने पर शिव जी की कठोर तपस्या की थी और इसके प्रभाव से उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। इस कथा से साफ़ ज़ाहिर है कि जिसे चाहो,जिसकी पूजा करो उसकी तरह होने के प्रयास भी करो। 

मुश्किलों और कठिनाईओं के बावजूद पार्वती अपनी आशा या शिव को जीतने का संकल्प नहीं खोतीं। वह शिव की तरह पहाड़ों में रहने लगती हैं और उन्हीं गतिविधियों में संलग्न हो जाती हैं जो शिव करते हैं, जैसे तप, योग और तपस्या; पार्वती का यही रूप देवी ब्रह्मचारिणी का रूप माना जाता है। उनकी तपस्वी प्रवृत्ति शिव का ध्यान आकर्षित करती है और उनकी रुचि जागृत करती है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि 

इस दिन पूजा शुरू करने से पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

साफ कपड़े पहनें।

इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।

मां की प्रतिमा का अभिषेक करें।

मां ब्रह्मचारिणी को सफेद या पीले रंग के फूल, जैसे चमेली, गेंदा या गुड़हल आदि चढ़ाएं।

मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा उन्हें चीनी या गुड़ का भोग भी लगाया जा सकता है।

पूजा के साथ साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, और चेहरे पर निखार आ सकता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है, और व्यक्ति अधिक केंद्रित और स्थिर महसूस करता है, जिससे कार्य करने की क्षमता में सुधार होता है। हालाँकि, यदि व्यक्ति शारीरिक सुख की इच्छा रखता है, तो उसे अकेलापन या नकारात्मक भावनाएँ महसूस हो सकती हैं। 

मानसिक और शारीरिक लाभ

इस पूजा के दौरान बढ़ी हुई ऊर्जा ब्रह्मचर्य पालन से शरीर ऊर्जावान महसूस करता है, और शारीरिक शक्ति बढ़ती है। 

आत्मविश्वास और मनोबल: आत्मविश्वास और आत्म-नियंत्रण बढ़ता है, जिससे व्यक्ति किसी भी काम को करने में सक्षम महसूस करता है। 

एकाग्रता और ध्यान: मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे फोकस बेहतर होता है और कोई भी चीज़ जल्दी सीखी जा सकती है। 

स्वस्थ त्वचा और आभा: चेहरे पर चमक और त्वचा में निखार आ सकता है, जो एक प्रकार की पवित्रता की आभा को दर्शाता है। 

अन्य लाभ

उत्कृष्ट प्रदर्शन: व्यक्ति अपनी ऊर्जा को काम, पढ़ाई और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगाता है, जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है। 

मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक रूप से मजबूत होता है और जीवन के उतार-चढ़ावों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता: शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है। 


Monday, 22 September 2025

शक्ति संचय और शक्ति पूजन का पर्व शारदीय नवरात्रि 22 से शुरू

Research on 19th September 2025 at 04:45 AM for Aradhana Times

शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन: माँ शैलपुत्री की पूजा

चंडीगढ़:21 सितंबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क टीम)::

इस बार भी नवरात्रि का त्यौहार नै शक्ति और नई खुशियों का संदेश ले कर आया है। सूर्य की तीक्ष्ण गर्म और बाढ़ का प्रकोप देखने के बाद देवी मां नई हिम्मत और नई ऊर्जा देने आई है। मां बाढ़ से हुई तबाही में हमारी सार लेने आई है साथ ही हमें सांत्वना देने आई है। कल से अर्थात 22 सितंबर से यह शक्ति पर्व पूरा ज़ोर पकड़ लेगा। शरीर और मन में नई हिम्मत आ जाएगी। मन की नकारत्मक भी छू मंत्र हो कर निकल जाएगी। नई खुशियों हम सभी के किवाड़ों पर दस्तक देंगीं। 

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन, माँ दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है। माँ शैलपुत्री की आराधना से जीवन में स्थिरता, शक्ति और दृढ़ता आती है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं और उसे शांति का आशीर्वाद मिलता है। इनके स्वरूप की तस्वीर देखने से ही मन में गहरी शांति उतरने लगती है। तन में एक नई ऊर्जा नेहसूस होने लगती है। 

माँ शैलपुत्री का स्वरूप

माँ शैलपुत्री के स्वरूप में, उनके माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है। वे दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल धारण करती हैं और नंदी नामक बैल पर विराजमान होती हैं। यह स्वरूप शक्ति, पवित्रता और साहस का प्रतीक है। इस दिन कलश स्थापना के साथ ही नौ दिवसीय इस महापर्व का शुभारंभ होता है, जिसमें माँ शक्ति का आह्वान किया जाता है।

नवरात्रि और देवी के नौ रूप

नवरात्रि का पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग दिव्य रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक रूप एक विशेष गुण, ऊर्जा और जीवन के पहलू का प्रतीक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।

नवदुर्गा के नौ रूप इस प्रकार हैं:

1. माँ शैलपुत्री: प्रथम दिन इनकी पूजा होती है। यह शक्ति, पवित्रता और स्थिरता का प्रतीक हैं।

2. माँ ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह तपस्या, ज्ञान और वैराग्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।

3. माँ चंद्रघंटा: तीसरे दिन इनकी पूजा होती है। यह साहस और वीरता की प्रतीक हैं, और भक्तों को सभी भय से मुक्त करती हैं।

4. माँ कूष्मांडा: चौथे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह सृष्टि की रचनाकार मानी जाती हैं और जीवन में ऊर्जा व समृद्धि लाती हैं।

5. माँ स्कंदमाता: पाँचवें दिन इनकी आराधना होती है। यह मातृत्व और प्रेम का प्रतीक हैं।

6. माँ कात्यायनी: छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक हैं।

7. माँ कालरात्रि: सातवें दिन इनकी पूजा होती है। यह दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों को निर्भय बनाने वाली मानी जाती हैं।

8. माँ महागौरी: आठवें दिन इनकी आराधना की जाती है। यह पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं।

9. माँ सिद्धिदात्री: नौवें दिन इनकी पूजा होती है। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं।

यह नौ दिन, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में, देवी की शक्ति को सम्मान देने और आंतरिक शुद्धिकरण के लिए समर्पित हैं। लोग बहुत  ही आस्था और श्रद्धा से इस पर्व को मानते भी हैं और उत्साह के साथ मनाते भी हैं। मौसम की तब्दीली का यह अवसर भी शक्ति संचय में सहायक होता है। 

Monday, 28 July 2025

एक दिवसीय गुरबाणी कीर्तन के आयोजन में विशेष प्रवचन

Received From DJJS Ludhiana on 28th July 2025 at 3:41 PM

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का लुधियाना में एक और यादगारी कार्यक्रम 


लुधियाना: 28 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने अपने स्थानीय आश्रम हरनामपुरा में एक दिवसीय गुरबाणी कीर्तन का आयोजन किया जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी के सेवक गुरुमुख भाई विष्णुदेवानंद जी ने कहा कि हमारे महापुरुष कहते हैं कि बेशक वो ईश्वर सर्वव्यापी है, परन्तु जिसने भी उसे देखा है,  अपने भीतर से देखा है क्योंकि यह शरीर ही ईश्वर का मंदिर है। जो कुछ हम बाहर देखते हैं या जहाँ हम अनंत जन्म लेने के बाद भी नहीं पहुँच सकते, उसे अपने भीतर ही देखा जा सकता है। 

हमारे महापुरुष कहते हैं कि यदि कोई वास्तविक मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद है, तो वह शरीर है। मनुष्य स्वयं बाहरी मंदिर आदि बनाता है, परन्तु यह शरीर रूपी मंदिर स्वयं ईश्वर ने बनाया है। जिसने भी इस मंदिर के भीतर खोजा है, वह निराश नहीं हुआ। 

ईश्वर को खोजने के लिए हम इस शरीर से जितना दूर जाएंगे, वो हमसे उतना ही दूर होते जाएंगे। जैसा कि महापुरुष कहते हैं कि जब एक बच्चा माँ के गर्भ में होता है, तो वह ईश्वर से जुड़ा होता है। उसे ईश्वर के दर्शन हो रहे होते हैं। 

जब वह बच्चा जन्म लेता है, तो उसका ध्यान टूट जाता है। जब उसकी आँखें खुलती हैं, तो वह अपनी माँ को देखता है, फिर अपने भाई-बहनों को, घर के दूसरे लोगों को, मोहल्ले को, शहर को, देश को, विदेश को, इस तरह वह और दूर होता जाता है। इसलिए अगर हमें उस ईश्वर से मिलना है, तो वह बाहर नहीं, हमारे भीतर ही है।

गुरुमुख भाई ने कहा कि अगर हम चाहें कि हमें इस शरीर रूपी मंदिर में उस ईश्वर के दर्शन अपने आप हो जाएं तो यह असंभव है। हमारे धार्मिक शास्त्र कहते हैं कि इसके लिए हमें एक पूर्ण गुरु की शरण लेनी होगी, जो हमारे मस्तक पर  हाथ रखकर हमें अपने इस शरीर रूपी मंदिर में प्रवेश करवा दे। उसके बाद ही हमें ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं, उससे पहले नहीं।

Sunday, 29 June 2025

मठपति जगदीपा भारती ने बताए ब्रह्मज्ञान

From Divya Jyoti Jagrati Sansthan on Sunday 29th June 2025 at 3:40 PM by Email 

 ब्रह्मज्ञान से आन्त्रिक परिवर्तन संभव-जगदीपा भारती 


लुधियाना
: 29 जून 2025: (कार्तिका कल्याणी सिंह/ /आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

बाहर का जीवन एक बिलकुल ही अलग सा घटनाक्रम है। जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत से अनुभव होते हैं। कुछ याद रहते हैं और कुछ भूल जाते हैं। दूसरी तरफ अंतर्मन की दुनिया बिलकुल ही अलग सी होती है। इस दुनिया में भी इंसान या तो ऊंचाई की तरफ जाता है और या फिर गिरावट की तरफ भी जा सकता है। इसके रहस्य और रास्ते आम तौर पर सभी को पता नहीं लगते। इन जहां रहस्यों की झलक दिखाती हैं दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की मठपति जगदीप भारती। 

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम कैलाश नगर में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें उपस्थित भक्तों को दर्शन देते हुए श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य मठपति जगदीपा भारती जी ने कहा कि अंतरात्मा हर व्यक्ति पवित्र है, दिव्य है। यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी। आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार विकार मन का परिचय उसके इस शिष्य, सात्विक आत्मस्वरूप से गृहस्थ जाए।
यह बाहरी टूल से परिचय संभव नहीं है। केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त अग्नि ही व्यक्ति के हर मानदंड को प्रकाशित कर सकती है। यही नहीं, मनुष्य के नीचे उतरने की दिशा में 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से ऊर्ध्वमुखी या ऊंचे शिखर की दिशा में मोड़ा जा सकता है। इससे वह एक उपयुक्त व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है।
'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद ध्यान-साधना करने से हमारे गुणधर्म दिव्य कर्मों में बदल जाते हैं। हमारा व्यक्तित्व का अंधकारमय पक्ष दूर होना प्रतीत होता है। विचार में सकारात्मक परिवर्तन एक प्रतीत होता है और नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दूर होती हैं। अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके लिए असमान वृद्धि प्रतीत होता है। धारणाओं, भ्रांतियों और नकारात्मक प्रभावों में उलझा हुआ मन आत्मा में स्थित होने लगता है। वह अपने उन्नत स्वभाव अर्थात समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ रही है। यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है।

यदि हम जीवन का यह वास्तविक तत्त्व अर्थात 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें शिष्य सद्गुरु की शरण में जाना होगा। वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोल कर, ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहां मुक्ति और आनंद का साम्राज्य है। सच तो यह है कि हमारा एक ही उपकरण है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युक्ति द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है।

कार्यक्रम के अंत में अनाथ मैत्रेयी भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन किया। इसका भी एक अलौकिक सा आनंद था। अच्छा हो अगर आप भी इसे स्वयं महसूस करने के लिए इस सतसंग में शामिल हों।