Sunday 22 December 2019

आज की ज़्यादातर थरेपियाँ मेंटल वेकेशंज़ ही हैं-साध्वी वीरेशा भारती

Sunday:Dec 22, 2019, 6:40 PM
दिव्य ज्योति जागृति सतसंग में हुई आध्यात्मिक रहस्यों की गहन चर्चा 
लुधियाना: 22 दिसंबर 2019:(आराधना टाईम्ज़ ब्यूरो)::
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा कैलाश नगर में सत्संग का आयोजन किया गया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी वीरेशा भारती जी ने बताया कि आजकल कल्पना पर आधारित बहुत सी  ध्यान-साधनाएं एवं पद्धतियां प्रचलित हैं। बहुत से मनोचिकित्सक भी इन पद्धतियों को थेरेपी के रूप में अपने मरीजों पर आज़माते हैं। उन्हें मेंटल वेकेशन्स (मानसिक छुट्टियों) पर ले जाते हैं। रंग बिरंगी ख्याली दुनिया की सैर कराते हैं। इन सभी ध्यान पद्धतियों का मकसद होता है तनावग्रस्त इंसान को शांति की अनुभूति करवाना। जिस उपकरण के माध्यम से यह कल्पना की उड़ान भरी जाती है उसे मनोवैज्ञानिक मन की आंख  कहते हैं। उनका मानना है कि सब कुछ मन से होता है और मन के स्तर  पर ही होता है। अब क्योंकि इस सारी प्रक्रिया में मन ही कर्ताधर्ता है, इसीलिए इस माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर वास्तविक आनंद को पाना असंभव है। यह सीधा सीधा अनुपात पूर्ण तर्कसंगत है। वह इसलिए कि जो सत्ता आत्मस्वरूप मन के दायरे में आती ही नहीं उसकी अनुभूति मन कैसे कर सकता है। चाहे वह कितनी ही ऊंची छलांग क्यों ना लगा ले।
 गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं कि इंद्रियों से ऊपर मन है ,मन से ऊपर बुद्धि है और आत्मा  बुद्धि से भी ऊपर है। यानी कि  आत्मा का क्षेत्र मन व बुद्धि से बहुत ऊंचा है। मनोविज्ञान में भी आत्म सत्ता को मन से उच्चा माना गया है। विख्यात मनोवैज्ञानिक मास्लो पिरामिड के अनुसार भी सबसे ऊपर आत्मस्वरूप में स्थित होना है। इस शीर्ष पद के नीचे आती है तन और मन से जुड़ी आवश्यकताएं। अतः दूसरे शब्दों में कहें तो मन की परिधि इतनी विस्तृत नहीं कि उसमें आत्मा को सम्मिलित किया जा सके। इसलिए मन अपनी कल्पना के कितने भी पंख क्यों न पसार ले। उसकी  पहुंच आत्म- अनुभव तक जा ही नहीं सकती। अतः आत्म तत्व को देखने के लिए हमें उसी स्तर के उपकरण को प्राप्त करना होगा। इस उपकरण को ब्रह्म ज्ञानी महापुरुषों ने आई ऑफ द सोल अर्थात दिव्य चक्षु की संज्ञा दी है। जो समय के पूर्ण गुरु ही सक्रिय कर सकते हैं। सार रूप में आप भी अपने जीवन में ऐसे तत्व वेता ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु की खोज करें जो आपको ब्रह्म ज्ञान की परम विद्या से दीक्षित कर सके।

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