From Divya Jyoti Jagrati Sansthan on Sunday 29th June 2025 at 3:40 PM by Email
ब्रह्मज्ञान से आन्त्रिक परिवर्तन संभव-जगदीपा भारती
बाहर का जीवन एक बिलकुल ही अलग सा घटनाक्रम है। जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत से अनुभव होते हैं। कुछ याद रहते हैं और कुछ भूल जाते हैं। दूसरी तरफ अंतर्मन की दुनिया बिलकुल ही अलग सी होती है। इस दुनिया में भी इंसान या तो ऊंचाई की तरफ जाता है और या फिर गिरावट की तरफ भी जा सकता है। इसके रहस्य और रास्ते आम तौर पर सभी को पता नहीं लगते। इन जहां रहस्यों की झलक दिखाती हैं दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की मठपति जगदीप भारती।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम कैलाश नगर में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें उपस्थित भक्तों को दर्शन देते हुए श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य मठपति जगदीपा भारती जी ने कहा कि अंतरात्मा हर व्यक्ति पवित्र है, दिव्य है। यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी। आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार विकार मन का परिचय उसके इस शिष्य, सात्विक आत्मस्वरूप से गृहस्थ जाए।
यह बाहरी टूल से परिचय संभव नहीं है। केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त अग्नि ही व्यक्ति के हर मानदंड को प्रकाशित कर सकती है। यही नहीं, मनुष्य के नीचे उतरने की दिशा में 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से ऊर्ध्वमुखी या ऊंचे शिखर की दिशा में मोड़ा जा सकता है। इससे वह एक उपयुक्त व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है।
'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद ध्यान-साधना करने से हमारे गुणधर्म दिव्य कर्मों में बदल जाते हैं। हमारा व्यक्तित्व का अंधकारमय पक्ष दूर होना प्रतीत होता है। विचार में सकारात्मक परिवर्तन एक प्रतीत होता है और नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दूर होती हैं। अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके लिए असमान वृद्धि प्रतीत होता है। धारणाओं, भ्रांतियों और नकारात्मक प्रभावों में उलझा हुआ मन आत्मा में स्थित होने लगता है। वह अपने उन्नत स्वभाव अर्थात समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ रही है। यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है।
यदि हम जीवन का यह वास्तविक तत्त्व अर्थात 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें शिष्य सद्गुरु की शरण में जाना होगा। वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोल कर, ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहां मुक्ति और आनंद का साम्राज्य है। सच तो यह है कि हमारा एक ही उपकरण है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युक्ति द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है।
कार्यक्रम के अंत में अनाथ मैत्रेयी भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन किया। इसका भी एक अलौकिक सा आनंद था। अच्छा हो अगर आप भी इसे स्वयं महसूस करने के लिए इस सतसंग में शामिल हों।