Saturday, 25 October 2025

बहुत रहस्य्मय मंदिर और कितना रहस्य्मय रहा होगा निर्माण?

19 October 2025 at 02:00 AM Surya Mandir Konarka-Aradhana Times

आज भी दूर दूर से बुलाती हैं इसकी तरंगे 


घुमक्क्ड़ टीम:09 अक्टूबर 2025:(कार्तिका कल्याणी सिंह/मीडिया लिंक32/आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

दूरदराज की दुनिया जब अपनी तरंगों से किसी को खींचती है तो लम्बी और कठिन दूरियां भी आसान हो जाती हैं। सफर के कष्ट भी सहल हो जाते हैं। लम्बे सफर के कष्ट झेलने के बाद जो आनंद वहां मिलता है उसकी बराबरी शायद किसी और आनंद से संभव ही नहीं हो पाती। आज चर्चा करते हैं सूर्या मंदिर कोणार्क की। 

कोणार्क के सूर्य मंदिर को लेकर बहुत सी बातें और बहुत सी कहानियां प्रचल्लित हैं। कई लोग कुछ बातों को किवदंतियां कहते हैं और कई लोग बिलकुल सच्ची  कथाएं। वास्तव में यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि यह अद्भुत मंदिर गिना जाता रहा। अब भी इसकी मान्यता काम नहीं है। आप इसे एक जीवित मंदिर भी कह सकते हैं। 

समुन्द्र में गुज़रने वाले बड़े बड़े पोत और जहाज़ इसी मंदिर की तरफ खींचे चले आते थे। बहुत रहस्य्मय आकर्षण था इस मंदिर की इमारत में। इस मंदिर के दर्शन करते ही मन में आस्था जगने लगती थी। धर्म का अहसास तीव्र होने लगता था। जैसे सूर्य की किरणें पलक झपकते ही गहन अँधेरे को भी दूर कर देती हैं-उसी तरह मन का अंधेरा भी इस धर्म स्थल को देखने मात्र से दूर होने लगता और तन मन में एक सकारत्मकता छा जाती। आशाएं और उम्मीदें भी पूरी होने लगतीं।  

ज़रा अनुमान लगाएं कितना कठिन और कितना रहस्य्मय रहा होगा इस मंदिर का निर्माण। कितने कारीगर कब तक लगे रहे होंगें। कौन कौन सी समग्री कितनी कितनी मात्रा में लगी होगी।  गौरतलब है की निर्माण के आरंभिक बरसों में न तो जे सी बी जैसी बड़ी मशीनें हुआ करती थी और न ही क्रेन जैसे सिस्टम। इसके बावजूद मंदिर को कितने खूबसूरत अंदाज़ में तराशा गया। इस ऊंचाई और गहराई थ्री डी सिस्टम को मात देती है। 

स पर खोज की जाए तो बहुत से अद्भुत तथ्य सामने आते हैं। इतिहास की किताबें ,  धार्मिक साहित्य और इंटरनेट का युग इस मंदिर के संबंध में हैरानकुन आंकड़े बताता है। 

निर्माण अवधि: मंदिर का निर्माण 1238 से 1264 ईस्वी के बीच हुआ और इसे पूरा होने में लगभग 12 साल लगे। 

कारीगर और श्रमिक: लगभग 1,200 कुशल कारीगरों ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से इसे आकार दिया। 

सामग्री: मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग किया गया। 

वास्तुशिल्प और डिज़ाइन: इसे सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है, जिसमें 24 पहिए हैं। इनमें से कुछ पहिए आज भी धूपघड़ी का काम करते हैं। 

उद्देश्य: इस मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम की विजय और सूर्य देव के प्रति उनकी भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। 

इंजीनियरिंग: पत्थरों को जोड़ने के लिए आधुनिक लोहे के क्लैंप (लॉ प्लेट्स) का उपयोग किया गया था, जो उस समय की उन्नत इंजीनियरिंग को दर्शाता है। 

यूनेस्को विश्व धरोहर: इस मंदिर को 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। 

अब देखिए सुश्री वत्सला सिंह जी का सवाल कितनी अहम बात करता है !  महसूस करेंगे तभी इस सवाल के जवाब में उठे अहसासों का आप महसूस भी कर पाएंगे। शायद आप उस आस्था ,  श्रद्धा और पूजा भाव को महसूस कर पाएं जिनके चलते इस मंदिर के अद्भुत निर्माण  की साधना में आई कठिनाईओं को आप मामूली सा भी समझ पाएं। 

महसूस कीजिए 1250 ई. में कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण को... pic.twitter.com/2YnYF41t1i


 घुमक्क्ड़ों की दुनिया में घुम्मकड़ों की टीम: 09 अक्टूबर 2025: (आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

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